Chapter 56
humsafar 56
Chapter
56
अवनि के चेहरे की सारी रौनक एक पल मे ही गायब ही गयी। सारांश के आवाज़ से उसे साफ पता चल रहा था की वह कितना बेबस है। अवनि ने खुद को संभाला और आवाज़ को नॉर्मल रखते हुए बोली, "कोई बात नही सारांश!!! अगर जरूरी नही होता तो मॉम कभी आपको जाने नही देती। आप आराम से जाइये और जल्दी वापस आना। और सबसे जरूरी बात.....! अकेले आना, अपना ऑफिस लेकर मेरे पास मत आना। हमें आपका इंतज़ार रहेगा।"
"हमें...? और कौन है जो मेरा इंतज़ार कर रहा है?" सारांश ने हैरानी से पूछा।
"हम्म.....! ये कमरा.....! ये रात...! ये फूल.....! ये एहसास...! हम सब यहीं आपका इंतज़ार करेंगे।" अवनि ने प्यार से कहा ताकि सारांश को कोई गिल्ट महसूस ना हो। बहुत कुछ कहना था, बहुत कुछ सुनना था लेकिन दोनों काफी देर खामोश रहे। और फिर सारांश ने फोन रख दिया।
अवनि कुछ देर फोन को निहारती रही और फिर आलमारी से सारांश का एक कोट निकाल कर बेड पर रख दिया जहाँ सारांश की सोने की साइड थी । अवनि ने उसके ऊपर अपना सिर ऐसे रखा मानो वहाँ खुद सारांश ही हो और उसके दिल की धड़कन सुनने की कोशिश कर रही हो। अचानक से ही वो कमरा खाली खाली सा लगने लगा।
"कोई बात अवनि!!! इस पल का इंतज़ार तुझसे ज्यादा उन्हें है। उन्होंने तीन साल इंतज़ार किया है तेरा और तु है की बस कुछ दिन भी नही कर सकती! कैसा प्यार है तेरा!!! थोड़ी दूरी थोड़ी तड़प प्यार को और गहरा बनाती है।" अवनि अपने आप से ही बातें करने लगी, और खुद को समझाने मे लगी थी। इन कुछ दिनों मे ही सारांश से इतना लगाव हो चुका था की अब उससे दूर होने का सोचा भी नही था।
अचानक से खिड़की पर हुई आहट से अवनि हरकत मे आई और भाग कर खिड़की पर देखा तो वहाँ एक परछाई नज़र आई। कोई दीवार के सहारे वहाँ चढ़ आया था लेकिन इससे पहले वो अंदर आता अवनि ने फूलों का एक गुलदस्ता उसके ऊपर मार दिया। उस शख्स की हल्की चीख निकल गयी, "आउच्! अवनि मै हू. .....! "
उस आवाज़ को पहचान अवनि भागकर वहाँ पहुची और उसे पकड़ लिया, "सारांश.....!" अवनि की आँखे हैरानी से फैल गयी। "आप तो एयरपोर्ट जा रहे थे न, फिर यहाँ कैसे? और वो भी इस तरह चोर रास्ते से.....! आप ऊपर आइये वरना गिर जायेंगे और सारी हिरोपंती निकल जायेगी।" अवनि ने एक साथ कई सारे सवाल कर दिये और सारांश की बाँह मजबूती से पकड़ ली।
सारांश ने भी ऊपर आने की बजाय अवनि के कमर पर अपने हाथ लपेट दिया और आराम से खड़ा हो गया। अवनि उसे इस हालत मे देख घबरा रही थी और उसे उपर खीचना चाहती थी। लेकिन सारांश ने उसे अपनी ही ओर खीचा और बोला, "इतना घबरा क्यों रही हो मैडम! आपका पति घर पे है क्या?"
अवनि ने हैरान होकर सारांश को अजीब नज़रों से घूरा। उसके आँखों मे शरारत देख अवनि ने भी उसी तरह से जवाब दिया, "नही! मेरे पति इस वक़्त एयरपोर्ट पर होंगे। वो कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहे है तो क्या उनकी गैरहाजरी मे तुम मेरे पास..........! अगर तुम्हारी बीवी को बुरा ना लगे तो!"
अवनि की बात सुन सारांश को हँसी आ गयी। उसने मदहोश आवाज़ मे कहा, "मेरी बीवी बहुत अच्छी है, उसे कोई परेशानी नही होगी लेकिन फिलहाल तो मुझे भी जाना है तो सोचा जाने से पहले एक बार तुम्हें....... क्या मुझे इज़ाज़त है?" अवनि ने इतना सुना और उसे अपने सीने से लगा लिया। सारांश पहली बार अवनि की धड़कनों को इतने करीब से सुन पा रहा था। अवनि ने फिर परेशान होकर कहा, "सारांश! क्या है ये? ऊपर आइये मेरी तरफ वरना गिर जायेंगे! और ये क्या नाटक है? आप तो बाहर जा रहे थे न फिर यहाँ कैसे?"
सारांश ने अपना सिर उठाकर उसे देखा और एक हाथ मे उसका चेहरा लेकर कहा, "तुम्हें देखे बिना जाने का दिल नही किया, पर जानता था तुम से मिला तो जा नही पाऊँगा। लेकिन जब तुम्हारी उदास सी आवाज सुनी तो रहा नही गया और आ गया तुम्हारे पास, बिना किसी को बताये। और यहाँ आया तो तुमने ये फेंक कर मारा मुझे।" सारांश ने उस गुलदस्ते की ओर इशारा किया तो अवनि का ध्यान गया।
अवनि ने मुस्कुरा कर कहा, "जब अपने ही घर मे, अपनी ही बीवी से इस तरह मिलेंगे तो ऐसे ही स्वागत होगा ना!"
"अब क्या करे! तुम्हारे जीजू के कारण शादी से पहले रोमांस का मौका ही नही मिला मुझे। सब उसी की गलती है।" सारांश ने शिकायत की तो अवनि गुस्से मे बोली, "मेरे जीजू के बारे मे कुछ मत कहना! उनकी वजह से ही आज मै पूरे हक़ से आपके कमरे मे हु और आप इस तरह अपनी ही खिड़की पर लटके हुए है। वरना तो आप अभी मौके ही ढूँढ रहे होते मुझे पटाने के!"
सारांश ने जब अवनि को गुस्सा होते देखा तो उसके सिर पर अपना सिर टिका दिया और आँखे बन्द कर ली। अवनि का गुस्सा भी पल भर मे जैसे गायब हो गया। उसने प्यार से कहा, "मुझे नही पता....! आज सुबह जो मैंने......! नही पता कैसे मुझ मे हिम्मत आई! ये मेरा पहली बार था और.......मुझे नही नही आता ये.......!" अवनि और कुछ बोल पाती इससे पहले सारांश ने उसे अपने अंदाज मे चुप करा दिया।
कार्तिक और काव्या रात के खाने पर बैठे थे। धानी अपने बेटे को अपनी बहू के हवाले कर कुछ दिनों के लिए गाँव चली गयी थी। इस वक़्त घर मे बस वही दोनों थे और दोनों के ही बीच काफी कम बातें होती थी। कहने को तो दोनों ही एक दूसरे को शादी के पहले से जानते थे और शादी भी दोनों की मर्ज़ी से ही तय हुई थी लेकिन दिलों के बीच अभी भी एक दूरी थी जिसे मिटाने की दोनों ने हर मुमकिन कोशिश की थी। एक कसक उनके बीच अब पनपने लगी थी। एक ओर जहाँ काव्या का दिल ना चाहते हुए भी तरुण को ढूँढता तो वहीं दूसरी ओर कार्तिक चाह कर भी चित्रा को अपने दिमाग से नही निकाल पा रहा था।
ये एक अजीब सी कश्मकश थी, एक अजीब सी परिस्थिति जहाँ दोनों दोस्तों की किस्मत एक साथ चल रही थी। कार्तिक जानता था की अवनि के दिल मे कोई और है और सिर्फ अपने दोस्त के लिए उसने अवनि को मनाया। वहीं सारांश जानता था की काव्या के दिल मे कोई और है फिर भी अपने दोस्त और काव्या के परिवार के लिए ये बात छुपाई। काव्या ने खुद तरुण से मुह फेरा था जबकि अवनि को लक्ष्य का इंतज़ार था। लेकिन हालात ऐसे बने की काव्या चाह कर भी तरुण को नही भुला पाई और अवनि बस कुछ ही दिनों मे सारांश के रंग मे रंग सब कुछ भूल गयी।
खाना खाकर दोनों अपने कमरे मे गए, कार्तिक ने कपड़े बदलकर सोने की तैयारी की और काव्या नहाने चली गयी। कार्तिक वही बिस्तर पर बैठा अपने दिमाग के साथ उलझा हुआ था। आज चित्रा और निक्षय को जिस हालत मे देखा, बार बार वही उसके दिमाग मे घूम रहा था। "ये तु क्या कर रहा है कार्तिक!!! अपने दिल और दिमाग को काबू मे कर! तु अब किसी और का है और ये कमरा तेरा और काव्या का....! इसमे किसी और को मत लेकर आ। ये गलत होगा काव्या के साथ। शादी हुई है तेरी उससे, अब वो तेरी जीवनसाथी है, और शादी कोई खेल नही होता की जब चाहें तोड़ दे और दूसरा किसी से जोड़ ले। चित्रा कोई नई नही है तेरे लिए, बचपन से जानता है तु उसे, फिर अचानक से तेरी फीलिंग्स क्यों बदलने लगी है उसके लिए। आज अगर बदलनी ही थी तो शादी से पहले तेरे पास पूरा टाइम था तब क्यों नही हुआ? अब जब तु खुद आगे बढ़ चुका है तो उसे भी तो पुरा हक है अपना पार्टनर चुनने का! तु सिर्फ काव्या पर ध्यान दे, सिर्फ काव्या पर!!!!" सोचते हुए कार्तिक ने एक बार बाथरूम की ओर देखा जहाँ अभी भी पानी चल रहा था और दरवाजा खुला था। वह उठा और बिना नॉक किए अंदर चला गया।
क्रमश: