Chapter 135

Chapter 135

सुन मेरे हमसफ़र 128

Chapter

128




    



     सारांश ने देखा सुहानी पूरी तरह भीगी हुई थी। उन्होंने कहा "जाकर कपड़े बदल लो, वरना सर्दी लग जाएगी।"


      सुहानी अपने पापा से ज़िद करते हुए बोली "थोड़ी देर और। फिर तो कपड़े भींग ही जायेंगे। क्या फायदा होगा उसका?"


   सारांश ने उसके सर पर हाथ रखा और कहा "जितना मन है उतना खेल लेना, लेकिन अभी कपड़े बदल लो। आकर फिर लग जाना, कोई नहीं रोकेगा।" सुहानी जल्दी से सर हिलाकर वहां से अपने कमरे की तरफ भागी।


     अंदर आते हुए वह काया से जा टकराई और दोनों वहीं फर्श पर धड़ाम से गिर गए। सुहानी अपनी कोहनी सहलाते हुए बोली "क्या कर रही है तू? कहां भागे जा रही है?"


    काया बोली "मैं तो आराम से चल रही थी, तू इतनी तेजी में आई। तुझे भी तो देख कर चलना था ना!"


     सुहानी ने ध्यान दिया, काया जिसे किसी ने ठीक से रंग नहीं लगाया था, इस वक्त पूरी तरह रंगों में नहाई हुई थी। उसने हैरानी से कहा "यह क्या हुआ तुझे? और इतना सारा रंग किसने लगा दिया? हमें तो हाथ साफ करने का मौका ही नहीं मिला तुझ पर, फिर यह कौन करके गया है? और तू यहां क्या कर रही है? बाहर सब तुझे ढूंढ रहे हैं, पता है?"


     काया हकलाते हुए बोली "मैं..... मैं........ मैं यहां ....... हां! पानी पीने आई थी।"


    सुहानी ने काया को देखा और बोली "पानी पीने आई थी? तेरा दिमाग तो सही है? पानी से लेकर खाने पीने के सारे चीजों का इंतजाम बाहर ही किया गया है, कम से कम बहाना तो सही दिया कर।"


    काया थोड़ी ऊंची आवाज में बोली "मैं कोई बहाने नहीं बना रही, मुझे बस थोड़ी जरूरत थी तो मैं चली आई यहां पर। और तू इतने सवाल जवाब क्यों कर रही है? तू भी तो घर के अंदर है, मैंने तो तुझसे नहीं पूछा कि तू यहां क्या कर रही है जब सारे लोग बाहर है तो?"


   सुहानी जवाब देती उससे पहले ही काया उठी और वहां से चली गई। सुहानी हैरानी से बस उसे जाते हुए देखती रही। फिर कुछ देर बाद खुद भी खड़े होकर अपने कमरे में चले गए।


    काया बेचारी क्या ही बताती! ऋषभ आया था और उसे अपने प्यार के रंग में रंग कर चला गया, कुछ इस तरह कि वह किसी से कह भी नहीं सकती थी। इस एहसास ने काया के तन मन को रोमांचित कर दिया था। ना चाहते हुए भी वह ऋषभ की तरफ खींची चली गई।



*****




    बाथरूम में अंशु को अपने पीछे खड़ा देखना निशी हैरान रह गई। उसने चिल्लाते हुए पूछा "तुम यहां क्या कर रहे हो?"


     अंशु ने बड़े आराम से कहा "बाथरूम में कोई क्या करने आता है? मैं अभी यहां कपड़े बदलने आया हूं। देखो,मेरे कपड़े भी खराब हो गए है।"


     अंशु ने अपनी शर्ट उतारना शुरू किया। निशी ने अपनी आंखों पर हाथ रख लिया और कहा "लेकिन इस वक्त यहां क्या कर रहे हो, जब मैं यहां हूं?"


     अंशु बोला "यह कहां लिखा है कि अगर तुम इस बाथरूम में हो तो मैं यहां नहीं आ सकता? एक कमरा हम दोनों का है, यह बाथरूम भी हम दोनों का है तो फिर क्या प्रॉब्लम है?"


    निशी बोली, "मुझे प्रॉब्लम है!!!"


    अंशु ने उसे आईडिया दिया "एक काम करो, आधे शावर में तुम, आधे शावर में मैं। आधा-आधा बांट लेते हैं। तब तो कोई प्रॉब्लम नहीं होगी?"


     अंशु को इतना ढीठ बनते देख निशी ने नाराज होकर कहा "ठीक है। कमरा भी तुम्हारा है और बाथरूम भी। करो तुम्हें जो करना है। तुम्हारा जो हो जाए तो मुझे आवाज दे देना।"


  निशी वहां से जाने लगी तो अव्यांश ने एकदम से उसकी कलाई पकड़ी और खींच कर बाथरूम की दीवार से सटा दिया। उसके ठीक बगल में शावर का नॉब था। अव्यांश ने शॉवर ऑन कर दिया।


   शॉवर का पानी उन दोनों पर पड़ने लगा। खासकर अव्यांश के चेहरे से रंग घुलकर निशी के ऊपर गिरने लगे। निशी के कपड़े और ज्यादा रंगों से सराबोर होने लगे। अव्यांश ने अपनी शर्ट उतार दी और उसने निशी के कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया।




   मौका मिलते ही कुणाल ने शिवि को होली विश करना चाहा। लेकिन शिवि नही चाहती थी कि कुणाल उसकी तरफ देखे भी। उसने बहाने तलाशने शुरू किए लेकिन उसे कुछ सूझा नही। कुणाल उसके करीब आया और बोला, "हैप्पी होली शिवि!"


    शिवि मुस्कुरा कर बोली, "आप मुझे शिविका कहिए तो ज्यादा अच्छा होगा मिस्टर कुणाल रायचंद!"


    कुणाल बोला, "शायद हम अजनबी नही है। तो तुम मुझे मेरे नाम से बुला सकती हो।" कुणाल के हाथ में गुलाल था लेकिन वो शिवि को लगाने में हिचक रहा था। शिवि ने कुणाल से बचने के लिए इधर उधर नजर दौड़ाई। उसको डीजे के गाने पसंद नहीं आ रहे थे तो उसने डीजे की छुट्टी कर दी और खुद ही डीजे की पोस्ट संभाल ली।


    कुणाल सामने खड़ा उसे देख रहा था। तभी किसी ने पीछे से आकर उसको गुलाल लगाकर कहा, "सरप्राइज़!!!" ये आवाज सुनकर कुणाल चौंक गया।




*****





अव्यांश एक बार फिर निशी के करीब आना चाहता था। निशी ने भी जैसे कोई विरोध करना ही छोड़ दिया। अव्यांश का यू करीब आना उसे अच्छा लगने लगा था और वह किसी सम्मोहन में बंधी अव्यांश की तरफ खींची जा रही थी। उसने बस अपनी आंखें बंद कर ली। लेकिन अचानक ही उसे कुछ महसूस हुआ और उसने घबरा कर अपनी आंखें खोली।


     निशी की आंखों में घबराहट देखकर अव्यांश रुक गया और पूछा "क्या हुआ?"


   निशी ने घबराते हुए अव्यांश को अपने दोनों हाथों से धक्का मारा और बोली "तुम...... तुम अभी जाओ यहां से।"


     अव्यांश ने निशी के दोनों हाथ पकड़ लिए और कहा "बिल्कुल नहीं। आज मैं यहां से नहीं जाने वाला। तुम्हें यहां छोड़कर तो बिल्कुल नहीं, जब तक तुम मुझे अपनी प्रॉब्लम नहीं बताती।"


    निशी घबराते हुए बोली "अव्यांश प्लीज! तुम्हें मुझे जितना परेशान करना है, तुम बाद में कर लेना लेकिन इस वक्त यहां से जाओ।"


     अव्यांश कुछ और समझ पाता उससे पहले ही निशी ने उसे पूरा जोर लगा कर धक्का दिया और बोली "अव्यांश प्लीज! प्लीज कह रही हूं, जाओ यहां से।"