Chapter 109

Chapter 109

YHAGK 108

Chapter

108






      सुबह के 4:00 बज रहे थे। ललित जी ने जैसे ही करवट बदली, उन्हें महसूस हुआ उनके बगल में कोई नहीं है। उनकी आंख खुली तो उन्होंने अनन्या को अपने पास नहीं पाया। उन्हें हैरानी हुई आखिर इतनी सुबह वह जा कहां सकती है? उन्होंने आवाज लगाई अनु.....! अनु कहां हो तुम........!" लेकिन उनका कोई जवाब नहीं मिला। 


    मिस्टर रॉय उठकर उन्हें ढूंढने लगे। बाथरूम से लेकर किचन तक देखा लेकिन उन्हें वह कहीं नजर नहीं आई। ना जाने उनके मन में क्या ख्याल आया और वह ऊपर की तरफ चले गए। वहाँ शरण्या के कमरे के बाहर आकर उनके कदम ठिठक गए। 


   अनन्या शरण्या के कपड़ों पर बड़े प्यार से हाथ फेर रही थी। उनकी आंखों में आंसू भी थे और पछतावा भी। मिस्टर रॉय ने ताना देते हुए कहा, "कभी प्यार से उसके सर पर भी हाथ फेरा होता आपने! उस बेचारी को तो पता भी नहीं था कि आप उसकी मां नहीं है। कोई नहीं लगती वो आपकी। हमेशा आपके प्यार के लिए तरसती रही। ना उसे कभी सच बताया, ना हीं झूठ! आखिर जब उसे पता चला, नफरत ना कर पाई आपसे और आप जब वो नहीं है तब इस प्यार का कोई मतलब नहीं। सिर्फ दिखावा है यह। उसकी बरसी है आज। उसकी तैयारियां करनी होगी। चल कर सो जाइए।"


      कहकर मिस्टर रॉय जाने को हुए तो अनन्या जी बोली, "मैंने कभी उस बच्ची से नफरत नहीं की। उससे कोई नफरत कर भी नहीं सकता था। दुनिया में सबसे प्यारी थी वह लेकिन सिर्फ एक तुम्हारे धोखे की वजह से मैं चाह कर भी उसे प्यार ना दे पाई। मेरा भी दिल करता था उसके सर पर हाथ फेरकर उसे प्यार जताऊ लेकिन सिर्फ तुम्हारे कारण ललित....... तुमने और उसकी मां ने जो मेरे साथ किया वो कोई भी औरत बर्दाश्त नहीं कर सकती। इतना बड़ा दिल नहीं है मेरा और ना ही किसी औरत का हो सकता है जो तुम मुझसे उम्मीद करते रहे। अपने सुख के लिए तुमने उस बच्ची की जिंदगी बर्बाद कर दी और सही-सही कसर रुद्र ने पूरी कर दी।"


   मिस्टर रॉय नाराज होते हुए बोले, "कितनी बार कहा है, इस घर में उस इंसान का नाम नहीं लिया जाएगा। उसकी वजह से मेरे बच्चे ने अपनी जान दे दी। आप मुझे चाहे जितना सुनाना चाहे सुना सकती है लेकिन उस इंसान का नाम भी मैं इस घर में बर्दाश्त नहीं करूंगा। सिंघानिया से मेरी दोस्ती बरसों पुरानी है, इस दोस्ती को मैं ऐसे ही नहीं तोड़ सकता और फिर हर साल उन्हें शरण्या की बरसी में बुलाकर मैं उन्हें एहसास दिलाना चाहता हूं कि उन लोगों की वजह से इस घर में क्या हुआ है। वरना जितनी नफरत मैं उस पूरे परिवार से करता हूं कोई सोच भी नहीं सकता। मेरी एक बेटी उस घर में है। उन लोगों से मैं रिश्ता तोड़ भी नहीं सकता। सुबह होने वाली है। पूजा और दान की सारी तैयारियां करनी होगी। इस सब में आप अपना वक्त बर्बाद कर रही हैं। कहकर ललित वहां से चले गए।


   अनन्या बस मन मसोसकर रह गई। आखिर इतने सालों में उसे भी तो शरण्या से लगाव हो गया था। ललित का गुस्सा उन्होंने हमेशा शरण्या पर ही तो उतारा था। आखिर क्या गलत कह दिया मिस्टर रॉय ने! अनन्या ने शरण्या की तस्वीर उठाई और बोली, "बस एक बार......! बस एक बार तुम लौट आओ। अब तक की सारी दूरियां मिटा कर तुम्हें जी भर कर प्यार करना चाहती हूं। जानती हूं मैंने तुम्हें उस बात की सजा दी जो तुमने कभी की ही नहीं थी। किसी और की गलती के लिए मैंने हमेशा तुम्हें........ कोई तो कह दे कि तुम हो, बस एक बार!"




    रूद्र और मौली दोनों ही सुबह की सैर और एक्सरसाइज के बाद घर लौटे। उस वक्त तक शिखा जी पूजा कर चुकी थी। उन दोनों बाप बेटी ने आते ही सबसे पहले उनके पैर छुए और आरती ली। रूद्र बोला, "मौली........! बेटा आप जल्दी से फ्रेश हो जाओ। नहा लो स्कूल जाना है। राहुल बहुत जल्दी उठ गया, कुछ बात है क्या?"


    शिखा जी कुछ कहना चाहती थी लेकिन वह बोल नहीं पाई। आखिर रूद्र को कैसे बताएं कि आज शरण्या की बरसी है। उन्होंने कहा, "तुझे ऑफिस का कुछ काम है नहीं है क्या? ऐसे तो पूरा टाइम बिजी रहता है। हमारे लिए तेरे पास वक्त नहीं होता तो आज क्या हो गया? मैं पहले ही बता दे रही हूं, आज हमें बहुत काम है और राहुल स्कूल नहीं जाएगा। वह हमारे साथ बाहर जा रहा है।"


     धनराज जी ने सुना तब उन्हें भी एहसास हुआ की रूद्र को इस बारे में बताना सही नहीं होगा। जिस बात को वह मानने को तैयार नहीं उस बात के लिए उससे तैयार करना बहुत मुश्किल होता और वैसे भी मिस्टर रॉय कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे कि रूद्र शरण्या की बरसी में आए और उसकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें। अब तक दोनों परिवारों का रिश्ता नहीं टूटा था वह भी सिर्फ लावण्या की वजह से। वरना यह दोनों परिवार बहुत पहले अलग हो गए होते। 


     धनराज जी ने भी अपनी पत्नी का साथ देते हुए कहा, "रूद्र! तुम हो सके तो मौली को रहने दो। राहुल भी स्कूल नहीं जा रहा तो वह भी ना जाए तो बेहतर होगा। तुम्हें तो बहुत काम होते हैं ना, तुम आराम से अपना काम निपटाओ। मैं माली को भी अपने साथ ले जाऊंगा तुम बिल्कुल भी चिंता मत करना।"


    रूद्र को कुछ अटपटा सा लगा। उसे समझ नहीं आया कि आखिर ऐसी कौन सी बात है जो उससे छुपाई जा रही है। ना उसकी मां और ना ही उसके पापा उसे कुछ बता रहे थे। उसने भी अपने मां पापा की बात का मान रखते हुए पूछना जरूरी नहीं समझा और अपने कमरे में चला गया लेकिन उसके मन में कई सारे सवालों ने घरकर लिया। इस सब को दूर रखते हुए उसके दिमाग में सिर्फ और सिर्फ नेहा का हॉस्पिटल घूम रहा था। उसे किसी भी तरह उस टॉप फ्लोर पर एंट्री चाहिए थी लेकिन उस प्राइवेट एरिया में घुसना इतना भी आसान नहीं था। थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन उसने लिफ्ट खुलने और बंद होने के दौरान उस पुरे एरिया का सिक्योरिटी स्कैन कर लिया था वहां जाने के लिए किसी आई कार्ड की जरूरत थी जोकि हॉस्पिटल के आई कार्ड से अलग था और उसका दिल बार-बार गवाही दे रहा था कि शरण्या यहीं है। लेकिन अगर ईशान को जरा सा भी शक हो गया कि रूद्र को इस बात का पता चल गया है तो वह शरण्या को वहां से हटाने में बिल्कुल भी वक्त नहीं लगाएगा। 


   ईशान आगे क्या करने वाला था इसका अंदाजा रूद्र को पहले से था इसीलिए वह इस मामले में जल्दबाजी नहीं कर सकता था लेकिन देर भी नहीं कर सकता था। 


    रूद्र के हॉस्पिटल आने की वजह से शरण्या के बॉडी में हरकत होनी शुरू हो गई थी। नर्स ने जैसे ही शरण्या को रिस्पांस करते देखा उसने तुरंत नेहा को फोन लगाया। उस वक्त नेहा किचन में थी। हॉस्पिटल से फोन आया देख उसने जल्दी से अपना हाथ साफ किया और फोन लेकर बाथरूम में चली गई। दरवाजा लॉक करते हुए उसने फोन उठाया और बोली, "क्या हुआ? मेरे इस नंबर पर फोन क्यों किया तुमने?"


   उधर से नर्स की आवाज आई, "फूल खिलने लगा है!"


   नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ गई लेकिन माथे पर शिकन भी उभर आई। उसने कहा, "बहार का मौसम है, फूलों का खिलना जाहिर सी बात है लेकिन जब तक माली को फूल की खबर नहीं हो जाती तब तक उससे खिलने से रोकना होगा वरना कांटे उसे नोच डालेंगे। 


    नर्स नेहा की बातों को अच्छे से समझ गई और बोली, "मैं कुछ करती हूं!" कहकर उसने फोन रख दिया। नेहा ने मन ही मन कहा, "और कब तक में यह सब कुछ रोक पाऊँगी? इतने सालों में मैंने कभी उस काली को खिलने नहीं दिया है। मैं जानती हूं वो किसी की अमानत है। बस जल्दी से इंतजार की घड़ियां खत्म हो और मैं इस जिम्मेदारी से आजाद हो जाऊं। उसके बाद में इस इंसान को बिल्कुल भी बर्दास्त नहीं करने वाली। लेकिन मां पापा का क्या? उन्हें भी तो इस दरिंदे के चंगुल से बचाना होगा। कम से कम मुझे दोनों तरफ संभालना तो नहीं होगा। जरा सी कोशिश और मैं अपने मां पापा आपको इस सब से बाहर निकाल सकती हूं। बस तुम मेरा साथ देना रूद्र!"


     उसी वक्त बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक हुई। नेहा घबरा गई और उसने आवाज लगाई,"कौन है?" 


   दूसरी तरफ से ईशान की आवाज आई, "मेरे अलावा और कौन हो सकता है जान? दरवाजा खोलो मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं! या फिर तुम चाहती हो कि मैं अंदर आऊ?"


   ईशान की आवाज सुनकर नेहा बुरी तरह से घबरा गई और बोली, "नहीं......! नहीं ईशान! मै तो बस फ्रेश होने के लिए आई थी। हमें शरण्या के घर जाना है ना, उसकी बरसे है तुम्हें याद तो है ना? मैं बस 2 मिनट में आई।" कहकर नेहा ने जल्दी से अपना फोन जेब में डाला और चेहरे पर पानी का छींटा मार कर तौलिया से पोछते हुए बाहर निकली। 


     ईशान ने उसे घूर कर देखा और कहा, "आज के दिन को मैं कैसे भूल सकता हूं। आज के दिन ही तो मेरी शरण्या मेरे पास आई थी। दुनिया के लिए भले ही वो मर गई हो लेकिन सच तो सिर्फ हम दोनों जानते हैं, है ना? बात चाहे जो भी हो लेकिन हर साल आज का दिन मुझे याद दिलाता है कि मेरे लिए कितना खास है। जब भी मिस्टर रॉय अपनी बेटी की बरसी मनाते हैं मुझे एहसास होता है कि शरण्या पर अब सिर्फ मेरा हक है। तुम जल्दी से तैयार हो जाओ, मैं अभी फटाफट तैयार होकर आता हूं।" कहकर ईशान बाथरूम में चला गया। नेहा ने चैन की सांस ली। 




      रूद्र अपने कमरे में था जब उसे मौली का फोन आया। मौली ने धीरे से कहा, "डैड...! आप यहां सकते हैं क्या? मुझे यह सब कुछ बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा!"


     रूद्र ने पूछा, "क्या हुआ बेटा, आप परेशान क्यों लग रहे है?"


   मौली ने कहा, "डैड......! यहां पर मैं शरण्या मॉम के घर पर हूं। यहां उनके नाम से पूजा चल रही है और नानू शरण्या मॉम की सारी चीजें दान करने जा रहे हैं।"


    रूद्र ने जैसे ही सुना उसे सारी बात समझ में आ गई। आखिर क्यों उसके मां पापा उसे कुछ नहीं बता रहे थे! इसका मतलब आज शरण्या की बरसी थी और इस बारे में किसी ने भी उसे नहीं बताया। यहां तक कि विहान ने भी नहीं। रूद्र ने कुछ देर सोचा और फिर अपना लैपटॉप बंद करके साइड कर दिया। 


    मौली को बस रूद्र के आने का इंतजार था। शरण्या की तस्वीर के आगे दीया जल रहा था और पंडित जी हवन करवा रहे थे। मौली की नजर बार-बार दरवाजे की तरफ जाती और फिर वापस लौट आती। वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर रूद्र के आने तक वो इस हवनको पूरा होने से कैसे रोके! उसने एकदम से पेट दर्द का बहाना बनाया। 


     शिखा जी घबरा गई और मौली को थामते हुए बोली, "क्या हुआ बेटा सब ठीक तो है? सुबह आपने नाश्ता तो किया ना फिर पेट में दर्द क्यों हो रहा है?"


    मौली ने कहा, "पता नहीं दादी! लेकिन बहुत ज्यादा दर्द हो रहा है!" कहकर वो जोर से चिल्लाने लगी।


   धनराज जी बोले, "पूजा में विघ्न डालना सही नहीं होता। एक काम करते हैं, मैं मौली को लेकर हॉस्पिटल जा रहा हूं। आप लोग यहीं रुकिये।"


    मौली को अपना नाटक उल्टा पड़ता नजर आया तो उसने कहा, "दादू! मुझे हॉस्पिटल नहीं जाना। डैड कभी मुझे हॉस्पिटल लेकर नहीं जाते थे। उल्टा वो तो पूरा हॉस्पिटल को ही घर बुला लेते थे। मुझे वहां का माहौल पसंद नहीं आता। प्लीज दादू! डॉक्टर को यहीं बुला लेते हैं ना।"


     धनराज जी को ध्यान आया कि रूद्र को कभी भी हॉस्पिटल का माहौल पसंद नहीं आया था। इसलिए उन्होंने मौली को वहीं सोफे पर लिटाया और डॉक्टर को फोन किया। डॉक्टर को आने में थोड़ा वक्त लगता तब तक शिखा जी मौली का पेट सहला रही थी और कुछ घरेलू दवाई उसे खिलाया। मौली को अपना सारा प्लान फेल होता हुआ नजर आया क्योंकि हवन अभी भी रुका नहीं था। मौली ने अपनी आंखें बंद कर ली उससे यह सब कुछ देखा नहीं जा रहा था। उस पर से भी हवन के बाद उसकी शरण्या मॉम की सारी चीजें दान करने वाले थे।


     पूर्णाहुति का समय हो चुका था। पंडित जी ने जैसे ही ललित को पूर्णाहुति के लिए कहा, उसी वक्त किसी ने हवन कुंड में पानी डाल दिया। मिस्टर रॉय पूरी तरह से चौक गए। उन्होंने अपनी नजर उठाकर देखा तो सामने रूद्र को खड़ा पाया। सारे लोग रूद्र को वहां मौजूद देख हैरान भी ते और परेशान भी। आखिर रूद्र ने हवनकुंड में पानी डाल कर पूजा को पूरा होने से रोक दिया और यह पूजा अधूरी रह गई। आखिर रूद्र करना क्या चाहता था? नेहा ने जब रुद्र की ये हरकत देखी तब उससे बहुत अच्छा लगा।