Chapter 6
सौभाग्यशाली 6
Chapter 6 उस हादसे के बाद से आदर्श की माँ ने नंदनी की तरफ देखना तक बंद कर दिया। उनके लिए जैसे इस दुनिया में सिर्फ अकेला उनका एक पोता ही था। नंदनी के बारे में वह किसी भी तरह का कुछ कहने या सुनने से बचती थी। नीलांजना ने खुद भी उसकी पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले रखी थी। नंदिनी के दादाजी के लिए नंदनी सब कुछ थी। उसके लिए जो कुछ भी लाना होता उसके दादाजी ही लेकर आते थे। बच्चे धीरे-धीरे बड़े हो रहे थे और बढ़ती उम्र के साथ आने वाली परेशानियों से भी जूझ रहे थे। दोनों ही बच्चे पढ़ाई में काफी होशियार थे और अपने अपने क्लास में हमेशा अव्वल आते। दोनों के क्लास एक थे लेकिन सेक्शन अलग-अलग थे। उत्कर्ष वक्त के साथ समझदार हो रहा था तो नंदिनी और भी ज्यादा खूबसूरत होती जा रही थी। दोनों भाई बहन में प्यार बहुत था और दोनों लड़ते भी उतना ही थे। उत्कर्ष थोड़ा गुस्से वाला था जिसकी वजह से स्कूल में किसी भी लड़के की हिम्मत नहीं होती थी कि वह नंदनी से बात भी कर सके। वरना हर लड़के की नजर नंदिनी पर ही ठहरी होती थी। लेकिन नंदिनी....! वह तो अपनी ही दुनिया में होती थी। पढ़ाई के अलावा उसे किसी और चीज में कोई दिलचस्पी नहीं थी। डांस का शौक है ना जाने कहां से लग गया उसे। स्कूल के किसी फंक्शन में उसका डांस होना जरूरी होता था। पूरा ऑडिटोरियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता। नीलांजना ने बिना किसी की परवाह किए नंदिनी का दाखिला कत्थक स्कूल में करवा दिया, जहां उसकी कला को और भी ज्यादा अच्छे से निखारा गया। दोनों भाई बहन अपने अपने क्षेत्र में काफी अच्छे थे। नंदनी अपने दोनों बच्चों को देखकर ही बेहद ज्यादा खुश थी। अपने दोनों बच्चों की तस्वीर को हाथ में लिए नीलांजना एकटक उसे देखे जा रही थी। रात के इस प्रहर सोने का वक्त था लेकिन नीलांजना को यूं खामोश खड़ा देख आदर्श ने पूछा, "क्या हुआ नीलू? सब ठीक तो है? तुम इस वक्त जाग क्यों रही हो? याद है ना कल हमारे बच्चों का जन्मदिन है!" नीलांजना ने हां में सर हिलाते हुए कहा, "जानती हूं कल हमारे बच्चों का जन्मदिन है! कल का दिन मैं कभी नहीं भूल सकती।" फिर उसने नंदिनी के तस्वीर पर हाथ फेरते हुए कहा, "जानते आदर्श! नंदिनी इतनी खूबसूरत है जितना हमारे खानदान में कोई नहीं। उसकी आंखें, उसकी नाक, उसके होंठ और उसके ठुड्डी पर यह छोटा सा तिल! जानते हैं यह सब किसके जैसे हैं?" आदर्श नीलांजना की तरफ देखते हुए बोला, "सुप्रिया के जैसे!" सुप्रिया का नाम सुनकर नीलांजना ने आदर्श की आंखों में देखा और फफक कर रो पड़ी। उसने कहा, "हमारे साथ धोखा हुआ आदर्श! उसने हमारे साथ धोखा किया है! हमारे बच्चे को ले गई वो औरत! क्या हम कभी अपने बच्चे को देख पाएंगे? ना जाने मेरा बच्चा कहां होगा, किस हाल में होगा? कैसी परवरिश मिल रही होगी उसे?" आदर्श नीलांजना को अपने सीने से लगाकर बोला, "तुम उसकी चिंता मत करो! हमारा बच्चा जहां भी है सुरक्षित है। लेकिन उसे परवरिश कैसी मिल रही होगी यह हम अच्छे से समझ सकते हैं। सुप्रिया की बातों से मैं इतना तो समझ ही गया था कि वह परिवार कैसा है।" नीलांजना सिसकते हुए बोली, "मुझे मेरा बच्चा वापस चाहिए आदर्श! मुझे मेरा बच्चा वापस चाहिए! जब मैंने उसे अपनी गोद में लिया था, उसी वक्त मुझे लग रहा था जैसे वह मेरा ही बच्चा हो! मैंने उसी वक्त इस बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया? जब उसने मुझसे अपना बच्चा मांगा था, उस वक्त लगा जैसे वह मुझसे मेरी जिंदगी मांग रही हो। मुझे उसी वक्त क्यों समझ नहीं आया! हम उसे ढूंढेंगे! उससे अपना बच्चा वापस लेंगे! हम ऐसे नहीं छोड़ सकते उसे! धोखा किया है उसने हमारे साथ!" आदर्श उसे समझाते हुए बोला, "हां उसने धोखा किया है! लेकिन यह भी तो सोचो कि उसने धोखा क्यों किया? अगर उसने ऐसा नहीं किया होता तो हमारी नंदिनी हमारे पास नहीं होती! इनफैक्ट वह तो इस दुनिया में ही नहीं होती! मार दी जाती वो। तुम खुद सोचो! जिस बच्चे को तुमने 9 महीने अपनी कोख में रखा, जिसे तुमने सिर्फ एक बार देखा, उस बच्चे के लिए तुम्हारा मन तड़पता है। तुम जानती हो कि तुम्हारा बेटा किसी और घर में पल रहा है, सुरक्षित है, इसके बावजूद तुम उसे याद करती हो। जरा सोचो! सुप्रिया के सामने उसकी बेटी को मार दिया जाता! कैसे रहती वो? हम इतने स्वार्थी नहीं हो सकते। भगवान ने हमें एक बेटा दिया है और एक बेटी की कमी सुप्रिया ने पूरी कर दी। किस्मत में अगर होगा तो हमें हमारा बच्चा जरूर मिलेगा लेकिन उसके बदले क्या तुम नंदनी को उन्हें सौंप सकती हो? कह सकोगी उससे कि तुम उसकी माँ नहीं! यह उसका घर नहीं और वह यहां से चली जाए!" नीलांजना बेचैन हो गई और बोली, "नहीं.....! नंदिनी मेरी बेटी है! मेरी बेटी है वो! मैं क्यों दूं उसे किसी को भी? ये उसका घर है, मैं उसकी माँ हूं! वह कहीं नहीं जाएगी यहां से!" आदर्श उसके चेहरे को थाम कर बोला, "यही तो मैं समझाने की कोशिश कर रहा हूं! नंदनी हमारी बेटी है! हमारे दो बच्चे हैं, एक उत्कर्ष दूसरी नंदिनी! इसके अलावा हम किसी तीसरे को नहीं जानते। अगर हमारे त्याग से किसी का घर बसा है तो इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है! आसान नहीं होता एक मां के लिए अपने बच्चे को खुद से अलग करना। अपने उस बच्चे को जिसे उसनें 9 महीने कोख में रखा हो। तुम खुद सोचो, सुप्रिया की कितनी बड़ी मजबूरी रही होगी जो उसे अपना बच्चा तुम्हें देना पड़ा! अगर वह तुमसे तुम्हारा बेटा मांगती तो क्या तुम कभी उसे देती? कभी नहीं....! धोखे से ही सही लेकिन अपनी बच्ची को बचाने के लिए उसने अपनी बेटी तुम्हें सौंप दी। बिल्कुल उसी तरह जैसे वासुदेव जी ने अपने कान्हा को बचाने के लिए यशोदा मां की बच्ची से बदल दिया था।" नीलांजना का मन पहले से थोड़ा शांत था। फिर भी उसने कहा, "आदर्श! क्या हम एक बार सुप्रिया का पता नहीं लगा सकते? वह कहां रहती है, क्या करती है?" आदर्श बोला, "मैंने बहुत पहले ही हॉस्पिटल में इस बारे में बात करनी चाही लेकिन उसका कहीं कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। अब सब भगवान के हाथ में है। रात बहुत हो गई है सो जाओ।" नीलांजना ने अपने आंसू पोंछे और कहा, "12:00 बज गए हैं! जाकर अपने दोनों बच्चों को जन्मदिन की बधाई तो दे दू!" कहते हुए नीलांजना मुस्कुरा उठी। आदर्श भी उसके साथ अपने कमरे से निकला और सबसे पहले उसने नंदिनी को जन्मदिन की शुभकामनाएं दी। आदर्श उठकर वहां से उत्कर्ष के कमरे की तरफ चला गया। नीलांजना ने नंदिनी का सर अपनी गोद में रखा और प्यार से थपकी देकर उसे सुलाने लगी। आधी रात हो रही थी और सुबह उठना भी था। नंदिनी को अपनी मां की गोद में आराम से नींद आ गई तो नीलांजना भी वही अपनी बेटी के बगल में सो गई। आदर्श वापस आया तो नीलांजना को नंदनी के पास सोया देख मुस्कुरा दिया और उन्हें डिस्टर्ब ना करके धीरे से दरवाजा बंद कर अपने कमरे की ओर चला गया।