Chapter 76
सुन मेरे हमसफ़र 69
Chapter
69
सारांश ने प्यार से अवनी के चेहरे को छुआ और मन ही मन बोला "सॉरी! मैं बस थोड़ा नाराज हो गया था तुमसे। तुम्हें हर्ट करने का मेरा कोई इरादा नहीं था, और ना ही मैं ऐसा कर सकता हूं। बस तुम किसी और का नाम मत लो। एटलिस्ट, उसका तो बिल्कुल नहीं। इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। तुम्हें तो पता भी नहीं कि जिसके बारे में तुम बात कर रही थी, उसके दिल में तुम्हारे लिए क्या फीलिंग थी। बड़ी मुश्किल से तुम्हे सब से छुपा कर रखा है मैंने, अपने पास।"
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अव्यांश निशी को लेकर अपने कमरे में पहुंचा और उसे आराम से बिस्तर पर सुला दिया। निशी सोते हुए बहुत मासूम लग रही थी। अव्यांश उसके चेहरे की तरफ झुका और उसे देखते हुए बोला "बहुत मासूम दिखती हो तुम, लेकिन उतनी हो नहीं। आज पूरे घर वालों के सामने मेरी पिटाई हो जानी थी। मैं तो बस तुम्हें चिढ़ाने के लिए ये सब कर रहा था। मुझे क्या पता तुम इतनी बड़ी पियक्कड़ निकलोगी। सही कहा तुमने, मैंने बिल्कुल भी उम्मीद नहीं की थी। मिश्रा जी को, आई मीन पापा को अगर पता चला तो पता नहीं क्या सोचेंगे! लेकिन चलो जो भी हुआ, अच्छा ही हुआ। तुम्हारे मन में जो कुछ भी था, आज निकल कर बाहर तो आया। वरना ना जाने कब तक तुम इस बात को अपने अंदर दबाकर रखती। डैड कहते हैं, हमें अपने दिल की बात अपने दिल में नहीं छुपानी चाहिए। कोई ना कोई ऐसा जरूर होना चाहिए जिससे हम खुलकर कुछ भी कह सके। मुझे अच्छा लगा कि तुम ने मुझसे इतनी सारी बातें की। बस कुछ अच्छा नहीं लगा तो वो............"
अव्यांश अपनी बात पूरी नहीं कर पाया। उस पल को याद कर अव्यांश के चेहरे पर नाराजगी साफ नजर आ रही थी। अगर इस वक्त निशी उसे ऐसे देख लेती तो जरूर बुरा, नहीं! बहुत बुरा फील करती। अव्यांश ने निशी के ऊपर कंबल डाला और जाकर उसके बगल में लेट गया। पहले तो निशी की तरफ पीठ करके सोया, लेकिन उसकी नाराजगी इतनी ज्यादा थी कि वह निशी की तरफ पलटा और कसकर उसे अपनी बाहों में खींच लिया।
"आज के बाद तुम्हें मेरी इतनी आदत हो जाएगी कि तुम सिर्फ मेरा नाम लोगी, किसी और का नहीं। अभी तुम बेहोश हो। अगर होश में होती तो बताता मैं तुम्हे। लेकिन मैं तुम्हें ऐसे ही नहीं छोड़ने वाला। तुम चिंता मत करो, इस बात की सजा तुम्हें जरूर मिलेगी।" अव्यांश निशी की खुशबू अपनी सांसों में भरते हुए कब से हो गया उसे पता ही नहीं चला।
सुबह के 7:00 बजे थे जब सारांश ने अव्यांश के कमरे का दरवाजे पर नॉक किया। निशी अभी भी नींद में थी और अव्यांश तो कुछ टाइम पहले ही सोया था इसलिए वह इस वक्त गहरी नींद में था, जिस कारण उसे दरवाजे पर हुई दस्तक सुनाई नहीं दी। निशी ने दरवाजे पर जब दोबारा दस्तक सुनी तो दरवाजा खोलने के लिए उठने को हुई लेकिन अव्यांश की पकड़ खुद पर महसूस कर वह चौंक गई।
निशी ने पलट कर पीछे अव्यांश के चेहरे की तरफ देखा। सोते हुए उसके चेहरे से जो मासूमियत टपक रही थी, निशी तो बस उसे देखती ही रह गई। सारांश ने फिर आवाज लगाई "अंशु....! अंशु!! उठ जा बहुत काम है। आज तुझे छुट्टी नहीं मिल सकती।"
सारांश की आवाज सुनकर निशी हड़बड़ा गई और अव्यांश को उठाते हुए बोली "अव्यांश! उठा जाओ!! पापा बुला रहे हैं। अव्यांश.......!"
लेकिन अव्यांश कहां सुनने वाला था। उसने निशी को और कस कर अपनी बाहों में जकड़ लिया और बोला "थोड़ी देर और सोने दो ना यार! आज मेरा उठने का बिल्कुल मन नहीं है।"
इतने में एक बार फिर निशि को सारांश की आवाज सुनाई थी तो उसने जवाब दिया "पापा! बस थोड़ी देर।"
निशी का जवाब सुनकर सारांश वहां से वापस लौट गया। लेकिन अंशु उसे छोड़ने को तैयार नहीं था। इस बार निशी को जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो उसने अव्यांश के कॉलर बोन पर अपने दांत गड़ा दिए। नींद में अव्यांश दर्द से चिल्ला उठा "आ......... ह! क्या कर रही हो? सुबह-सुबह नॉनवेज खाने का मन कर रहा है क्या? देखो, यहां घर में नॉनवेज अलाउड नहीं है।"
निशी बिस्तर पर उठ कर बैठ गई और बोली "मुझे भी कोई शौक नहीं है। आई प्योर वेजीटेरियन। अब उठो और बाहर निकलो। पापा कब से आवाज दे रहे थे तुम्हें।"
अव्यांश सोच में पड़ गया "पापा? इतनी सुबह! लेकिन वह मुझे? ओह शीट!!! आज दिन कौन सा है?"
निशी सोचकर बोली "शनिवार है।"
अव्यांश जल्दी से बिस्तर से उठा और बोला "कम से कम आज के दिन तो डैड मुझे छोड़ देते। घर में बाकी सब तो है ही। मेरा होना जरूरी तो नहीं है, लेकिन इनको कौन समझाए! 1 मिनट!! डैड को कैसे पता चला कि मैं घर पर हूं? ओ नो! मेरे फोन का जीपीएस!! मतलब प्राइवेसी नाम की कोई चीज नहीं है मेरी लाइफ में।" अव्यांश पैर पटकते हुए बाथरूम में घुस गया।
निशी वही बेड पर बैठी अव्यांश के बातों का मतलब समझने की कोशिश कर रही थी। नींद बहुत आ रही थी उसे। वह सोने के लिए वापस बिस्तर पर लेट गई लेकिन टाइम देख कर उस से सोया नहीं गया। "क्या कर रही है तू? यह तेरा ससुराल है, मायका नहीं जहां तु देर तक सोती रहेगी। और ये सिरदर्द!" मन मार कर अपना सिर पकड़े निशी बिस्तर से उठी और बालकनी में चली गई।
सुबह की ताजी ठंडी हवाएं उसके चेहरे को छू रही थी जिससे उसके सिरदर्द को थोड़ी राहत मिल रही थी। निशी ने अपनी दोनों बाहें फैलाई और फिर खुद को ही अपनी बाहों में भर लिया। उसके चेहरे पर अजीब सी संतुष्टि नजर आ रही थी।
अव्यांश बाथरूम से बाहर निकला। टॉवल से अपना चेहरा पोछते हुए उसकी नजर बालकनी में खड़ी निशी पर गई। वह भी कुछ देर उसके साथ खड़ा रहना चाहता था लेकिन कल रात की बात याद आते ही उसका मन नाराजगी से भर गया। उसे अपनी नाराजगी निशी पर जाहिर करनी थी इसलिए उसने टॉवल बिस्तर पर फेंका और निशी को कुछ भी कहे बिना बाहर निकल गया। बाहर निकलते हुए भी उसने दरवाजा इतनी जोर से बंद किया कि निसी का ध्यान उस तरफ चला गया। वह भी सोच में पड़ गई कि आखिर हुआ क्या है। लेकिन इतना उसके पास टाइम नहीं था, सो वो भी जल्दी से बाथरूम में घुस गई। जाने से पहले उसने अव्यांश का फेंका हुआ टॉवेल बिस्तर पर से उठाकर बालकनी में डाल दिया।