Chapter 2
सौभाग्यशाली 2
Chapter 2 किस्मत से सुप्रिया और नीलांजना की डिलीवरी डेट एक ही थी। लेकिन डिलीवरी डेट से 1 हफ्ते पहले आदर्श की नानी चल बसी। जिस वजह से आदर्श के मम्मी पापा को ऐसे ऐन मौके पर वहां से जाना पड़ा। ना चाहते हुए भी आदर्श की मां को वहां कामक्रिया पूरा होने तक रुकना ही था। नीलांजना को ऐसे समय में ले जाना सही नहीं था इसलिए आदर्श उसके साथ रुक गया। उसका आखरी महीना था, कभी भी कुछ भी हो सकता था और गांव में ऐसी कोई फैसिलिटी थी नहीं थी। आदर्श ने बच्चे को लेकर किसी भी तरह का रिस्क लेना सही नहीं समझा। खुद आदर्श के पिता ने आदेश देते हुए उन दोनों को यहीं रुकने का कहा और अपनी पत्नी को लेकर गांव चले गए। डिलीवरी डेट से 1 दिन पहले ही नीलांजना को लेबर पेन शुरू हो गया। आदर्श ने फ़ौरन उसे लेकर हॉस्पिटल में दौड़ लगा दी। इमरजेंसी रूम में ही उसे एडमिट करवाया और सारे पेपर फॉर्मेलिटी पूरे किए। काफी देर तक नीला लेबर पेन में रही। इसके बावजूद उसकी डिलीवरी नहीं हो पाई। डॉक्टर ने देखा तो आदर्श से कहा, "यह उनकी पहली प्रेग्नेंसी है। ऐसे में थोड़ा लंबा वक्त लगता ही है। दूसरी या तीसरी होती तो इतना टाइम नहीं लगता। आप चिंता मत कीजिए सब कुछ ठीक है।" आदर्श ने चैन की सांस ली। पूरी रात गुजर चुकी थी लेकिन नीलांजना अभी भी दर्द में थी। तकरीबन 10 घंटे के दर्द को सहने के बाद नीलांजना ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। नीलांजना के हॉस्पिटल में एडमिट होने की खबर सुनते ही आदर्श की मां बेचैन हो गई और उसी रात उन्होंने बिना अपने पति को कुछ भी बताएं वापसी की ट्रेन पकड़ ली। सुबह जिस टाइम नीला की डिलीवरी होनी थी, उसी वक्त आदर्श को उसे हॉस्पिटल में अकेला छोड़ स्टेशन अपनी मां को लेने जाना पड़ा। आदर्श अपनी मां को लेकर हॉस्पिटल पहुंचा तो नर्स ने उसे आकर खबर दी कि एक लड़का और एक लड़की हुई है। दोनों बच्चे बिल्कुल स्वस्थ है। किसी तरह की कोई भी परेशानी नहीं है। ना मां को नहीं बच्चों को! आदर्श और उसकी मां ने चैन की सांस ली और भगवान को धन्यवाद कहा। नीलांजना अभी पूरी तरह से थकी हुई थी और तकरीबन आधी बेहोशी की हालत में ही थी। आदर्श उसके पास गया और प्यार से उसके बाल सहलाते हुए उसका हाथ पकड़ कर बोला, "बधाई हो नीलू!!! हमारी दोनों चाहत पूरी हुई। भगवान ने हमें एक लड़का और एक लड़की दी है। देखो तो दोनों कितने प्यारे हैं! थैंक यू, थैंक यू सो मच मुझे इतनी प्यारी बेटी देने के लिए।" नीलांजना उस हालत में भी मुस्कुरा उठी। आदर्श की माँ ने दोनों बच्चों की नजर उतारी और पूरे हॉस्पिटल में मिठाइयां बटवाइं। आदर्श ने अपने पिता को फोन कर जानकारी दी और डॉक्टर से बात करने चला गया। नीलांजना को धीरे धीरे जब होश आया तब अचानक से उसे याद आया कि आज तो सुप्रिया की भी डिलीवरी होनी थी। लेकिन सुप्रिया के बारे में उसे कोई खबर नहीं मिली। उसका नंबर भी नहीं था जिससे नीलांजना उसे कॉल कर सकती थी। उसने दो तीन नर्स से भी बात की लेकिन किसी से कुछ पता नहीं चल सका। तभी उसे एक नर्स दिखाई दी जो अक्सर उन दोनों को एक साथ अटेंड करती थी। नीलांजना ने उस नर्स को बुलाया और पूछा, "सिस्टर! आपको याद है जो मेरे साथ एक और लेडी थी! सुप्रिया नाम था उसका, सुप्रिया सिंह! उसकी आज डिलीवरी थी। क्या वह आई है यहां?" नर्स ने कुछ देर सोचा और फिर कुछ याद करते हुए बोली, "हां! वह सुप्रिया सिंह जो आपके साथ आती थी? उनको बेटा हुआ है, अभी कुछ देर पहले ही। इसी हॉस्पिटल में है वह। लेकिन अभी आप उनसे नहीं मिल सकती और ना ही वह आपसे मिल सकती है। अभी आप दोनों को ही आराम की जरूरत है। इसलिए बेहतर है आप आराम कीजिए और ज्यादा टेंशन मत लीजिए। ऐसी हालत में किसी भी तरह का स्ट्रेस या फिजिकल एक्सरसाइज आपके लिए और बच्चे के लिए नुकसानदायक है। आप आराम कीजिए। डिस्चार्ज होने से पहले आप दोनों मिल लीजिएगा। मैं खुद आप दोनों को मिलवाऊंगी, ठीक है?" नीलांजना ने मुस्कुराकर हां में सर हिला दिया और वो नर्स वहां से चली गई। नीलांजना यह जानकर खुश थी कि सुप्रिया को जो चाहिए था वह उसे मिला। अब उसके ससुराल वाले उसे परेशान नहीं करेंगे। सच में कितने गिरे हुए लोग हैं वह जो बेटी को इस तरह पैदा नहीं होने देते! सोचते हुए उसने पालने में रखें दोनों बच्चों को देखा और मुस्कुरा उठी। अगले दिन ही आदर्श ने नीलांजना और दोनों बच्चों के डिस्चार्ज पेपर तैयार करवाएं। घर वापस जाने से पहले नीलांजना ने सुप्रिया से मिलने की इच्छा जाहिर की तो दोनों बच्चों को अपनी मां के हवाले कर आदर्श नीलांजना को व्हील चेयर पर बैठा कर सुप्रिया के वार्ड की ओर ले कर गया। उस वार्ड में एक पेशेंट और थी जिसकी डिलीवरी अभी नहीं हुई थी। उसको अभी थोड़ा वक्त लगना था। नीलांजना सुप्रिया से मिली। सुप्रिया भी उसे देख कर बहुत ज्यादा खुश थी। उसने अपने बेटे को नीलांजना की गोद में देते हुए कहा, "शायद यह तुम्हारे साथ का असर है नीला! जो मेरी जिंदगी में खुशियां लेकर आया है। मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाऊंगी। नीलांजना! यहां से मैं हमेशा के लिए अपने घर जा रही हूं, अपने ससुराल! मेरे साथ ससुर आए हुए हैं मुझे लेने। अब जब मैंने उनको उनका वारिस दे दिया है तो ऐसे में मेरे ससुराल में मेरा स्वागत होना तो तय है। अगर बेटी होती तो हमेशा के लिए मायके में बोझ बनकर रह जाती।" नीलांजना ने बच्चे को गोद में थामा तो बच्चे ने नीलांजना की उंगली पकड़ ली। ना जाने क्यों उसका मन ममता से भर उठा। किसी और के बच्चे के लिए इस लगाव महसूस करना उसके लिए अजीब सा था। जैसे वह सुप्रिया का बच्चा नहीं, उसका अपना हिस्सा हो। सुप्रिया ने हाथ बढ़ाकर बच्चे को मांगा तो नीलांजना का कलेजा कांप गया। फिर भी मन मार कर उसने बच्चे को सुप्रिया के हवाले कर दिया और वहां से चली गई। फिर भी उसका दिल उस बच्चे की ओर खीचा जा रहा था। हॉस्पिटल छोड़ते वक्त नीला को लग रहा था जैसे उसका कुछ छूट रहा हो। क्रमशः