Chapter 4
Episode 4
Chapter
दरवाजे पर कोई परछाई जैसी खड़ी थी।
एक स्त्री परछाई… काले वस्त्र, क्रूर चेहरा, घुटने तक आते घुंघराले बाल, क्रोध से भरे लाल नेत्र और चेहरे पर मृत्यु देव के समान प्राण हरने को आतुर भाव।
सभी घरवाले देख कर भयग्रस्त दिखाई दे रहे थे, केवल राधु के अलावा। सबके मुंह से आवाज भी नहीं निकल रही थी। राधु उसे देखकर उसकी तरफ दौड़ी उसका हाथ पकड़ कर अपनी तोतली वाणी में कहा, "आंनती आप… अनदल आओ ना… मेला थोता बाबू आएदा ना… है ना तो…माँ ने ना… माँ ने तुछ बनाया है।"
फिर अपनी दादी को देखते हुए पूछा, "माँ ता बनाया है…?"
सभी राधु को उस डरावनी औरत से ऐसे बात करते देख बहुत ज्यादा डर रहे थे। उसे इशारे से वापस अपने पास बुला रहे थे। पर थी तो बच्ची ही ना और वो भी उस परिवार की जहां अतिथि देवो भवः की परंपरा रही है।
राधु ने फिर पूछा, "बताओ ना…? ता बनाया था तबते लिए…!"
"म… मि...मिठाई… मिठाइयां बनाई थी बेटा…!" स्नेहा की माँ ने डरते डरते राधु को अपनी तरफ आने का इशारा करते हुए कहा।
"हाँ… मिताई बनाई। आपते लिए...तलो ना…!" राधु ने उस औरत को खींचते हुए कहा।
उस डरावनी औरत ने अपनी लाल-लाल आँखों से राधा को घूर कर देखा। उसके चेहरे के भाव थोड़े बदल रहे थे। पर राधु तो राधु थी... डर जाए वो बच्चे कैसे? उन्हें तो मृत्यु की गोद में भी आनंद ही मिलता है।
"अले आनती आपती आथ मे ताता हो दइ। आओ मै दवाई लदा दू।" राधु ने प्यार से उसे अंदर खींचते हुए कहा।
उस औरत के चेहरे के भाव पल पल बदल रहे थे कभी सौम्य तो कभी रौद्र। अचानक कोई आवाज गूंजी और उस औरत के चेहरे पर विनाशकारी रौद्र भाव स्थायी हो गए।
उस औरत ने झटके से राधु को उठा कर फेंक दिया। वह दूर सामने की दीवार पर टकराई और जोर से चीखी, "माँ…!!!" और सब शांत हो गया।
राधु को फेंकता देखते ही सबकी चीख निकल गई। सब जोर से चिल्ला उठे…
"र...रा...राधुऽऽऽऽऽ…!!!" सभी एक साथ चीखें।
सभी लोग राधु की तरफ दौड़े। उसके सर से खून ऐसे बह रहा था मानो पानी हो। सभी उसे हिलाकर देख रहे थे। आवाजें दे रहे थे...
"राधूऽऽऽऽ राधूऽऽऽऽऽ उठो बेटा…!!" राधु की माँ ने हिलाते हुए आवाज दी।
सभी के आँखों से आँसू बह रहे थे और एक दूसरे की तरफ सदमे में देख रहे थे।
यह दृश्य देखते देखते ही स्नेहा जोर से चीख पड़ी।
"राऽऽऽऽ धूऽऽऽऽ…!!!"
उस लड़के ने चुटकी बजाकर दृश्य को वही रोक दिया।
स्नेहा से बोला, "कि अभी तो शुरुआत है... बाकी सब भी देख लो... फिर निर्णय लेना कि तुम्हें उनसे बदला लेना है... या फिर नहीं…??? ऐसे कमजोर नहीं हो सकती तुम।"
लड़के ने चुटकी बजाकर उस दृश्य को फिर से शुरू कर दिया।
राधु की मां ने जोर से चीखकर कहा, "क्या बिगाड़ा था मेरी बच्ची ने तुम्हारा…? वह तो कितने प्यार से तुम्हें पूछ रही थी?? और तुमने...तुमने क्या किया…?? क्या किया तुमने उसके साथ मार डाला मेरी बच्ची को…???"
उस औरत के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। वह बाकी परिवार की तरफ बढ़ती जा रही थी।उसका अगला निशाना स्नेहा की भाभी थी। जब स्नेहा की भाभी उसके ऊपर चिल्ला रही थी। तब उस औरत ने आकर स्नेहा की भाभी का हाथ पकड़ लिया और हाथ को झटके से उखाड़ दिया। सब लोग राधु को छोड़कर स्नेहा की भाभी की तरफ दौड़े।
खून का फुहारा कंधे से उस जगह छूट गया जहां से बांह उखड गई थी। वह एक तरफ दर्द के कारण बैठ गई। दर्द के कारण मुँह से आवाज भी नहीं निकल रही थी। सभी स्नेहा की भाभी तक पहुंचते उससे पहले ही उस औरत ने स्नेहा की भाभी को बालों से पकड़कर उठा दिया। अपने नाखूनों से उसके पेट को चीर डाला सभी उसे ऐसा करते देख सन्न रह गए थे। पूरे घर में स्नेहा की भाभी की चीखें गूंज रही थी। वो लोग समझ भी नहीं पा रहे थे। जहां थोड़ी देर पहले नवजीवन के आगमन की खुशियां थी वहीं अब मौत का तांडव हो रहा था।
वो औरत निर्विकार भाव से बाकी तीनों को देख रही थी। बारी बारी हर एक को मानो अगली बारी किसकी होनी चाहिए उसके बारे में निर्णय ले रही थी।
अगला नंबर स्नेहा की माँ का था जो उनमे सबसे कमजोर दिख रही थी, टूटी हुई, दुखी और रोती हुई। औरत स्नेहा की मम्मी की तरफ धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी और बाकी घरवाले स्नेहा की मां को लेकर धीरे धीरे पीछे खिसक रहे थे। वह औरत उन सब से थोड़ी तेज थी, उसने झटके से स्नेहा की मम्मी का गला पकड़ लिया। स्नेहा के पापा और भाई उन्हें बचाने के लिए उस औरत को रोक रहे थे पर उसे रोक नहीं पा रहे थे। वह कोई साधारण स्त्री नहीं थी ऐसा लग रहा था जैसे साक्षात् मृत्यु एक औरत के रूप में वहां आ गई थी। उस औरत की पकड़ स्नेहा की मम्मी की गर्दन पर कसती ही जा रही थी। स्नेहा की मम्मी की आंखें बाहर की तरफ निकलने लगी थी। पूरे चेहरे की नसें तन कर दिखने लगी थी। बाकी शरीर ढीला पड़ रहा था। स्नेहा का भाई उस औरत को रोकने के लिए उसे कमर से पकड़ कर पीछे खींच रहा था पर जैसे उस औरत पर कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। अचानक से उस औरत ने अपने बाएं हाथ से स्नेहा के भाई को एक तरफ धक्का दे दिया। स्नेहा का भाई स्नेहा के पापा के ऊपर गिर पड़ा। उस औरत ने स्नेहा की मम्मी की गर्दन पर पकड़ और मजबूत कर दी। जिससे उनकी गर्दन की हड्डी एक झटके से टूट गई और और उनका सर धड़ से अलग हो गया।
एक ही झटके से पूरे घर में खून ही खून के छींटे उड़ गए। कुछ छीटें उस औरत के मुंह पर गिरे, कुछ स्नेहा कर भाई और स्नेहा के पापा के चेहरों पर भी गिरे। उनके चेहरे खून से सन गए।
वह लोग उस खून को देखकर लगभग विक्षिप्त जैसे ही हो गए।
उसके बाद उस औरत ने स्नेहा के भाई को पैर से पकड़ लिया और घसीटते हुए ले जाने लगी। स्नेहा के पापा उसके भाई का हाथ पकड़ कर उससे विपरीत दिशा में खींच रहे थे। उस औरत की पकड़ बहुत मजबूत थी और शक्ति में भी स्नेहा के पापा से बहुत ज्यादा थी। स्नेहा के पापा खुद उसके पीछे घिसटते जा रहे थे। उस औरत ने एक जगह रुक कर स्नेहा कर भाई को आगे की तरफ उछाल दिया। उस झटके से स्नेहा के पापा एक तरफ गिर गए। स्नेहा का भाई दूसरी तरफ रखें एक एंटीक फ्लावर वास से टकरा गया।
वह वॉच पीतल का बना हुआ था जिससे टकराकर स्नेहा के भाई के सिर से खून बहने लगा। स्नेहा के पापा दौड़ कर उसके भाई के पास जाने लगे तभी उस औरत ने उन्हें पीछे से पकड़ लिया। उसके हाथों में स्नेहा के पापा की शर्ट के साथ साथ उनकी पीठ का मांस भी आ गया था। स्नेहा के पापा को उनकी पीठ पर तेज जलन महसूस हुई पर उस पर ध्यान ना देते हुए वह स्नेहा के भाई की तरफ दौड़े। स्नेहा का भाई बेहोश हो चुका था। तब उस औरत ने स्नेहा के पापा की रीड की हड्डी तोड़ते हुए पीठ से ही उनका दिल बाहर निकाल लिया और उसे यूं ही जमीन पर फेंक दिया।
खुद सोफ़े पर बैठकर स्नेहा के भाई के होश में आने का इंतजार करने लगी। जैसे बेहोशी में किसी को मारना उसके लिए अनुचित हो।
थोड़ी ही देर में स्नेहा के भाई को होश आ गया। वह इधर उधर ऐसे देख रहा था, जैसे नींद से जागने पर सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा। स्नेहा के भाई ने सामने देखा तो उसके पापा का क्षत-विक्षत शरीर पड़ा था। जिसे देखकर उसके मुंह से चीख निकल गई। उसकी आवाज सुनते ही वह औरत मानो नींद से जाग जाग गई और स्नेहा के भाई की तरफ बढ़ी।
उसने नीचे बैठ कर स्नेहा के भाई को अपने पैरों के नीचे दबा दिया। खुद उसके भाई के उपर बैठ गई और शरीर से उसकी खाल धीरे धीरे अलग करने लगी। स्नेहा का भाई चीख भी नहीं पा रहा था। उसकी आंखों से दर्द के कारण केवल आंसू बह रहे थे। धीरे धीरे उसकी दर्द सहन करने की क्षमता कम होती जा रही थी। उसका शरीर शिथिल पड़ता जा रहा था फिर भी औरत नहीं रुकी। मानो कोई संकेत दे रहा था और वह उसका अनुसरण कर रही थी। जल्दी ही काफी सारी खाल उसने स्नेहा के भाई के शरीर से उतार दी थी। पूरा सीना केवल मांस और खून से सना हुआ दिखाई दे रहा था। अब उस औरत ने खाल उतारना बंद कर दिया। अब वह स्नेहा के भाई की एक-एक पसलियां तोड़ रही थी। स्नेहा का भाई दर्द के कारण ना तो चीख पा रहा था, ना ही हिल पा रहा था। जल्दी ही स्नेहा का भाई भी मृत्यु को प्राप्त हुआ। वह औरत उठ खड़ी हुई और पूरे घर में घूम घूम कर देखने लगी कि कोई और तो नहीं बचा था।
चारों तरफ देखकर जब कोई नहीं मिला तो वह औरत हॉल के पीछे भी जाकर खड़ी हो गई और चारों तरफ देखते हुए गायब हो गई।
दृश्य के खत्म होते हैं दीवार पर अंधेरा छा गया। स्नेहा फूट-फूट कर रोने लगी। तब उस तांत्रिक लड़के ने कहा, "तुम जानती हो... वह औरत कौन थी?"
"वह एक बहुत ही शक्तिशाली तंत्र शक्ति कृत्या थी जो तंत्र शास्त्र में बहुत ही शक्तिशाली और विध्वंसक प्रवृत्ति की शक्ति होती है। जिसका कोई काट नहीं।" उस तांत्रिक ने आगे कहा।
स्नेहा रोते हुए उसी की तरफ नासमझी वाले भावों के साथ देख रही थी।
"कृत्या… क्या है ये कृत्या? मैं समझी नहीं कुछ।" स्नेहा ने पूछा।
तब उस तांत्रिक ने विस्तार में कृत्या के विषय में बताना शुरू किया।
"कृत्या संसार की प्रबलतम शक्ति है । यह कठिन से कठिन कार्य करने में समर्थ है क्योंकि मानव शरीर पंच तत्वों से निर्मित होता है, पर कृत्या का निर्माण मात्र तीन तत्वों से होता है। इसलिए इसकी शक्ति अप्रतिम है और इसका वेग मन से भी ज्यादा तीव्र है।"
"ज्यादातर शत्रु संहार के लिए ही कृत्या का प्रयोग किया जाता है ,परंतु अपने निजी स्वार्थ के लिए इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह साधना परम श्रेष्ठ होती है पर इसके प्रयोग में सावधानी भी उतनी ही रखनी पड़ती है। कृत्या दैवीय सहायक होती है और इसका गलत प्रयोग भी भारी नुकसान दे सकता है।"
"और भी बहुत कुछ है इस विद्या के बारे में। अगर तुम मेरी भैरवी बनती हो तो ही मैं तुम्हें बता सकता हूं। क्योंकि इससे ज्यादा बताना किसी भी साधारण मनुष्य के लिए हितकारी नहीं है। अब तुम अगर तंत्र साधना के मार्ग पर चलती हो तो हर तंत्र विद्या के बारे में तुम्हें विस्तार से जानकारी दे सकता हूं। हर चीज तुम्हें सिखाने के साथ वह सिद्धियां तुम्हें मिल भी सकती हैं।" तांत्रिक ने कहा।
स्नेहा ने पूछा, "यह तो पता चल गया है कि मेरे परिवार की हत्या कैसे हुई? पर ये कहाँ पता चला की हत्या किसने करवाई? कृत्या खुद से तो नहीं आई होगी... किसने यह सब करवाया है?"
तांत्रिक ने कहा, "यह सब तुम्हारे चाचा, चाची और बुआ की सहायता से तुम्हारे पिताजी के एक पुराने व्यापारिक प्रतिद्वंदी ने किया है।"
स्नेहा ने कहा, "अगर यह हुआ है.. तो क्या तुम मुझे वो भी दिखा सकते हो?"
तांत्रिक ने कहा, "बिल्कुल दिखा सकता हूं... क्यों नहीं…? पूरी घटना को अगर तुम्हें दिखाता हूं... तो उसमें काफी समय बीत जाएगा। हो सकता है सुबह ही हो जाए। तुम्हें समय पर वापस घर पर पहुंचना होगा।"
"मैं केवल यह दिखा देता हूं कि तुम्हारे परिवार ने उसकी सहायता कैसे की? और उसने किस की सहायता से यह मारण तंत्र किया तुम्हारे परिवार पर? क्योंकि मनुष्य को बोलने से ज्यादा देखने पर विश्वास होता है। रुको तुम्हें अभी दिखाता हूं।"