Chapter 19

Chapter 19

Episode 19

Chapter

स्नेहा ने मंत्र पढ़ने के बाद आसपास देखा... स्नेहा को कोई भी जीव दिखाई नहीं दे रहा था।

 अचानक उसके सामने से रेंगती हुई एक छिपकली निकली... छिपकली को देखते ही स्नेहा की आंखें चमक उठी।  स्नेहा ने जल्दी से एक झपट्टा मारकर उस छिपकली को अपने हाथ में पकड़ लिया। 

 उस छिपकली का मुंह स्नेहा की तरफ था और उसने अपना मुंह खोला हुआ था। छिपकली की आंखें लगभग बाहर ही आ गई थी और स्नेहा ने उन आंखों में घूर कर मंत्र जाप शुरू कर दिया। जैसे-जैसे मंत्र जाप की आवृत्तियां बढ़ती जा रही थी... छिपकली के अंदर कुछ अजीब से परिवर्तन होते जा रहे थे।

 छिपकली एक विचित्र आवाज में चीखने लगी थी। आमतौर पर छिपकली की आवाजें सुनाई नहीं पड़ती है... पर उस समय छिपकली की आवाज किसी भी व्यक्ति के कान के पर्दे फाड़ने के लिए पर्याप्त थी। 

आत्मानंद भी यह सब देख कर हैरान था... यह किस तरह के तंत्र का प्रयोग स्नेहा कर रही थी। 

स्नेहा को उस तरह के प्रयोग को करते हुए देखकर, आत्मानंद को उसकी काट समझ नहीं आ रही थी। फिर भी उसने दुगनी तेजी से अपने सुरक्षा चक्र को और भी मजबूत करना शुरू कर दिया। आत्मानंद को यह बिल्कुल भी पता नहीं चल रहा था कि स्नेहा करने क्या वाली है…?  वह बस अपने तंत्र मंत्रों का प्रयोग कर उस तंत्र प्रहार से किसी भी प्रकार बचना चाहता था।

 स्नेहा ने जैसे ही उस छिपकली को जमीन पर छोड़ा, उस छिपकली ने आत्मानंद की तरफ चलना शुरू कर दिया। आधे रास्ते पर पहुंच कर गोल-गोल घूमने लगी वो इतनी तेजी से घूम रही थी कि देखने वाले की आंखे  चुंधिया जाये। थोड़ी देर बाद जब छिपकली रुकी तब उस ने एक विचित्र आवाज में चीखा….

 उसके चीखने के लगभग 5 मिनट बाद छिपकलियों की एक विशाल लेना वहां इकट्ठा होना शुरू हो गई। आत्मानंद जब उन्हें देखा तो... वह अपना मंत्र जाप करना भूल कर केवल फटी फटी आँखों से उस छिपकली की सेना को देखने लगा। 

छिपकली की सेना ने आत्मानंद के चारों तरफ गोल गोल चक्कर लगाना शुरू कर दिया था। जिस छिपकली पर तंत्र प्रयोग किया गया था, वह छिपकली सबसे आगे चल रही थी, जैसे आक्रमण के समय सेनानायक सेना का नेतृत्व करता है। लगभग सात चक्कर लगाने के बाद... छिपकलियों ने उसके सुरक्षा चक्रों को एक-एक करके नष्ट करना शुरू कर दिया। जितनी भी हवन सामग्री वहां रखी हुई थी, छिपकलियों ने उन्हें लगभग चट ही कर दिया था।  वहाँ बंधे उस काले मोटे बकरे को भी चट करके केवल हड्डियों का ढांचा छोड़ दिया था।

 यह देख कर आत्मानंद की आत्मा उसके शरीर को छोड़ने ही तैयार हो गई थी। धीरे-धीरे छिपकलियां आत्मानंद की तरफ बढ़ रही थी।  सबसे आगे चलने वाली छिपकली आत्मानंद के  पीठ से चढ़ती हुई उसके सर पर पहुंच गई थी। उसके माथे से होती हुई नाक पर पहुँच गई थी। डर के कारण आत्मानंद की घिघ्घी बंध गई थी। आत्मानंद ने जैसे ही मंत्र पढ़ने के लिए मुंह खोला  वह नाक पर से चलकर सीधा मुंह में चली गई।

 उस पहली  छिपकली के आत्मानंद के मुंह में जाते ही सभी छिपकलियों ने धीरे-धीरे आत्मानंद के शरीर पर चढ़ना शुरू कर दिया।

आत्मानंद ने घबरा कर चीखना शुरू कर दिया, पर उसके चीखते ही छिपकलियों उसके मुंह के रास्ते अंदर जाने लगी थी। बहुत ही छिपकलियों उसके मुंह में चली गई थी और बाकी छिपकली धीरे धीरे उसके शरीर पर चल रही थी।

आत्मानंद को अपनी मृत्यु सामने ही दिखाई दे रही थी, पर इस सब के बीच में से वह अपने आसन को छोड़कर नहीं जा सकता था और वहां बैठे-बैठे भी कुछ भी करने में असमर्थ था।

 जो सबसे पहली छिपकली उसके मुंह में गई थी उसने आत्मानंद के ब्रह्मरंध्र से धीरे-धीरे बाहर निकलना शुरू कर दिया था।  आत्मानंद की एक जोरदार चीख उस श्मशान में गूंज उठी थी। वह छिपकली उसके ब्रह्मरंध्र से बाहर निकल कर वापस स्नेहा की तरफ चल दी थी और साथ ही  बह निकली थी रक्त की धारा… जो आत्मानंद के सर से बहकर आँखों, नाक और मुंह से होते हुए नीचे आ रही थी। 

बाकी की छिपकलियां जो आत्मानंद के मुंह से अंदर गई थी... उन्होंने भी बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ़कर बाहर निकलना प्रारंभ कर दिया था।  कुछ आंखों के रास्ते, कुछ नाक से, तो कुछ कान के रास्ते बाहर आ रही थी, और उनके साथ साथ  बाहर आ रही थी रक्त की धार…!!

 छिपकलियां भी उस रक्त में रंग गई थी और  वो रक्त उनकी भयावहता को बढ़ा रहा था। जब मुहं  में गई सारी छिपकलियों बाहर आ गई... तब बाहर वाली सारी छिपकलियों ने आत्मानंद के शरीर पर पूरी तरह से अपना अधिकार जमा लिया था। आत्मानंद के शरीर के हर एक हिस्से पर लगभग दस-दस छिपकलियां चिपकी हुई थी। जो उसके शरीर से मांस को नोंच-नोंच कर खा रही थी। कोई भी अगर उस दृश्य को देख ले... तो वहां की विभत्सता के कारण वहीं पर उल्टियां करना शुरू कर दे।

अब आत्मानंद के शरीर के स्थान पर केवल उसकी हड्डियों का ढांचा ही बचा था। वह छिपकली जिस पर स्नेहा ने अपने तंत्र का प्रयोग किया था वह स्नेहा के सामने आकर कुछ विशेष  ध्वनियाँ निकालती हुई, फट गई उसके भी शरीर के परखच्चे उड़ गए थे।

छिपकली के साथ वह स्नेहा ने किया था,  ताकि वह छिपकली और किसी को नुकसान नहीं पहुंचा पाए।

उसके बाद सारी छिपकलियां एक एक कर के आत्मानंद के हवन कुंड में कूद गई। उनके कुंड में कूदते ही आग के कारण उनके शरीर फट्ऽऽ फट्ऽऽ की आवाज करते हुए हवन कुंड से जलकर कर बाहर गिरने लगे थे। जब सारी की सारी छिपकलियां उस अग्निकुंड से जलकर मर चुकी थी तब श्मशान में वापस से शांति फैल गई थी।

 वहां का माहौल पहले की अपेक्षा अब शांत दिखाई दे रहा था। स्नेहा ने आत्मानंद का अंत जब देखा तो उसकी आंखों से आंसुओं की धार बह निकली।

 स्नेहा ने अपने सारे आवाहित देवताओं को विसर्जित किया। सारी शक्तियों को प्रणाम करके अपने-अपने यथा योग्य स्थानों पर जाने की विनती की। उसके बाद उसने धरती को प्रणाम करके अपने सुरक्षा चक्र से बाहर पैर निकाला। 

बाहर अच्युतानंद जी भी एक सुरक्षा चक्र में बैठे थे। उनकी भी आंखों से आंसुओं की धार बह रही थी और उनके चेहरे पर असीम संतोष दिखाई दे रहा था।  

स्नेहा ने उनके पास पहुंच कर दंडवत करते हुए कहा, "गुरुदेव आप ही की सहायता के कारण मैं अपने परिवार की हत्या का प्रतिशोध लेने में समर्थ हुई हूं। भले ही अभी यह मेरी पहली विजय है, पर यह विजय भी आप ही की है। आप ही के कारण मैं यह सब कर पाई हूं।"

 अच्युतानंद ने कहा,"नहीं... स्नेहा एक योग्य गुरु तभी योग्य होता है,  जब उसका शिष्य कुछ अच्छा कर पाए और तुमने तो मुझे भी गुरु ऋण से मुक्ति दिलाई है। मैं चाह कर भी आत्मानंद का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था, भले ही उससे ज्यादा सिद्धियां मेरे पास थी, पर उसकी मृत्यु तुम्हारे हाथों लिखी थी।" ऐसा कहकर अच्युतानंद ने स्नेहा को जमीन से उठा लिया।

 और उसके सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हुए कहा, "स्नेहा…!! तुम आज आत्मानंद को मारकर गुरु ऋण से भी मुक्त हो गई हो। मुझे मेरी गुरु दक्षिणा मिल गई है। अब तुम शीघ्र ही बाकी लोगों से भी प्रतिशोध लेकर अपना संकल्प पूरा करो।"

 सनेहा ने हाथ जोड़कर कहा, "अवश्य गुरुदेव…!! मैं शीघ्र ही उस संकल्प को पूर्ण करूंगी। गुरुदेव तब तक क्या मैं मां के ही चरणों में रह सकती हूं?"

 अच्युतानंद ने कहा, "मां के पास रहने के लिए भी तुम्हें आज्ञा चाहिए। तुम अवश्य रह सकती हो... जब तक चाहो... तब तक।" ऐसा कहकर अच्युतानंद और स्नेहा दोनों मां के मंदिर की तरफ चल दिए। 

आते समय दोनों के ह्रदय में प्रतिशोध की अग्नि धधक रही थी, पर जाते समय थोड़ी सी शांति की अमृत वर्षा,  उस अग्नि पर हुई थी। जिससे उनके मन और मस्तिष्क शांत हो गए थे।

 शीघ्र ही वह दोनों मां के सामने उनके मंदिर में खड़े थे।

स्नेहा जल्दी से नहा-धोकर, शुद्ध होकर मां के मंदिर में चली गई। मां को देखकर उसकी रुलाई फूट पड़ी। स्नेहा जोर-जोर से रोने लगी थी, रोते-रोते वह मां से कहने लगी, "मां... मैं बहुत निर्दयी होती जा रही हूं।  पर मां आप ही बताइए वह लोग अपनी सिद्धियों का गलत उपयोग कर रहे थे। उन्होंने मेरे परिवार के अलावा और ना जाने किस-किसको क्या-क्या दुख पहुंचाया है?  मां इस सब के लिए मुझे क्षमा कर दो।"

स्नेहा जब रो रही थी, तभी अच्युतानंद जी मंदिर में आए और मां को प्रणाम कर, स्नेहा के सर पर नेह भरा हाथ फेर कर कहने लगे, "स्नेहा तुमने कुछ भी गलत नहीं किया है... इसलिए अपने मन पर कोई भी बोझ मत रखो... आत्मानंद इसी योग्य था कि उसे ऐसी ही भयानक मृत्यु मिले। उसने तुम्हारे परिवार के अलावा और भी परिवारों की नृशंस हत्या की थी। इसलिए तुम दुखी ना हो और कुछ खाकर विश्राम करो... तुम्हें बहुत अधिक विश्राम की आवश्यकता है, अपने मस्तिष्क को ठंडा रखने के लिए। आगे वही काम आएगा।"

 ऐसा कहकर अच्युतानंद जी वापस चले गए और स्नेहा वही मंदिर में बैठे-बैठे ही सो गई। सुबह जब उठी तो अपने आप को काफी हल्का और अच्छा महसूस कर रही थी। स्नेहा ने उठ कर मां को प्रणाम किया और बाहर चली गई।  स्नान, ध्यान, पूजन के बाद वह अच्युतानंद जी से मिलने गई। 

अच्युतानंद जी ने उसे देखते ही पूछा, "अब कैसी हो...स्नेहा?"

 "मैं ठीक हूं... गुरुदेव।" स्नेहा ने हाथ जोड़कर कहा।

 "ठीक है अब आगे का कुछ सोचा है…!" अच्युतानंद ने पूछा।

 स्नेहा ने कहा, "जी गुरुदेव... अगला शिकार अनुज होगा... वैसे भी वो एक चरित्रहीन लड़का है तो उसे फंसाना आसान ही होगा। आज ही अनुज की मृत्यु का दिन होगा। उसके बाद विराज होगा अगला शिकार। वैसे भी आज का दिन विराज को गुरु जी याद में बिताने देते है।"

 अच्युतानंद ने कहा, "जैसा तुमको उचित लगे... पर जो भी करना अपना ध्यान रखकर करना।" 

"जी गुरुदेव... मैं अवश्य अपना ध्यान रखूंगी।" ऐसा कहकर स्नेहा वहां से चली गई। 

 सुबह विराज जब आत्मानंद के श्मशान में पहुंचा, वहां की हालत देखकर एकदम सकते में आ गया था। उसने सोचा भी नहीं था कि कभी उसके गुरु के साथ इतना बुरा हो सकता था, पर अब इसमें कुछ भी किया नहीं जा सकता था। 

विराज चुपचाप वहां से वापस लौट गया और उस बात को भूलने का प्रयत्न करने लगा। विराज के मन में स्नेहा का डर बढ़ता ही जा रहा था और साथ ही घटती जा रही थी उसकी सांसे…!!!

 शाम के समय अनुज घर पर एक फोन आया,  फोन अनुज ने उठाया था।

 फोन के उठते ही आवाज आई, "हेलो ऽऽऽ हेलो ऽऽऽऽ आप जो भी हैं... प्लीज मेरी हेल्प कीजिए... मुझे यहां कुछ लोगों ने किडनैप करके रखा है। वह लोग मुझे जबरदस्ती उठाकर ले आए हैं। प्लीज मेरी हेल्प कीजिए…!!"

 अनुज ने पूछा, "तुम कौन हो... और कहां हो…??"

उस लड़की ने कहा, "मेरा नाम स्वीटी है... मेरे  सत्रहवें जन्मदिन के दिन…. इन लोगों ने मुझे उठा लिया था। मैंने इन्हें बातें करते सुना... कि यह लोग मुझे किसी बड़े आदमी को बेचने वाले हैं… प्लीजऽऽऽ मुझे बचा लीजिएऽऽऽऽ…!!"

अनुज ने पूछा, "तुम हो कहां…??"

 स्वीटी ने घबराते हुए कहा, "वह... तो... मुझे नहीं पता, पर आप इस नंबर की लोकेशन ढूंढ लो… प्लीज ऽऽऽ मेरी मदद कीजिए। वह लोग दो दिन के लिए बाहर गए हैं, जब आएंगे... तो उसी दिन मुझे बेच देंगे…!!"

 अनुज ने पूछा, "तो तुम्हारे पास फोन... कहां से आया…??"

 स्वीटी ने रोते हुए कहा, "एक गुंडा गलती से फोन को चार्ज में लगा कर भूल गया था... बड़ी मुश्किल से इसका लॉक खोला है... आप प्लीज ऽऽऽ मुझे बचा लीजिए!! पुलिस... पुलिस... को मत बताइएगा, क्योंकि उनमें से एक आदमी पुलिस वाला है। प्लीज ऽऽऽ मुझे बचा लीजिए ऽऽ…!!" 

अनुज ने कहा, "ठीक है…ठीक है...मैं देखता हूं…!" और फोन कट गया।

 अनुज ने सोचा... 

"उस लड़की के बारे में किसी को भी नहीं पता... और अभी है भी छोटी…!!"

उसके बारे में सोच कर ही अनुज के चेहरे पर शैतानी हंसी थी। वो जल्दी में घर से बाहर निकल गया पर बाहर ही अरुणा से टकरा गया।

 अरुणा ने पूछा, "अनुज... इतनी जल्दी में कहां जा रहे हो?"

 अनुज ने कहा, "कहीं नहीं मामी मेरे एक दोस्त का फोन आया था, उसका एक्सीडेंट हो गया है तो बस उसी के पास जा रहा हूं।" ऐसा कहकर वह निकल गया। 

स्वीटी के फोन की लोकेशन अनुज ट्रेस कर पा रहा था। उसकी लोकेशन ट्रेस करते-करते अनुज उस घर के बाहर पहुंच गया। जब अनुज वहां पहुंचा तो लगभग रात हो चली थी। वह घर शहर से बाहर एक छोटा सा टूटा-फूटा सा मकान था। बाहर से देखने पर वह खंडहर जैसा ही दिखाई पड़ रहा था। 

 अनुज ने सोचा, "यहां पर अगर मैं कुछ भी करता हूं… तो किसी को कुछ पता ही नहीं चलेगा... और वैसे भी वह लड़की... उस लड़की के बारे में किसी को कुछ पता नहीं है। मैं जल्दी अपना काम खत्म करके यहां से निकल जाऊंगा।" अनुज ने  ऐसा सोचते हुए उस घर में कदम रखा।

 अंदर से वह घर बाहर जैसा ही दिख रहा था, बिल्कुल खण्डहर…!! दो कमरे, एक हॉल, टूटी फूटी सी रसोई और एक बंद कमरा।  

अनुज ने उस कमरे को खोला तो सामने एक बेड लगा हुआ था। उस कमरे में कोई भी खिड़की नहीं थी, केवल एक दरवाजा ही था जिस पर अनुज खड़ा था। अचानक उसके पीछे से एक तेज आवाज आई और जोरदार धक्का लगने से अनुज अंदर जाकर गिर पड़ा।