Chapter 18
humsafar 18
Chapter
18
तरुण और सारांश एक दूसरे के आमने सामने खड़े थे मानो एक दूसरे को चैलेंज कर रहे हो और जहाँ दोनो मे से कोई पीछे हटना नही चाहता हो। सारांश की आँखो का पैनापन तरुण को यह समझाने के लिए काफी थी की वो उसके बारे मे सब जानता है और उसके इरादों को भी। सारांश हल्के से हँसा और अपने चारों ओर नजर घुमा कर सारा डेकोरेशन का अच्छे से मुआयना किया।
"तरुण माथुर!!! माँ बाप की इकलौती औलाद होने के बावज़ूद अपना फैमिली बिजनेस संभालने की बजाय ये छोटा मोटा इवेंट मैनेजर बनकर क्यों घूम रहे हो??? माना तुम्हारा फैमिली बिजनेस ज्यादा बड़ा नही है फिर भी अस्सी करोड़ का टर्नओवर तो देती ही है जो की किसी भी मिडल क्लास के लिए बहुत बड़ी बात है। फिर भी एसी वाले केबिन मे आराम से बैठ कर काम करने की बजाय तुमने ऐसे प्रोफ़ेसन को चुना जहाँ तुम्हे ज्यादा से ज्यादा मेहनत ही नही साथ मे काफी सारी परेशानियों का भी समना करना पड़ता है; क्यों??? किसी की तलाश कर रहे हो!!!"
सारांश का ऑरा उस समय काफी खतरनाक और कठोर हो गया था। उस समय उसकी ठंडी आँखे किसी को भी खड़े खड़े पल भर मे जमाने को काफी थी। लेकिन इस सब के बावज़ूद तरुण ना सिर्फ वहाँ खड़ा रहा बल्कि उसकी आँखों मे देख कर बिल्कुल भी नही घबरा रहा था। तरुण ने उसकी आँखों मे आँखे डाल कर देखा और कहा, " किस्मत जो लिखा है वो तो हो कर ही रहेगा। अगर किस्मत ने हमें अलग किया है तो वही हमें मिलायेगी भी फिर चाहे कोई कुछ भी करले। मेरी समझ मे तो ये नही आ रहा की आपको इतनी तकलीफ क्यों हो रही है।"
तरुण की बात सुन सारांश हँसने लगा। उसकी वो हँसी उसको और ज्यादा खतरनाक बना रहा था। "तरुण! तरुण!! तरुण!!! तुमने मुझे ठीक से पहचाना नही, कोई बात नही, अपने पापा को फोन लगाओ और उन्ही से पूछ लो मेरे बारे मे। तुम्हारी जानकारी के लिए मै बता दूँ, अगर तुम्हे किस्मत का साथ चाहिए तो कभी मेरे रास्ते मे मत आना, क्योंकि किसी की किस्मत बनाना और मिटाना कोई बड़ी बात नही है मेरे लिए
जिस घर की ज़मीन पर खड़े होकर तुम मुझे चैलेंज कर रहे हो न, उस घर के बाहर खड़े होने की भी तुम्हारी औकात नही। तुमने सुना ही होगा, बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है तो तुम अपनी फैमिली की चिंता क्यो नही करते!!
अब इसी घर को देख लो! इस वक़्त इस छत के नीचे तीन परिवार है जिनका कही से भी कोई खून का रिश्ता नही है फिर भी वो सब मेरा परिवार है। और अगर किसी ने मेरे परिवार पर आँख उठाकर देखा तो वो कभी कुछ देखने लायक नही बचेगा, तुम सिर्फ अपने काम पर ध्यान दो और चलते बनो।" सारांश ने मेरे परीवार पर कुछ ज्यादा ही जोर देकर कहा और उसके काँधे को थपथपाकर वहाँ से चला गया। तरुण ने भींगी निगाहें आसमान की ओर उठाकर तारों को देखा, "वो मेरा प्यार है!! दस साल का इंतज़ार युं ही बेकार नही जाने दूँगा मैं।"
खाने के वक़्त घर मे सभी मौजूद थे सिवाय अवनि के। सिया ने पूछा तो काव्या ने बताया की उसके सर मे तेज दर्द है इसीलिए सो रही है और बाद मे खाना खा लेगी। सारांश ने सुना तो उस बुरा लगा की शायद उसकी हरकत के कारण दुःखी है और परेशान भी।
श्रेया सारांश के करीब आने के लिए सिया से कुछ ज्यादा ही अपनापन दिखा रही थी। वह सिया को अपने हाथों से खाना परोस रही थी जिसे देख चित्रा जो पहले ही श्रेया से खार खाये बैठी थी, अपना बदला लेने के लिए मौका तलाशने लगी। श्रेया ने जैसे ही अपना ग्लास भरने के लिए पानी का जग उठाया, चित्रा ने वही रखा सब्जी का बोल् उठाया जिससे श्रेया के हाथ को नीचे से धक्का लगा और जग का सारा पानी श्रेया के ऊपर जा गिरा। चित्रा ने भी वैसे ही माफी माँगी जैसे श्रेया ने मांगी थी तो वह समझ गयी और अपना गुस्सा अपने अंदर दबाये कपड़े बदलने चली गयी।
सब ने खाना खाया और अपने अपने कमरे मे चले गए। सारांश अपने कमरे मे लैपटॉप लेकर बैठा था मगर सारा ध्यान अवनि पर था। कार्तिक ने दोनो हाथो मे कॉफी मग लिए दरवाजे पर नॉक किया मगर कोई जवाब नही मिला। उसने फिर से नॉक किया तब जाकर सारांश होश मे आया।
" तुझे कबसे नॉक करने की जरूरत पड़ गयी मेरे भाई!"
"जब से तुम सिंगल नही रहे... " कार्तिक ने कहा। "क्या हुआ! अवनि के बारे मे सोच रहे हो! ठीक है वो, बस थोड़ा सर दर्द है। मै गया था देखने"
"मै सर दर्द से नही सर दर्द की वजह से परेशान हु" सारांश ने कॉफी का सीप लेकर कहा।
" मतलब? तु उसके सर दर्द की वजह जानता है!!" कार्तिक ने पूछा
"हम्म्......!!!शायद आज मैंने अपनी लिमिट क्रॉस कर दी" सारांश ने दबी आवाज़ मे कहा।
कार्तिक के मुह मे भरा कॉफी फव्वारे के साथ बाहर निकला, "व्हाट....!!!! क्या किया तुमने?" कार्तिक शरारत से मुस्कुराया। सारांश ने सोफे पर पड़ा कुशन उसको दे मारा , "अपने इमेजिनेसन के घोड़े को लगाम लगा, कुछ ज्यादा ही उछल रहा है।" फिर उसने ढके छुपे शब्दो मे कार्तिक को सारी बात बता दी। कार्तिक भी थोड़ी देर सोच मे पड़ गया।
"जब दर्द तुमने दिया है तो इलाज भी तुम्हे ही करना होगा। अब ये आप सोचिये मिस्टर मित्तल की आपको करना क्या है" कार्तिक अपना कॉफी खत्म करते हुए कहा। "यहाँ तुम अवनि के लिए खुद से लड़ रहे हो और वहाँ तुम्हारे लिए दो बिल्लियाँ आपस मे लड़ रही है।"
" बिल्लियाँ!!! किचन मे दूध का पतिला रह गया है क्या?" सारांश ने हैरानी से पूछा।
"दूध का पतिला तो मेरे सामने है" कार्तिक ने व्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा जिसे देख सारांश समझ गया की वो श्रेया और चित्रा की बात कर रहा है। " दो बिल्लियों के झगड़े मे ब्रेड का टुकडा कोई और ले जाता है" सारांश की बात सुन कार्तिक भी हँस दिया और दोनो का मग लेकर वापस चला गया।
श्रेया को नींद नही आ रही थी। देखा कमरे मे पानी नही था इसीलिए वह पानी लेने किचन मे गयी । तभी उसकी नज़र सारांश पर गयी जो किचन मे था। श्रेया को बहाना मिल गया उसके साथ वक़्त बिताने का। वह श्रेया की तरफ पीठ करके खड़ा कैबिनेट मे कुछ ढूंढ रहा था। "तुम्हारा मुझे घूरना हो गया हो तो अदरक ढूँढने मे मेरी हेल्प करो।" सारांश ने बिना पलटे ही कहा।
"आप के पीछे भी आँखे है क्या?" श्रेया ने पूछा।
"नही...! मगर जहाँ हमारी आँखे नही देख पाती वहाँ हमारा सिक्स्थ सेंस हमें आसपास के खतरों से हमें आगाह करते है।" सारांश ने बिना उसकी ओर देखे कहा।
"वॉउ...! सिक्स्थ सेंस...! अदरक......!" श्रेया ने अदरक सारांश की ओर बढ़ा दिया। सारांश ने अदरक के साथ कुछ और मसालों को कूटकर चाय तैयार की और उसकी ओर बढाकर कहा, "ये चाय अवनि को दे देना। उसका सर दर्द ठीक हो जायेगा।"
श्रेया ने शक़ भरी नज़रों से उसे घूरा तो वह अपनी सफाई देते हुए कहा, "वो क्या है न, मॉम ने कहा था मुझे चाय बनाने को। उनको जब भी सर दर्द होता है तो मै ही उनके लिए चाय बनाता हु, इसीलिए... " यह सुन श्रेया थोड़ा कंवेंस हो गयी और चाय लेकर चली गयी। सारांश ने गहरी साँस ली और अपने कमरे मे चला गया।
क्रमश: