Chapter 50

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humsafar 50

Chapter

50





   निक्षय की बात सुन चित्रा को समझ नही आया की वो क्या कहे। उसने कुछ कहना चाहा लेकिन उसे जैसे कोई शब्द ही नही मिल पा रहे थे। निक्षय के बातों का तोड़ उसके पास नही था। चित्रा जानती थी की निक्षय एक बहुत अच्छा इंसान है और एक बहुत अच्छा लाइफ पार्टनर भी साबित होगा लेकिन उसके दिल मे जो जगह थी वो तो पहले ही किसी और का हो चुका था। ऐसे मे निक्षय की बातें उसे सही नही लग रही थी। इस हिसाब से दोनों मे से किसी एक का दिल तो टूटना ही था और उसका दिल तो पहले ही टूटा हुआ था। 

     चित्रा बिना कुछ कहे वहाँ से निकल गयी और अपने कमरे मे चली आई। उसे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था। सामने से वह निक्षय को चाहें जितना परेशान करे या गालियाँ दे लेकिन उसकी इज़्ज़त भी करती थी। उसके बारे सोच सोच कर चित्रा परेशान हो उठी। उसने शावर लिया और अपने ख्यालों को दिमाग से झटक कर सो गयी। 


      अवनि और सारांश ने बाहर ही खाना खाया और देर रात घर वापस आये। अवनि गाड़ी से उतरी और सारांश गाड़ी को पार्क करने लगा। तबतक अवनि ने दरवाजे पर दस्तक दी। कुछ देर बाद लगभग उसकी ही उमर की एक लड़की ने दरवाजा खोला और इससे पहले अवनि कुछ कह पाती उस लड़की ने कहा, "हु यू? किससे मिटना है यू को?"

    "जी.........!"अवनि को उसकी बाते समझ मे नही आई। 

  " अरे इतना लेट नाइट यू कम तो कोई तो वर्क होगा न। बोलो किस से मिटना है यू को?" उस लड़की ने फिर कहा। अवनि का सिर चकरा गया की कही वह किसी दूसरे के घर मे तो नही घुस आई लेकिन यहाँ तो सारांश लेकर आया था तो गलत घर मे कैसे आ सकती है!!! उसने कुछ सोचकर कहा, "मॉम कहाँ है?"

  "लो जी! यू की मॉम को आई कैसे क्नो होगी जरा मुझे टेलना तो!" उस लड़की ने कहा जो अवनि के सिर के ऊपर से निकल गया। तभी पीछे से सारांश आया और बोला, "ये बोल रही है तुम्हारी मॉम को ये कैसे जानती है जरा बताना तो!" इस पर उस लड़की ने कहा, "ओके....! अब आई क्नो!!! तुम को इंग्लिश नही आती है न?"

     उसकी बात सुन अवनि और सारांश की हँसी छूट गयी। उस लड़की ने सारांश से पूछा, "सारांश ब्रो....! ये हु इज?" सारांश ने कहा, "अवनि....! योर भाभी इन लॉ।" ये सुन वो लड़की एक दम से चौक गयी और बड़ी बड़ी आँखों से उसे देखने लगी। सारांश ने अवनि से कहा, "ये रज्जो है! हमारी सबकी फेवरेट....! कुछ दिनों के लिए अपने गाँव गयी थी और शायद आज ही वापस आई है।"

     "दिस नॉट गुड ब्रो...... आई सम दे बाहर गो और यू ब्रिंग भाभी इन लॉ! आई के लिए!" रज्जो ने कहा जो फिर से अवनि को समझ नही आया। सारांश ने कहा, "ये बोल रही है की ये कुछ दिनों के बाहर क्या गयी! बिना कुछ बताये मैंने शादी कर ली।" इतने मे शोरगुल सुन कर सिया बाहर आई। वहाँ सारांश अवनि और रज्जो को आपस मे बाते करते देख अवनि की हालत समझ गयी। 

     सिया ने रज्जो को कहा, "रज्जो...... ! जा... जाकर किचन साफ कर ले और सो जा। और सुन...! जाने से पहले सब के कमरे मे पानी रखना मत भूलना।" सिया की बात सुन रज्जो ने सिर हिलाया और अवनि को देखकर बोली, "सॉर्री भाभी इन लॉ! वो मैंने आप को पहचाना नही! आई को फ़ॉर्गिव् कर दो।" अवनि इतना तो समझ गयी की रज्जो उससे माफी मांग रही है। उसने कहा, "कोई ने नही रज्जो जी, मैंने भी तो आपको नही पहचाना, तो इस हिसाब से आप भी मुझे फ़ॉर्गिव् कर दो और फॉर्गेट जाओ।"

      सारांश और सिया को अवनि की बात सुन हँसी आ गयी और जानकी हैरान रह गयी लेकिन रज्जो शरमा गयी। सारांश ने रज्जो के काँधे पर कोहनी टिका कर कहा, "क्या बात है रज्जो ब्रो....! तुमने तो आते ही अपनी भाभी इन लॉ को इंग्लिश सिखा दी।

   " आप भी न ब्रो....! ये तो मेरी भाभी इन लॉ ही कमाल की है वरना तो इंग्लिश सीखने मे लोगो को सालों लग जाते है। लेकिन कोई बात नही, मै इनको पूरी तरह से परफेक्ट बना दूँगी।" रज्जो ने भी शान से कहा तो उसकी बात पर सभी हँसने लगे। रज्जो को उन सब की हँसी का कारण समझ नही आया, वो बस किचन की और चली गयी। 

     "कैसी रही तुम दोनों की आउटिंग? इंजॉय किया न या फिर बोर कर दिया इस भोंदू ने!!!" सिया ने अवनि से पूछा लेकिन सारांश को चिढ़ाना नही भूली। 

     अपनी तारीफ सुन सारांश ने कहा, "मॉम!!! आपकी बहू को शॉपिंग नही पसंद, इसीलिए हम बस यूँ ही घूमने निकल गए थे। काफी थक गए, अब नींद आ रही है। कल ऑफिस भी तो जाना है न। ओके मॉम गुड नाइट !!!" कहकर सारांश तेजी से निकल गया इससे पहले की सिया उसका और मजाक बनाती। 

     जानकी और सिया भी अपने अपने कमरे मे चले गए। अवनि सिया के कमरे के बाहर खड़ी उसे देखे जा रही थी। जब सिया की नज़र अवनि पर गयी तो उसको अंदर बुला कर कहा, "तुम्हे मेरे कमरे मे आने के लिए किसी की परमिशन की जरूरत नही है बेटा! मै तुम्हारी मॉम हु और ये तुम्हारा भी घर है, तुम जब चाहें आ जा सकती हो। लेकिन तुम इस वक़्त यहाँ क्या कर रही हो? तुम्हारे पति का मन नही लगता तुम्हारे बिना। ऑफिस मे भी खोया खोया सा रहता है।"

    सिया ने कहा तो अवनि शरमा गयी। "वो मॉम! मै कुछ कहने आई थी........ वो मै चाहती थी की....मतलब हम सोच रहे थे की कल एक बार देवी माँ के दर्शन कर आए तो....! अगर आप कहे तो। शादी के बाद हम गए नही तो इसीलिए मैने.... हमने सोचा की.... " अवनि अपनी बात पूरी करती उससे पहले ही सिया ने बीच मे बात काटते हुए कहा, "की अपनी नई जिंदगी की शुरुवात करने से पहले उन का आशीर्वाद लेना चाहिए, है न!!!"

       अवनि ने कुछ नही कहा, बस अपनी गर्दन झुका ली तो सिया के उसका चेहरा ऊपर उठाकर कहा, "ये जो शर्म की लाली है न! ये बता रही है की तुम दोनों ही इस रिश्ते जमे बंधने को अब पूरी तरह से तैयार हो। मै बहुत खुश हु बेटा, जिन हालातो मे तुम दोनों का गठबंधन हुआ, उसके बाद भी तुम दोनों के बीच सब कुछ इतना अच्छा जा रहा है। ..........मेरे सारांश को तुम बस अब अपना बना लो। वो तुमसे बहुत ही ज्यादा प्यार करता है। अब जाओ वरना बेचैन हो रहा होगा वो। जल्दी जाओ!!!" 

   अवनि की नज़र दीवार पर टंगी एक तस्वीर पर गयी जिसमे सिया के साथ सारांश और एक शख्स था जो कुछ हद तक सारांश और सिया के जैसा ही दिखता था। अवनि ने अंदाज़ा लगाया " क्या ये ही सिद्धार्थ भैया है?" सिया ने मुस्कुरा कर कहा, "हाँ... . ! अब बस इसकी जिंदगी मे खुशियोँ का इंतज़ार है। खुशियाँ दरवाजे पर खड़ी हो मगर कोई जिंदगी के हर खिड़की दरवाजे को बन्द कर रखा हो कोई क्या कर सकता है। वरना शरद को क्या जवाब दूँगी!" 

    "ऐसा मत कहिये मॉम!!! देखना आप! हर किसी के लिए कोई न कोई जरूर होता है और मेरा दिल कहता है एक दिन जरूर उनकी लाइफ मे भी खुशियाँ आयेंगी और आप....आप तो सौ साल जियेंगी। वैसे अभी आप पैतीस की ही है न?।" अवनि नए आँखे मटका कर कहा तो सिया ने मुस्कुरा उसके गाल पर हल्की चपत लगा दी। 

     अवनि सिया के गले लगी और अपने कमरे मे चली आई। सारांश कमरे मे इधर उधर टहल रहा था। अवनि को देखते ही उसके पास आया और बोला, "कहाँ रह गयी थी? कब से इंतज़ार कर रहा हु तुम्हारा!!!" सारांश की बात सुन सिया की बात को याद कर अवनि को हँसी आ गयी। उसने बिना कुछ सोचे सारांश जी गले लग गयी, जहाँ उसे दुनिया भर का सुकून मिलता था। 


    चित्रा पूरी दुनिया से बेखबर होकर सो रही थी। निक्षय उसके कमरे मे चुपके से बिना कोई आवाज़ किये अंदर दाखिल हुआ और वही बेड किनारे बैठ गया। 'सोते हुए तुम कितनी शांत लगती हो, अगर उठ जाओ तो तूफान हो, लेकिन अच्छा लगता है तुम्हारा यू बात बात पर गुस्सा करना। कम से कम हमारे बीच बातें तो होतीं है। बस कभी खामोश मत रहना चाहें कितना भी नाराज क्यों न हो जाओ' सोचते हुए निक्षय ने चित्रा के चेहरे पर आई लटो को कान के पीछे किया और उसका कंबल ठीक किया। निक्षय जैसे वापस जाने के लिए उठा, चित्रा ने तकिया समझ उसका हाथ पकड़ लिया और अपने सिरहाने रख कर सो गयी। 

क्रमश: