Chapter 77
सुन मेरे हमसफ़र 70
Chapter
70
अव्यांश नीचे जब किचन में पहुंचा तो देखा, सारांश फोन पर किसी से बात कर रहा था। "ढाई सौ ग्राम धनिया पत्ता, ढाई सौ ग्राम मेथी पत्ता, 200 ग्राम हरी मिर्च और हां! डेढ़ सौ ग्राम अदरक लेते आना।"
अव्यांश उसके पीछे आकर खड़ा हो गया और बोला, "डैड! किससे बात कर रहे हो आप? और इतनी सुबह किसको मंडी भेजी है आपने?"
सारांश ने मुस्कुराते हुए कहा "अरे कुछ नहीं। थोड़ी धनिया वगैरह की जरूरत थी तो मैंने कुणाल को फोन कर दिया। आते हुए लेते आएगा।"
अव्यांश की आंखें हैरानी से फैल गई। वो सारांश के सामने आया और बोला "आपने कुणाल से धनिया मिर्ची मंगवाई है? उसको पता भी है, ढाई सौ और डेढ़ सौ के बीच का अंतर?"
समर्थ उबासी लेते हुए किचन में दाखिल हुआ और बोला "नहीं है तो समझ में आ जाएगा। अब वह भी हमारी फैमिली का हिस्सा है। हमारी कुहू जाएगी उसके घर तो यह सारे कामों से रोज करने होंगे जो वह आज करने वाला है। इसलिए उस साले की अच्छे से क्लास लेना।"
अव्यांश मुस्कुरा कर बोला "साला नहीं भाई, जीजा।"
समर्थ अजीब सी शक्ल बनाकर बोला "हां हां वही, जो भी है। पहले तू अपने शर्ट के बटन लगा। तेरी गर्दन पर जो लव बाइट है वो नजर आ रहा है।" समर्थ आगे आया और किचन स्लैब से थरमस उठाकर गरम पानी क्लास में लिया और वही स्लैब पर बैठकर पी गया।
"ऐ.......... ऐसा कुछ नहीं है।" अव्यांश ने अपने शर्ट का कॉलर पकड़कर उस निशान को छुपाने की कोशिश की जिसे निशी ने अभी सुबह ही दिए थे। शर्ट का बटन लगाकर अव्यांश ने उसके कंधे पर अपना सर रखा और बोला "अगर आपकी नींद खुल गई हो तो प्लीज! एक कप अच्छी सी कॉफी बना दो। ठीक से सोया नहीं हूं।"
समर्थ ने उसके सिर को अपने कंधे से झटक कर दूर किया और बोला, "हां! वो तो मैं पहले ही समझ गया था।"
सारांश ने दूध का पतीला समर्थ गया हाथ में पकड़ाया और कहा, "थोड़ी बढ़िया सी और स्ट्रांग कॉफी बनाना, जिससे इसकी नींद खुल जाए। साहबजादे सुबह 4:00 बजे घर आई है। इसे बहुत ज्यादा जरूरत है।"
अव्यांश ने चौंककर पूछा "आपको कैसे पता?"
सारांश ने फ्रिज खोला और उसमें सब्जियां ढूंढते हुए कहा "बेटा! तेरा बाप हूं मैं। तेरी खुशबू से पहचान जाता हूं। इतना ज्यादा परफ्यूम मारता है और जो परफ्यूम का कॉकटेल बनाता है, इसकी महक से किसी का भी सर घूम जाए। मेरे कमरे के बाहर तू और निशी खुसर फुसर कर रहे थे ना? सब पता है मुझे। मेरे से नही छुप सकते।"
अव्यांश थोड़ा सा झेंप गया। कम से कम उसे इस बात की तसल्ली थी की उस के डैड ने निशी को उस हालत में नहीं देखा था। उस वक्त जो हुआ.........., अव्यांश को वो पल याद आ गया। निशी उसकी गोद में थी और काफी ज्यादा मचल रही थी। ऐसे में उसे उसका मुंह बंद करने के लिए अव्यांश को उसे किस करना पड़ा था जिसका उसे बेहद पछतावा था। 'अगर निशी को पता चल गया कि मैंने उसके साथ क्या किया है तो पता नही कैसे रिएक्ट करेगी!'
फिलहाल तो उसे निशी को फ्रेश होने के लिए थोड़ी हेल्प करनी थी। उसने धीरे से एक नींबू अपनी पॉकेट में डाला और एक ग्लास में गर्म पानी लेकर बाहर निकल गया।
बार-बार चेहरा पानी से साफ करने के बाद भी निशि को अपना सर बहुत भारी महसूस हो रहा था। वो जानती थी कल रात क्या हुआ है और अभी उसे किस चीज की ज्यादा जरूरत थी, लेकिन यहां वो किसको आवाज लगाएं और किससे मांगे। ऐसी हालत में वो नीचे जा भी नहीं सकती थी। निशी बाथरूम से बाहर निकली और ड्रोअर में से दवाइयां ढूंढने लगी।
अव्यांश जब कमरे में आया तो निशी ने एक नजर अव्यांश को देखा और बोली "सर दर्द की गोली है क्या? बहुत ज्यादा सर दर्द कर रहा है।"
अव्यांश ने कुछ कहा नहीं, बस उसके सामने टेबल पर गर्म पानी का गिलास और नींबू पटक कर वहां से चला गया।
निशि को अव्यांश की यह हरकत कुछ समझ नहीं आई। इतना तो उसे एहसास हो गया कि अव्यांश किसी बात से उससे नाराज है लेकिन कौन सी बात बस यह जानना था। जिस तरह वो नींबू पानी उसके सामने रख कर गया था, शायद उसके ड्रिंक करने की वजह से नाराज हो। लेकिन निशी इस वक्त यह सब सोचने की हालत में नहीं थी। उसने पानी में नींबू काटकर निचोड़ा और एक सांस में पी गई। बचे हुए नींबू के छिलके को अपने दांतों तले दबा दिया जिससे उसकी आंखें बंद हो गई। कुछ देर बाद जब राहत मिली तो जाकर अलमारी से कपड़े निकाले और बाथरूम में घुस गई।
अव्यांश जब तक वापस आया तब तक समर्थ उसके लिए कॉफी बना चुका था। समर्थ ने उसके कॉफी का मग हाथ में पकड़ाया तो अंशु सीधे जाकर किचन की स्लैब पर बैठ गया और आराम से कॉफी का मजा लेने लगा। एक घूंट लेकर ही उसने आंखें बंद की और समर्थ की तारीफ के पुल बांधते हुए बोला "वाह भाई! आपके यहां की कॉफी किसी हेवन से कम नहीं है। काश यह स्वर्गीय आनंद मुझे प्रतिदिन प्राप्त होता।"
समर्थ बाकी सब के लिए चाय बनाने में लगा हुआ था। उसने ओखली में अदरक इलायची कूटा और चाय में डालते हुए डोला "स्वर्गीय आनंद का तो पता नहीं, लेकिन इतना कॉफी पिएगा तो तेरे नाम के आगे जरूर लग जाएगा।"
अंशु ने कंफ्यूज होकर पूछा "क्या?"
समर्थ ने भी अपने अंगूठे और उंगली से इशारा कर कहा "इतना बड़ा एल!" समर्थ और उसके चाचू दोनों ठहाके मारकर हंस पड़े। अव्यांश का चेहरा लटक गया। समर्थ ने सारांश से पूछा "आपके भाई साहब नजर नहीं आ रहे है। आज उन्हें उठना भी है या सारा काम हमें ही करना होगा?"
सारांश सब्जियां काटने में लगे हुए थे। उन्होंने कहा "तू चाय बना, मैं कॉफी तेरे पापा को दे कर आता हूं। आते ही वो सबसे पहले तेरी बैंड बजाएंगे।"
समर्थ अपने चाचू की खिल्ली उड़ाते हुए बोला "वह! और मेरी बैंड बजाएंगे!! मैं उनकी बैंड बजाता हूं। हां, कभी-कभी उन्हें मौका मिल जाता है लेकिन मैं हमेशा उन पर भारी पढ़ता हूं।"
सारांश ने कॉफी के दो मग उठाए और एक से चुस्की लेकर बोला "शर्म कर! अपने बाप से लड़ता है? खैर! तुझे भी क्या ही कहूं। दोनों बाप बेटे एक जैसे हो। आज की नहीं, बचपन की कहानी है ये। वैसे पहले ही बता दे रहा हूं, कल रात जो तू जल्दी घर आ गया था, भैया तुझे टोकेंगे जरूर।"
सारांश कॉफी का मग होठों से लगाए वहां से निकल गए। समर्थ सोच में पड़ गया कि अगर उसके पापा ने उससे सवाल किया तो उस जवाब क्या देगा? फिर एकदम से ही उसने अपने मन में आएगा इस सवाल को दूर झटक दिया, यह सोचकर कि उसको निकलते हुए किसने नहीं देखा था, खासकर उसके पापा ने तो बिल्कुल भी नहीं। वैसे भी सभी अपने आप में ही उलझे हुए थे। किसी को इतनी फुर्सत कहां थी!