Chapter 2
मेरे हमसफर 2
Chapter 2अचानक से अवनि की चीख सुनकर सारांश घबरा गया और हड़बड़ा कर उठते हुए बोला, "क्या हुआ? मैंने जोर से कर दिया क्या? मैं तो बस प्यार से सहला रहा था।" अवनि एक बार फिर चीख पड़ी और उसके बाद अपने दर्द को बर्दाश्त करते हुए बोली, "कमर में बहुत ज्यादा दर्द हो रहा है। प्लीज कुछ करो! मुझ से ये बर्दाश्त नहीं हो रहा आ......ह!“ सारांश धीरे से उसकी कमर सहलाते हुए बोला, "मैं कोई दवाई लेकर आता हूं, शायद उससे कमर दर्द में आराम मिले!" सारांश उठा और जल्दी से बाम लेकर अवनि की कमर में धीरे धीरे मसाज करने लगा लेकिन इससे अवनि का कमर दर्द कम होने की बजाय और भी ज्यादा बढ़ गया। सारांश खुद एक डॉक्टर था लेकिन अपनी पत्नी को इस हालत में देखकर उसका दिमाग काम करना बंद कर चुका था। बात सिर्फ अवनि कि नहीं बल्कि उनके दोनों बच्चों की भी थी। ऐसे में उसे किसी तरह की कोई दवाई नहीं दे सकता था। अचानक से उसे ख्याल आया कि अवनि के दिन पूरे हो चुके थे। कही ये लेबर पेन तो नहीं? यह सोचकर उसने अवनि से पूछा, "तुम्हारे पेट में दर्द तो नहीं हो रहा?" अवनि ने अपने दोनों होंठ आपस में कसकर दबा रखे थे। उसने बस ना में सर हिला दिया। सारांश को समझ नहीं आया कि ऐसी हालत में वो क्या करें ।जब सिचुएशन उस से कंट्रोल नहीं हुआ तो अवनि को वहीं छोड़कर कमरे से निकला और नीचे की तरफ भागा जिससे सीढ़ियों से लेकर नीचे पूरे हॉल तक सारी लाइट जल गई। उसने सिया के कमरे का दरवाजा खटखटाया। सिया काफी गहरी नींद में थी। दरवाजे पर हुई दस्तक से वह चौक गई और हड़बड़ा कर उठी। उन्होंने आवाज् लगाया, "कौन है वहां?" सारांश घबराई आवाज में बोला, "मॉम मैं हूं। जल्दी दरवाजा खोलिए।" सिया सारांश भी ऐसी आवाज सुनकर घबरा गई और जल्दी से दरवाजा खोला। सारांश भी बुरी तरह से घबराया हुआ था। सिया के कुछ पूछने से पहले ही सारांश बोला, "अवनि की कमर में बहुत ज्यादा दर्द हो रहा है। लेकिन सिर्फ कमर में। मैंने बाम लगाया लेकिन उसका कोई असर नहीं हो रहा।" सिया बोली, "उसके दिन पूरे हो चुके हैं। इस टाइम दर्द का मतलब यह भी हो सकता है कि लेबर पेन हो!" सारांश बोला, "लेकिन मॉम! उसके सिर्फ कमर में दर्द हो रहा है। ऐसे में से लेबर पेन कैसे कह सकते हैं?" सिया उसके सर पर मारते हुए कमरे से बाहर निकली और सारांश के कमरे की तरफ बढ़ते हुए बोली, "लेबर पेन हर किसी को एक जैसे नहीं आते। किसी को पेट में दर्द होता है तो किसी को सिर्फ कमर में। या फिर यह एक झूठा दर्द भी हो सकता है। लेकिन हम रिस्क नहीं ले सकते। हमें अभी इसी वक्त अवनी को हॉस्पिटल लेकर जाना होगा।" सिया कमरे में पहुंचकर अवनि के पास गई तो देखा वो अपना दर्द बड़ी मुश्किल से बर्दाश्त कर पा रही थी। उन्होंने अवनि सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "घबराओ मत बच्चे! सब ठीक हो जाएगा। हम अभी इसी वक्त हॉस्पिटल जा रहे हैं। देखना, भगवान ने अगर चाहा तो आज ही खुशखबरी भी मिल जाएगी। तुम हिम्मत से काम लो।" फिर वह सारांश से बोली, "मैं जाकर गाड़ी निकालती हूं, तुम अवनी को लेकर बाहर आओ।" सिया उठने को हुई लेकिन अवनी ने उनका हाथ पकड़ लिया। जिसका साफ मतलब था कि इस वक्त उसे एक मां की ज्यादा जरूरत थी। सिया ने अवनि के बाल खोल दिए और प्यार से उन्हें सहलाते हुए बोली, "सारांश तुम जाकर सिड को बोलो वह गाड़ी निकाल देगा। इतनी रात को किसी ड्राइवर को डिस्टर्ब करना सही नहीं होगा।" सारांश भागता हुआ अपने भाई के कमरे के बाहर पहुंचा और दरवाजा नॉक करने लगा। अभी कुछ देर पहले ही सिद्धार्थ की आंख लगी थी। एक बार फिर उसके दरवाजे पर हुई दस्तक से वह चिढ़ गया और मन ही मन बोला, "इस लड़के को चैन नहीं है। बाप बनने जा रहा है लेकिन बचपना खत्म नहीं हुआ इसका।" सिद्धार्थ उठा और दरवाजा खोल कर बोला, क्सअब क्या चाहिए?" सारांश बोला, "अवनि को हॉस्पिटल लेकर जाना है। मॉम ने कहा आपको गाड़ी निकालने के लिए, मैं उसे लेकर आता हूं।" सिद्धार्थ जल्दी से बोला, "तु अवनी को तैयार कर ले आ तबतक मैं गाड़ी निकालता हूं।" सारांश अपने कमरे में वापस चला गया। सिद्धार्थ ने नाइट सूट पहन रखा था और फिलहाल कपड़े चेंज करने का बिल्कुल भी टाइम नहीं था। उसने प्यार से श्यामा के माथे को चूमा और शिविका के चेहरे को छुआ, फिर वहां से बिना कोई आवाज किए दरवाजा बंद कर बाहर निकल गया। जितनी देर में सिद्धार्थ गाड़ी लेकर दरवाजे तक पहुंचा सारांश अवनी को लेकर सिया के साथ बाहर आ चुका था। सारांश ने अवनी को गोद में उठाया और पिछली सीट पर उसी तरह बैठ गया ताकि ऐसी हालत में वह अवनी के कमर पर मसाज कर सके। दूसरों की सर्जरी करने वाला इंसान आज अपनी पत्नी की इस हालत को देखकर बुरी तरह घबरा गया था। यह बात थोड़ी मजाकिया तो थी लेकिन इस वक्त जो हालात थे उसमें सिद्धार्थ को किसी भी तरह का कुछ कहना सही नहीं लगा। सिया आगे बैठे बार-बार पीछे अवनी की तरफ देखे जा रही थी और सिद्धार्थ जितना तेज हो सके उतनी तेज गाड़ी चला रहा था।" सारांश ने हॉस्पिटल फोन कर अपने आने की खबर दे दी थी इसलिए हॉस्पिटल में भी इस वक्त अफरातफरी का माहौल था। प्राइवेट वार्ड से लेकर ऑपरेशन थिएटर तक सबकुछ उनके आने तक बिल्कुल तैयार था। गाड़ी हॉस्पिटल के बाहर आते ही एक वार्डबॉय अवनी के लिए व्हीलचेयर लेकर भागता हुआ आया लेकिन सारांश ने मना कर दिया और अवनी को वैसे ही अपने गोद में लिए हॉस्पिटल के अंदर चला आया। आनन-फानन में अवनी को एडमिट किया गया और कुछ पेपर्स सारांश के हाथ में पकड़ा दिए गए। सारांश बोला, "इसकी क्या जरूरत है? हॉस्पिटल मेरा है और मुझे इन सब फॉर्मेलिटी की जरूरत नहीं।" सिद्धार्थ उसके कंधे पर हाथ रख कर बोला, "सारांश यह लोग सही कह रहे हैं। नियम सबके लिए एक बराबर होते हैं फिर चाहे यहां का कोई मरीज हो या फिर कोई मालिक। ये सारे नियम हमने नहीं सरकार ने बनाए हैं। इसे हर किसी को फॉलो करना होगा।" सारांश ने भी अपने भाई की बात मानते हुए जितने भी पेपर थे सारे जमा करा दिया। अवनि को ऑपरेशन थिएटर ले जाया गया। उसके अंदर जाते ही डॉक्टर सारांश से बोली, "आपकी वाइफ को लेबर पेन हो रहा था और आपको पता भी नहीं चला, कैसे डॉक्टर हैं आप?" सारांश को समझ नहीं आया कि वह बोले तो क्या बोले। आफ्टर ऑल उसे इस सब का कोई एक्सपीरियंस नहीं था। वह बोला, "मैं कोई गायनोकोलॉजिस्ट नहीं हूं। मुझे कैसे पता होगा और वैसे भी यह मेरा पहला एक्सपीरियंस है।" वह डॉक्टर जो कभी सारांश से नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं पाती थी उसने सारांश को बुरी तरह डांट दिया था। इस पर सारांश ने मासूम सी शक्ल बना रखी थी। उस डॉक्टर को यकीन नहीं हुआ, हमेशा इतना स्ट्रिक्ट और खडूस सा बनकर रहने वाला इंसान असल में ऐसा भी है। वैसे यह बात हर किसी को पता थी कि सारांश मित्तल अपनी पत्नी से कितना प्यार करता है। डॉक्टर अवनि की नार्मल डिलीवरी करवाने में लगी हुई थी। सिजेरियन को जितना हो सके उतना अवॉइड करने की कोशिश कर रही थी। लेकिन सारांश और पूरी फैमिली की तरफ से उन्हें यह छूट थी कि अगर नॉर्मल में थोड़ी भी दिक्कत हो तो सिजेरियन से उन्हें कोई एतराज नहीं है। यहां बात तीन तीन जिंदगियों की थी। सारांश बेचैनी से इधर-उधर चक्कर काट रहा था लेकिन अंदर से कहीं कोई खबर नहीं आ रही थी। रात से सुबह हो चुकी थी लेकिन सारांश को अभी तक बच्चे की रोने की आवाज नहीं सुनाई थी। अवनी अभी भी दर्द में चीख रही थी। जब बर्दास्त नहीं हुआ तो सारांश अंदर गया और बोला, "डॉक्टर अगर इतना टाइम लग रहा है तो हो सकता है कि कोई कॉम्प्लीकेशन हो। आप सीजेरियन क्यों नहीं करती?" डॉक्टर बोली, "अब क्या यह भी मुझे आपको बताना पड़ेगा? पहली डिलिवरी में किसी को भी टाइम लगता हैस्। कुछ औरतें जब पहली बार मां बनती है तो उन्हें 12 से 14 घंटे तक की लेबर पेन बर्दाश्त करनी पड़ती है। आपकी पत्नी जुड़वा बच्चों को जन्म देने वाली है तो ऐसे में थोड़ा दर्द उन्हें बर्दाश्त करना होगा।" अवनी की चीख सुनकर सारांश उसका दिल बैठा जा रहा था। उसने बेबसी से अवनि की तरफ देखा जिसका चेहरा पीला पड़ चुका था और वो पूरी तरह पसीने से नहा चुकी थी। उसने धीरे से अवनी का हाथ पकड़ा और कहा, "मैं हूं यही तुम्हारे पास।"