Chapter 53
humsafar 53
Chapter
53
अवनि और सारांश सिया के कहे अनुसार कंचन और अखिल के घर पहुँचे। कंचन दोनों को एक साथ देख खुश हो गयी। सिया ने पहले ही उन्हे फोन कर सारांश और अवनि के आने की बात बता दी थी तो कंचन ने कार्तिक और काव्या को भी साथ मे बुला लिया था। वो दोनों पहले ही वहाँ पहुँच चुके थे। अवनि और काव्या किचन मे अपनी माँ की हेल्प करने चली गयी और कार्तिक सारांश अखिल के साथ बैठे बातें करने लगे। थोड़ी देर बाद सारा नाश्ता टेबल पर लगा कर सभी खाने बैठ गए। साथ बैठते ही सारांश ने अपने बाएँ हाथ से अवनि का हाथ पकड़ लिया तो अवनि ने भी अपना हाथ छुड़ाने की बजाय दूसरे हाथ मे पकड़ लिया और नाश्ता करने लगी।
"अखिल जी!!! याद है जब पहली बार सारांश हमारे घर आये थे! तब हम मे किसी ने सोचा था की वो हमारे परिवार का इतना अहम हिस्सा बन जायेंगे।" कंचन ने खुश होकर कहा। अवनि ने सारांश की ओर तिरछी नज़रों से देखा जो बड़े चाव से नाश्ता करने मे लगा था। "आपको क्या बताऊ माँ! ये तो मुझे भी नही पता की इन्होंने क्या क्या प्लानिंग की होगी!" अवनि ने मन ही मन सोचा।
"किसी ने सोचा तो नही था लेकिन पहली नज़र मे ही आप की चाहत जरूर थी सारांश को अपना दामाद बनाने की।" अखिल ने कहा तो सभी मुस्कुराने लगे।
सारांश ने एक नज़र अवनि को देखा और मुस्कुरा दिया। कार्तिक की नज़र जब सारांश के हाथ पर गयी तो वह हल्का सा खाँस दिया जिससे सारांश को समझ आ गया की वह क्या कहना चाहता है तो उसने अवनि का हाथ छोड़ दिया। अवनि को समझ नही आया की हुआ क्या! तभी उसकी नज़र मुस्कुराते हुए कार्तिक पर गयी तो उसे समझ आया। अवनि ने भी मुस्कुरा कर कार्तिक को देखा और बोली, "अरे जीजू.....! ये वाला आपकी पसंद का बना है लीजिए न!" कहते हुए अवनि ने सब्जी की बॉल उठाकर कार्तिक की ओर बढ़ा दिया।
कार्तिक भी अवनि का पहले जैसा व्यवहार देख खुश हो गया और अवनि के हाथ से बॉल ले लिया। सारांश भी उन दोनों के बीच के सुधरते रिश्ते को देख खुश था। नाश्ता करने के बाद सारांश ने अवनि की ओर देखा और सबसे अनुमति लेकर वहाँ से जाने को हुआ। काव्या का मन था आज वहीं रुकने का तो कार्तिक उसे वही छोड़ ऑफिस जाने के लिए तैयार हो गया और सारांश की ओर देखने लगा जिसे देख उसे इतना तो समझ मे आगया की सारांश अवनि को छोड़ ऑफिस जाना नही चाहता है।
कंचन और काव्या ने जब अवनि को रुकने को कहा तो अवनि ने कहा, "माँ वो......! आज बहुत सारा काम है, वो जन्माष्टमी आ रही है ना......! तो हम सोच रहे थे की क्यों न इस बार धूमधाम से मनाया जय! क्या कहते है आप सारांश?" सारांश ने भी उसकी बातों का समर्थन किया तो अवनि भी सब से विदा लेकर सारांश के साथ गाड़ी मे बैठ गयी।
"तो......! इस बार की जन्माष्टमी हम सब एनजीओ मे मनाये? क्या इरादा है? तुम्हारी सब से मुलाकात भी हो जाएगी और वहाँ के बारे मे तुम्हे सब कुछ समझने को भी मिल जायेगा।" सारांश ने कहा तो अवनि ने भी हाँ मे सिर हिला दिया। "वैसे तुम रुकी क्यों नही? माँ का मन था, फिर झूठ क्यों बोला?" सारांश ने शरारत से पूछा।
"मैंने कोई झूठ नही बोला! आज सच मे बहुत काम है मुझे। रात को जब आप ऑफिस से आयेंगे तब पता चलेगा आप को की मैं क्यों माँ के पास नही रुकी।" अवनि ने कहा।
"मतलब सरप्राइज है मेरे लिए....!" सारांश ने कुछ सोचते हुए कहा। तभी अवनि की नज़र बाहर आते कार्तिक पर गयी तो वह सारांश को बता झट से गाड़ी से नीचे उतरी। कार्तिक अभी अपनी गाड़ी मे बैठने ही वाला था की अवनि ने पीछे से आवाज दी "जीजू......!" कार्तिक चौंक गया, उसे उम्मीद नही थी की अवनि इतनी जल्दी उसे माफ कर देगी। जो कुछ उसने कहा था उसके बाद उसका नाराज होना या नफरत करना जाहिर सी बात थी।
"जीजू.......! सॉर्री.......! मैं आपके साथ बहुत बुरी तरह से पेश आई। मुझे माफ कर दीजिये। मै ये कैसे भूल गयी की आप मेरे बेस्ट फ्रेंड है जैसे की श्रेया है। उसकी तरह आप ने भी मेरा भला चाहा और आप दोनो का एहसान मानने की जगह मै आप दोनो पर ही गुस्सा जो गयी, मुझे लगा आप सिर्फ अपने दोस्त के बारे मे ही सोच रहे है। मुझ से गलती हो गयी जीजू, मुझे माफ कर दीजिए।" अवनि ने अपनी दिल की बात कार्तिक के सामने रखी।
"तुम मेरी अपनी हो अवनि! और अपनो की बात का बुरा क्या मानना!!! और सच कहु तो मै जानता था जब एक दिन तुम्हे पता चलेगा की सारांश तुम्हे कितना चाहता है उस दिन तुम मुझे जरूर माफ कर दोगी। और आज जब मैंने तुम दोनो को हाथ पकड़े देखा तो सच मे मुझे बहुत खुशी ही।" कार्तिक ने प्यार से अवनि का चेहरा छूकर कहा।
"जीजू.........! थैंक यू!"
"किस लिए.......?"
"सारांश के लिए. ..! उस दिन भले ही आप ने मुझे धमकी दी हो, चाहे जिस भी हालात मे हमारी शादी हुई हो! मेरी लाइफ मे सारांश को लेकर आने के लिए बहुत बड़ा वाला थैंक यू।" कहते हुए अवनि कार्तिक को हग कर लिया। कार्तिक भी उसके इस अपनेपन से खुश हो गया। दूर से ही सारांश भी गाड़ी मे बैठा उन दोनो को देख मुस्कुरा रहा था। दोनो के बीच की सारी शिकायतें, सारी नाराज़गी दूर हो चुकी थी।
चित्रा काफी देर बाद अपने कमरे से निकली, तबतक निक्षय सारांश के ऑफिस जा चुका था। चित्रा उसके जाने का ही इंतज़ार कर रही थी। सुबह सुबह जो कुछ हुआ उसके बाद उसे निक्षय के सामने जाना अच्छा नही लग रहा था। नाश्ते की टेबल पर बैठ चित्रा ने अपने कुक को आवाज लगाई तो वह दौड़ा दौड़ा उसका नाश्ता लिए उसके पास आ पहुँचा। कुक ने प्लेट टेबल पर रखी और जाने को हुआ तो चित्रा ने उसे रोक कर पूछा, "वेणु दादा!! ये नाश्ता आपने बनाई है?"
"नही बिटिया!!! ये तो वो निक्षय बाबा ने बनाई है। उन्होंने कहा की आज के बाद सुबह का नाश्ता वही बनाएंगे।" कुक वेणु दादा ने कहा।
चित्रा ने जब सुना तो उसे निक्षय के सामने रखी शर्त याद आई जिसे निक्षय ने बखूबी पूरी की थी। "ठीक है आप जाओ.....! और सुनो दादा..! निक्षय ने नाश्ता किया न?" जाने क्यों लेकिन चित्रा को उसकी परवाह हुई।
"नही! उनके पेट मे कुछ तकलीफ थी इसीलिए बिना नाश्ता किए ही चले गए। बोले आज कुछ नही खाना।" वेणु दादा ने कहा और चले गए। तभी उसका फोन बजा। देखा तो उसकी मॉम का था। उसने बुरा सा मुह बनाते हुए फोन उठाया।
" हैलो चित्रा!!! कैसा चल रहा है सब और निक्षय! निक्षय कैसा है? उसका अच्छे से ख्याल रखना।" चित्रा की मॉम ने कहा तो चित्रा को बुरा लगा। "एक बार मुझसे भी पूछ लेती मॉम की मै कैसी हू!" चित्रा ने कहा।
"अरे बेटा! तुम से तो बात हो ही रही है। आवाज़ से तो बिलकुल ठीक लग रही हो तो पूछना कैसा!!! अच्छा सुनो...! निक का अच्छे से ख्याल रखना वरना मै अपनी फ्रेंड को क्या जवाब दूँगी!! मेरी तो ग्रुप मे इंसल्ट ही हो जानी है। इसीलिए कह रही हु। और हाँ....उसका पेट न थोड़ा सेंसिटिव है तो उसे न बाहर का कुछ खाने मत देना खासकर स्ट्रीट वेंडर से। अच्छा चलो बाय। " अपनी बात कहकर चित्रा की मॉम ने फोन रख दिया।
चित्रा के दिमाग मे अपनी मॉम की बातें घूम रही थी। निक्षय के पेट के बारे मे सोच उसे बुरा लग रहा था। " मेरी वजह से उसकी तबियत ठीक नही है। लेकिन इसमे मेरी कोई गलती नही हैमैंने तो बस उसे परेशान करने के लिए बाहर रोड साइड से पाव भाजी खिला दी थी, वो भी तीखी वाली। जब उसे पता था तो उसे मना कर देना था! खाया क्यों, हीरो बनाने का, मुझे इंप्रेस करने का बहुत शौक चढ़ा था न, अब भुगतो! मुझे क्या।"
क्रमश: