Chapter 60

Chapter 60

YHAGK 59

Chapter

59








   मौली ने रूद्र का हाथ पकड़ा और कहां, "यह वही मंदिर है डैड जहाँ आपने और मॉम ने शादी की थी?" रूद्र ने कुछ कहा नहीं बस एक नजर मौली को देखा। वह समझ गई और बोली, "यह तो सच में बहुत खूबसूरत मंदिर है। इसीलिए तो मॉम का दिल आ गया इस पर और उन्होंने तभी डिसाइड कर लिया होगा कि उन्हें यहीं पर शादी करनी है। कैसे बिल्कुल सही किया आप दोनों ने जो शादी कर ली, वरना मैं कैसे आती?" तभी उसकी नजर वहां के लेक पर गई तो मौली दौड़ते हुए किनारे जा पहुंची। रेलिंग पर पैर रख थोड़ा सा ऊपर चढ़ा और नीचे झाका तो बहुत सारी बड़ी बड़ी मछलियों को इकट्ठे वहां तैरते हुए देखा। 


     मौली खुशी से चिल्ला पड़ी, "डैड......! देखिये कितनी सारी मछलियां है यहां पर! सो मेनी फिसेज्! और वह भी कई तरह की! काश मैं इनमें से किसी को ले जा सकती लेकिन इतनी बड़ी मछलियां तो एक्वेरियम में आएगी नहीं। उसके लिए तो बड़ा वाला चाहिए होगा। डैड..! क्यों ना हम एक बड़ा वाला एक एक्वेरियम ले ले?" मौली ने कहा और पूरे तालाब को निहारते हुए जहां तक जा सकती थी गई। सबसे ज्यादा मछलियां उसने किनारे ही देखी, वह भी मंदिर के तरफ क्योंकि बीच में सभी वोटिंग करने में लगे हुए थे। रूद्र ने कहा, "अगर आपका हो गया हो तो हम चले! यह नजारा हम वापस लौटते हुए भी देख सकते हैं। पहले मंदिर से प्रसाद ले लो फिर हम यहाँ से निकलते हैं।" मौली भागते हुए मंदिर में गई और वहां से प्रसाद लिया। 


      रूद्र मौली को लेकर वहां से धीमें कदमों से बाहर निकल गया। जाने से पहले वह एक बार मुड़ कर वापस उस मंदिर को देखने से खुद को रोक न पाया। ये जगह उसकी जिंदगी में बहुत अहम थी। पिछली बार जब वह यहां आया था उस वक्त शरण्या उसके साथ थी लेकिन इस वक़्त वो कहां है यह उससे खुद नहीं पता था।


      जैसे जैसे गाड़ी आश्रम के नजदीक पहुंचने लगी, रूद्र की बेचैनी भी बढ़ने लगी थी। मौली ने एक बार फिर उसका हाथ कसकर थाम लिया। गाड़ी जाकर आश्रम के दरवाजे पर रुकी। इस वक्त उस दरवाज़े पर कोई नहीं था। गाड़ी से उतरने से पहले रुद्र ने एक बार फिर मौली को समझाया, "आप वहां किसी से भी अपनी मॉम का जिक्र नहीं करेंगे, समझ गए आप? कोई पूछे तब भी नही और सबसे जरूरी बात, अपने हाथ नहीं चलाओगे आप! जुबान से ज्यादा आपके हाथ बातें करते है।" मौली समझदार थी उसे पता था अगर उसके पिता ने उसे किसी बात के लिए मना किया है तो जरूर इसके पीछे कोई बहुत बड़ी वजह होगी। लेकिन पैर का इस्तेमाल करने के बारे मे कुछ नही कहा, ये सोच कर ही मौली मुस्कुरा उठी। 


    रूद्र गाड़ी से उतरा और उसके पीछे मौली भी बाहर निकली। आश्रम अभी भी वैसा ही था जैसा पिछली बार उसने देखा था। दादी ने किसी भी तरह का कोई बदलाव नहीं होने दिया था। रूद्र के पैर जैसे जम से गए थे। उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी आगे बढ़ने की तो मौली ने उसका हाथ पकड़ा और उसे लेकर अंदर बढ़ने लगी। रुद्र की नजर सबसे पहले अपने पिता पर गई जो इस वक्त फोन पर किसी से बात कर रहे थे। बड़ी हिम्मत करके वह आगे बढ़ा और उनके पैर छू लिया। उसके पिता ने भी बिना उसकी तरफ ध्यान दिए उसके सर पर हाथ रखा और आशीर्वाद दे दिया। बिना यह जाने कि उनके सामने जो खड़ा है वो उनका अपना बेटा है। रूद्र की हिम्मत नहीं थी अपने पिता से नजरें मिलाने की। उनसे आशीर्वाद पाकर उसकी आंखों में जो खुशी आंसू थे उन्हें छुपाने के लिए वह दूसरी तरफ पलट गया और वहां से जाने को हुआ तो उसके पिता ने पीछे से टोका, "कौन हो तुम बेटा? और यहां क्या कर रहे हो?"


     रूद्र की हिम्मत नहीं हुई की पलट कर उन्हें देखें। वो वहीं खड़ा रहा। उसके पापा अभी भी फोन पर ही थे लेकिन उनकी नजर बार बार रूद्र पर जा रही थी जो उनकी तरफ पीठ करके खड़ा था। उसी वक्त दूसरी तरफ से शिखा जी हाथ में कॉफी का मग लिए वहां पहुंची। उन्होंने भी रूद्र पर ध्यान नहीं दिया और कॉफी धनराज को पकड़ा दी। वापस लौटते हुए अचानक से उन्हें एहसास हुआ जैसे उनका कोई अपना वहां है। अपनी मां की आवाज सुनकर भी रुद्र की हिम्मत नहीं हुई उनकी तरफ पलट कर देखने की। अचानक से उसे एहसास हुआ जैसे उसकी मां ने उसका हाथ पकड़ा हो। शिखा ने रूद्र को पीछे से थाम लिया और उसके पीठ से अपना सिर लगाकर चीख पड़ी, "रूद्र!!!!!!!"


    उसके यूं अचानक आ जाने से शिखा जी खुद को संभाल नहीं पाई और बिलखकर रो पड़ी। इतने सालों बाद अपने बच्चे को वापस पाकर वो जितनी ज्यादा खुश थी उतना ही दर्द में भी थी। रूद्र पीछे पलटा और अपनी मां के गले लग गया। उसने एक नजर अपने पापा पर डाली जो उसे ही देख रहे थे। रुद्र को अपनी तरफ देखता पाकर उन्होंने नजरें फेर ली। रूद्र समझ गया कि कितने सालों में भी उनकी नाराजगी कम नहीं हुई है। 


     शिखा जी की चीख जिसने भी सुनी वह भागता हुआ अपने अपने कमरों से बाहर निकला। पूरी रॉय फैमिली वहां मौजूद थी, साथ ही मानसी विहान और नेहा भी। वहां मौजूद हर कोई अपने सामने रूद्र को देख हैरान था। इतने सालों बाद किसी ने उम्मीद भी नहीं की थी उसके आने की। इतने वक्त में वह पूरी तरह से बदल चुका था। हमेशा क्लीन सेव रहने वाले रूद्र की दाढ़ी बढ़ी हुई थी। आंखों में चमक की जगह एक सूनापन था और वजन पहले से काफी कम हो गया था। उसकी पर्सनालिटी पहले के जैसी बिल्कुल भी नहीं थी, इसके बाद भी अभी भी स्मार्ट लग रहा था। शिखा जी ने हर मुमकिन कोशिश की थी उसी को ढूंढने की लेकिन उसने अपने पीछे कहीं भी एक भी निशान नहीं छोड़े थे। 


    शिखा जी बोली, "तेरी दादी को पता था तू आने वाला है। वो कब से तेरा इंतजार कर रही है। चल! चल कर मिल ले उनसे, बाकी की बातें बाद में होती रहेंगी। इस वक्त पहले उनसे मिलना बहुत जरूरी है, वो तेरी राह देख रही है।" शिखा जी रूद्र को खींचते हुए लेकर गई। मौली भी अपना बैग अपने कंधे पर डाले रूद्र के पीछे पीछे चल पड़ी। रेहान उस वक्त आश्रम में नहीं था। रूद्र ने देखा, हमेशा एक्टिव रहने वाली उसकी दादी इस वक़्त बिस्तर पर थी। डॉक्टर ने जवाब दे दिया था, अब उनके पास बहुत कम वक्त बचा था। रूद्र की कहीं कोई खबर नहीं थी इसके बावजूद दादी को पूरा यकीन था कि वह कम से कम उनकी मुखाग्नि देने जरूर आएगा और वह आया भी। 


    अपनी दादी को इस हालत में रूद्र देख नहीं पाया। उसने जल्दी से जाकर दादी के बगल में बैठते हुए उनका हाथ पकड़ लिया। उसके हाथों का स्पर्श पाकर दादी ने आंखें खोली और अपने सामने अपने पोते को देखकर उनकी आंखें छलक गई। "मुझे पता था तू आएगा! मेरी आखिरी वक्त में तु मेरे पास जरूर आएगा लेकिन तू अकेला आया है क्या? तू अकेला कैसे आ सकता है? कहां है मेरे बच्ची? कहां छोड़ आया तु उसे? बता रुद्र कहां है वो?" कहते हुए दादी उसके पीछे देखने की कोशिश करने लगी। रूद्र ने उन्हें शांत करा कर वापस से बिस्तर पर लिटा दिया और मौली की तरफ इशारा किया। मौली दादी के पास आई और उनके पैरों में अपना सिर नवाकर उन्हें प्रणाम किया। दादी ने जब उसे देखा तो उसके चेहरे को छू कर बोली, "यह तो बिल्कुल मेरी शरण्या है!" उनके चेहरे पर जो संतोष के भाव थे उन्हें देख रूद्र ने सुकून की सांस ली। 


     दादी को सुला कर रूद्र उनके कमरे से बाहर निकला। उसी वक्त रेहान आश्रम में वापस आया और उसे रुद्र के आने की खबर मिली। रूद्र अपनी सोच में डूबा था तभी रेहान पीछे से आया और उसे अपनी तरफ करते हुए एक पंच उसके चेहरे पर दे मारा, रूद्र लड़खड़ा गया। उसके पास ही मौली खड़ी थी। उसने जब रेहान को देखा तो वह समझ गई कि यही उसके चाचू है लेकिन इस तरह अपने पिता पर हाथ उठाते देख उसे गुस्सा आया और उसने एक किक रेहान के पेट पर मार दी जिससे रेहान की चीख निकल गई। रूद्र ने रेहान को संभाला और मौली की तरफ देखा। 


    मौली ने बड़े ही मासूमियत से कहा, "मुझ पर गुस्सा मत कीजिए आप! इन्होंने पहले अपने मैनर्स भूले तभी मैंने भी अपने मैनर्स भूले हैं। आप ही ने कहा था ना कि ये आपसे छोटे हैं। जब इन्होंने आप पर हाथ उठाया तो मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ। कोई भी..... चाहे कोई भी अगर मेरे डैड को कुछ कहेगा या उन्हें चोट पहुंचाएगा तो मैं उसे नहीं छोडूंगी और आपने जो समझाया था मुझे अच्छे से याद है। आपने कहा था अपनी जबान कम चलानी है और हाथ बिल्कुल नहीं चलाने हैं। मैंने हाथ नहीं लगाया इन्हें तो आप मुझे कुछ नही कह सकते।"


    रेहान ने मौली को सिर से पांव तक निहारा और उसे पहचानने की कोशिश करने लगा। मौली की बातों से उसे इतना तो समझ आ गया था कि वह रूद्र की बेटी है। इस वक्त वहां सभी लोग किसी काम से इकट्ठा हुए थे। सबने रेहान की हरकत भी देखी और मौली की भी। रूद्र ने मौली को उसके नाम से पुकारा तो मौली ने कहा, "पहले इनको बोलो वह आपसे माफी मांगे, उसके बाद मैं इनसे माफी मांगने को तैयार हूं, वरना नहीं!!!! जो आप से बड़े हैं वह आप पर हाथ उठाने का हक रखते हैं, लेकिन जो आपसे छोटे हैं उन्हें अपनी तमीज नहीं भूलनी चाहिए।"


     धनराज ने सुना तो उनसे रहा नहीं गया और बोल पड़े, "कितनी बदतमीज लड़की है! ना जाने किसकी बच्ची है यह! हमारे परिवार में इतनी बदतमीजी करने वाला आज तक कोई पैदा नहीं हुआ!" मौली उनकी तरफ बढ़ी और सबसे पहले उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया फिर बोली, "दादू में आप की ही पोती हूं, मौली रूद्र सिंघानिया! और मैं कोई बदतमीज नहीं हूं। जो जैसा करता है मैं उसके साथ उसी तरह से पेश आती हूं। मैं अपने मैनर्स कभी नहीं भूलती! लेकिन अगर किसी ने मुझे मेरे मैनर्स भूलने पर मजबूर किया तो मैं उसे नानी याद दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ती।" फिर वह रेहान की तरफ पलटते हुए बोली, "अभी जो देखा आपने वह सिर्फ एक ट्रेलर था! आइंदा कभी मेरे डैड को हर्ट करने का सोचना भी मत, अंकल!!! वरना पूरी फिल्म दिखाने में मुझे बड़ा मजा आता है।"


    रेहान भौचक्का सा मौली को देखे जा रहा था। उसकी हरकत देखकर उसे समझ नहीं आया कि वह क्या बोले। रूद्र ने रेहान को सॉरी बोला और मौली को वहां के एक केयरटेकर के साथ कमरे में भेज दिया। जाने से पहले मौली शिखा के पास आई और उनके पैर छूकर प्रणाम किया। शिखा ने नम आंखों से मौली को देखा और प्यार से उसका माथा चूम लिया। मौली ने कहा, "माना हम पहली बार मिल रहे हैं लेकिन हूँ तो मैं आपकी ही पोती। माना मैंने जो किया वह गलत था लेकिन जो मेरे डैड के साथ हुआ वह भी तो गलत था। इन दोनों के बीच चाहे जो भी अनबन हो, चाहे जो भी बात हो लेकिन जब मेरे डैड बड़े हैं उनसे उम्र में, ऐसे में अपने से बड़े पर हाथ उठाना कहां से सही है। और अगर यहां मौजूद किसी ने भी मेरे डैड की परवरिश पर उंगली उठाई तो वह उंगली आप पर भी उठेगी दादी मां!!!" 


     शिखा जी ने मौली के सर को सहलाते हुए कहा, "तुमने कुछ गलत नहीं किया! मेरे रूद्र की परवरिश कभी गलत नहीं हो सकती। हाँ...! मेरी परवरिश में थोड़ी कमी रह गई थी शायद, इसीलिए मेरा परिवार बिखर गया। तुम बस हमेशा से ऐसे ही रहना। बिल्कुल इसी तरह से अपने पापा को डिफेंड करते रहना, वरना वह तो हर किसी को माफ कर देता है।" ड्राइवर तब तक रूद्र और मौली का सामान कमरे में रखवा चुका था। रेहान का बेटा राहुल वहीं खड़ा यह सारी बातें देख रहा था। उसने मौली से अपने पापा के इंसल्ट का बदला लेने के लिए कुछ प्लान बनाने थे। उसने अपने दोस्त मानव को कुछ इशारा किया और वहां से चला गया। मौली भी वहां से ऐसे निकल गई जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। लावण्या ने जब उसे जाते हुए देखा तो उसके कपड़े पहनने का ढंग, उसकी चाल ढाल देखकर अनासाय उसके मुंह से निकल पड़ा, "यह तो बिल्कुल शरण्या जैसी लग रही है! बिल्कुल उसी की परछाई! लेकिन यह कैसे हो सकता है?" सभी घरवाले उसकी बात सुन हैरान रह गए। 








क्रमश: