Chapter 14
अंतिम पड़ाव
Chapter 14 कोर्ट केस शुरू हुआ और साथ ही दोनों के वकीलों की तरफ से आरोप-प्रत्यारोप भी शुरू हो गए। अनुकल्प इस वक्त अग्रिम जमानत पर था इसलिए बड़े आराम से अपने पापा की गाड़ी में कोर्ट पहुंचा। उसके चेहरे पर जरा भी अपराध बोध के निशान नहीं थे। उसे देख कर जरा सा भी यह नहीं लग रहा था कि उसने कोई गलती की है। नंदिनी ने जब उसे देखा तो उसने नीलांजना का हाथ पकड़ लिया। उसके पीछे आदर्श खड़ा था और उत्कर्ष ने आकर उसका कंधा पकड़ लिया। एक पूरा परिवार अपनी बेटी के साथ खड़ा था। नंदनी को घबराने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं थी लेकिन अनुकल्प ने उसके मन में कुछ इस कदर डर बैठा दिया था कि वह चाह कर भी उस डर को निकाल नहीं पा रही थी। अनुकल्प के वकील ने ना सिर्फ नंदनी पर, बल्कि उसके पूरे परिवार पर राइवलरी का आरोप लगाया। क्योंकि दोनों ही परिवार एक ही व्यवसाय से जुड़े हुए थे। लेकिन नंदिनी के वकील ने काफी सबूत जुटा रखे थे। उन्होंने एक-एक कर सारे सबूत कोर्ट के सामने रखने शुरू कर दिए। किस तरह अनुकल्प ने पहली बार नंदनी के साथ बदतमीजी की थी! रेस्ट रूम के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे का फुटेज इस बात का सबूत था। साथ ही कुछ और परिवार भी थे जिन्हें अनुकल्प से शिकायत थी। उन लोगों ने भी कटघरे में खड़े होकर अनुकल्प के खिलाफ गवाही दी। ढिल्लों साहब को वकील साहब ने तसल्ली दी थी कि उनका केस काफी मजबूत है। अगर ना भी हुआ तो भी वो किसी ने किसी तरह बात को घुमा ही देंगे। नंदनी जख्मी हालत में अनुकल्प के दोस्त के फार्महाउस पर मिली थी और यह बात अनुकल्प के पक्ष में जा रही थी। वकील ने इस बात को भुनाना चाहा। अनुकल्प का वह दोस्त वहीं पर मौजूद था। वो एकदम से चिल्लाया, "नहीं जज साहब! वह मेरा फार्म हाउस जरूर है लेकिन उसकी चाबी अनुकल्प के पास थी और यह बात मैं साबित कर सकता हूं। हमारे फार्महाउस के बाहर भी सिक्योरिटी कैमरा लगे हुए हैं। उसमें आप साफ़ देख सकते हैं कि अनुकल्प नंदनी को वहां जबरदस्ती लेकर आया था।" ढिल्लों साहब ने सर पकड़ लिया और उसने घूरकर अनुकल्प के उस दोस्त की तरफ देखा। अब अनुकल्प के चेहरे पर हल्की परेशानी नजर आने लगी थी क्योंकि उसके पिता इस वक्त बहुत ज्यादा परेशान लग रहे थे। वकील साहब ने दूसरा दाव् चला और बोले, "जज् साहब! अगर मेरे मुवक्किल में इंसानियत बाकी नहीं होती तो इस लड़की का रेप जरूर हुआ होता! जो हुआ इसका मतलब यह कि उन दोनों के बीच कोई आपसी रंजिश थी। जरूर इस लड़की ने ऐसा कुछ किया होगा। कोई ऐसी हरकत की होगी जिस वजह से मेरे मुवक्किल को गुस्सा आया। अगर वह इस तरह के इंसान होते तो सिर्फ मारपीट नहीं करते बल्कि और भी बहुत कुछ करते। वैसे भी मेरे मुवक्किल की उम्र 18 साल अभी पूरी नहीं हुई है, इसलिए उन पर दया दिखाई जाए।" कहते हुए वकील साहब ने अनुकल्प के पुराने सारे नकली सर्टिफिकेट जज साहब के सामने पेश कर दिए। वकील की बात सुनते ही नीलांजना गुस्से में उठी और बोली, "नहीं जज साहब! अनुकल्प की उम्र उतनी ही है जितनी नंदिनी की है!" जज साहब ने नीलांजना को बैठने के लिए बोल दिया। वकील साहब उल्टा नीलांजना पर ही अपनी बेटी को इस्तेमाल करने का इल्जाम लगा दिया और यह कोर्ट में साबित करने लगे के बिजनेस में दुश्मनी होने के कारण नीलांजना और आदर्श ने अपने बेटी नंदिनी को हथियार की तरह इस्तेमाल किया और अनुकल्प के खिलाफ बहुत बड़ी साजिश रच डाली। ऐसे कई तरह के इलज़ाम और उनसे जुड़े कुछ झूठे सबूत भी उन्होंने कोर्ट के सामने रख दिए। इस केस में नंदिनी का फोन बड़ा सबूत था लेकिन पुलिस कस्टडी से उसे गायब कर दिया गया था। केस को अपने पक्ष में जाता देख ढिल्लों साहब के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। जज साहब ने भी अनुकल्प के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा, "अनुकल्प ने जो भी किया, भले ही वह किसी के उकसावे से किया हो लेकिन औरत पर इस तरह हाथ उठाना, उसके साथ इस तरह की हिंसा करना कानूनन अपराध है। चाहे जो हो, अनुकल्प को इसका हर्जाना और सजा दोनों से गुजरना होगा।" कहते हुए उन्होंने जैसे ही अपना फैसला सुनाना चाहा, सुप्रिया एकदम से उठ खड़ी हुई और चिल्लाई, "रुकिए जज साहब! अभी मुझे भी कुछ कहना है।" जज साहब के कहने पर सुप्रिया ने कटघरे में आकर बोलना शुरू किया। "कोई भी फैसला लेने से पहले मेरी बात सुन लीजिये। आप के सामने जो सारे दस्तावेज पेश दिए हैं वो सारे झूठे हैं। अनुकल्प की उम्र उतनी ही है जितनी नंदिनी की है। क्योंकि वह दोनों एक ही दिन, एक ही समय पर, एक ही हॉस्पिटल में पैदा हुए थे।" सुप्रिया की बात सुनकर वहां मौजूद सभी हैरान रह गए। आखिर सुप्रिया कहना क्या चाहती थी और उसे कैसे पता? जज साहब ने सवाल किया तो सुप्रिया बोली, "जज साहब! हमारे वकील साहब एक माँ पर इल्जाम लगा रहे हैं कि उन्होंने अपनी बेटी को मेरे बेटे के खिलाफ इस्तेमाल किया! लेकिन सच तो कुछ और है!" बात हाथ से निकलता देख ढिल्लों साहब ने उठकर कहा, "जज साहब! मेरी पत्नी की दिमागी हालत ठीक नहीं है। वह अदालत का वक्त जाया कर रही है।" सुप्रिया गुस्से में फुफ्कार उठी, "मेरी दिमागी हालत बिल्कुल ठीक है हरजीत सिंह ढिल्लों!! अगर आप अपनी बेइज्जती नहीं करवाना चाहते तो शांति से बैठे रहो!" फिर वो वकील साहब की तरफ देख कर बोली, "आप ने एक माँ पर इलज़ाम लगाया है ना! जानते क्या हैं आप उसके बारे में? जो अपने ही बेटे के खिलाफ खड़ी हो जाए, वो माँ कैसी हो सकती है? औरत के सम्मान के लिए, सच्चाई के लिए एक मां अगर अपने ही बेटे को सजा दिलवाना चाहती है तो वह मां गलत कैसे हो सकती है? मैं बिल्कुल सही कह रही हूं जज साहब! मुझे कैसे पता कि नंदिनी और अनुकल्प एक ही दिन एक ही हॉस्पिटल में पैदा हुए? मैं बताती हूं आपको सारी सच्चाई! बरसों पहले जब मैं पहली बार पेट से थी उस वक्त मेरी कोख में ही मेरे बच्चे को मार दिया गया क्योंकि वह एक लड़की थी। दूसरी बार मैं अपने ससुराल से दूर अपने मायके में रही इसलिए अपने बच्चे को जन्म दे पाई। हर पल मैं भगवान से नहीं मनाती कि भगवान मुझे बेटी मत देना वरना उसका अपना बाप उसकी जान ले लेगा। लेकिन भगवान ने मेरी नहीं सुनी और मैंने एक बेटी को जन्म दिया। नीलांजना भी उसी हॉस्पिटल में थी और मैं उसे जानती थी। उसने दो बेटों को जन्म दिया था, जुड़वा बेटे! इस बात की खबर मुझे बहुत पहले लग गई थी जब नर्स आपस में बात कर रही थी कि नीलांजना को जुड़वा बेटे होने वाले हैं। मैंने उसको पैसे दिए कि वह बस मुझे नीला का एक बच्चा लाकर दे और इस तरह मैंने पैसों के बल पर अपनी बेटी को निला की गोद में रख दिया और उसका बेटा अपने साथ ले आई। हाँ जज साहब! वह मां मेरी बेटी के लिए वह अपने बेटे के खिलाफ खड़ी है। अनुकल्प नीलांजना का बेटा है और नंदिनी मेरी बेटी है। सच जानते हुए भी उस माँ ने मेरी बेटी का साथ दिया। ऐसा क्यों होता है जज साहब! क्या बेटियां समाज के लिए जरूरी नहीं है? क्या हमारा कोई अस्तित्व नहीं? क्या लड़के भगवान का अवतार है? लड़कियां कुछ नहीं होती! जिस तरह बेटियों को कोख में ही मार दिया जाता है......... क्या लड़कें अपने बाप की कोख से पैदा होते हैं या फिर उन्हें भी जन्म लेने के लिए औरत की जरूरत होती है........? हरजीत सिंह ढिल्लों! अगर तुम्हारी मां को भी पैदा होने से पहले मार दिया गया होता तो तुम कहां से पैदा होते? मेरे लिए तुम उसी दिन मर गए थे जब तुम ने मेरी बच्ची की जान ली थी! मैं तो बस अपनी बच्ची को बचाने की कोशिश कर रही थी! लेकिन इस सब में सारा दोष मर्दों का नहीं है। मर्दों का नजरिया कौन बदलता है? एक औरत ही बदलती है! दूसरी औरतों के बारे में गॉसिप औरतें ही करती है। बचपन से जो माहौल एक लड़के को मिलता है, वो वही तो सीखता है। अगर घर में औरतों को सम्मान मिले तो लड़के बाहर भी हर किसी को सम्मान से ही देखते हैं। लेकिन जिस घर में बहू बेटियों को एक नौकर बना कर रखा जाए, बात बात पर उसे जलील किया जाए तो उस घर का बेटा ऐसी ही हरकत करता है। सीख हमें पूरी दुनिया देती है लेकिन संस्कार हमें घर से मिलते हैं। मैं नीलांजना के बेटे को वो संस्कार नहीं दे पाई जो नीलांजना ने अपने बेटे को दिया। उत्कर्ष और अनुकल्प दोनों सगे भाई हैं लेकिन उन दोनों में जमीन आसमान का फर्क है। लेकिन यह फर्क आया कैसे? इसलिए क्योंकि दोनों परिवारों में भी जमीन आसमान का फर्क है। आदर्श अपनी पत्नी को अपने बराबर का दर्जा देते हैं और मेरे पति..........! वो तो मेरे पति है ही नहीं! मैं पूछती हूं जज साहब! क्या हम औरतों का कोई वजूद नहीं है? क्या हम औरतें भी इंसान नहीं होती है? हम कोई जानवर है जिसे किसी भी खूंटे से बांध दिया जाए और हमारा काम है बस दूसरों की सेवा करना है? भगवान ने तो हमें मर्दों के बराबर ही बनाया है। यहां तक की प्रकृति को पुरुष से ऊपर रखा गया है। मां का दर्जा हमेशा ऊपर होता है तो फिर उसी स्त्री को इतना तिरस्कार क्यों किया जाता है? एक लड़की जब अपनी मां की कोख में होती है तब से उसकी हिफाजत करनी पड़ती है। कभी उसके पिता से, कभी अपनों से, कभी दुनिया से! मरते दम तक उसे अपना दामन बचा कर रखना पड़ता है। फिर चाहे उसके लिए कितनी भी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े! खुद को खत्म ही क्यों ना करना पड़े! हमारा जीवन हमारे लिए होता ही नहीं है! हमारा काम है मर्दों की गुलामी करो! आखिर क्यों? बेटे भाग्य से जन्म लेते है और बेटियाँ सौभाग्य से! मैं वो सौभाग्यशाली माँ हु जिसनें एक बेटी को जन्म दिया लेकिन उतनी ही बड़ी दुर्भाग्यशाली क्योंकि मेरा सौभाग्य नीलांजना के घर पल रहा है। जो लोग यह कहते हैं कि वंश बेटों से चलता है! मैं उन लोगों से पूछना चाहती हूं, अगर वंश बेटों से चलता है तो फिर बहुओं का क्या काम? अपने बेटे के लिए लड़कियां क्यों ढूंढते हैं वह लोग? लड़के ही ढूंढ लिया करें! ढिल्लों साहब.........! इतना कुछ होने के बाद मैं भी देखती हूं कि आपके घर में कौन अपनी बेटी देना चाहेगा! आपको क्या लगता है आपके इरादे मुझे नहीं पता? आपने कहा और मैं अपने बेटे की दुहाई देने नीला के घर चली गई? ये आपकी गलतफहमी है! जिस लड़की को रास्ते से हटाने के लिए आपके वकील साहब तरह-तरह के उपाय दे रहे थे, वह सुनकर ही एक मां का कलेजा कांप गया। अपने वकील साहब के उपायों पर अमल करने से पहले इतना जान लीजिए कि जिस लड़की को अपने रास्ते का पत्थर समझ रहे हैं ना वह आपकी करोड़ों की जायदाद की इकलौती बारिश है! आप की इकलौती संतान है वो, आपकी बेटी नंदिनी! अब क्या करेंगे आप? अब भी अपनी बेटी के खिलाफ अनर्गल बातें करेंगे या उसे जान से मार डालेंगे जैसे मेरी पहली बच्ची को मार डाला!! जज साहब! हां मैंने गुनाह किया है! गुनाह किया एक मां को उसके बच्चे से दूर रख कर! लेकिन मैं क्या करती? आदर्श की बातों से मैं इतना तो समझ गई थी कि उन्हें लड़का या लड़की से कोई मतलब नहीं। मैं चाहती तो अपनी बच्ची को किसी अनाथ आश्रम में छोड़ सकती थी या फिर हॉस्पिटल में छोड़ कर चली जाती लेकिन उसका भविष्य क्या होता? नीला के दो बेटे थे, एक मैंने ले लिया और अपनी बच्ची की हिफाजत के लिए उसे नीला के हाथों सौंप दिया, बिना उसकी जानकारी के। मैं मां हूं जज साहब! यहाँ जो बच्चे मौजूद है वह दोनों ही बच्चे मेरे हैं और उतने ही नीलांजना और आदर्श के भी! जो रिश्ता मेरा उन दोनों से हैं, वह रिश्ता उनका भी है। नंदिनी का जो फोन पुलिस स्टेशन से गायब हुआ था वह मेरे पास है और अनुकल्प का फोन भी!" कहते हुए सुप्रिया ने दोनों फोन अपने पास से निकाला और उसमें हुई सारी कॉल रिकॉर्डिंग खोलकर सबके सामने रख दी। उन सारी कॉल रिकॉर्डिंग से इतना तो समझ में आ गया की अनुकल्प नंदिनी के पीछे पड़ा था और नंदिनी के साथ जो भी हुआ वह अनुकल्प ने जानबूझकर किया था। सुप्रिया बोली, "जितनी गलती अनुकल्प की है उससे कहीं ज्यादा मेरी और उसके पिता की है। नीला ने अपने बेटे को बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं जो मैं नहीं दे पाई। और ढिल्लों साहब! वह तो कभी एक पिता बन ही नहीं पाए। पिता का काम बढ़ावा देना नहीं होता, बल्कि बच्चों पर अंकुश लगाना, उसकी जरूरतों का ख्याल रखना और उससे एक अच्छा इंसान बनाना होता है। जब वह खुद एक अच्छे इंसान नहीं बन पाए तो उनसे और उम्मीद भी क्या की जा सकती है! मैं प्रणाम करती हूं नीला को जिसने इतनी हिम्मत दिखाई, जो मैं नहीं कर पाई। एक अनपढ़ नौकरानी ने मुझे वो सीख दे दी जो जिंदगी मुझे नहीं सिखा पाई। अब फैसला आपके हाथ में है जज् साहब। सच की जीत हो क्योंकि दो मां तो हार ही गई।" कहते हुए सुप्रिया वहीं रो पड़ी। नीलांजना और आदर्श की आंखों में आंसू थे। नंदिनी और उत्कर्ष हैरानी से अपने मां पापा को देखे जा रहे थे वही अनुकल्प की हैरानी का कोई ठिकाना ना था। जिस उत्कर्ष से उसका 36 का आंकड़ा रहा, वह उसका सगा भाई था यह बात उसे समझ नहीं आ रही थी। सारे सबूत सारे गवाह जज के सामने थे। अब सब कुछ साफ था। जज साहब ने फैसला नंदिनी के हक में सुनाया और अनुकल्प को सजा हो गई, साथ में उनके वकील को भी। नीलांजना और सुप्रिया मीडिया की सुर्खियों में छाए रहे। नीलांजना की सास अब काफी हद तक बदल चुकी थी। उन्होंने कुछ नहीं कहा। नंदनी नीलांजना और आदर्श के साथ घर वापस आ गई और वापस से अपनी पढ़ाई में लग गई। सब कुछ भूल कर उसने अपने लक्ष्य की तरफ ध्यान रखा और आखिर में एक बेहतरीन डॉक्टर बनने की राह पर निकल पड़ी। ढिल्लों साहब सालों बाद भी अपनी बेटी से नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं कर पाए। अनुकल्प जेल में था और सुप्रिया कभी-कभी उससे मिलने चली जाती लेकिन नंदनी को वह दूर से ही देख लेती। ना नंदनी को और ना ही उसके परिवार को सुप्रिया से कोई मतलब था। उन लोगों के लिए उस घर का एक ही बेटा था वह था उत्कर्ष और नंदिनी उनकी लाडली! कुछ भी नहीं बदला था, बस बदलनी थी तो समाज की सोच। खासकर उन औरतों की जो सिर्फ अपनी बेटियों की इज्जत ढकना जानती है। नीलांजना को अपनी बेटी के लिए अब एक ऐसे जीवनसाथी की तलाश है जो उसकी बेटी से प्यार भी करे और उसका सम्मान भी करें। क्या आप लोगों की नजर में है कोई ऐसा हमारी नंदिनी के लिए?