Chapter 3
सौभाग्यशाली 3
Chapter 3 नीलांजना और आदर्श अपने दोनों बच्चों को गोद में लिए हॉस्पिटल से चले तो आए लेकिन नीलांजना का दिल जैसे वही छूट गया हो। घर पर आदर्श के पिता पहले से उन सभी का इंतजार कर रहे थे। उन्हें देखते ही दोनों ने पैर छूकर प्रणाम किया। आदर्श की मां अपने पोते के साथ खुश थी। उन्होंने अपनी गोद में संभाले अपने पोते को उसके दादा के गोद में देना चाहा, लेकिन दादा जी के लिए तो उनकी पोती सबसे ज्यादा प्यारी थी। इसलिए नीलांजना की गोद में खेल रही बच्ची को उन्होंने जल्दी से उठा लिया और सीने से लगा कर बोले, "आ गई मेरी राजकुमारी! कब से इंतजार कर रहा था मैं तुम्हारा! तेरे दादा तुझे ढेर सारी कहानियां सुनाएंगे और जब तेरी दादी से मेरा झगड़ा होगा तो जमके मेरे साथ अपनी दादी की बुराई करना।" आदर्श की मां ने मुँह बीचका लिया और अंदर चली गई। कुछ इसी तरह दोनों बच्चों का दादा दादी के बीच बंटवारा हो गया। उन दोनों के झगड़े देख नीलांजना और आदर्श हंस पड़े। लेकिन ना जाने क्यों! नीलांजना के दिल में एक कसक सी रह गई। उसे बार-बार सुप्रिया के बच्चे का ध्यान आता। वह खुद समझ नहीं पा रही थी और ना ही आदर्श उसे इस बारे में चाहकर भी समझा पा रहा था। आदर्श खुद भी नीलांजना के इस चिंता को लेकर परेशान था रात को अचानक उसे महसूस होता जैसे उसका बच्चा रो रहा हो। वह एक झटके में उठ जाती तो आदर्श उसे समझाता, "नीलांजना......! देखो, दोनों बच्चे सो रहे हैं। तुम बेवजह क्यों परेशान हो रही हो? यहाँ आसपास किसी और का इतना छोटा बच्चा नहीं है जिसकी आवाज से तुम उठ जाओ।" नीलांजना कहती, "पता नहीं क्यों आदर्श! बार-बार ऐसा लगता है जैसे मेरा बच्चा रो रहा है। जबकि मेरे दोनों बच्चे मेरी आंखों के सामने हैं! जाने क्यों ऐसा महसूस होता है? मैं खुद को तो समझा लूं लेकिन इस दिल को कैसे समझाऊं? बार-बार मुझे सुप्रिया के बच्चे का ख्याल आता है।" धीरे-धीरे नीलांजना को इसकी आदत पड़ गई। एक महीने बाद शुभ मुहूर्त देखकर बच्चों का नामकरण संस्कार रखा गया। जिसमें आदर्श की मां ने पूरे मोहल्ले को न्यौता दे डाला। पोते का नाम अपनी पसंद से उन्होंने उत्कर्ष रखा लेकिन हमेशा की तरह उन्होंने अपनी पोती पर ध्यान नहीं दिया। आदर्श के पिता ने भी अपनी लाडली पोती का नाम रखा, नंदिनी! नीलांजना की बेटी "नंदिनी"! उत्कर्ष अपने पिता की तरह सावला था लेकिन नंदनी बहुत ही ज्यादा गोरी थी। मोहल्ले की एक बूढ़ी दादी ने जब दोनों बच्चों को देखा तो बोली, "अरी ओ अतुल की दुल्हन! तेरा पोता तो बिल्कुल तेरे खानदान में जचता है। लेकिन तेरी पोती किस पर गई है? तेरे पूरे खानदान में इतना गोरा इंसान तो कोई ना है! फिर किस पर चली गई? तेरे खानदान की तो बिल्कुल भी ना लगती। ये तो परियों जैसी है! बिल्कुल राजकुमारी की तरह!" उस बूढ़ी दादी की बात सुनकर आदर्श की मां को एहसास हुआ और शायद पहली बार उन्होंने अपनी पोती को जी भरकर देखा। वाकई में नंदिनी बहुत ज्यादा सुंदर थी। यह लंबी-लंबी पलके, घुंघराले बाल, गोरा रंग, घनी पलकेँ और ठुड्डी पर छोटा सा तिल जो अभी ठीक से नजर नहीं आ रहा था। नंदनी को देखकर आदर्श की मां जैसे मोहित सी हो गई लेकिन फिर भी यह सोच कर कि यह तो लड़की है, उन्होंने नजरे फेर ली और अपने पोते से लाड जताने लगी। उन्होंने कहा, "मेरा पोता कम सुंदर है क्या? बिल्कुल अपने बाप पर गया है, और इसका बाप बिल्कुल अपनी मां पर गया है।" आदर्श के पिता बोले, "और मेरी नंदिनी दुनिया की सबसे सुंदर! इसके लिए तो कोई राजकुमार ही आएगा। तुम ढूंढना अपने पोते के लिए कोई सांवली सी लड़की जो उसके जैसी हो। खुद जैसे बड़ी गोरी चिट्टी है! देख तो! तेरी दादी पता नहीं किस पर गई है!" सभी हंस पड़े। नीलांजना भी मुस्कुरा उठी। इंसान चाहे कितना भी पढ़ा लिखा क्यों ना हो, कितने भी बड़े ओहदे पर क्यों ना बैठा हो! बेटा और बेटी में फर्क कर ही देता है। और यही हुआ नंदिनी और उत्कर्ष के साथ भी। यह भेदभाव औरतें ही तो शुरु करती है! उत्कर्ष को उसकी दादी जहां पूरे दिन में 5 बार मालिश करती वही नंदनी को मुश्किल से दो बार ही नसीब होती। बच्चे जब आठ महीने को हुए, सर्दियों के मौसम में आदर्श की मां उत्कर्ष को जायफल और बादाम पत्थर पर घिसकर देती लेकिन नंदनी को नहीं मिलता। नीलांजना ने जब नंदिनी को भी वही सब देना चाहा तो आदर्श की मां उसे रोकते हुए बोली, "अरे वह लड़की है! यह सारी चीजें लड़कियों को नहीं दी जाती। यह दोनों चीजें बहुत गर्म होती है।" नीलांजना बोली, "इसलिए तो मां! सर्दियों का मौसम है इसे ठंड लग जाएगी। शरीर अंदर से मजबूत नहीं होगा तो फिर यह मौसम से लड़ेगी कैसे? वैसे ही इसे इतनी मालिश नहीं मिल पाती जितनी उत्कर्ष को मिलती है।" आदर्श की मां बोली, "अरे वह लड़की है! यह सारी गर्म चीजें लड़कियों को नहीं खिलाई जाती। वैसे ही लड़कियों का शरीर का तापमान ज्यादा होता है। उन्हें ठंडी चीजें दी जाती है। और ज्यादा मालिश करके करना क्या है? कौन सी इससे कुश्ती लड़वानी है! जो कह रही हूं वह करो। ज्यादा सवाल जवाब ना करो बहू!" नीलांजना ने सिर पकड़ लिया। जब भगवान ने दोनों को एक साथ इस दुनिया में भेजा है, जब बनाने वाले ने हीं इन दोनों में कोई फर्क नहीं किया तो फिर क्यों इस दुनिया में आने पर उन दोनों में इतना भेदभाव होता है? आदर्श की मां जब आसपास नहीं होती तब आदर्श खुद अपनी बेटी को वह सारी चीजें देता जिसे देने की मनाही थी। नीलांजना के लिए यह बहुत बड़ी राहत की बात थी और इसमें उसके ससुर जी का भी पूरा सहयोग था। नंदनी तो अपने दादा जी की जान थी। आदर्श की मां अपने पोते में उलझी रहती और आदर्श के पिता अपनी पोती को गोद में लिए किसी बच्चे की तरह उछल कूद करते रहते। आखिर जिस एक बेटी की उन्हें चाहत थी वो उन्हें मिल गई थी। घर में एक नंदिनी के होने से जो रौनक थी वो पहले पहले कभी नहीं थी। नीला भी खुश थी अपने दोनों बच्चों को देखकर। लेकिन दोनों बच्चों में भेदभाव की ये तो अभी शुरुआत थी। क्रमशः