Chapter 5

Chapter 5

सौभाग्यशाली 5

Chapter  5    "क्या तरीका था यह? इस तरह कौन करता है? हम लोग किसी और के दरवाजे पर गए थे, एक अनजान शहर में! हमारी पूरी इज्जत मिट्टी में मिला दी तुमने! मैं पूछती हूं क्या जरूरत थी इतना बवाल करने की? घर में कम करती हो जो वहां भी अपने तेवर दिखाने लगी! इस तरह तमाशा किया जैसे कुछ हो गया हो! अरे कुछ हुआ तो नहीं ना! बच गई ना तेरी बेटी! अरे कम से कम रिश्ते का तो लिहाज रखा होता। कितनी बुरी तरह से मारा है तुमने देवर जी को! जरा सा भी एहसास नहीं हुआ कि वह तुम्हारे चाचा ससुर है! बेचारे इस वक्त हॉस्पिटल में है!" आदर्श की मां घर आते ही नीलांजना पर बरस पड़ी।      नीलांजना के सब्र का बांध जवाब दे गया। उसने भी गुस्से में कहा, "आप अभी भी उस इंसान को मेरे चाचा ससुर कह रही हैं? मेरे सामने कोई रिश्ता नहीं खड़ा था! मेरे सामने मेरी बेटी का अपराधी खड़ा था और मेरी बेटी के अपराधी को सजा देने का हक मुझे है, फिर चाहे वह इंसान मेरा पति ही क्यों ना हो! अगर किसी ने भी मेरी बेटी की तरफ नजर उठाकर भी देखा तो मैं उसकी आंखें निकाल लूंगी। इस वक्त वह आदमी हॉस्पिटल में है ना! मेरा बस चलता तो मैं उसी वक्त उसे जान से मार डालती। और क्या कहा आपने? कुछ हुआ नहीं! क्या चाहती हैं आप? कुछ होने का इंतजार कर रही थी आप? कुछ हो जाता तो जिंदगी भर का कलंक मेरी बेटी के माथे पर लग जाता। उस इंसान को रत्ति भर भी शर्म नहीं आती, ना ही उसे कोई फर्क पड़ता। लेकिन आप.......... खुद आप मेरी बच्ची को जिंदगी भर ये याद दिला दिला कर उसे चैन से जीने नहीं देती। ये जो हमारा समाज है ना! ये सिर्फ बेटियों पर उंगली उठाता है,  बहुओं पर उंगली उठाता है। मर्द तो जैसे इन्हें नजर ही नहीं आते। जैसे कि वह मां की कोख से नहीं, भगवान की गोद से उतर कर आए हो, जिन पर किसी तरह का कोई लांछन नहीं लग सकता। वह इंसान जिंदा बच गया, ये उसकी खुशकिस्मती समझो आप!"     आदर्श की मां नीलांजना का यह रूप देख कर थोड़ी सहम सी गई फिर भी अपना गुस्सा बरकरार रखते हुए उन्होंने कहा, "तेरी बेटी ही इतनी सुंदर है! किस-किस की नजरों से बच आएगी तू? कितनों से लड़ेगी, क्या क्या करेगी? हमें इसी समाज में रहना है! कहीं भी जाएंगे वहां भूखे भेड़िए मिलेंगे ही। कहां छुपा कर रखेगी तू उसे?"    अपनी सास की बात सुनकर नीलांजना कुछ देर खामोश हो गई। वह उनके करीब गई और आंखों में आंखें डाल कर कहा, "हर एक से लड़ जाऊंगी मैं। बात मेरी बेटी की है तो किसी को नहीं छोडूंगी। एक औरत सिर्फ तभी तक कमजोर है जब तक बात सिर्फ उस पर आए। वह अपने ऊपर हर अन्याय हर अत्याचार सह सकती हैं लेकिन जब बात उसके पति की और उसकी औलाद की हो तो वही कमजोर सी दिखने वाली औरत को रणचंडी बनते देर नहीं लगती। मेरी बेटी अगर सुंदर है तो इसमें उसकी क्या गलती अगर भगवान ने उसे इतना सुंदर बनाया है तो! उसकी सुंदरता लोगों के लिए कोई आमंत्रण नहीं है! उसकी सुंदरता भगवान की देन है कोई अभिशाप नहीं! लड़की अगर काली हो या सांवली हो,  वो सुंदर नहीं होती। लेकिन तब भी कौन सा वह बच जाती है? समाज के इन छिछोरी नजरों से वह भी तो छलनी होती ही है। आप भी तो अपनी जवानी के दिनों में सुंदर थी ना मां!!! इसका मतलब आप के साथ में इस तरह की बहुत सारी हरकतें हो चुकी है?"     आदर्श की मां चीख पड़ी, "बहू.........! तुम अपनी हद मत भूलो!"     नीलांजना तंज भरी मुस्कान के साथ बोली, "हद तो आप भूल रही है मां! मैंने तो वही कहा जो आपने कहा! हर बार उंगली लड़की पर ही क्यों उठती है? अगर किसी लड़की का बलात्कार होता है तो हम कितनी आसानी से कह देते हैं जरूर लड़की में कोई खोट होगी या फिर छोटे कपड़े पहनती होगी! लड़कों का क्या है!  इस सबमें उनकी क्या गलती? मेरी बेटी ने कौन से छोटे कपड़े पहन रखे थे जो उस हैवान की नियत खराब हो गई? मेरी बेटी कोई खिलौना नहीं है और ना ही मैं उसे बनने दूंगी! वो जीयेगी और अपने पूरे आत्म सम्मान के साथ जीएगी। मैं बचा कर रखूंगी सब से उसे। माना यह समाज भेड़ियों से भरा पड़ा है। उन भेड़ियों से अपनी बेटी की रक्षा मैं बिल्कुल वैसे ही करूंगी जैसे मेरी मां ने मेरी रक्षा की थी.............। जैसे आपकी मां ने आपकी रक्षा की थी। लेकिन उस सबसे पहले मुझे अपनी बेटी को आप जैसी छोटी सोच रखने वाली औरतों से बचा कर रखना होगा। लोग सही कहते है, औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन होती है। अगर औरत ठान ले तो किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि एक लड़की को दबा कर रख सके।" कहते हुए नीलांजना ने नंदनी को अपनी गोद में उठाया और वहां से अपने कमरे में चली गई।     आदर्श और उसके पिता दोनों सास बहू की लड़ाई देख सर पकड़ कर बैठे हुए थे। आदर्श की माँ जब नीलांजना से जीत नहीं पाई तो आदर्श के पिता से बोली, "देख लिए अपनी बहू के तेवर! देखा किस तरह से मुझे सुना कर गई। आखिर मैंने ऐसा क्या कह दिया जो आपकी लाडली बहू मेरा इतना अपमान करके गयी?"    आदर्श के पिता को भी गुस्सा आ गया और वो बोले, "अभी तक तुम्हें समझ नहीं आया तो इसमें तुम्हारी बुद्धि की गलती। तुम्हारी तो कभी कोई गलती होती ही नहीं है। इतना कुछ सुनने और बहू को सुनाने के बाद भी तुम कहती हो कि तुमने कहा क्या?  एक बात याद रखो!  जब तक वो तुम्हारी बहू है वो तुम्हारे आगे अपनी जबान नही खोलेगी।  लेकिन जो कुछ भी तुमने एक माँ से कहा, वो माँ कभी बर्दास्त नहीं करेगी।" कहकर वो भी अपने कमरे में चले गए।      वैसे ही नंदनी के साथ इतना बड़ा हादसा होते-होते बचा था। ऊपर से आदर्श की मां का इस तरह से बर्ताव आदर्श को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। ना ही आदर्श के पिता को। बेचारा उत्कर्ष अभी भी कुछ समझने की हालत में नहीं था।