Chapter 56

Chapter 56

YHAGK 55

Chapter

  55




    दादी और शरण्या की बातें वहां बैठे किसी को भी हजम नहीं हो रही थी। रूद्र जहां अपनी दादी को चाह कर भी नहीं रोक सकता था वहीं रूद्र के पापा ने अपनी मां को जब रोकना चाहा तो शिखा जी ने उनका हाथ पकड़ उन्हें शांत करा दिया। वहाँ जो कुछ भी हो रहा था शिखा भी तो वही चाहती थी। उन्होंने तो पहले ही शरण्या को अपनी बहू मान लिया था ऐसे में वह किसी और से अपनी बहू का रिश्ता कैसे होने दे सकती थी! लावण्या ने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी कंट्रोल कर रखा था। उसे यह समझते देर न लगी कि दादी भी रुद्र और शरण्या के मैटर में इंवॉल्व है। उसने तिरछी नजर से रूद्र को देखा जो अपने चेहरे पर अजीब से एक्सप्रेशन लिए बैठा था। धनराज उन दोनों की बातें सुनकर हैरान था तो वहीं अनन्या गुस्से में। बाकी विहान और उसके घर वालों को कुछ समझ नहीं आ रहा था और अमित और मानसी ने खुद को इस सब में इंवॉल्व करना सही नहीं समझा इसलिए वह दोनों वहां अंजान बने रहे। 


     अनन्या ने हंसते हुए मिसेज वालियां से कहा, "अरे मिसेज वालिया! आप भी क्या इन सब की बातें सुन रही हैं! हमारी बच्ची बड़ी संस्कारी है और थोड़ी मजाकिया भी। वह ऐसी वैसी कुछ हरकत करने का सोच भी नहीं सकती। हमारी बच्ची तो बिना पूछे घर से निकलती नहीं है। हमारे यहाँ ऐसा कुछ नहीं चलता है जी।" मिसेज वालिया ने भी हंसते हुए कहा, "जी हमारे यहां भी ऐसा कुछ नहीं चलता है, और हमारे यहाँ इस तरह की बातें भी नहीं होती है। अगर आपकी बेटी का पहले से कोई बॉयफ्रेंड है तो फिर पहले बता देते ना, हमें इतनी तकलीफ करने के लिए जरूरत ही नहीं पड़ती। वह तो सिर्फ ईशान शरण्या को पसंद करता है, इसलिए हम आ गए वरना हमें भी कोई शौक नहीं था।"


       मिस्टर वालिया ने अपनी बीवी का हाथ पकड़ते हुए कान में धीरे से कहा, "क्या कर रही हो भाग्यवान! यहां हमारा पूरा बिजनेस चौपट हो जाएगा। क्या हुआ अगर लड़की प्रेग्नेंट है तो! वह सब बाद में देख लेंगे और वह सब हमारा ईशान संभाल लेगा। बस एक बार ये रिश्ता हो जाए। तुम्हें पता भी है यह लोग कितने बड़े लोग हैं? इनको गुस्सा मत दिलाओ वरना ये लोग हमारा बिज़नेस बर्बाद कर देंगे।" फिर वह मिस्टर रॉय और अनन्या की तरफ देखते हुए बोले, "माफ कीजिएगा! क्या है ना मेरी बीवी को थोड़ा हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत होती है इसलिए गुस्सा थोड़ा जल्दी आ जाता है। वह भी बिना किसी बात पर। वैसे माँजी ने बिलकुल सही कहा, हमारे जमाने मे भी अगर ये लिव इन वाली बात होती तो.........! आजकल तो आम बात हो गया है। हमें भी नए जमाने के साथ चलना चाहिए वरना जनरेशन गैप आ जाता है। हम अगर बच्चों को नहीं समझेंगे तो फिर बच्चे हमें कैसे समझेंगे! कुछ भी कहिए, हमें तो शरण्या बहुत पसंद है। अब ईशान थोड़ा बिजी है इसलिए उसे आने मे थोड़ी देर हो जाएगी। वैसे तो ईशान को शरण्या पसंद है, बस एक बार शरण्या भी इंसान से मिल ले, उसे पसंद कर ले फिर रिश्ता तय करते हम लोग। मैं तो कहता हूं आज ही सगाई हो जाती तो बड़ा अच्छा होता।"


      मिस्टर वालिया की बातें सुन दादी का दिमाग खराब हो गया। उन्हें इतना गुस्सा आ रहा था उनका बस चलता तो टेबल पर रखा सूप का बॉल सीधे उठाकर वह मिस्टर वालिया के सर पर दे मारती। इधर शरण्या का हाल भी कुछ ऐसा ही था। इतना सब कुछ होने के बाद वह अब ईशान से मिलना भी नहीं चाहती थी। उस सीधे सीधे उठ खड़ी हुई और कहां, "देखीए अंकल आंटी! आप लोग बहुत अच्छे हैं लेकिन मैं इतनी भी अच्छी नहीं हूं। मैं आपके बेटे से शादी के लिए तैयार नही हु। और मुझे नही लगता की मुझे उससे मिलना भी चाहिए। आप लोग चाहेंगे तो भी नही। क्योंकि उससे मिलकर भी मेरा फैसला नही बदलने वाला। और जब मैं अपना फैसला ही नहीं बदलूंगी तो फिर मैं आपके बेटे से मिल कर क्या करूंगी! यह बात मैंने अपने घरवालों को कई दफा बताई कि मुझे अभी रिश्ता नहीं करना लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं सुनी। एक बार फिर मैं सबके सामने कहती हूं कि मुझे यह रिश्ता मंजूर नहीं है।"


     अनन्या ने डांटते हुए कहा, "शरण्या! यह क्या तरीका है अपने से बड़ों से बात करने का? अगर तुम्हें रिश्ता मंजूर नहीं है तो यह बात तुम्हें बहुत पहले कह देनी चाहिए थी। ऐसे आखिरी वक्त में तुम इस रिश्ते से इंकार कर सबकी इंसल्ट कर रही हो। ईशान अभी आया नहीं है, एक बार उसे आने दो उससे मिल लो फिर तुम्हारा जो मर्जी हो वह करना। कोई तुमसे मिलना चाहता है और तुम सीधे-सीधे उससे बिना मिले अपना फैसला सुना दो, ये कहां की तमीज है? ऐसे संस्कार हमने तुम्हें नहीं सिखाएं!" शरण्या बिफरते हुए बोली, "आपने मुझे कुछ सिखाया ही तो नहीं है मॉम! काश की कुछ सिखाया होता आपने, तो शायद इतनी बदतमीज ना होती मैं।"


     मामले को गरमाया देख रूद्र में शरण्या का नाम पुकारा तो शरण्या उसे घूरते हुए वहां से बाहर निकल गई। ऐसे माहौल में उसका दम घुटने लगा था। रूद्र समझ गया कि शरण्या इस वक़्त बहुत ज्यादा गुस्से में है और किसी भी वक्त फटने वाली है। उसने कहा, "सॉरी एवरीवन! वह थोड़ी अपसेट है इसलिए इतना कुछ बोल दिया उसने। प्लीज उसकी बातों का बुरा मत मानिएगा। अपने मन में कुछ नहीं रखती है, वो बस बोल देती है। मैं जा कर देखता हूं वरना जाने क्या करेगी।" रूद्र को जाता देख विहान ने टोकते हुए कहा, "अबे तू क्या करने जा रहा है उसके पीछे? तुझे एहसास भी है शरण्या अभी गुस्से में निकली है। वह तो वैसे ही तुझ पर भड़की रहती है, ऊपर से गुस्से में है कहीं तुझे जान से ना मार दे। तुझे सुसाइड करने का इतना ही शौक है तो कहीं और जा, इस वक्त अगर शरण्या के पीछे गया ना तो तुझे खड़े खड़े निगल जाएगी और तेरी हड्डियां भी किसी को नहीं मिलेगी।" विहान की बातें मिसेज वालिया को डराने के लिए काफी थी। विहान ने जो भी कहा था वह एक नॉर्मल सी बात थी क्योंकि वह जानता था रूद्र और शरण्या के बीच के हालात कैसे हो जाते हैं। लेकिन उसे बिल्कुल भी ख्याल नहीं रहा कि उसे देखने यहां लड़के वाले आए हुए हैं जिन पर उनकी बातों का असर हो सकता है। दादी विहान को चुप कराते हुए बोली, "तू उसे रोक मत, जाने दे उसे। वो अच्छे से जानता है कि शरण्या के गुस्से को किस तरह कंट्रोल किया जाता है। उसे आदत है उसका गुस्सा झेलने की। कोई और नहीं झेल पाएगा। रूद्र! तू जा बेटा।" दादी का इशारा मिलते हैं रूद्र वहां से तेजी से निकला। 




     शरण्या गुस्से में आगे बढ़े जा रही थी और जैसे ही होटल के गेट से निकलने को हुई वहां वह किसी से टकरा गई। शरण्या एक तो पहले से ही गुस्से में थी ऊपर से किसी अनजान से इस तरह टकराना और उस शख्स का उसे सॉरी ना कहना उसके गुस्से को और भड़का गया। उसने कहा, "भगवान ने इतनी अच्छी शक्ल सूरत दी है, काश की आंखें भी दी होती तो इस तरह सब से टकराते हुए नहीं चलते। अगर सच में अंधे हो आंखों पर काला चश्मा और हाथ में छड़ी लेकर घूमा करो ताकि लोगों को पता चले कि हां तुम सच में अंधे हो। और जब टकराते हैं ना बच्चु! तो सॉरी भी कहना होता है, खासकर की किसी लड़की को। शायद यह मैनर्स तुम्हें किसी ने नहीं सिखाया। तुम कहो तो अभी सिखा दूं तुम्हें, अभी इसी वक्त, यही खड़े खड़े!" कहते हुए शरण्या ने अपने दोनों बाजूओं को फोल्ड करना शुरू किया। उसी वक्त रूद्र भागता हुआ वहां पहुंचा और शरण्या को इस तरह किसी से लड़ते देख उसने उस शख्स को सॉरी कहा और शरण्या को लेकर वहां से बाहर निकल गया। 


      बाहर पार्किंग के पास पहुंचते ही शरण्या ने अपना हाथ झटका और वही गुस्से में पलटकर खड़ी हो गई। रुद्र ने अपने कान पकड़े और बोला, "गुस्सा मत हो जान! देख बात यहां घरवालों की थी और सबके सामने इस तरह मुझे भी सच्ची में अच्छा नहीं लगा वैसे तो जो तूने और दादी ने मिलकर किया वह तो बहुत अच्छा था लेकिन उसके बाद जिस तरह तेरी और आंटी की बात हुई इसे हर कोई अपसेट है। तुझे ऐसे गुस्से में वहां से नहीं आना चाहिए था। ठीक है अब जब आ ही गई है और तेरे पीछे पीछे मैं भी चला आया हूं तो, दो दीवाने शहर में.......! बोल क्या किया जाए? तेरा मूड ठीक करने के लिए मुझे क्या करना होगा, हुकुम दीजिए मेरे हुजूर..... बंदा अपनी जान हथेली पर लेकर हाजिर है।" शरण्या गुस्से में भी मुस्कुरा उठी। उसने पलट कर रूद्र को देखा जो कि अपने घुटने के बल बैठा था किसी गुलाम की तरह। रूद्र अच्छे से जानता था कि अपनी शरण्या को कैसे मनाना है। शरण्या ने झुककर उसका कॉलर पकड़ा और वही बीच सड़क पर उसे किस कर लिया। 


     "तू मुझे अपने घर ले चल, हमारे घर....। मुझे और कहीं नहीं जाना, मुझे बस मेरे ससुराल जाना है, तो ले चल मुझे अपने साथ। शरण्या की बात सुन रूद्र ने अदब से अपना सर झुकाया और उसके लिए गाड़ी का दरवाजा खोला। गाड़ी के अंदर बैठते हुए शरण्या की नजर होटल के गेट पर गई जहां अभी भी वो शख्स उसी तरह खड़ा था और उसे ही घूर रहा था। शरण्या को यह बात बहुत अजीब लगी। रूद्र ने गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा, "तु और दादी बिल्कुल एक जैसे हैं। तुम दोनों की खूब जमेगी इतना तो तय है वैसे कुछ भी कहो, मेरी लाइफ में जो दो लड़कियां सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट है वह दोनों ही एक दूसरे के साथ परफेक्ट है। वैसे कभी कभी ना मुझे यकीन नहीं होता, जो हमारा रिश्ता है कल इतने लड़ाई झगड़े के बावजूद आज हम साथ हैं और इतने करीब है कि मैं तुझे अपने साथ घर लेकर जा रहा हूं।"


     शरण्या ने कुछ नहीं कहा बस मुस्कुरा कर उसके कंधे पर अपना सिर टिका दिया लेकिन बार बार उसके मन में यह ख्याल उठ रहे थे कि आखिर वह शख्स कौन था जिससे वह टकराई थी, और जो उसे इतनी अजीब तरह से देख रहा था। रुद्र ने तेजी से गाड़ी दौड़ाई और घर पहुंचा। घर पर इस वक्त कोई नहीं था, एक नौकर तक नहीं। सभी छुट्टी पर थे और कल सुबह ही आने वाले थे। घरवालों को भी आने में कम से कम 2 घंटे और लगने थे। ऐसे में उन दोनों के पास रोमांस के लिए 2 घंटे थे रूद्र को इन्हीं 2 घंटे में शरण्या के लिए कुछ स्पेशल करना था कुछ खास जो हमेशा के लिए यादगार हो। रूद्र ने जैसे ही दरवाजा खोला शरण्या अंदर दाखिल होने को हुई तो रूद्र ने उसे वहीं रोक दिया और भागते हुए अपने कमरे में गया। शरण्या वही दरवाजे पर खड़ी अजीब सी शक्ल बनाए यह सोचने में लगी थी कि आखिर रूद्र के दिमाग में कौन सी खुराफात चल रही है। 


     थोड़ी ही देर में रूद्र अपने हाथ में पाउडर का एक डब्बा लेकर आया और उस पाउडर को दरवाजे पर हल्के हाथों से छिड़क दिया। "अब तु इससे अपने पैरों की छाप बनाते हुए अंदर आ।" शरण्या ने उसे हैरानी से देखा और बोली, "तू पागल हो गया है क्या? कर क्या रहा है तू?" रूद्र बोला, "तू पहली बार अपने घर आ रही है, थोड़ी तो निशानी बनती है ना, थोड़ा सा रस्म तो होना ही चाहिए। जब तू शादी करके आएगी तब तो ढेर सारी रस्में होंगी ऐसे में पता नहीं किसी को याद रहे या ना रहे। लेकिन आज का दिन खास है। आज साल की शुरुआत भी है और हमारी जिंदगी की भी इसीलिए मैं चाहता हूं कि जब तु अंदर आए तो तेरे पैरों के निशान घर के अंदर तक पड़े।" शरण्या उसके पागलपन पर कुछ ना बोल पाई और उसके कहे मुताबिक चलते हुए अंदर आई। सैंडल उसने बाहर ही छोड़ दिया था तो ऐसे में उसके पैरों के छाप सफेद टाइल्स पर पड़ते चले गए। जैसा कि रूद्र ने कहा था, हां सच में आज वह पहली बार अपने घर आई थी, उसका अपना घर यही तो था। 


    


     


     


     


     


     


क्रमश: