Chapter 1
सौभाग्यशाली 1
Chapter कुछ साल पहले किरण खेर जी की एक लाइन सुनी थी, "बेटों की मां का भी एक अलग दुख होता है। इसे क्या पहनाउ? ले दे कर वही चार रंग! बेटी होती तो यू सजाती, यू सँवारती!" वास्तव में बेटों की मां होना भी एक अलग ही दुख है आज भी इस जमाने में बेटी पैदा होने पर सबके चेहरे पर मायूसी होती है लेकिन सिर्फ एक माँ ही है जिसका मन खिल् उठता है। यह बात मैंने तब जाना और महसूस किया जब मैं खुद दो बेटों की माँ बनी। आज भी बेटिओं के लिए हालात नहीं बदले है। "डॉटर्स डे" पर मैं लेकर आई हु एक कहानी उनके लिए जिन्हें बेटे और बेटिओं में कोई अंतर नजर नहीं आता।❄❄❄❄❄❄❄❄❄❄❄❄❄❄❄ नीलांजना एक मिडिल क्लास लड़की थी, जिसकी शादी एक मिडिल क्लास फैमिली में ही आदर्श से हुई थी। उन दोनों की शादी को 3 साल पूरे हो चुके थे और सभी को नीलांजना से खुशखबरी का इंतज़ार था । उसके पति आदर्श और पूरा परिवार बेहद खुश था, जब उन लोगों को नीलांजना के प्रेग्नेंट होने की बात पता चली थी। आदर्श घर का इकलौता बेटा था। उसकी माँ ने इन 3 साल में ही ना जाने कितनी ही मन्नते मांग डाली थी। कुछ वक्त बाद जब डॉक्टर ने बताया कि नीलांजना को जुड़वा बच्चे होने वाले हैं, तब उनकी खुशी दुगनी हो गई। घरवाले तो फूले नहीं समा रहे थे। आदर्श की माँ का कहना था कि दोनों पोते ही हो। क्योंकि आदर्श का रंग साँवला था और नीलांजना भी कुछ खास गोरी नहीं थी। अगर लड़की होगी तो काली होगी और बेटियाँ गोरी ही अच्छी लगती है। इसीलिए घर के पहले बच्चे के रूप में उन्हें पोता ही चाहिए था। नीलांजना इस बात से परेशान हो गई तो आदर्श ने उसे समझाते हुए कहा, "नीलू........! बच्चा हमारा है! जो भी होगा वह हमारा होगा! ऐसा तो नहीं है कि अगर लड़की हुई तो हम उसे प्यार नहीं करेंगे! मुझे तो दोनों चाहिए। जब दो आ रहे हैं तो क्यों ना एक लड़का और एक लड़की की हम उम्मीद करें?" नीलांजना ने घबराते हुए पूछा, "अगर दोनों लड़कियां हुई तो?" आदर्श ने मुस्कुरा कर कहा, "फिर तो डबल लक्ष्मी आएगी हमारे घर! और उन दोनों के आने की खुशी में एक शानदार पार्टी! फिर चाहे कोई कुछ भी कहे, मेरी बेटियां मेरी परीयाँ मेरे घर आएंगी। उनके स्वागत के लिए मुझे कुछ तो करना होगा ना! वैसे भी, बेटियां जिंदगी भर के लिए घर नहीं आती है। जब तक रहेगी उसे राजकुमारी बनाकर रखूंगा और तुम्हें मेरी महारानी! क्या कहती हो? अब भी कोई शक है?" नीलांजना मुस्कुराई और आदर्श के गले लग गई। यहाँ से शुरू हुआ उसकी सास का पूजा पाठ हवन बगैरा बगैरा!!!! पोता पाने के लिए उन्होंने ना जाने कितनी ही मन्नते मांग डालें। न जाने कितने ही मंदिरों में माथा टेका और ना जाने कितने ही हवन करवा डालें। नीलांजना को लेकर हर जगह पूजा करवाना उनकी आदत बन गई। नीलांजना को इस सब से बहुत चिढ़ होती थी लेकिन वह करें भी तो क्या? इस तरह वह सास की बात ना मानकर घर में कलेश नहीं करना चाहती थी। ना चाहते हुए भी उसे वह सब कुछ करना पड़ता था जो वह कभी करना नहीं चाहती थी। आदर्श भी उसे समझाता और संभालता। अपनी मां की आदत से वह अनजान नहीं था। पिताजी जब उनके सामने जब चुप रह जाते थे तो भला बेचारे आदर्श की क्या बिसात! अगर कोई काम उनकी मर्जी के खिलाफ हो जाती, या उन का कहा नहीं माना जाता तो घर में जो बवंडर मचता, उसे शांत कर पाना किसी के भी बस में नहीं होता था। घर में रोना-धोना और क्लेश ना हो इसलिए नीलांजना को वह सब कुछ करना पड़ता था और आदर्श भी अपनी पत्नी का साथ देता। फिर बाद में अपनी पत्नी को सीने से लगाए नीलांजना के मन की सारी भड़ास सुनता। सारे पूजा-पाठ रस्मो रिवाज मानते मानते नीलांजना थक चुकी थी और उसका आखिरी महीना भी चल रहा था। आदर्श हर महीने उसके चेकअप के लिए उसके साथ जाता। इत्तेफाक से वहां एक और लड़की सुप्रिया जो कि नीलांजना से उम्र में थोड़ी ही बड़ी थी, वह भी अपने चेकअप के लिए आती थी। नीलांजना की उससे अच्छी खासी दोस्ती हो गई थी और यह बात आदर्श भी अच्छे से समझता था। उन दोनों में इतनी अच्छी दोस्ती होने के बावजूद उन दोनों ने कभी भी एक दूसरे का नंबर नहीं लिया। या यूं कहें कि वह लड़की सुप्रिया ने कभी अपना नंबर दिया ही नहीं। सुप्रिया ने बताया कि यह उसकी दूसरी प्रेगनेंसी है। पहली प्रेग्नेंसी को इसलिए खत्म करवा दिया गया क्योंकि उसकी कोख में एक लड़की थी। यह बताते हुए सुप्रिया की आंखें नम हो गई। अपने पहले बच्चे को याद कर वो अक्सर रो पड़ती थी। उसने कहा, "भगवान ना करें, इस बार फिर लड़की ना हो वरना मेरे ससुराल वाले इसे भी मार डालेंगे। पहले बच्चे के समय मैं अपने ससुराल में थी इसलिए कुछ नहीं कर पाई लेकिन इस वक्त मैं अपने मायके में हूं और मेरे पति देश से बाहर। मेरे ससुराल वाले यहां आने से रहे और ससुराल में कदम रखने के लिए मेरी गोद में उनका वारिश होना जरूरी है। इसीलिए फिलहाल मैं अपने बच्चे को जन्म देने की हालत में हु। लेकिन इसकी जिंदगी और मौत अभी भी मेरे हाथ में नहीं है। लड़का हुआ तो फिर इसकी उम्र लंबी होगी। यह अपनी जिंदगी जिएगा। अगर लड़की हुई तो......" कहते हुए सुप्रिया फफक पड़ी। आदर्श ने जब यह बात सुनी तो वह हैरान होकर बोला, "आज के जमाने में भी लड़का लड़की में इतना अंतर? आज ऐसा कौन सा काम है जो लड़कियां नहीं कर रही? और फिर एक बाप को बेटी से ज्यादा प्यारी और कोई नहीं होता। क्योंकि बेटियां हमेशा पापा की लाडली होती है और बेटे हमेशा मां की तरफदारी करते हैं। मेरे पापा को इतने सालों में मैंने हमेशा कहते सुना है कि काश उनकी एक बेटी होती! तो जैसे मैं मां का पक्ष लेता हूं, उनकी तरफदारी करता हूं, वह भी पापा का साथ देती और वह ऐसे अकेले नहीं पड़ते! हम तो दिल से चाहते हैं कि हमारी कम से कम एक बेटी जरूर हो ताकि उसका कन्यादान करने का सुख हमें मिल सके। हमें भी सौभाग्य चाहिए। कैसे पिता है यह? कैसे लोग हैं ये जो अपने घर में सौभाग्य को आने नहीं देते! चिढ़ होती है मुझे ऐसी मानसिकता से और ऐसी मानसिकता वाले लोगों से।" सुप्रिया बोली, "नीलांजना.........! तुम वाकई में बहुत किस्मत वाली हो जो तुम्हें ऐसा परिवार, ऐसा पति मिला है। हर किसी की किस्मत में यह सुख नहीं होता।" कहकर वह उठी और वहां से चली गई। नीलांजना और आदर्श उसे जाते हुए देखते रहे और सोचने लगे, "आखिर कब तक यह समाज इस तरह की सोच से जकड़ा रहेगा? अगर बेटियां ही नहीं होंगी तो फिर बहुए कहां से आएंगी? और कैसे समाज आगे बढ़ेगा?"क्रमशः