Chapter 98

Chapter 98

YHAGK 97

Chapter

97




    रूद्र अपने घर में अपने पिता को देखकर हैरान रह गया। उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसके पिता यहां उससे मिलने के लिए आएंगे लेकिन उन्हें तो इस घर के बारे में कुछ पता भी नहीं था तो फिर उन्हें बताया किसने? विहान ने....? हां, उसके अलावा और कोई हो ही नहीं सकता! रूद्र ने जब अपने पिता के पैर छुए तो धनराज जी ने उसे अपने गले से लगा लिया। 


    धनराज जी की आंखें नम हो गई। बरसों हो गए थे उन्होंने रूद्र पर कभी प्यार नहीं जताया। हमेशा उसकी गलतियों के लिए उसे डांटते रहे। आज उन्हें एहसास हो रहा था। रूद्र अंदर आया और बोला, "पापा........! आप यहां........! इतनी सुबह........... कैसे?" 


     धनराज जी आदेश देते हुए बोले, "मैं यहां अपने बेटे और अपनी पोती को लेने आया हूं। तुम लोगों ने अपना सामान अनपैक तो नहीं किया है ना? अगर किया भी है तो वह सारा समान समेटो और चलो मेरे साथ।"


      रूद्र ने जब सुना तो थोड़ा हिचकीचाते हुए बोला, "पापा.......! उस घर में..........! नहीं पापा, यह मेरे लिए मुश्किल होगा। उस घर में वापस जाना मेरे लिए आसान नहीं है। वापस इंडिया आना मेरे लिए आसान नहीं था। आप समझ नहीं रहे!"


     धनराज जी बोले, "इंडिया वापस आना तुम्हारे लिए आसान नहीं था लेकिन तुम आए! वैसे ही घर चलो! मुश्किलों से भागा नहीं जाता उनका सामना किया जाता है। मैंने ही तुम्हे उस घर से जाने को कहा था ना, अब मैं तुम्हे कह रहा हूं घर चलो। बरसों हो गए अपने पूरे परिवार को एक साथ देखे हुए। हर सुबह नाश्ते की टेबल पर मैं तुम्हे याद करता था। पहले जब भी तुम नहीं पहुंचते थे तब हमेशा डांट खाते थे। एक बार फिर तुम्हे डाँटने का मन कर रहा है। घर चलो, वह घर तुम्हारे बिना बहुत सूना लगता है। मन नहीं लगता तुम्हारे बिना।" कहते हुए धनराज जी ने किसी बच्चे की तरह रूद्र का हाथ पकड़ लिया। 


     रूद्र ने भी कसकर उनका हाथ पकड़ लिया और बोला, "लेकिन पापा रेहान....! कहीं यह सब करके मैं रेहान के लिए कोई मुसीबत ना खड़ी कर दू! अगर गलती से भी लावण्या को कुछ पता चल गया तो.........!"


     धनराज जी उसे बीच में रोकते हुए बोले, "कुछ नहीं होगा। रेहान ने जो किया अगर वह बात सामने आनी है तो वह एक दिन आकर रहेगी। सच्चाई कभी छुपती नहीं है। सच्चाई जितनी जल्दी सामने आ जाए तकलीफ उतनी ही कम होती है। बरसों बाद जब लावण्या को इस बारे में पता चलेगा तब वह क्या करेगी? कितनी तकलीफ होगी उसे यह मैं समझता हूं लेकिन सच्चाई को छुपा कर नहीं रखा जा सकता। यह बात तुम जान लो, किसी ना किसी तरह यह सच भी लावण्या तक पहुंच ही जाएगा चाहे तुम उसके लिए जी जान क्यों न लगा दो। और यह भी तो सोचो, जिसके लिए तुमने यह सब किया वह खुद तो अपनी जिंदगी में खुश है। उसे किसी बात का कोई अफसोस नहीं।"


     रूद्र बोला, "रेहान मुझसे बहुत प्यार करता है पापा! अगर वह उस वक्त यहां होता तो मुझे कभी ऐसा कुछ करने नहीं देता।"


    धनराज जी ने फीकी हंसी के साथ कहा, "ये तुम्हारी गलतफहमी है बेटा! अगर उसे अपने अलावा किसी और की परवाह होती या किसी बात की फिक्र होती तो जब उसे तुम्हारे और शरण्या के बारे मे पता चला, उसी वक्त यह सच्चाई सबके सामने रख देता जैसा कि ललित ने किया था। लेकर आ गया था वह शरण्या को अपने साथ अपने घर। उसने नहीं छुपाया अपनी बीवी से। अगर मेरा अंदाजा सही है तो तुम्हें यहां देख कर रेहान के रातों की नींद उड़ गई होगी। डर रहा होगा वो और उसने तुमसे इस बारे में बात जरूर की होगी। इसीलिए तुम घर जाने से कतरा रहे हो। मैं तुम्हें कह नहीं रहा हूं रूद्र, तुम्हें आदेश दे रहा हूं! एक पिता होने के हक से मैं कह रहा हूं, घर चलो। मौली बेटा!!! अपना सामान ले आओ।"


     मौली खुश होकर अपने कमरे में चली गई। रूद्र कुछ बोलना चाहता था लेकिन धनराज जी ने टेबल पर से जलेबियां उठाई और रूद्र से बोले, "मैंने सुना तूमने मीठा खाना छोड़ दिया है। क्या मेरे हाथों से भी नहीं खाओगे?"


   रूद्र उनके हाथ पकडते हुए बोला, "आपके हाथों से तो ज़हर भी खा लू! जिंदगी बहुत फीकी हो गई है पापा! आज जरूर खाऊंगा। कहते हैं ना, कोई काम शुरू करने से पहले मीठा खाना चाहिए, इस वक्त वाकई में मुझे इसकी जरूरत थी।"


     कहकर रूद्र ने अपने पिता के हाथ से वो जलेबी खा ली। इस वक्त वह दोनों बाप बेटे बहुत ही ज्यादा इमोशनल हो गए थे। वर्षों के बाद उन दोनों के रिश्ते में मिठास घुली थी। 




   नेहा घर के लिए निकली लेकिन उसे घर पहुंचने में तकरीबन 11:00 बज गए। उसे लगा अब तक ईशान ऑफिस चला गया होगा यह सोचकर उसने आराम से अपना बैग टेबल पर रखा और फ्रेश होने के लिए चली गई। गर्म पानी का शावर लेकर नेहा खुद को काफी फ्रेश महसूस कर रही थी और आंखें मूंदकर आज रूद्र से हुई मुलाकात के बारे में सोच रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था जो कुछ भी वह रूद्र को समझाना चाहती थी क्या रूद्र वह समझ पाया था या नहीं? 


    अभी वो यह सब कुछ सोच ही रही थी कि तभी किसी ने उसे पीछे से दबोच लिया। नेहा बुरी तरह से घबरा गई और इससे पहले किस चीख पाती, उस आदमी ने उसका मुंह बंद कर दिया और बोला, "क्या हुआ जान? घबरा गई मुझे देख कर? मैं क्या इतना भयानक दिखता हूं या फिर तुम्हें लगा कि यहां कोई और है?"


    वो आवाज सुन नेहा का डर से पूरा शरीर कांप गया। उसे लगा था ईशान ऑफिस चला गया होगा। वो ईशान का सामना नहीं करना चाहती थी। जितना हो सके उतना उससे दूर रहना चाहती थी। उन दोनों के रिश्ते की जो सच्चाई थी उससे सभी अनजान थे। उन दोनों की शादी की वजह अब तक कोई नहीं जान पाया था। ईशान उसके कान के पास आकर बोला, "मैंने सुना रूद्र हॉस्पिटल आया था! तुम्हारे हॉस्पिटल........ तुमसे मिलने........., वह अचानक से तुम्हारे हॉस्पिटल कैसे पहुंच गया? किसी ने कुछ बताया है क्या उसे या फिर कोई है जो हमारे घर की बात बाहर भेज रहा है? वो कहते हैं, ना घर का भेदी!"


     नेहा डरते हुए बोली, "ऐसा कुछ नहीं है ईशान वो तो बस ऐसे ही घूमते फिरते चला आया था। मैं बस हॉस्पिटल से निकलने वाली थी। आश्रम में ऐसे ही उसने मुझे और मानसी को गुलाब के बगीचे के बारे में बात करते हुए उसने सुना तो उसने खुद कहा कि वह देखना चाहता है इसलिए वह हॉस्पिटल चला आया। उसे कुछ नहीं पता, ना ही किसी ने उसे कुछ बताया है। दादी के अंतिम संस्कार में वह खुद इतना बिजी था कि किसी और से उसकी कोई बात ही नहीं हो पाई और उसके बाद सब लोग यहां चले आए। रूद्र के साथ सिर्फ वहां विहान रुका था और कोई नहीं। मुझे नहीं पता, वो अचानक से मेरे हॉस्पिटल कैसे पहुंचा?"


       ईशान उसके चेहरे को कसकर पकडते हुए बोला, "मुझे तुम पर पूरा भरोसा है कि तुम ऐसा वैसा कुछ नहीं करोगी! वरना तो तुम जानती हो मैं क्या करूंगा। वही करूंगा जो तुम्हारे भाई ने तुम्हारी भाभी के साथ किया था। याद है ना उसने क्या किया था? यह तो तुम नहीं भूल सकती, मैं जानता हूं। वैसे पहले मुझे यह तो बताओ कि मेरी जान कैसी है?"


     नेहा हकलाते हुए बोली, "वह ठीक है! पहले की तरह हीं है!" नेहा मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि अब ईशान उसे छोड़ दें या कोई ऐसा चमत्कार हो जिससे ईशान से उसका पीछा छूटे। ईशान ने उसकी जिंदगी नर्क से भी बदतर बना दी थी। ईशान ने उसे वैसे ही खींच कर बाथरूम से निकाला और बिस्तर पर पटक दिया। ईशान का यह टॉर्चर नेहा पिछले कई सालों से झेल रही थी लेकिन इस बारे में वह किसी और से कुछ कह नहीं सकती थी। दुनिया की नजरों में वह दोनों एक हैप्पी मैरिड कपल थे लेकिन असलियत क्या थी वह तो सिर्फ नेहा जानती थी। जब तक वह रोए नहीं तब तक ईशान को खुशी नहीं मिलती थी। उसे चोट पहुंचाना उसकी चीखें ईशान को धीरे धीरे अच्छी लगने लगी थी। लेकिन ईशान ऐसा था क्यों और नेहा की ऐसी क्या मजबूरी थी जो ईशान का टॉर्चर अब तक झेल रही थी? 




     अपने पिता के सामने रूद्र की एक ना चली और उसे अपने पूरे सामान के साथ वह घर छोड़ना ही पड़ा। वहां से निकलते हुए रूद्र ने अपनी और शरण्या की तस्वीर उठा ली और उसे अपने बाकी सामान के साथ मिला दिया। धनराज जी खुद जिस गाड़ी से आए थे उसी गाड़ी से उन दोनों को लेकर गए और खुद ही ड्राइव किया। अपने बेटे के साथ आखरी बार उन्होंने तब इस तरह सफर किया था यह उन्हें बिल्कुल भी याद नहीं था। 


    रेहान उस वक्त तक ऑफिस निकल चुका था। उसे इस बात की कोई भनक नहीं थी फिर रूद्र अब उसी घर में सबके साथ रहने वाला है। अगर उसे पता चल जाता तो वह कोई ना कोई जुगाड़ लगाकर रूद्र को घर आने से रोक ही लेता। धनराज जी यह बात अच्छे से जानते थे इसलिए उन्होंने ऐसा वक्त चुना जब रेहान घर पर ना हो। 


     गाड़ी सीधे आकर सिंघानिया हाउस के दरवाजे पर पहुंची। शिखा जी सुबह से परेशान थी यह सोच कर कि सिंघानिया साहब गए कहां? हमेशा वक्त पर ऑफिस जाने वाले आज सुबह सुबह घर से बिना कुछ कहे निकल गए और ऑफिस भी नहीं गए। कंपनी के हालात ऐसे हो गए थे कि रिटायरमेंट की उम्र में भी सिंघानिया साहब को ऑफिस जाना पड़ता था।    


     गाड़ी की आवाज सुनकर शिखा जी घर के दरवाजे तक आई तो उन्हें धनराज जी की गाड़ी नजर आई। उन्होंने चैन की सांस ली और इससे पहले कि वह अपने पति को कुछ कहती उनकी नजर गाड़ी में मौजूद रूद्र और मौली पर गई जो कि दरवाजा खोलकर बाहर निकल रहे थे। शिखा जी को यकीन नहीं हुआ कि रूद्र घर आया है और खुद सिंघानिया साहब उन दोनों को घर लेकर आए हैं। रूद्र घर आने को मान गया इससे बड़ी बात और कुछ नहीं थी। उससे भी बढ़कर दोनों बाप बेटे के बीच के सारे गिले-शिकवे मिट गए थे। 


     रूद्र की नज़र अपनी मां पर गई तो वह झुक कर अपनी मां को प्रणाम किया और उनके पैर छुए। जैसे ही वह घर के अंदर आने को हुआ, शिखा जी ने उन दोनों को ही दरवाजे पर रोक दिया और भागते हुए मंदिर में गई। रूद्र उनकी यह हरकत देखकर मुस्कुरा दिया और खुद से बोला, "आप आज भी वैसे ही है! बिल्कुल नहीं बदली!"


     शिखा जी मंदिर गई और वहां भगवान की पूजा की थाल में आरती का सारा सामान सजा कर ले कर आई। बरसों बाद रूद्र इस घर में कदम रखने वाला था, इस घर का बेटा वापस लौट कर आया था। एक मां होने के नाते वह अपने बेटे की आरती क्यों ना उतारती! शिखा जी ने रुद्र और मौली दोनों की आरती उतारी और उन्हें दोनों को तिलक घर के अंदर आने को कहा। रूद्र जब घर के अंदर आया तो अपनी मां को गले लगा कर बोला, "आप अभी भी ना, मेरी मदर इंडिया हो! बिल्कुल वैसे ही हरकते हैं आपकी।"


     शिखा जी बोली, "लेकिन तू बदल गया है! तु बहुत बदल गया है। मेरा रूद्र ऐसा नहीं था। क्या मेरा रुद्र मुझे वापस मिल सकता है? वही पुराना वाला, जिसकी आंखों में हमेशा शरारत होती थी। इस रूद्र की आंखों में सिर्फ सुनापन नजर आता है मुझे।"


     रूद्र बोला, "आप चिंता क्यों करती है माँ? देखना बहुत जल्द सब ठीक हो जाएगा, बस एक बार शरण्या वापस आ जाए उसके बाद तो सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा। आपका रूद्र फिर से वही रूद्र बन जाएगा जो आप चाहती हैं। मैंने उसे चोट पहुंचाई थी ना, इसीलिए यह मेरा काम है कि मैं उसे ढूंढ कर लेकर आऊ, उसे मनाऊं। क्या करेगी, ज्यादा से ज्यादा मुझ पर गुस्सा होगी, कुछ दिन बात नहीं करेगी, मुझे मारेगी फिर मान जाएगी।"


      रूद्र की बातें सुन शिखा जी का मन एक बार फिर उदास हो गया। वो बहुत अच्छे से जानती थी इस सब का मतलब क्या था!