Chapter 4
सौभाग्यशाली 4
Chapter 4 "जब तक हम ना बदले समाज कैसे बदलेगा!" यह कहावत आदर्श की मां पर सटीक बैठती थी। उत्कर्ष और नंदिनी के बीच भेदभाव की यह तो बस शुरुआत थी। जैसे-जैसे दोनों बड़े हो रहे थे, आदर्श की मां के नियम कायदे भी बढ़ रहे थे। उत्कर्ष को खाने में ज्यादा घी दिया जाता तो नंदनी को काम। उत्कर्ष के दूध का गिलास ऊपर तक भरा होता तो नंदिनी का ग्लाश थोड़ा खाली रह जाता। नीलांजना और आदर्श कभी अपने बच्चों में किसी तरह का अंतर नहीं चाहते थे। उन दोनों ने अपनी मां से छुपकर नंदनी को भी वह सब कुछ दिया जो उत्कर्ष को दिया जाता था। हद तो यहां तक थी कि नंदिनी के सोने के तरीके में भी आदर्श की मां का दखल जरूरी था। बेटों को पीठ के बल सुलाना और बेटियों को करवट लेकर। नीलांजना और आदर्श बुरी तरह से चिढ़ जाते। दोनों बच्चे बड़े हुए और स्कूल जाना शुरू कर दिया। नंदिनी और उत्कर्ष 6 साल के थे जब नीलांजना अपने सास ससुर और पति के साथ किसी रिश्तेदार के यहां कुछ दिनों के लिए शादी समारोह में शामिल होने गई थी। वो सारे रस्म खुशी खुशी निभा रही थी। परिवार की सबसे बड़ी बहू होने के नाते उसके कुछ फर्ज थे जिन्हें पूरा करते हुए वह बच्चों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती थी। नीलांजना की सास भी बाकी औरतों के साथ शादी के काम निपटाने में लग जाती। आदर्श के पिता और आदर्श दोनों बच्चों का ख्याल रखते। जिस लड़के की शादी थी, उसके पिता आदर्श के दूर के रिश्ते में चाचा जी लगते थे। उमर उनकी बहुत ज्यादा नहीं थी। कम उम्र में शादी होने की वजह से बच्चे जल्दी हो गए और अब वह खुद अपने घर में बहु का स्वागत करने जा रहे थे। शादी की रात थी और बारात जनवासे के लिए निकल चुकी थी। जनवासे तक पहुंच कर अचानक से आदर्श को ध्यान आया के उत्कर्ष तो उसके पास था लेकिन नंदिनी उसे कहीं नजर नहीं आ रही थी। आदर्श के पिता नंदनी को आदर्श के हवाले कर किसी से मिलने चले गए थे। आदर्श परेशान हो उठा। उसने उत्कर्ष को अपनी मां के हवाले किया और नंदिनी को ढूंढने निकल पड़ा। नीलांजना को जब पता चला, वह भी अपनी बेटी को ढूंढने निकल पड़ी। उसका दिल बुरी तरह से बेचैन हो रखा था। महज 6 साल की बच्ची इस शहर में जहां वह किसी को जानती नहीं, आखिर कहां जा सकती थी! शादी के रस्मों में लगे लोगों को इसकी कानो कान खबर नहीं थी। जाने क्यों नीलांजना को खयाल आया और उसने आदर्श से कहा, "आदर्श...! क्यों ना एक बार हम लोग वहीं चले जहां से हम लोग आए थे। जहां हमारा सारा सामान रखा हुआ है।" आदर्श ने कहा, "लेकिन वहां तो अभी कोई नहीं होगा। उसकी चाबी चाचा जी के पास थी और चाचा जी को तो अभी जनवासे में होना चाहिए। मैं उन्हें ढूंढता हूं। हो सकता है नंदिनी वहीं रह गई हो! मैं उनसे चाबी लेकर आता हूं, तुम यहीं रुको।" नीलांजना का मन बेचैन हुआ जा रहा था। उसने कहा, "आप चाबी लेकर आइए, मैं वहां पहुंचती हूं।" आदर्श वहां से जनवासे की तरफ निकल गया और नीलांजना उस लॉज की तरफ बढ़ गई जहां वह सभी ठहरे हुए थे। वहां पहुंचते ही अंदर से उसे नंदनी के रोने की आवाज सुनाई दी। अपने बच्चे की आवाज सुनते ही नीलांजना बेचैन हो गई। उसे लगा शायद सब लोग उसे यहां अकेला छोड़ कर चले गए हैं। उसने जल्दी से आदर्श को फोन किया और बोली, "आदर्श! नंदनी यही पर है वह अंदर रो रही है। तुम्हें चाचाजी मिले क्या?" आदर्श ने कहा, "नहीं! मैं बस उन्हें यहां ढूंढ रहा हूं। जैसे ही मिलते हैं, मैं आता हूं। तब तक तुम वहां किसी खिड़की या दरवाजे की ओट से नंदनी को चुप कराने की कोशिश करो।" नीलांजना ने फोन काटा नहीं और वही से खिड़की ढूंढने लगी। एक खिड़की उसे खुली हुई दिखी जहां से उसने अंदर झांकने की कोशिश की तो अंदर का नजारा देख कर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। वो जोर से चिल्लाई, "चाचाजी..........!" चाचाजी अंदर नंदनी के साथ थे और उस मासूम सी बच्ची के साथ गलत हरकत करने की कोशिश कर रहे थे। नीलांजना से रहा नहीं गया। उसने बाहर रखी एक मोटी लकड़ी उठाई और दरवाजे पर मारने लगी। नीलांजना का फोन अभी भी चालू था। उसकी चीख आदर्श ने सुनी और कहीं कुछ गलत ना हो गया हो, ये सोचकर आदर्श वहां से भागा। जिस तरह से वहां जनवासे से निकला, उसे देख कुछ लोगों को शक हुआ। दूल्हे का छोटा भाई आदर्श तो पीछे दौड़ा। कोशिश करते करते नीलांजना ने दरवाजा तोड़ दिया और वह अंदर पहुंची। उसने अपना आपा खो दिया और उसी मोटी लकड़ी से उसने चाचा जी की पिटाई करनी शुरू कर दी। इस वक्त उसके सामने उसके चाचा ससुर नहीं बल्कि वह इंसान खड़ा था जिसने उसकी बेटी के साथ गलत हरकत करने की कोशिश की थी। वो जगह जनवासे से ज्यादा दूर नहीं था। आदर्श को वहां पहुंचने में ज्यादा देर नहीं लगी। वहां पहुंच कर उसने जो नजारा देखा, उसे देख कर उसके हाथ पैर ठंडे पड़ गए। नंदिनी चादर में लिपटी हुई थी और नीलांजना के सर पर खून सा वार था। वह बुरी तरह से चाचा जी को मारे जा रही थी और चाचा जी लहूलुहान हुए पड़े थे। आदर्श ने जल्दी से जाकर नीलांजना को रोका तो नीलांजना चीख पड़ी, "मैं इस इंसान को जान से मार डालूंगी!!! हिम्मत कैसे हुई इसकी मेरी बच्ची को छूने की? उसके मन पर जो घाव लगा है, उसको कैसे भरेंगे हम? इतनी छोटी सी बच्ची देखकर इस इंसान की नीयत डोल गई? कितना बड़ा हैवान है यह! मुझे नहीं रहना यहां पर। आदर्श! हम अभी के अभी यहां से घर वापस चले जाएंगे लेकिन जाने से पहले मुझे इस इंसान को जेल की सलाखों के पीछे डालना है। इस हैवान को इसके किए की सजा दिलवाकर रहूंगी। आप पुलिस को बुलाइए।" आदर्श को समझ नहीं आया कि वह ऐसी हालत में क्या करे? उसकी बच्ची के साथ बुरा करने वाला खुद उसके चाचा जी थे। वह कुछ करता उससे पहले ही आदर्श की चाची जी ने नीलांजना के सामने हाथ जोड़ दिए और कहा, "इस बात को यहीं दबा दो बहू! अगर यह बात फैली तो आज जो रिश्ता होने जा रहा है वह टूट जाएगा। समाज में हमारी बहुत बदनामी होगी सो अलग! हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे!" नीलांजना गुस्से से फुफ्कारती हुई बोली, "ऐसे इंसान के घर में कोई बेटी सुरक्षित रह भी कैसे सकती है? जब इस इंसान ने मेरी मासूम सी 6 साल की बेटी को अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा तो क्या यह अपनी बहू को छोड़ेगा? आप खुद सोचिए! क्या कोई मां बाप आपके घर अपनी बेटी देना चाहेगा जहाँ एक वहशी दरिंदा रहता है!" आदर्श की चाची ने नीलांजना को मनाने की हर कोशिश की लेकिन नीलांजना टस से मस नहीं हुई। उसके सामने उसकी बेटी खड़ी थी जो अभी भी रोए जा रही थी। उसने ठान लिया था कि वह पुलिस में जाकर रहेगी लेकिन नीलांजना की सास ने मोर्चा संभाला और उसे उसी वक्त आदर्श के साथ घर भेज दिया। अगर कोई और वक्त होता तो आदर्श खुद नीलांजना का साथ देता लेकिन इस वक्त वो लोग बाराती बनकर किसी और के दरवाजे पर आए थे। किसी और शहर में इस तरह तमाशा करना उसे सही नहीं लगा। घर पहुंच कर उसने कंप्लेन करने का सोचा और नीलांजना को लेकर वहां से चला गया। इधर लड़की वालों को भी इस सब की खबर मिल चुकी थी। उन लोगों ने वही किया जैसा नीलांजना ने कहा था। लड़की के पिता ने हाथ जोड़ लिए और बारात वापस भेज दिया। लड़की की मां ने चाची जी से कहा, "ऐसा इंसान जब 6 साल की बच्ची पर बुरी नजर डाल सकता है तो क्या हमारी बच्ची पर वह बुरी नजर नहीं डालेगा? हम अपनी बेटी को आपके घर भेज रहे थे यह सोच कर कि वह सुखी रहेगी, सुरक्षित रहेगी। लेकिन आपके घर भेजने से बेहतर है कि मैं अपनी बेटी को जान से मार डालू! हमें माफ कीजिए और अपनी बारात वापस ले जाइए।" वहां शादी में शामिल होने आए लड़की वालों की तरफ से जितने भी लोग थे, सभी एक सुर में खड़े हो गए और बारात को वापस लौटना पड़ा, वह भी खाली हाथ।क्रमशः