Chapter 8

Chapter 8

सौभाग्यशाली 8

Chapter 8     बाजार में मंदी के कारण ऑफिस में हुई छटनी में आदर्श का नाम शामिल हुआ और उसे नौकरी छोड़नी पड़ी, जिस कारण आदर्श तनाव में आ गया। घर परिवार में इकलौता कमाने वाला और ऊपर से दो बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी। भविष्य की चिंता में आदर्श घुलने लगा था। लेकिन नीलांजना ने उसे संभाला और कहा, "जितनी मेहनत आप किसी और के लिए कर रहे हैं थे, वह मेहनत अब आप अपने लिए करेंगे। जरूरी तो नहीं कि हर इंसान नौकरी करें! अगर कोई नौकरी देने वाला ही नहीं होगा तो फिर नौकरी मिलेगी कहां से?"    आदर्श को उसकी बातें समझ नहीं आई तो उसने पूछा, "तुम क्या कहना चाहती हो नीलू? साफ-साफ कहो!" तो नीलांजना ने कहा, "हम खुद का कुछ शुरू करेंगे। कुछ ऐसा जिसकी मार्केट में डिमांड हो। बड़ा नहीं, छोटे से शुरुआत करेंगे। अगर हम एक ही तरह के किसी चीज का कुछ शुरू करते हैं तो मार्केट में डिमांड ऊपर नीचे होती रहती है। कभी किसी चीज की ज्यादा होती है कभी किसी चीज की कम होती है। आज जिस चीज की ज्यादा डिमांड है अगले साल कम हो जाएगी। तो कुछ ऐसा शुरू करते हैं जिस की डिमांड कभी खत्म ना हो। जैसे कि कपड़ों का! उसका डिमांड कभी खत्म नहीं होता। सीजन के हिसाब से अलग-अलग मौसम में अलग-अलग कपड़े होते हैं। कुछ पुराने डिजाइन को थोड़ा सा अलग टच दे देने पर वह एक नया डिजाइन बन जाता है। आप मेरी बात समझ रहे हैं ना?"     आदर्श को याद आया कि शादी से पहले नीलांजना को फैशन डिजाइनिंग का शौक था और उसने इस बारे में आदर्श से बात भी की थी। लेकिन घर के माहौल और जिम्मेदारियों  में नीलांजना के सपने कहीं दब से गए थे। आदर्श को नीलांजना की कहीं बात समझ में भी आ रही थी और उसके सुझाव सही भी लग रहे थे।     कुछ सेविंग नीलांजना की और कुछ अपनी लेकर उन दोनों ने ही अपना खुद का बिजनेस शुरू किया। शुरू में थोड़े उतार-चढ़ाव देखने के बाद उन दोनों का ही काम चल निकला। अब नीलांजना आदर्श की सिर्फ पत्नी ही नहीं बल्कि बिजनेस पार्टनर भी थी। आदर्श की मां घर का माहौल देखकर चिढ़ जाती और कहती, "अपनी बीवी को सर पर चढ़ा के रखा है। किसी दिन में तांडव करेगी वह, तब अकल ठिकाने आएगी तेरी।"    आदर्श के पिता कहते, "मैंने भी तो तुम्हें सर पर चढ़ा के रखा, इसलिए तुम मेरे सर पर तांडव करती हो। इतने सालों से मुझे भी तुम्हें अपने कंट्रोल में रखना चाहिए था।" आदर्श की मां बिदक जाती और अपने कमरे में चली जाती। आदर्श और नीलांजना मुंह दबाए हंस पड़ते।    नंदनी के कॉलेज में अब किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी और उसकी पढ़ाई काफी अच्छी चल रही थी। कॉलेज के आखिरी साल इंटर कॉलेज कंपटीशन होना था जिसके लिए नंदिनी काफी ज्यादा खुश थी। उत्कर्ष भी इस इंटर कॉलेज कंपटीशन में पार्टिसिपेट कर रहा था। उत्कर्ष जहां खेलकूद में था, वही नंदिनी डांस में दूसरों को टक्कर देने की तैयारी में लगी थी।     आखिर वह दिन भी आया जब फाइनल रिजल्ट आना था। सबसे खूबसूरत डांस के लिए नंदिनी के कॉलेज की तरफ से नंदिनी ने खिताब जीता और अपने कॉलेज की तरफ से उत्कर्ष की पूरी टीम ने बाजी मारी। आदर्श और नीलांजना बेहद खुश थे और पुरस्कार वितरण देखने वह दोनों खुद गए थे।     नंदनी दौड़कर अपने मां-पापा के गले लग गई। नंदिनी ने अपनी ट्रॉफी अपनी मां को पकड़ाई और कहा, "माँ....! मैं चेंज करके आती हूं। फिर घर चलेंगे।" और वो चेंजिंग रूम की तरफ बढ़ गई। उत्कर्ष अपने मां पापा को अपने दोस्तों से मिलवाने लगा।     नंदिनी रेस्ट रूम की तरफ बढ़ ही रही थी कि तभी किसी ने उसका रास्ता रोक लिया। नंदनी को उसकी यह हरकत अच्छी नहीं लगी फिर भी शांत लहजे में उसने कहा, "यह क्या बदतमीजी है? इस तरह मेरा रास्ता रोकने का क्या मतलब है?"    वह लड़का जो नंदिनी की ही उम्र का था, उसने कहा, "मेरा नाम अनुकल्प है, अनुकल्प ढिल्लों!"     नंदिनी ने एक भौंह उचकाई और कहा, "तो...! मैं क्या करू? तुम जो भी हो, अपना नाम क्यों बता रहे हो? मुझे क्या करना है तुम्हारे नाम से? मेरा रास्ता छोड़ो मुझे जाना है!"     कहते हुए नंदिनी ने उसका हाथ झटका और वहां से जाने के लिए आगे बढ़ी लेकिन अनुकल्प ने उसकी कलाई पकड़ ली और अपनी तरफ खींचते हुए बोला, "दिल आ गया तुझ पर! चल मेरे साथ।"     नंदिनी ने अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा, "तेरे साथ कहां जाना है? तेरी मम्मी के घर?"   अनुकल्प ने बड़ी बेशर्मी से कहा, "मम्मी के घर नहीं! लेकिन पापा का होटल जरूर है। तुझे पहले वहाँ ले चल सकता हूं।"   नंदिनी ने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और खींचकर एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद कर दिया। अनुकल्प अपना गाल सहलाता गया और नंदिनी वहां से चली गई। अनुकल्प के कुछ दोस्त आए और कहा, "भाई यह तो तीखी मिर्ची है। कहो तो इसे उठा ले?"    अनुकल्प एक शैतानी मुस्कुराहट के साथ बोला, "नहीं रे! मां कहती है औरतों और लड़कियों की इज्जत करनी चाहिए। जबरदस्ती नहीं करते! लड़की जब तक अपने से चलकर ना आए, मजा नहीं आता।"     उसके दोस्त ने कहा, "लेकिन भाई! जैसे इसके तेवर है, तुझे लगता है यह तेरे पास आएगी कभी?"    अनुकल्प बोला, "आएगी! जरूर आएगी! आज तक कोई लड़की मुझे ना नहीं बोल पाई है। जिसनें भी बोला है वो  लौटकर वापस मेरे पास ही आई है। यह जो अभी मुझे थप्पड़ मार कर गई है ना! इस पर मरहम लगाने यह खुद आएगी।" अनुकल्प अपना गाल सहलाते हुए वहां से निकल गया। उसके गाल पर नंदनी की पांचों उंगलियां छप चुकी थी। अपनी इंसल्ट का बदला लेने के लिए उसने एक प्लान बनाया जिसमें उसने अपने दोस्तों को भी शामिल किया।     नंदिनी ने अपने कपड़े बदले और सारा सामान समेटकर अपनी मां के पास आई। नीलांजना काफी देर से उसका इंतजार कर रही थी। उसने पूछा, "नंदनी बेटा! बहुत देर लगा दी आपने! कहां रह गई थी?"    आदर्श ने कहा, "नीलू! तुम बेवजह परेशान होती रहती हो। अरे कोई दोस्त मिल गई होगी, उसी के साथ बातें करने लगी होगी। वैसे भी लड़कियां बातें करने में एक्सपर्ट होती है।  वैसे नंदनी बेटा! इस भीड़ में अगर कोई ऐसा खास हो तो तुम हमें उस से मिलवा सकती हो।"     नंदिनी मुस्कुरा कर बोली, "ऐसा कुछ नहीं है पापा! बस थोड़ी भीड़ ज्यादा थी इसलिए थोड़ा टाइम लग गया। ऐसा वैसा कुछ नहीं है आप बेवजह सोच रहे हैं। अब घर चलें!"   आदर्श ने नंदिनी का बैग गाड़ी में रखा और सभी वहां से हंसते हुए अपने घर की तरफ निकल पड़े।     अनुकल्प नंदनी को जाते हुए देखता रहा और फिर अपने दोस्त से बोला, "जल्दी से इस लड़की का नंबर निकलवा। इसे एक मैसेज भेजना है। फिर देखना किस तरह यह लड़की मेरे पास भागी चली आती है।" कहकर वह हंस पड़ा और वहां से चला गया।