Chapter 65
सुन मेरे हमसफ़र 58
Chapter
58
कार्तिक सिंघानिया घबराया हुआ सा अपने चारों तरफ देखने लगा। उसे समझ ही नहीं आया कि अभी-अभी उसके साथ हुआ क्या। उसने सारांश की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखा और पूछा "अंकल! मैंने कुछ नहीं किया। मुझे तो पता ही नहीं कुछ भी, और यह मुझे इस तरह घसीट कर ले कर आया।"
सारांश ने पहले तो उसके चेहरे को काफी बारीकी से देखा और फिर उसने सिद्धार्थ की तरफ इशारा किया। कार्तिक ने उम्मीद भरी नजरों से सिद्धार्थ की तरफ देखा और बोला, "अंकल! कोई गलतफहमी हुई है। मैं वो नही हूं जो आप समझ थे है। मैं जाऊं यहां से?"
सिद्धार्थ ने उसके सवाल का जवाब देने की बजाय उल्टा उसी से सवाल किया "अपने बाप को फोन लगा।"
कार्तिक सिंघानिया को समझ नहीं आया कि उनके कहने का मतलब क्या था। इस बार सारांश में कड़क लहजे में कहा "सुना नहीं तुमने! अपने बाप को फोन लगाओ!!"
कार्तिक सिंघानिया की हालत खराब हो गई। उसे लगा अभी कुछ देर पहले जिन लड़कियों के साथ उसकी बहस हुई थी, कहीं उन्हीं लड़कियों ने तो उसकी शिकायत नहीं कर दी! उसने हकलाते हुए कहा "सर मुझे माफ कर दीजिए। इसमें। मेरी कोई गलती नहीं है। मैं वह नहीं हूं जो आप समझ रहे हैं यह सारी बदमाशी मेरे भाई की है। यह सब उसका किया धरा है और हर बार उसके किए की सजा मुझे भुगतनी पड़ती है। उसी ने परेशान किया होगा दोनों लड़कियों को। शायद एक को। मुझे सही में नहीं पता क्या हुआ है।"
सिद्धार्थ उसके सामने झुका और उसके घबराए हुए चेहरे को देखकर बोला "ज्यादा अपना दिमाग चलाने की जरूरत नहीं है। तुमने क्या किया है क्या नहीं, वह तो बाद में देखेंगे। फ़िलहाल जितना कहा गया है उतना करो। अपने बाप को फोन लगाओ। वरना उसको उसी तरह घसीट के लेकर आएंगे, जैसे तुम्हें लेकर आया गया है।"
कार्तिक सिंघानिया याद करने की कोशिश कर रहा था कि आखिर उसके डैड की किसी से ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती है जो इस तरह उसके साथ बर्ताव किया जा रहा है। और वो भी इन लोगों से! उसके साथ ऐसा कुछ करने की हिम्मत आज तक किसी ने नहीं की थी तो फिर ये लोग सामने से दुश्मनी क्यों करना चाहते हैं?
कार्तिक सिंघानिया को इतना सोचते देख सिद्धार्थ ने अव्यांश को इशारा किया। अव्यांश ने साइड से एक कुर्सी वहीं पर उठाकर रखा और कार्तिक को उठाकर ऐसे पटका जैसे वह कोई सामान हो। कार्तिक का घबराना लाजमी था। आखिर यहां वह किसी को नहीं जानता था। ऐसे में उसके साथ कुछ होता है तो यह बात जब तक उसके घर तक पहुंचेगी, तब तक काफी देर हो चुकी होगी। उसके पास और कोई रास्ता नहीं था, उसने अपना फोन निकाला और डरते हुए अपने पापा को फोन लगा दिया।
दूसरी तरफ से कॉल रिसीव होते ही कार्तिक घबराते हुए बोला "हेलो डैड!"
वो आगे कुछ कह पाता उससे पहले ही सिद्धार्थ ने उसके हाथ से फोन छीन लिया और बोला "रुद्र सिंघानिया! तेरा बेटा मेरे कब्जे में है। अगर उसकी सलामती चाहता है तो चुपचाप यहां आ जा।"
दूसरी तरफ से आवाज आई "कौन? कौन बोल रहा है?"
सिद्धार्थ में धमकाने वाले अंदाज में कहा "तुझे मेरा नाम तक याद नहीं? शरण्या बिल्कुल सही बुलाती थी तुझे, कमीनी रजिया!"
दूसरी तरफ से रुद्र के होठों पर बड़ी सी मुस्कान आ गई। वह खुश होकर बोला "सिद्धार्थ! तू!! इतने सालों के बाद!!! है कहां तू? और टिक्कू तुझे कहां मिला?"
सिद्धार्थ ने कार्तिक सिंघानिया की तरफ देखा और कहा "टिक्कू??"
इतनी देर में सुहानी और काया भी उन्हीं के पास पहुंच गए थी। उन्होंने कार्तिक सिंघानिया का नाम टिक्कू सुना तो दोनों की हंसी छूट गई। कार्तिक सिंघानिया ने अजीब सी शक्ल बनाई और कहा "इस नाम से मुझे मेरे डैड बुलाते हैं, और कोई नहीं।"
सारांश ने सिद्धार्थ के हाथ से फोन लिया और कहा "हरामखोर! यहीं इंडिया में रहते हुए हमसे मिलने का तेरे पास टाइम नहीं है? तेरे बेटे पर नजर ना पड़ी तब हमें शक हुआ। गेस्ट लिस्ट में तेरे बेटे का नाम देखा तब समझ आया वरना तो हमें कभी कुछ पता ही नहीं चलता। इसकी शक्ल देख कर हम पहचान गए कि यह तेरे गोडाउन का आइटम है।"
कार्तिक सिंघानिया ने चैन की सांस ली। मामला वैसा नहीं था जैसा उसने समझा था। फिर भी उसे इस तरह उठाकर बुरी की तरह क्यों पटका गया? जब उसने सवाल किया तो सिद्धार्थ ने जवाब दिया, "तेरे बाप का गुस्सा तुझ पर निकला है। अगर वो होता तो कॉलर नही पकड़ता, सीधे दो पंच उसके नाक पर पड़ता। शुक्र मनाओ कि हमने ऐसा कुछ नहीं किया। और तुझे इज्जत से कुर्सी पर बैठाया तो है। इतनी इज्जत पचती नही क्या तुझे?"
कार्तिक सिंघानिया चुपचाप बैठ गया लेकिन अभी भी उसके मन में डर बैठा हुआ था क्योंकि वो दो खट्टी मीठी लड़कियां उसके सामने खड़ी थी।
सारांश ने रूद्र से बात करके फोन रख दिया और फोन कार्तिक की तरफ बढ़ा दिया। कार्तिक सिंघानिया ने हिचकते हुए अपने ही फोन को देखा और जल्दी से उसे लेकर अपनी पॉकेट में ऐसा डाला जैसे कोई करंट हो। सिद्धार्थ ने पूछा "आ रहा है वो?"
सारांश ने इंकार कर दिया और कहा, "फिलहाल तो वह इस शहर में नहीं है। हमने भी तो उसे इनविटेशन कार्ड बस उसके मेलबॉक्स में डाल दिया था। हो सकता है उसने ध्यान ना दिया हो!"
सिद्धार्थ ने भी एक गहरी सांस ली और कहा "इतने टाइम के बाद आज उससे बात हुई है। बिल्कुल नही बदला है वो।"
श्यामा ने अवनी की तरफ देखा। वो भी कन्फ्यूज नजरों से उन्हें ही देख रही थी। दोनो ने एक साथ पूछा "आप दोनों किसकी बात कर रहे हैं?"
सिद्धार्थ ने रूद्र के बारे में सबको बताया। उन सब की शादी के बाद बस एक बार सिद्धार्थ से मिला था, वह भी किसी और देश में। दोनों ही अपनी अपनी जिंदगी में इस तरह व्यस्त हो गए थे कि एक दूसरे को भूल ही गए थे और रुद्र और शरण्या की कहानी तो आप सब को तो याद ही होगी। अगर नही याद तो "ये हम आ गए कहां!!!" आप पढ़ सकते है।