Chapter 11

Chapter 11

सौभाग्यशाली 11

Chapter 11   आदर्श नीलांजना को लेकर चला तो आया लेकिन अपनी आंखों पर उसे अभी भी भरोसा नहीं हो रहा था। नीलांजना अपने मुंह पर हाथ रखे सोच रही थी और वो एकदम से बोल पड़ी, "अनुकल्प सुप्रिया का बेटा है...........! आदर्श.....! अनुकल्प सुप्रिया का बेटा है! इसका मतलब आप समझ रहे हैं ना! वो हमारा बेटा है!"    आदर्श नीलांजना को डांटते हुए बोला, "वो लड़का हमारा बेटा नहीं है। हमारा बेटा इतना बदतमीज नहीं हो सकता। उत्कर्ष को देखा है आपने? उसमें और इस लड़के में जमीन आसमान का अंतर है। अरे वह हमारा तो क्या, खुद सुप्रिया का भी बेटा नहीं है। वह सिर्फ ढिल्लों साहब का बेटा है। उसकी रगों में ना हमारा खून दौड़ता है और ना सुप्रिया का दूध! सिर्फ और सिर्फ ढिल्लों साहब की परवरिश, उनकी अय्याशी दौड़ती है। आइंदा कभी भी उस लड़के को हमारा बेटा मत कहना, जिसने हमारी नंदनी को इस कदर परेशान कर रखा है। इतनी घटिया हरकत, इतनी घटिया सोच हमारे बेटे की कभी हो ही नहीं सकती। हमें घर चलना चाहिए। नंदनी को इस वक्त हमारी जरूरत है।"     नीलांजना बोली, "इतने बड़े लोग हो कर भी इतनी घटिया सोच!! मुझे यकीन नहीं हो रहा था, यह आदमी जो अपने बेटे की बेशर्मी  पर हंस रहा था, उस आदमी को जरा सा भी एहसास है कि वह किसके बारे में बात कर रहा था? उसकी अपनी खुद की बेटी है वो!"   आदर्श ने फिर नीलांजना को डांटा और बोला, "नीलू बस करो.......! नंदनी हमारी बेटी है और यही सच है। उत्कर्ष हमारा इकलौता बेटा है और नंदिनी हमारी इकलौती बेटी। हमारे दो बच्चे थे और दो बच्चे हमेशा रहेंगे। ये लड़का अगर हमारे आगे आकर नाक भी रगड़े तब भी मैं इसे अपना बेटा कभी नहीं मानूंगा। जो एक लड़की की इज्जत करना नहीं जानता, उसकी इज्जत उछालने में लगा है वह इंसान कहलाने के लायक नहीं। अब समझ में आता है की सुप्रिया ने क्यो अपनी बेटी को खुद से अलग क्यो किया!" कहते हुए आदर्श ने नीलांजना को गाड़ी में बैठाया और वहां से निकल गया।      घर पहुंचते ही नंदिनी अपनी मां के गले लग गई और बोली, "क्या हुआ माँ? उन लोगों से बात हुई? क्या कहा उन लोगों ने? वो लोग समझाएंगे ना उसे?"     नीलांजना क्या कहती? उसने बस नंदिनी के सर पर हाथ फेरा और बोली, "तु घबरा मत।  हम सब है ना तेरे साथ! वह कुछ नहीं कर पाएगा।"    नंदनी को थोड़ी राहत मिली और अपना मन शांत कर पढ़ने बैठ गई। अगले दिन से नंदनी जब भी घर पर या घर से बाहर होती, कोई ना कोई उसके साथ जरूर होता। उत्कर्ष को इस सब का कोई अंदाजा नहीं था। नंदनी को कॉलेज छोड़ने और लाने की जिम्मेदारी कभी नीलांजना की होती तो सभी उत्कर्ष की। अनुकल्प को मौका नहीं मिल रहा था।      नीलांजना से जाने के बाद सुप्रिया ने अनुकल्प को बुरी तरह से फटकार लगाई थी और उसका फोन भी छीन लिया था। जिस कारण अनुकल्प के पास ना तो नंदिनी का नंबर था और ना ही वह वीडियो। लेकिन वो नंदनी को इतनी आसानी से छोड़ भी तो नहीं सकता था!  कहीं से जुगाड़ लगाकर उसने नंदनी के कॉलेज की नकली आईडी बनवाई और कॉलेज के अंदर से ही उसे किडनैप कर लिया।    उत्कर्ष नंदिनी को लेने कॉलेज पहुंचा लेकिन काफी इंतजार के बावजूद नंदिनी उसे कहीं नजर नहीं आई। वह घर पहुंचा और नीलांजना से पूछा, "मां...!!! नंदिनी घर आई है क्या?"    नीलांजना बोली, "नहीं तो!  तु उसे लेने जाने वाला था ना!"    उत्कर्ष बोला, "नहीं मां!  छुट्टी होने से पहले से मैं उसके कॉलेज के बाहर खड़ा था लेकिन नंदिनी बाहर नहीं आई। मैंने पूछा भी लेकिन नंदिनी की सहेलियों को उसके बारे में कुछ पता नहीं था।"    नीलांजना बुरी तरह से घबरा गई। उसे इतना ज्यादा घबराया हुआ देख उत्कर्ष ने पूछा, "मैं भी इस घर का बेटा हूं माँ! इस परिवार का हिस्सा हूँ। नंदनी के साथ क्या हो रहा है क्या नहीं, यह जानने का मेरा पूरा हक है। बहन है वह मेरी! आखिर इतनी पहरेदारी क्यों हो रही है उसकी? पहले तो कभी नहीं हुई और ना आप ना हीं पापा उन पैरंट्स की तरह है जो बेटियों पर इतनी कड़ी निगरानी रखते हैं।"    उत्कर्ष की बातें सही थी। नीलांजना को अब उत्कर्ष से सारी बातें छुपाना सही नहीं लगा और उसने अनुकल्प की सारी हरकतें एक-एक कर उत्कर्ष के सामने रख दी। उत्कर्ष को जरा सी भी उम्मीद नहीं थी कि जो अनुकल्प कॉलेज में उसके सामने आने से बचता है, उसने उसकी बहन के साथ ऐसा कुछ करने की हिम्मत की! अगर नंदनी गायब है और इस सब के पीछे अनुकल्प का हाथ है तो आज उत्कर्ष उसे छोड़ने वाला नहीं था।      वह तुरंत अपनी बाइक लेकर घर से निकला और अनुकल्प के जितने भी ठिकाने उसे पता थे, हर उस जगह उसने अनुकल्प के बारे में पता किया। लेकिन कहीं से कोई खबर नहीं मिली। उसे ढूंढते हुए उत्कर्ष उसके दोस्त के फार्महाउस पहुंचा जहां उसे नंदिनी जख्मी हालत में मिली। उसे देख कर ही उत्कर्ष के रोंगटे खड़े हो गए। वह अपनी बहन को लेकर तुरंत वहां से हॉस्पिटल की ओर भागा। वहां पहुंचकर उसने सबसे पहले नंदनी को एडमिट करवाना चाहा लेकिन इसे पुलिस केस बताकर वहां सब ने एडमिट करने से मना कर दिया।     उत्कर्ष ने गुस्से में डॉक्टर का कॉलर पकड़ लिया लेकिन कोई भी हॉस्पिटल के रूल के खिलाफ जाने को तैयार नहीं था। हार कर उत्कर्ष ने पुलिस को फोन किया और सारी बातें बताई। उसके बाद उसने नीलांजना को फोन कर नंदनी के साथ हुए हादसे की जानकारी दी। नीलांजना और आदर्श हॉस्पिटल पहुंचे तब तक पुलिस वहां चुकी थी।     ढिल्लों साहब के बेटे के खिलाफ रिपोर्ट लिखने में पुलिस आनाकानी कर रही थी। लेकिन उत्कर्ष ने जब ऊपर तक जाने की धमकी दी तब जाकर पुलिस ने हादसे की रिपोर्ट लिखी। रिपोर्ट लिखने के बाद नंदनी को एडमिट करवाया गया और तब जाकर उसका इलाज शुरू हुआ।    नीलांजना अपनी बेटी की यह हालत देखकर सफेद पड़ गई। उसे यकीन नहीं हुआ कि उसकी बेटी की ऐसी हालत करने वाला कोई और नहीं उसका अपना सगा बेटा था, जिस से मिलने की प्रार्थना वह दिन-रात भगवान से करती थी।     पुलिस ने जाने से पहले आदर्श और नीलांजना के सामने पेपर रखा और उस पर साइन करने को कहा ताकि अनुकल्प के खिलाफ एफ आई आर दर्ज की जा सके। नीलांजना सोच में पड़ गई कि आखिर अपने ही बेटे के खिलाफ वो एफ आई आर कैसे दर्ज करवाएं?