Chapter 77
humsafar 77
Chapter
77
काव्या की प्रेग्नेंसी की खबर और कार्तिक की खुशी ने चित्रा की हर उम्मीद तोड़ दी थी जो एक तरह से उसके लिए जरूरी भी था। सब कुछ भूल कर लाइफ मे आगे बढ़ने के लिए निक्षय ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया जिसे चित्रा ने थाम लिया लेकिन निक्षय जानता था की चित्रा के लिए ये सब आसान नही होगा और सब जानते हुए भी वह उसका इंतज़ार करने को तैयार था। निक्षय तो बस इसी बात से खुश था की चित्रा ने आगे बढ़ने के लिए कदम तो उठाय।
उसका मूड ठीक करने के लिए निक्षय ने बाहर खाने का प्लान बनाया और उसे जल्दी से तैयार होने का बोल खुद भी फ्रेश होने चला गया। चित्रा ने अपना चेहरा अच्छे से धोया। उसका मन अभी भी रोने का कर रहा था लेकिन फिर भी खुद को संभालते हुए वह बाथरूम से बाहर निकली और कपड़े बदले। तब तक निक्षय भी तैयार हो चुका था। उसने चित्रा का हाथ पकड़ा और उसे लेकर बाहर आया। उसे गाड़ी की बजाय बाइक की और बढ़ता देख चित्रा चौंक गयी।
सिया जब ऑफिस से निकली तब उसने घर जाने की बजाय कार्तिक के घर की ओर रुख किया। काव्या को यूँ बेड पर देख सिया को थोड़ी चिंता हुई क्योंकि धानी इस वक़्त यहाँ नही थी और उसकी गैरमौजूदगी मे वो दोनो ही सिया की जिम्मेदारी थी। सिया ने कुछ पूछना चाहा लेकिन उसकी नजर काव्या और कार्तिक के खिले हुए चेहरे पर गई। दो मिनट कुछ सोचने के बाद सिया ने कहा, " क्या मैं कुछ गलत समझ रही हू!"
"नहीं बड़ी माँ! आप गलत कैसे हो सकती हैं! मेरे बारे में आप हमेशा से सही है। आप दादी बनने वाली हैं।"कार्तिक ने सिया का हाथ पकड़कर कहा।
दादी बनने की बात सुनते ही सिया खुशी से उछल पड़ी। उसने सबसे पहले अपने पर्स से पैसों का बंडल निकालकर काव्या के सिर के ऊपर से वार कर उसे ड्राइवर को दे दिया और काव्या का माथा चूमा। काव्या ने सिया के पैर छूने चाहे तो सिया ने साफ मना कर दिया,"ऐसी हालत में झुकते नहीं है बेटा।"
कार्तिक में शिया को काव्या की हालत के बारे में बताया जो कुछ भी डॉक्टर ने कहा था और बोला, "मैं आप ही को याद कर रहा था बड़ी माँ! आप कैसे जान जाते हैं कि मुझे आपकी जरूरत है!"
"अभी बाप बनने वाला है! जिस दिन बाप बन जाएगा उस दिन तुझे अपने आप समझ में आ जाएगा जब बच्चों को जरूरत होती है तो माँ बाप को पता चल जाता है! मैं तो फिर भी तेरी बड़ी मां हूं", सिया ने कार्तिक की कान खींचते हुए कहा और काव्या की तरफ देख कर बोली, "इसीलिए तुम मुझे ढूंढ रही थी!!! अवनि ने बताया मुझे।
तो मिस्टर कार्तिक! कब तक ऑफिस ना जाने का इरादा है? तुम उस ऑफिस के एंप्लॉय नहीं हो! वो तुम्हारा ऑफिस है वहाँ तुम्हारी जरूरत है। तुम वैसे ही नहीं छोड़ सकते और ना ही काव्या की तुम अच्छे से देखभाल कर सकते हो। इसीलिए मैं काव्या को अपने साथ ले जा रही हूं। अब से तुम लोग वही रहोगे जब तक धानी नहीं आ जाती या फिर जब तक मुझे तसल्ली नहीं हो जाती। इस वक्त काव्या को सिर्फ 9 महीने की देखभाल की जरूरत नहीं पूरे 1 साल की देखभाल की जरूरत है, इसलिए तुम दोनों का सामान पैक करो और चलो मेरे साथ अभी के अभी और ये मेरा ऑर्डर है।" सिया ने पहले तो समझाया फिर सख्त लहजे में कहा।
कार्तिक ने भी सिर झुका कर सिया का ऑर्डर माना और काव्या को लेकर मित्तल मेंशन चला आया। वहाँ पहुँच कर कार्तिक ने धानी और कंचन को बताने की जिम्मेदारी सिया पर डाल दी। सिया ने दोनो को एक साथ फोन लगाया और खुशखबरी दी और काव्या से पूछा, "और किस किस को पता है ये बात?"
काव्या ने कार्तिक की ओर देखा और बोली, "आज सुबह चित्रा आई थी, बस उसे ही पता था। अवनि को भी इस बारे मे नही पता।"
"अभी उसे बताना भी मत। आने दो उन्हें..! वो दोनो जब वापस आयेंगे तो उनकी टाँग खिचाई होगी।" सिया ने कहा।
"ऐसा भी तो हो सकता है बड़ी माँ की वो दोनो भी जल्दी ही........." काव्या ने कहा लेकिन बात अधूरी ही छोड़ दी। उसकी बात सुन सिया मुस्कुरा दी।
" क्या बड़ी मां आप भी अभी-अभी तो उन दोनों की शादी हुई है! अभी थोड़ा वक्त एक दूसरे के साथ बिताने दीजिए। बच्चों का बाद में सोचेंगे! मैं और काव्या तो एक दूसरे को पिछले 2 सालों से जानते हैं, अभी उन पर बच्चे की जिम्मेदारी डालना सही नहीं होगा" कार्तिक ने कहा तो सिया ने भी उसकी बात पर सहमति जताई।
देखते ही देखते एक हफ्ता गुजर गया। काव्या की हालत पहले से बेहतर थी और डॉक्टर ने भी उसकी इम्प्रूवमेंट को देखते हुए उसे थोड़ा चलने फिरने को कहा लेकिन ज्यादा नही। बुटीक का काम वह घर से ही देख रही थी। इस बीच कंचन और अखिल भी दो दफा आकर काव्या से मिलकर गए। कार्तिक भी अभी कुछ दिन और घर से ही काम करने वाला था। चित्रा अब निक्षय के साथ ज्यादा से ज्यादा वक़्त बिताने की कोशिश करने लगी थी और निक्षय भी उसके साथ पहले की तरह ही नॉर्मल रहता था। चित्रा को परेशान करना उसका पसंदीदा काम था जो उसे और चित्रा दोनों को अच्छा लगता था।
अवनि और सारांश भी एक दूसरे की कंपनी को इंजॉय कर रहे थे। शादी के बाद वे दोनो पहली बार अकेले मे ऐसे घूमने निकले थे जिसके लिए सारांश ने अपने पुराने बचे कामों को निबटाना पड़ा था और जिस वजह से अवनि नाराज भी हो गयी थी। उन दोनों को ही काव्या के प्रेग्नेंसी की खबर नही थी और सिया ने हर किसी को हिदायत दी थी उन्हे ना बताने के लिए ताकि वो दोनो अपना पूरा वक़्त सिर्फ एक दूसरे को दे लेकिन फिर सिया से ही रहा नही गया और उसने सारांश को यह खुशखबरी दे दी।
सारांश को जब पता चला तो बहुत ही ज्यादा खुश हुआ। कार्तिक और काव्या के बीच के सुधरते रिश्ते के बारे मे सोचकर ही उसे अच्छा लग रहा था। पिछले दिनों उसे कार्तिक की फीलिंग्स को लेकर कुछ शक था जिसे उसने अवनि को भी नही बताया था लेकिन काव्या के प्रेग्नेंसी की खबर से सारांश को तसल्ली मिली। अगर ये बात अवनि को पता चलती तो वह उसी दिन घर वापस आ जाती और ये बात सारांश अच्छे से जानता था इसीलिए उसने अवनि से कुछ नही कहा और घर पहुँचते ही उसे सरप्राइज देने का सोचा लेकिन कहते है खुशियो को बड़ी जल्दी नज़र लग जाती है।
अवनि और सारांश एक दूसरे का हाथ थामे मॉल में घूम रहे थे। सारांश को वैसे भी शॉपिंग करनी बहुत पसंद थी और अवनि बोर होने के बावजूद सारांश का साथ दे रही थी। उसे तो बस सारांश के साथ वक्त बिताने से मतलब था फिर चाहे वह कैसे भी हो। उन दोनों ने सभी के लिए कुछ गिफ्ट्स खरीदें और वही खाना भी खाया। छुट्टी पर होने के बावजूद सारांश अक्सर कॉल पर ही रहता जिससे वह खुद भी परेशान हो गया था, लेकिन अवनि ने कभी इस बात की शिकायत नहीं की। वह जानती थी कि सारांश को यह काम कभी पसंद नहीं था फिर भी उसे करना पड़ता था।
मॉल से वापस लौटते वक्त भी सारांश अपने फोन में ही कुछ डाक्यूमेंट्स देख रहा था और अवनि उसकी बाँह पकड़े चल रही थी। सारांश की नजर नीचे अपने फोन पर थी कि तभी उसे झूमर के नीचे अपनी परछाई हिलती हुई दिखी। उसकी आंखें हैरानी से फैल गई और तुरंत ही उसने अवनि के कमर में हाथ डाल कर उसे पीछे की ओर खींच लिया। एक पल में ही वह जितना दूर उसे ले जा सकता था ले गया। उसी वक्त मॉल का वह बड़ा सा झूमर नीचे आ गिरा और चारों ओर कांच फैल गया जिससे वहां मौजूद कई लोगों को चोट आई।
सारांश ने अवनि को पूरी तरह से कवर कर रखा था जिससे अवनि को चोट नहीं लगी लेकिन कांच के कई टुकड़े सारांश की पीठ पर जा लगे। थ्री पीस सूट पहने होने के कारण सारांश बच तो गया लेकिन एक कांच उसकी गर्दन के पीछे आ लगा। सारांश ने अवनि को अपनी बाहों में समेट रखा था और अवनि भी आंखें बंद किए उसके सीने में मुंह छुपाए खड़ी थी। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह आँखे खोलकर सामने देखें ।
अचानक हुए हादसे के कारण वहां अफरा-तफरी मच गई। सारांश ने एक नजर उस टूटे हुए झूमर की ओर देखा और फिर अवनि को देखा। सारांश को हरकत करता पाकर अवनि ने अपनी आंखें खोली और नजर उठाकर सारांश की ओर देखा। इससे पहले अवनि सारांश से कुछ पूछ पाती उसकी नजर सारांश के गर्दन पर लगे खून पर गई और वह चीख पड़ी,"सारांश......! खून...........!आपको चोट लगी है हमें अभी हॉस्पिटल के लिए निकलना चाहिए।"
" मैं ठीक हूं अवनि! तुम बेवजह परेशान हो रही हो" सारांश ने कहा तो अवनि गुस्सा हो गई।
" इतना सारा खून बह रहा है और आप कह रहे हैं कि कुछ नहीं हुआ। आप मेरे साथ हॉस्पिटल चल रहे हैं बस, मुझे कुछ नहीं सुनना।" अवनि ने सारांश को गाड़ी में बैठाया और उसे हॉस्पिटल लेकर गयी। उस वक्त तक एंबुलेंस भी उस मॉल के बाहर पहुंच चुकी थी और घायलों को हॉस्पिटल ले जाने के लिए तैयार थी। सभी को पास के ही एक लोकल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया थाजिन्हें गंभीर चोट आई थी। अवनि भी सारांश को लेकर उसी हॉस्पिटल में पहुंची।
सारांश के मना करने के बावजूद अवनि ने उसकी एक नहीं सुनी और उसे लेकर डॉक्टर के पास पहुंची। डॉक्टर ने कुछ मेडिसिन लिखकर अवनि को दिया ताकि वह सारी दवाइयां ले आ सके। वह एक छोटा सा हॉस्पिटल था इसलिए अचानक घायलों के पहुंचने के कारण सारे डॉक्टर को उन्हें अटेंड करना पड़ा। सारांश का केस ज्यादा सीरियस नहीं था, इसलिए वह डॉक्टर सारांश को एक नर्स के साथ छोड़ कर बाहर चला गया।
अवनि ने भागकर जाकर फार्मेसी से सारी दवाइयां खरीदी और उसे लेकर वापस आने लगी। घबराहट के कारण उस से ठीक से चला भी नहीं जा रहा था, तभी कॉरिडोर में एक आदमी ने उससे कहा,"मैडम आप की सैंडल की बेल्ट खुली हुई है" अवनि ने देखा तो उसने उस आदमी को थैंक यू बोल कर अपना सैंडल ठीक करने के लिए नीचे झुकी लेकिन इससे पहले कि वह अपना सैंडल ठीक करती, उस आदमी की आवाज अवनि के कानों मे गूंज उठी।
अवनि वही जम गई, डर के कारण उसकी आंखें खुली की खुली रह गई। उस आवाज को वह कैसे भूल सकती थी! यह लक्ष्य की आवाज थी! लक्ष्य के अपने आसपास होने के ख्याल से ही अवनी काँप गई। उसने पूरी हिम्मत बटोर कर पीछे पलट कर देखा लेकिन लक्ष्य कॉरिडोर में कहीं नहीं था। अवनि ने घबराकर अपने चारों ओर देखा लेकिन वहां उसे ऐसा कोई नजर नहीं आया जिस पर वह शक कर सके। अवनि इतनी ज्यादा डर गई कि उसने अपनी सैंडल वही फेंकी और भागकर डॉक्टर के केबिन में गई जहां सारांश बैठा था।
क्रमश: