Chapter 13
सौभाग्यशाली 13
Chapter 13 चार्जशीट कोर्ट में दाखिल हुई और कानूनी प्रक्रिया शुरू हुई। जो लेडी इंस्पेक्टर नंदनी का केस हैंडल कर रही थी वो खुद भी ढिल्लों साहब और उसकी पूरी फैमिली से खुन्नस खाई हुई थी। क्योंकि यह कोई पहला केस नहीं था अनुकल्प के खिलाफ! पहले भी कई लड़कियों की फैमिली ने अनुकल्प के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी। लेकिन उन लोगों के रसूख और दबाव के चलते सभी ने केस वापस ले लिया ताकि उनकी बेटी पर और कोई मुसीबत ना आए। नीलांजना और उसके परिवार की हिम्मत देखकर उस लेडी स्पेक्टर को खुशी हुई और उन्होंने कहा, "मुझे लगा था कि आप भी उन्हीं लोगों में से एक होगी जिन्होंने ढिल्लों साहब के दबाव के आगे झुक कर केस वापस ले लिया। लेकिन ये जानकर खुशी हुई कि आप अपनी बेटी के लिए किस हद तक जा सकती है और उसका परिवार किस तरह सपोर्ट कर सकता है! बेटी का नाम बदनाम ना हो इसी डर से लोग पुलिस कंप्लेंट तक नहीं करवाते।" नीलांजना बोली, "मां हूँ, लेकिन उससे पहले एक औरत भी हूँ। अगर औरत ही औरत का दर्द नहीं समझेगी तो फिर कौन समझेगा? आज अगर मैं पीछे हटी तो और ना जाने कितनी बेटियों के साथ इस तरह का व्यवहार होगा! वो लड़का आगे ना जाने कितनों के साथ इस तरह की हरकत करेगा! अपनी बेटी के जरिए मैं ऐसी कई बेटियों को बचा सकती हूं।" पुलिस इंस्पेक्टर नीलांजना से काफी प्रभावित हुई और नीलांजना के कंधे पर हाथ रख कर वहां से चली गई। कोर्ट केस शुरू होने के कारण ढिल्लों साहब बुरी तरह से बौखलाए हुए थे। अनुकल्प को उन्होंने बचपन से ही इतनी ज्यादा छूट दे रखी थी। वो उसके किसी भी हरकत पर डांट लगाना तो दूर, उल्टा उसे सपोर्ट करते। "आखिर लड़का है भाई! जो चाहे कर सकता है!" इसी सोच ने अनुकल्प की हरकतों को बढ़ावा दिया और वह गलत रास्ते पर निकल पड़ा। ढिल्लों साहब ने सुप्रिया को अपने पास बुलाया और उससे बोले, "मेरी तो किसी बात का कोई असर नहीं हुआ उन लोगों पर! लेकिन तुम एक औरत हो! तुम जाकर उनसे बात करो। अपने एकलौते बेटे की दुहाई दो तो शायद वो लोग ये केस वापस लेने के लिए तैयार हो जाए!बदले में उन लोगों को जितने पैसे चाहिए, उन्हें मिल जाएंगे! इतने मिलेंगे कि जिंदगी भर बैठकर खाएंगे। लेकिन उसके लिए तुम्हें अपने बेटे को बचाना होगा। तुम्हारा बेटा जेल की सलाखों के पीछे सड़ जाएगा। क्या यही चाहती हो तुम? देख पाओगी अपने बेटे को इस तरह?" सुप्रिया ने कुछ नहीं कहा और कमरे से बाहर निकल गई। उसका मन बहुत ज्यादा बेचैन था। अपने पति की बात मानते हुए वो सीधे नीलांजना के घर पहुंची। सुप्रिया को अपने घर में देखते ही नीलांजना चौंक गई। आदर्श ने देखा तो उन दोनों को ही घर की छत पर भेज दिया ताकि उन दोनों के बीच होने वाली कोई भी बात किसी के कानों तक ना पहुंचे। नीलांजना ने अपने दोनों बाजुओं को फोल्ड किया और सुप्रिया के सामने खड़ी होकर बोली, "अब तुम बताओ! तुम यहाँ क्या करने आई हो? अपने पति की तरह तुम भी कोई ऑफर लेकर आई हो?" सुप्रिया बोली, "नहीं नीलांजना! मैं कोई ऑफर लेकर नहीं आई हूं। बल्कि उस झूठ से पर्दा उठाने आई हूं जो मैंने तुम से बोला! वो धोखा जो मैंने तुम्हारे साथ किया था! नीलांजना. ...... अनुकल्प तुम्हारा बेटा है। उसे तुमने जन्म दिया है। अपने बेटे को तुम जेल भेजना चाहती हो?" नीलांजना तीखी हंसी हंसते हुए बोली, "अनुकल्प मेरा बेटा है? चलो! यह तो तुमने बता दिया लेकिन यह कैसे भूल गई कि नंदनी भी मेरी ही बेटी है! भले ही उसे तुमने जन्म दिया हो। तुम्हारी गलती नहीं है! हमारा समाज ही ऐसा है। ये सिर्फ बेटों को याद रखता है, बेटियों को भुला दिया जाता है। जब तुम्हें याद नहीं कि नंदनी को तुमने जन्म दिया है तो फिर मैं यह कैसे उम्मीद करूं कि तुम मेरी नंदिनी के लिए आवाज उठाओगी? और तुम्हें क्या लगता है! क्या मुझे पता नहीं! नंदनी जब बड़ी हुई, जब उसके रूप रंग निखर कर आए तभी मैं समझ गई थी। मैं तो क्या आदर्श भी यह बात जानते हैं। क्योंकि नंदिनी बिल्कुल तुम्हारी तरह दिखती है। तुम्हें क्या लगता है क्या मुझे नहीं पता अनुकल्प को किसने जन्म दिया? आदर्श बिल्कुल सही बोल रहे थे! वह लड़का हमारा बेटा कभी हो ही नहीं सकता। क्योंकि हमारा उत्कर्ष औरतों की इज्जत करना जानता है। तुम्हारे बेटे की तरह नहीं जिसकी रगों में खून की जगह सिर्फ अय्याशी दौड़ती है। तुम्हारी बात अगर खत्म हो गई हो तो तुम जा सकती हो। वैसे भी इतनी देर रात हम अपने घर का दरवाजा खुला नहीं रखते। चाहे लड़का हो चाहे लड़की, दोनों घर के अंदर होते हैं। आपसे मिलकर हमें बिल्कुल भी खुशी नहीं हुई मिसेज सुप्रिया ढिल्लों!" सुप्रिया से वहां और रुका नहीं गया। नीलांजना का ऐसा व्यवहार देख वह वहां से निकल गई। आदर्श नीलांजना को गले लगाते हुए बोला, "मुझे बहुत खुशी है कि तुमने नंदिनी का साथ दिया। खून के रिश्ते से बड़ा प्यार का रिश्ता होता है।" सुप्रिया हार कर घर वापस आई और मंदिर में बैठकर अपने दोनों हाथ जोड़ लिए। कल बहुत कुछ होने वाला था। कल कोर्ट की तारीख थी। जिस बेटे को इतने नाज़ों से पाला था, उसे सजा हो जाएगी तो फिर वह क्या करेगी? लेकिन फिर मन में ख्याल आया कि नंदिनी भी तो उसकी बेटी है! उसकी अपनी बेटी! और नीलांजना उसकी बेटी की खातिर अपने ही बेटे के खिलाफ खड़ी थी। यह सोच कर ही सुप्रिया को बहुत अजीब लग रहा था। अपने ख्यालों में सुप्रिया इस कदर उलझी हुई थी कि उसे अहसास ही नहीं हुआ, उसकी साड़ी का पल्लू मंदिर में रखे दीये की लौ को छू गया और पल्लू ने आग पकड़ ली। घर की एक नौकरानी ने देखा तो भागते हुए आई और जल्दी से उसके आंचल का आग बुझाते हुए बोली, "देखकर मालकिन! भगवान की भक्ति में ऐसे भी ना खो जाओ कि अपनी सुध बुध ही ना रहे! भगवान से अपने मन की बात कहना अलग बात है लेकिन उनसे कुछ उम्मीद करना दूसरी बात। अभी आंचल ने आग पकड़ ली थी। कुछ हो जाता तो भगवान नहीं आते आप को बचाने के लिए। हम और आप को ही कुछ करना पड़ता है। भगवान किसी को भेजते हैं, वह खुद नहीं आते। हमें अपनी रक्षा खुद करनी होती है, चाहे जानवरों से हो या चाहे इंसानों से या फिर अपनों से!" उस नौकरानी ने यह सारी बातें यूं ही कही थी या फिर उसकी बातों के पीछे कोई मतलब था, यह तो वो ही जाने! लेकिन उसकी बातों ने सुप्रिया को बहुत कुछ समझा दिया।