Chapter 25
humsafar 25
Chapter
25
शाम को शोर सराबे की वजह से सिर्फ हल्का फुल्का संगीत की कार्यक्रम रखा गया जिस पर सिर्फ घर की लेडीज का ही कब्जा था। सिया मिट्टी के छोटे छोटे मटको मे पाँच पाँच चाँदी के सिक्के डालकर उन्हे पैक रही थी। वहीं चित्रा सिया की मदद करने मे लगी थी। धानी कल शादी के जरूरी इंतज़ाम करने मे लगी थी और कंचन अखिल के पास बैठी उन्हे आज के बारे मे बता रही थी।
अवनि अखिल के कमरे मे आई और उसने अपनी माँ को इमोशनल देख उन्हे हँसाने की कोशिश करने लगी तभी कंचन ने कहा, "सारांश एक बहुत ही अच्छा इंसान है जो सिर्फ अपने परिवार की ही नही बल्कि सब की परवाह करता है। अगर उस दिन वो नही होता तो....... पता नही वो कौन खुशनसीब होगी जिसे सारांश अपने लिए चुनेगा! वो जरूर सबसे खास होगी। काश सारांश की तरह ही हमारा बेटा भी.......!" कहते हुए अचानक ही रुक गयी, उसके चेहरे पर दर्द की लहर दौड़ गयी। अवनि जल्दी से अपनी माँ के गले लग गयी और उनका पीठ सहलाने लगी।
अवनि बाहर आई और उपर कमरे मे जाने लगी। उसकी नज़र हॉल के दूसरे ओर रखे मटको पर गयी जिन्हे चित्रा बड़े संभाल कर ले जा रही थी। अवनि भी हेल्प करने के लिए आगे आई और कुछ मटके उसने भी उठाए और चित्रा के पीछे चल दी। मटकें सच मे बहुत ही ज्यादा खूबसूरत थे, अवनि का मन हुआ की वह भी एक ले मगर उनमे रखे चाँदी के सिक्के देख वापस रख दिया। सिया बोली, "ये सब उन मेहमानों के लिए है जो शादी मे आयेंगे। वापसी मे उन्हे खाली हाथ नही भेज सकते न, और हमारे यहाँ कहते है की खाली बर्तन देना अशुभ होता है इसीलिए कुछ तो डालना ही था।"
"लेकिन जीजी!!! इतना खर्चा...... मतलब इतना सब जरूरी था क्या?" धानी थोड़ा हिचकते हुए बोली।
"क्यों? कार्तिक क्या सिर्फ तुम्हारा ही बेटा है, मेरा कुछ नही लगता वो? वो मेरा भी बेटा है और ये मेरे बेटे की शादी है। मै मेरे बेटे की शादी मे जितना चाहे खर्च करू तुम्हे उससे क्या?" सिया तुनक कर बोली।
धानी ने तुरंत अपने दोनो कान पकड़ लिए और बोली, "गलती हो गयी जीजी, अब से मै आप दोनो माँ बेटे के बीच मे नही आऊँगी, अब खुश!" धानी की बात सुन सभी हँस पड़े। सिया ने चित्रा और अवनि को सारा काम समझाया और धानी को लेकर किसी और काम के लिए चली गयी।
अवनि :- "एक बात पुछू चित्रा"
चित्रा :- " हाँ पूछो"
अवनि :- "सिया मैम जीजू और आंटी को अपनी फैमिली की तरह ट्रिट करते है न.......!" अवनि आगे का पूछ नही पायी मगर चित्रा समझ गयी की अवनि के दिमाग मे क्या चल रहा है। वह बोली, "सारांश और कार्तिक, दोनो के पापा नही है कार्तिक के पापा अंकल के लिए काम करते थे। फिर अचानक ही उन दोनो की डेथ.... कभी समझ नही आया और हमने कभी पूछा भी नही। काफी छोटे थे हम सब उस वक़्त। सिया आंटी ने तो काफी सालों तक कार्तिक और उसकी मॉम को अपने घर मे रखकर उनकी देखभाल भी की है। इतना तो अपने सगे बेटे से प्यार नही करती जितना वो कार्तिक से करती है। सारांश को भी एक दोस्त मिल गया था जिसके साथ वह पूरी मस्ती करता था। वो तो हमारी दोस्ती बचपन मे हो गयी थी वरना उन दोनो का मेरे अलावा कोई और दोस्त भी नही है।
किसी ने भी उन दोनो को उनकी हैसियत का कभी एहसास नही होने दिया। कार्तिक को तो पता भी नही था की सिया आंटी असल मे है कौन। उसके लिए तो हमेशा से ही उसकी बड़ी माँ रही है जो उसकी हर फरमाइश पूरी करती थी। बड़े होने पर अचानक ही सारांश सब कुछ छोड़ कर मेडिकल की पढाई के लिए अब्रॉड चला गया और कार्तिक यहाँ मैनेजमेंट की तैयारी मे लग गया। सिया आंटी उसे भी सारांश के साथ ही भेजना चाहती थी मगर उसने ही मना कर दिया। फिर दोनो ने मिलकर एक साथ एक अलग कंपनी खोली। लेकिन इन सब मे एक बात मुझे बड़ी अजीब लगी......... "
इससे पहले चित्रा अपनी बात पूरी करती, धानी दोनो को खाने के लिए बुलाने आई और दोनो अपना काम समेटकर उनके साथ चल दि।
अगले दिन सुबह सुबह अवनि ने ताज़े फूलों और पत्तियों से एक खूबसूरत बुके बनाया और अखिल के कमरे मे लगा दिया। अपने पापा को देख अवनि को अपनी माँ की बातें याद आई और उसे सारांश का ख्याल आया। सारांश कार्तिक और चित्रा सुबह सुबह जॉगिंग से वापस आये। चित्रा तो आज पूरे दिन कार्तिक को अकेले नही छोड़ने वाली थी, उसे कार्तिक को शादी तक काव्या से दूर रखना था जिस की जिम्मेदारी धानी ने उसे सौंपी थी।
चित्रा को अपनी पूँछ बना देख कार्तिक चिढ़ गया। उसने हर तरीके से उससे छुटकारा पाने की कोशिश की मगर नाकाम रहा। कार्तिक जितना झल्ला रहा था सारांश को उतना ही ये सब देख मज़ा आ रहा था। इधर उधर घूमने के बाद जब कार्तिक से और बर्दास्त नही हुआ तो वह अपने कमरे मे चला गया मगर चित्रा ने इतनी आसानी से पीछा नही छोड़ना था।
"तुम बाहर निकलो! अभी के अभी बाहर निकलो मेरे कमरे से" कार्तिक ने गुस्से मे कहा।
"सॉर्री...! लेकिन मुझे ये ड्यूटी दी गयी है की मै तुझ पर नज़र रखू।" चित्रा ने भी बेड पर पसरते हुए कहा।
"मुझे नहाना है"
"तो नहा न जा कर, मै कौन सा तुझे डिस्टर्ब कर रही हु!"
"मतलब तु नही जायेगी!"
"फिल्हाल तो कोई इरादा नही है"
"ठीक है!!! फिर चिल्लाना मत! " कहकर कार्तिक ने एक एक कर उस सामने ही कपड़े उतारने शुरु किये तो चित्रा घबरा गयी और चिल्लाने लगी, "बेशर्म!!! बेहया!!! क्या कर रहा है? यहाँ कपड़े क्यों उतार रहा है? तुझे शर्म नही आती एक लड़की के सामने कपड़े उतारते हुए?"
"लड़की!!! कौन लड़की!!! मुझे तो कोई लड़की नज़र नही आ रही।" कार्तिक ने भी बेशर्मी से कहा।
जब चित्रा ने देखा की कार्तिक पर उसके चिल्लाने का कोई असर नही हो रहा तो उसकी नज़र खुले हुए दरवाजे पर गयी और उसने भागने की सोची। लेकिन इससे पहले वह दरवाजे तक पहुँच पाती कार्तिक ने उसे पीछे से पकड़ लिया, "क्या हुआ, भाग कहा रही है? तेरी ड्यूटी का क्या होगा फिर?"
"छोड़ मुझे कम्मो! जाने दे वरना आज तेरी होने वाली बीवी तुझे छोड़कर भाग जायेगी। कम्मो मैंने कहा छोड़ मुझे! वरना मै चिल्लाऊँगी!!!" चित्रा ने कार्तिक के शिकन्ज़े से छुट्ने की पूरी कोशिश की मगर कार्तिक की पकड़ और मजबूत होती जा रही थी।
"ऐसे कैसे छोड़ दु मेरी जान!!! कब से मुझे परेशान किये जा रही थी! अब जाकर मौका मिला है, इतनी आसानी से मै नही छोड़ने वाला।" कार्तिक ने पीछे से कान मे कहा तो चित्रा के पूरे शरीर मे सिहरन सी दौड़ गयी।
"अब तु बदतमीज़ी कर रही है कम्मो! आंटी.........हेल्प.....बचाओ.......!!" चित्रा और जोर से चिल्लाई।
"अभी मैंने कुछ किया ही कहाँ है जो तु इतना चिल्ला रही है। तुझे ही मेरे साथ रहना था न। "
इधर सारांश अपने कमरे मे पहुँचा और नहाने के लिए अपना टी शर्ट उतारा और बाथरूम मे जाने लगा मगर तभी उसे लगा जैसे उसके कमरे मे कोई है। उसके कान खड़े हो गए मगर चारो ओर देखने पर कोई नज़र नही आया। तभी उसकी नज़र टेबल पर रखे फ्लावर वास पर गयी जिसमे ताज़े लाल गुलाब का इकेबाना लगा हुआ था। वह मुस्कुरा दिया और अपनी साँस रोक कर खडा हो गया। उसने थोड़ी देर अपनी आँखे बन्द की और धीरे धीरे अलमारी की ओर बढ़ा। थोड़ी देर रुक कर उसने एक गहरी साँस ली और एक ही झटके मे अलमारी खोल दी।
अवनि जो की अलमारी के अंदर दरवाजे से टेक लगाए बैठी थी अचानक से नीचे गिरी मगर सारांश ने संभाल लिया।
क्रमश: