Chapter 33

Chapter 33

humsafar 33

Chapter

33

   शादी तो संपन्न हो गयी मगर ये एक ऐसी शादी थी जिसमे कौन खुश था और कौन दुःखी ये कहना मुश्किल था। जिन चार की शादी हुई थी उनके भी दिल मे कुछ और दिमाग मे कुछ चल रहा था। सुबह होने वाली थी, सब रात भर के जागे, थके हुए थे सो कुछ अपने कमरे मे कुछ देर सोने चले गए तो कुछ होने वाली रस्मो की तैयारी मे लग गए। कार्तिक काव्या सारांश और अवनि को भी अपने अपने कमरो मे भेज दिया गया। 

     अवनि की नींद उडी हुई थी, आने वाले समय को लेकर उसका मन बेचैन था। अवनि समझ नही पा रही थी की जिस तरह अचानक से ये रिश्ता जुडा क्या ये ज्यादा वक़्त तक टिक पायेगा। क्या होगा जब सारांश को उसके अतीत के बारे मे पता चलेगा, वो कैसे रिएक्ट करेगा? लेकिन इन सब मे अवनि की भी क्या गलती?

      अवनि बैठी अभी ये सब सोच ही रही थी की तभी विशाल नानु को सहारा देते हुए उसके कमरे मे ले आया। नानु ने कहा, "हमारा अतीत चाहे अच्छा हो या बुरा, वो हमेशा हमें तकलीफे ही देता है। अतीत से पीछा नही छुड़ाया जा सकता लेकिन उससे लड़ा जरूर जा सकता है। जो अतीत से लड़कर जो जीतता है वो एक खूबसूरत सुखदायी भविष्य पाता है। इसीलिए अतीत को खुद से दूर रख कर अपने वर्तमान पर ध्यान दो क्योंकि अब वही तुम्हारा भविष्य है।"


   काव्या ने अपने कमरे का दरवाजा बन्द किया और बिस्तर  पर धड़ाम से गिर पड़ी। अब तक उसने खुदको समेट रखा था लेकिन आज उसके आँखो से आँसू आज रुकने को तैयार नही थे। पिछले कुछ दिन उसके लिए काफी मुश्किलों भरी रही। नही जानती थी की यहाँ आते ही उसकी जिंदगी इस तरह से उलझ जायेगी की उसमे से निकलने का कोई रास्ता नही होगा। 

    हल्दी वाली शाम को.....

     काव्या दुपट्टे मे खुद को अच्छे से लपेट कर सबसे नज़र बचाते हुए घर के पीछे की ओर निकली। एक अजीब सी घबराहट और दिल मे कश्मकश लिए आगे बढ़ती जा रही थी।। एक जगह रुक कर उसने चारो ओर नज़र दौड़ाई। "नाम बदल लिया, पहचान बदल लिया, शहर भी बदल लिया....... लेकिन क्या अपना दिल भी बदल लिया अनु?" पेड़ के पीछे खड़े उस शख्स ने कहा। 

     काव्या ने उसको देखा और उस ओर बढ़ने लगी। उसने बोलना जारी रखा, "मै तो आज भी तुम्हारा ही हु अनु, तुम्हारी यादों को सीने से लगाए, तुम्हारा आज भी इंतज़ार करता हुआ।" कहकर वो शख्स पलटा। काव्या ने कुछ देर उसे देखा, उसकी आँखो मे आँसू आगए। वह भागकर उसके गले से जा लगी और धीरे से बोली, "तरुण........!"

     तरुण के आँखो से आँसू छलक गए। वह काव्या को और कस कर अपनी बाहों मे भर कर बोला, "फिर से कहो.....! फिर से एक बार मेरा नाम पुकारो अनु....... ! दस साल बाद तुम्हारे मुह से अपना नाम सुन रहा हु। तुम्हे पता भी है कितना याद किया कितना ढूँढा है मैंने तुम्हे!" तरुण और भी बहुत कुछ कहना चाह रहा था लेकिन उसके जज्बात काबु मे नही रहे। वह बस अपनी अनु को अपने मे ही समेट लेना चाहता था। 

     काव्या भी तरुण की बाहों मे सिमटती चली गयी। वो दोनो ही दस साल के बाद अपने पहले प्यार को फिर से महसूस कर लेना चाहते थे। वो दोनो एक दूजे मे इतना खोये हुए थे की उन्हे किसी का डर भी नही रहा था। काव्या बोली, "तरुण....! तुम्हे इस तरह यहाँ नही आना चाहिए था। अगर किसी को पता चल गया तो...... "

     तरुण ने उसकी बात बीच मे ही काटते हुए कहा, "सारांश को पता है हमारे बारे मे।" सारांश का नाम सुन काव्या जैसे होश मे आई। वह तरुण से अलग होकर डरते हुए बोली, "क्या......! सा....सारांश?? सारांश को पता है? उसे कैसे पता चल?" 

   "तुम शायद भूल रही हो की वो कौन है। गिद्ध की नज़र है उसकी। जब डायना ने मुझे सब से मिलवाया था और मेरी नज़र तुम पर गयी, उसे उसी वक़्त शक़ हो गया था मुझ पर। उसने उसी शाम मुझे धमकी भी दी की मै तुमसे दूर रहू वरना...... " तरुण कहते कहते रुक गया। 

   "अब हम क्या करेंगे??? मुझे........ मुझे यहाँ से ले चलो तरुण मुझे अपने साथ ले चलो।" काव्या ने डरते हुए कहा, इस वक़्त भी वह तरुण के गिरफ्त मे ही थी की तभी पीछे से अखिल के चिल्लाने की आवाज़ आई। वह गुस्से मे काव्या को घूर रहे थे।

    "तुम इसके लिए हम सब को छोड़कर जाना चाहती हो!!! जाओ.....! चली जाओ.....! अभी इसी वक़्त मेरी नज़रों से दूर हो जाओ तुम दोनो। जिस की वजह से मैंने अपना बेटा खोया......... तुम भी मेरे लिए मर गयी.....आज के बाद कभी अपनी शक्ल मत दिखाना। मै मान लूँगा की मेरी सिर्फ एक ही औलाद है।" कहते हुए अखिल हाँफने लगे। 

      "नही पापा...!ऐसा नही है!" इससे पहले काव्या या अखिल कुछ कह पाते अखिल को सीने मे एक तेज दर्द उठा। तरुण ने  काव्या को छोड़ दिया, काव्या भागती हुई अखिल के पास पहुँची और उन्हे संभालना चाहा मगर अखिल ने काव्या का हाथ जोर से झटक दिया लेकिन तभी सारांश ने उन्हे संभाला। 

     तरुण और काव्या को देख सारांश ने गुस्से से उन दोनो को ही घूर कर देखा। उसके चेहरे का भाव काफी था उन दोनो को समझाने के लिए। सारांश तेजी से अखिल को उठाकर गाड़ी मे लेकर भागा। तरुण ने काव्या का हाथ पकड़ उस रोकना चाहा तो काव्या ने तरुण को साफ साफ बोल दिया की वह अपने पापा का दिल नही दुःखा सकती। अभी जो कुछ भी हुआ उसे वह भूल जाए। वह अपने पापा के खिलाफ कभी नही जायेगी और उसके पापा कभी तरुण को नही अपनाएंगे। उसकी वजह से काव्या को अनामिका की पहचान को मिटाना पड़ा था अपना घर अपना शहर छोड़ना पड़ा था और उन सबसे कही बढ़कर अपने भाई को खोना पड़ा था। 

    तरुण  हताश निराश सा वहाँ से चला गया। वह काव्या से मिलने हॉस्पिटल भी आया ताकि उसे मना सके मगर अखिल की हालत देख काव्या टस से मस नही हुई और उससे बात तक करने से इंकार कर दिया। उस दिन के बाद से काव्या ने तरुण को देखा नही। अपने पापा को मनाने की उनसे माफी माँगने की उसने काफी कोशिशे की मगर अखिल तो अभी भी उससे इतने नाराज थे की उन्होंने काव्या का कन्यादान करने तक से मना कर दिया। 

       "क्यों तरुण??? क्यों?? आखिर क्यों तुम वापस आये मेरी लाइफ मे? सब कुछ सही चल रहा था! कार्तिक के साथ इस रिश्ते मे मै खुश थी। मेरा पूरा परिवार मेरे साथ था। तुम्हारे प्यार को अपने दिल की गहराई मे कही दबाकर रखा था मैंने। तुम कही से अचानक बारिश की तरह आये और उस प्यार का अंकुर फुट पड़ा। एक बार फिर तुम मुझे दर्द देकर कहीं गुम हो गए। तुम्हारे कारण आज मै अकेली पड़ गयी तरुण। तुम से दूर हो कर भी मै तुमसे दूर नही जा पा रही और कार्तिक के करीब हो कर भी मै पूरी तरह उसकी नही पाऊँगी। तुमने मुझे कहीं का नही छोड़ा तरुण।" सोचते हुए काव्या फुटफुट कर रो पड़ी। 







क्रमश: