Chapter 10

Chapter 10

सौभाग्यशाली 10

Chapter 10    बात को हाथ से निकलता देख नंदिनी ने रोते हुए अपनी मां को सारा हाल कह सुनाया। नीलांजना ने भी जब सुना तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। एक महज् 20 साल के लड़के की इतनी हिम्मत कि वह ऐसी हरकत करें! फिर चाहे वह कितना ही बड़े बाप की औलाद क्यों ना हो,  एक लड़की की इज्जत और सम्मान से बढ़कर और कुछ नहीं हो सकता।     नीलांजना ने अब तक हर किसी से अपनी बच्ची की रक्षा की थी। इस बार भी उसे ही उठ खड़ा होना था। नीलांजना ने नंदिनी के आंसू पोछे और उसे चुप कराया। वह बोली, "तु फिक्र मत कर! मैं और तेरे पापा उसके घर जाते हैं और उन लोगों से बात करते हैं। शायद वह लोग हमारी बात माने और अपने बेटे को समझाएं। वो बड़े लोग हैं, हमारी बात जरूर सुनेंगे। वो लोग इज्जतदार घराने से ताल्लुक रखते हैं। तु बिल्कुल भी चिंता मत कर और रोना तो बिल्कुल भी नहीं।"     नीलांजना ने आदर्श को फोन किया और उसे सारी बातें बता कर खुद घर से निकल गयी। नंदनी इस वक्त घर में अपने दादा दादी के साथ थी इसलिए नीलांजना को उसकी चिंता नहीं थी। वो इस वक्त बस ढिल्लों साहब से मिलकर सारी बातें क्लियर करना चाहती थी। आदर्श और नीलांजना दोनों ही अनुकल्प के घर पहुंचे। वहाँ दरवाजे पर ही चौकीदार ने उन्हें रोका तो आदर्श ने कहा, "हमें ढिल्लों साहब से मिलना है। उनसे कुछ बहुत जरूरी काम है।"     चौकीदार ने कहा, "यहां हर कोई किसी ना किसी जरूरी काम से ही आता है। आपके पास अपॉइंटमेंट हो तो कहिए वरना वह ऐसे ही किसी से नहीं मिलते।"     नीलांजना ने अपनी सख्त आवाज में कहा, "हमें उनके बेटे अनुकल्प के बारे में कुछ बात करनी है। उनसे कहो हमारा मिलना बहुत जरूरी है वरना हम कुछ ऐसा करेंगे कि उन्हें हमारे दरवाजे पर आना पड़ जाएगा।"     नीलांजना की आवाज में जो सख्ती थी,  उसे महसूस कर उस चौकीदार के तुरंत घर के अंदर फोन लगाया और कुछ देर बात करने के बाद चौकीदार ने कहा, "आप लोग अंदर जाइए, ढिल्लों साहब अभी थोड़ी देर में आपसे मिलेंगे।"    नीलांजना और आदर्श बंगले के अंदर चले गए।  वो बंगला बाहर से ही दिखने में काफी आलीशान था, अंदर से और भी ज्यादा खूबसूरत था। आदर्श ने चारों तरफ नजर दौड़ाई लेकिन वहां पर दो नौकरों के अलावा और कोई नहीं था। उन दोनों को बैठने के लिए भी किसने नहीं कहा। नीलांजना वैसे ही थोड़े गुस्से में थी, किसी के कुछ कहे बिना ही सीधे जाकर हॉल में रखे सोफे पर बैठ गई। आदर्श भी उसके बगल में आकर बैठ गया और दोनों ढिल्लों साहब का इंतजार करने लगे।     काफी देर के बाद किसी ने उन दोनों के लिए चाय और नाश्ता भिजवाया लेकिन नीलांजना और आदर्श यहां जिस काम के लिए आए थे उसके सामने उन दोनों ने ही सामने रखे चाय नाश्ते को एक नजर देखा तक नहीं और उन्हें वापस ले जाने को कहा। दूसरी तरफ से एक कड़कती हुई आवाज सुनाई दी, "तुम लोगों को किसने कहा था यह सब लाने के लिए? किस से पूछ कर किया यह सब?"   नीलांजना और आदर्श ने मुड़कर देखा तो ढिल्लों साहब सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे। जितनी रौबदार आवाज थी उतनी ही रौबदार उनकी पर्सनालिटी भी थी। ढिल्लों साहब को देखते ही नीलांजना और आदर्श खड़े हो गए और हाथ जोड़कर नमस्ते किया। ढिल्लों साहब ने एक बार भी उन दोनों की तरफ देखा नहीं और सीधे जाकर उनके सामने सोफे पर बैठ गए और कहा, "इतनी बेचैनी में मुझ से मिलने की कोई खास वजह? ऐसा क्या कर दिया मेरे बेटे ने जो आप लोग इतने ज्यादा परेशान हैं कि मुझे परेशान करने चले आए? आप लोगों से खुद तो कोई परेशानी संभाली नहीं जाती और दूसरों को तकलीफ देने में मजा आता है!"     नीलांजना अपना गुस्सा शांत करते हुए बोली, "तकलीफ तो आपका बेटा दे रहा है मेरी बेटी को! वह परेशान कर रहा है मेरी बच्ची को। आपके बेटे की वजह से उसकी पढ़ाई का नुकसान हो रहा है सो अलग, दिमागी तौर पर किस तरह टॉर्चर हो रही है मेरी बच्ची यह शायद आप नहीं जानते!"    ढिल्लों साहब ने एक सरसरी निगाह नीलांजना पर डाली और आदर्श से बोले, "मैं औरतों से बात नहीं करता। अगर आपको कहना है कुछ तो कह सकते हैं वरना जा सकते हैं।"    नीलांजना को उनकी यह हरकत नागवार गुजरी लेकिन फिर भी आदर्श ने उसका हाथ पकड़ कर उसे शांत रहने को कहा और खुद बोले, "आपका बेटा मेरी बेटी को परेशान कर रहा है। अपने बेटे से कहिए कि वह मेरी बेटी से दूर रहे।"    ढिल्लों साहब बड़े ही बेशर्मी से बोले, "अब लड़के हैं जी! उन्हें बांध के तो रखा नहीं जा सकता। आप अपनी बेटी को संभाल लो। क्या जरूरत है उसे घर से बाहर भेजने की?  पढ़ाई वढ़ाई करके कर क्या लेगी? घर में बैठाओ, उसकी शादी करवाओ, बाद में तो उसने बच्चे ही पैदा करने हैं।"    नीलांजना गुस्से में वहां से उठना चाहती थी लेकिन तभी अनुकल्प बाहर से आया। उसे देखते ही ढिल्लों साहब ने अनुकल्प से पूछा, "क्यों बेटा जी! इन लोगों का कहना है कि आप इनकी बेटी को परेशान कर रहे हो!"     अनुकल्प उनसे भी बड़ा बेशर्म निकला। उसने अपने पिता से कहा, "अब पपा! इनकी बेटी है ही इतनी खूबसूरत कि किसी का भी दिल आ जाए। आप देखोगे ना तो आप का भी दिल आ जाएगा उस पर!      ढिल्लों साहब हंस पड़े और बोले, "फिर तो एक बार उस लड़की से मिलना बनता है।"   अनुकल्प बोला, "आप कहो तो उठवाले उसे! सीधे-सीधे तो मान नहीं रही!"    नीलांजना और आदर्श हैरानी से उन दोनों बाप बेटे की बेशर्मी को देख रहे थे। जिस तरह  दोनों बाप बेटे उसी के सामने उसकी बेटी की इज्जत की धज्जियां उड़ा रहे थे, उसके बारे में इस तरह के अपशब्द कहे जा रहे थे, नीलांजना से बर्दाश्त नहीं हुआ। वह उठी और एक झन्नाटेदार थप्पड़ अनुकल्प के गाल पर जड़ दिया। ढिल्लों साहब के सामने उनके इकलौते बेटे पर किसीने हाथ उठाया था। उनसे यह कहां बर्दाश्त होने वाला था।     अनुपकल्प ने गुस्से में नीलांजना को मारने के लिए हाथ उठाया। उसी वक्त पीछे से अनुकल्प की मां चिल्लाई, "अनुकल्प.........!"      अनुकल्प का हाथ वही रुक गया। उसने घूरकर अपनी मां को देखा और गुस्से में वहां से चला गया। नीलांजना ने अनुकल्प की मां को देखा तो बस देखती रह गई। उसे यकीन नहीं हुआ कि उसके सामने 20 साल बाद सुप्रिया खड़ी थी। आदर्श को भी बहुत ज्यादा हैरानी हुई। सुप्रिया की आंखों में मजबूरी थी। उसने अपने दोनों हाथ जोड़ के लिए और अनुकल्प की तरफ से बिना कुछ कहे माफी मांगी। हालात ऐसे थे के आदर्श को वहां रुकना सही नहीं लगा और वह नीलांजना को लेकर वहां से निकल गया।