Chapter 92
humsafar 92
Chapter
92
कार्तिक और अवनि सिया के साथ थे और सारांश जानकी को संभाले हुए था। सिया ने कार्तिक के हाथ से थाली लेकर उसे काव्या के पास भेज दिया। खाना खा कर सोने तक अवनि सिया के पास ही रही। सारांश भी जानकी को सुला कर अपने कमरे मे चला आया जहाँ अवनि पहले ही उसके लिए खाना ले आई थी। कार्तिक ने जब काव्या को सारी बातें बताई तब काव्या भी सोच मे पड़ गयी।
"जब ये सब हुआ तब सिद्धार्थ भाई करीब पाँच साल के थे, मै एक साल का भी नही हुआ था और सारांश.........! वो तो अभी अभी इस दुनिया मे आया था" कार्तिक ने कहा।
"एक माँ अपने बच्चे के लिए क्या कुछ कर सकती है ये आज समझ मे आया। बड़ी माँ को ऐसे खुश देख कभी महसूस ही नही हुआ कि उस मुस्कुराते हुए चेहरे के पीछे दिल मे इतना दर्द छुपा है।" काव्या ने कहा और मन ही मन कुछ सोचने लगी। अचानक ही उसके हाथ अपने पेट पर चले गए।
कल के आए तूफान के बाद आज की सुबह थोड़ी खुशनुमा थी और चित्रऻ की सगाई भी। कार्तिक और काव्या को छोड़कर बाकी सभी उसकी सगाई में जाने वाले थे और आज ही डॉक्टर भी काव्या का चेकअप करने आने वाली थी। कार्तिक ने ऑफिस का सारा काम निपटाया और शाम से पहले घर के लिए रवाना हो गया लेकिन घर आने की बजाय वह ना चाहते हुए भी काव्या के बूटीक की ओर निकल गया। कुछ देर सोचकर वह गाड़ी से उतरा और काव्या की बूटीक की बजाय उसके सामने वाले ऑफिस में चला गया जहाँ तरुण अकेला बैठा था।
कार्तिक को अचानक से अपने सामने देख तरुण को हैरानी हुई लेकिन उसने खुद को नार्मल दिखाते हुए उसे बैठने के लिए कहा, "आज अचानक इस तरह!!! लगता है रास्ता भूल गए कार्तिक बाबू!"
"रास्ता मैं नहीं भूला हूं तरुण! लेकिन तुम्हें सही रास्ता दिखाने से जरूर आया हूं। जब किसी के लौट कर आने की कोई गुंजाइश ही ना हो और इंतजार की कोई वजह ना हो तो हमें भी आगे बढ़ जाना चाहिए, इसी में समझदारी होती है। रिश्ते हो या चीजें, एक बार टूट जाए तो उनका जुड़ना मुश्किल होता है और कुछ का तो नामुमकिन। इसीलिए या तो जोड़ो ही नहीं या फिर उन्हें टूटने ही मत दो और वक्त रहते संभाल लो। तुम समझ रहे हो ना मैं क्या कह रहा हूं" कार्तिक ने कहा तो तरुण मुस्कुरा दिया।
"अगर दिल इतना सोच समझ पाता तो कभी किसी से प्यार ही ना करता। यह समझदारी का काम दिमाग का है दिल का नहीं और प्यार दिल से होता है शायद इसी वजह से दिल और दिमाग का कहीं कोई मेल नहीं होता। बाय द वे मुझे नहीं लगता कि मैं कोई भुला भटका इंसान हूं जो कोई मुझे रास्ता दिखाने आए तो आप पहेलियां बुझाना बंद कीजिए और सीधे सीधे मुद्दे पर आइए। आप यहां क्या करने आये है?" तरुण ने गंभीर होकर कहा।
"सीधी और सरल भाषा में अगर सुनना चाहते हो तो मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि तुम काव्या को भूल जाओ। सिर्फ इसलिए नहीं कि वह मेरी पत्नी है बल्कि इसलिए भी क्योंकि अब वह मेरे होने वाले बच्चे की मां भी है।" कार्तिक ने कहा।
"लगता है बहुत कुछ जान गए हैं आप। लेकिन आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूं कि मैं किसी काव्या को नहीं जानता, मैं सिर्फ अनामिका को जानता हूं। हां मुझे उसे पाने की चाहत थी लेकिन अब मुझे उसके करीब जाने की भी जरूरत नहीं। मैं बस उसे एक नजर देख कर खुश हूं फिर चाहे वह किसी और के साथ ही खुश क्यों ना हो। बरसो इंतजार किया है मैंने उसका, आप कभी नहीं समझ पाएंगे मेरे प्यार को।" तरुण ने मुस्कुरा कर कहा तो कार्तिक की भौहें तन गयी।
" मुझे समझना भी नहीं है इसीलिए अपने प्यार को अपने पास रखो और दफा हो जाओ यहां से। और क्या कहा तुमने.....! उसे एक नजर देख कर खुश हो जाओगे! तुम्हें दिखी वो? नजर आई वो तुम्हें इस बीच? जब से उसे पता चला है कि वह प्रेग्नेंट है तब से उसने घर से बाहर कदम तक नहीं रखा है और अगर यह सब जानने के बावजूद तुम उसका इंतजार करने का दावा करते हो तो यह तुम्हारा प्यार नहीं तुम्हारी जिद है और प्यार और दर्द में फर्क होता है तरुण। मुझे जो कहना था मैंने कह दिया आगे तुम्हारी मर्जी लेकिन इतना जान लो कि काव्या अब यहां नहीं आने वाली और ना ही वह तुम्हें नजर आएगी क्योंकि वह तुम्हारे पास नहीं आना चाहती फिर चाहे पूरी जिंदगी उसे अकेले क्यों ना गुजारने पड़े", कार्तिक अभी अपनी बात कह रहा था कि तभी काव्या का फोन आ गया। कार्तिक ने फोन उठाकर उसे लाउडस्पीकर पर डाल दिया ताकि तरुण भी काव्य की बात सुन सके।
काव्या ने कहा, " कार्तिक कहां हो? कब से वेट कर रही हूं! तुम्हें याद भी है ना आज क्या है!!! डॉक्टर ने कहा था आज हमारे बेबी की हार्टबीट सुनने को मिलेगी वह भी पहली बार! डॉक्टर कुछ देर में पहुंचती ही होगी जल्दी आओ, वरना तुम बहुत इंपॉर्टेंट मोमेंट मिस कर जाओगे। मैं सिर्फ तुम्हें 15 मिनट दे रही हूं वरना मैं कुछ नहीं जानती। फिर मुझे ब्लेम मत करना कि मैंने तुम्हें याद नहीं दिलाया!" कहकर काव्या ने फोन काट दिया।
काव्य की बात सुन कार्तिक में एक गहरी नजर तरुण पर डाली और मुड़कर दरवाजा खोल जाने को हुआ, फिर कुछ सोच कर रुका और शांत लहजे मे बोला," तरुण! मां-बाप के अच्छे कर्मों का फल भी बच्चों को ही मिलता है और मां-बाप के किए की सजा भी बच्चों को ही भुगतनी पड़ती है। तुम्हारे साथ भी यही हो रहा है। अगर काव्या तुम्हारे पास आती है तो क्या उस बच्चे को भी अपनी माँ के किए की सजा नही मिलेगी? क्या चाहते हो तुम कि माँ के होते हुए भी एक बच्चा बिन माँ के जिए! काव्या को अगर तुम्हारा होना होता तो बहुत पहले हो चुकी होती। इस तरह बरसों के इंतजार के बावजूद तुम्हारी नजरों के सामने होते हुए भी तुम्हारी नहीं है, इसका मतलब तो यही है ना तरुण कि वह कभी तुम्हारी नहीं हो सकती इसीलिए एक आखरी बार कह रहा हूं", कहकर कार्तिक बिना तरुण की ओर देखें सीधे बाहर निकल गया और अपनी गाड़ी में बैठ कर घर चला गया। तरुण बस काव्य की ही आवाज में गुम था। उसके कानों में बस काव्या की आवाज में छुपे खुशी खनक रही थी। तरुण को साफ-साफ समझ में आ रहा था कि काव्या अपने बच्चे को लेकर कितनी ज्यादा खुश है।
कार्तिक जब घर पहुंचा उस समय तक घर के सारे लोग तैयार होकर चित्रा की सगाई में जाने को तैयार थे। उसके घर पहुंचने के कुछ देर बाद ही डॉक्टर भी आ गई और काव्या का चेकअप करने उसके कमरे में चली गई। कुछ देर के चेकअप के बाद डॉक्टर ने कार्तिक को आवाज लगाई और उसे अंदर बुलाया। कार्तिक को अंदर आते ही डॉक्टर ने उसे बच्चे की दिल की धड़कन सुनाई जिसे सुन कार्तिक की आंखों में खुशी से आंसू आ गए। उसने एक नजर काव्या को देखा और आंखों ही आंखों में उसे थैंक्यू कहा।
काव्या जानती थी कि कार्तिक अपने बच्चे के लिए कितना बेचैन है इसलिए वह बस मुस्कुरा कर रह कर। सारांश ने भी डॉक्टर से कहकर उस बच्चे की पहली धड़कन को रिकॉर्ड करवा कर कार्तिक और काव्या के लिए मंगवा लिया। डॉक्टर के जाने के कुछ देर बाद ही सब चित्रा की सगाई के लिए उसके घर निकल गए। सगाई में ज्यादा लोग नहीं थे बस कुछ चुनिंदा ही वहां मौजूद थे। जैसा कि चित्रा ने कहा था, पल्लवी की कोई भी दोस्त नहीं आई थी सिर्फ निक्षय की मम्मी के दोस्त थे जिन्हें उन्होंने खुद इनवाइट किए थे, वरना पूरा फंक्शन ही सादा और सिंपल था।
कार्तिक के जाने के बाद से ही तरुण अकेला गुमसुम बैठा हुआ था। उसे कार्तिक की बातें समझने में तकलीफ हो रही थी लेकिन काव्या की खनकती आवाज और उसमें छिपी खुशी को वह साफ महसूस कर पा रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या सही है और क्या गलत क्या करना चाहिए क्या नहीं। कार्तिक ने कुछ भी तो गलत नहीं कहा था। अगर काव्या को उसका होना होता तो तो ऐसा कब का हो चुका होता। इस वक्त काव्या किसी और के बच्चे को जन्म देने वाली ना होती। अगर उसके दिल में तरुण के लिए जरा भी प्यार होता तो उस बच्चे के लिए इतनी खुश कभी ना होती।
चाहिए किसी साए में जगह
चाहा बहुत बार है
ना कहीं कभी मेरा दिल लगा कैसा समझदार है
मैं ना पहुँचूँ क्यूँ वहाँ पे
जाना चाहूँ मैं जहाँ
मैं कहाँ खो गया
ऐसा क्या हो गया
ओ मेहरमा, क्या मिला
यूँ जुदा होके बता ओ मेहरमा,
क्या मिलायूँ जुदा होके बता
ना ख़बर अपनी रही ना रहा तेरा पता
ओ मेहरमा, क्या मिला यूँ जुदा होके बता
एक ओर तरुण का दिल काव्या के करीब रहने का क्या कह रहा था तो वही उसका दिमाग काव्या की खुशी के लिए उससे दूर जाने को कह रहा था। आखिर वह यहां आया भी तो उसी के लिए था। शादी से पहले जब काव्या ने उसे ठुकराया था, उस दिन उसका एक्सीडेंट ना हुआ होता और वह 2 दिन के लिए कोमा में ना होता तो उसने कार्तिक से बात करने और उसे अपनी और काव्य के रिश्ते का सच बताने का पूरा मन बना रखा था। लेकिन होश में आने के बाद जब वह वह वापस लौटा उस वक्त काव्या की विदाई हो रही थी वह कार्तिक की हो चुकी थी।
चित्रा अपनी फीलिंग छुपाने में काफी माहिर हो चुकी थी। उसने अपने चेहरे पर ऐसी मुस्कान ओढ़ रखी थी कि किसी को जरा सा भी अंदेशा ना हो पाता कि उसका मन इस वक्त कितना दुखी है। उसने और निक्षय ने सिर्फ अपने परिवार वालों की वजह से सगाई करने का फैसला किया था और इसी वजह से निक्षय ने शादी के लिए अभी इनकार कर दिया था। वह बस चित्रा को वक्त देना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि शादी के वक्त चित्रा के दिल में कोई और हो। शादी से पहले वह चित्रा को पूरी तरह से अपना बनाना चाहता था और इसके लिए जरूरी था कि शादी और सगाई के बीच एक लंबा गैप हो।
अवनि सीधे चित्रा के कमरे मे पहुँची जहाँ वह तैयार होकर अपने दोनो पैर आईने के सामने रखे टेबल पर रख मजे से जूस पी रही थी। अवनि को थोड़ा अजीब लगा लेकिन उसने ज्यादा दिमाग लगाने की बजाय सीधा उससे सवाल किया, "ये कौन सा नया ट्रेंड है? गाउन के नीचे स्पोर्ट्स शूज कौन पहनता है?"
"मैं पहनती हु!!! अब दुनिया तो बहुत कुछ करती है तो इसका मतलब यह तो नही की मैं भी वही सब करू!", कहते हुए चित्रा ने जूस का ग्लास टेबल पर रख दिया।
" बिलकुल सही कहा! जरूरी थोड़े है की जो एक लकीर खीची गयी है उसी पर चलना है। कुछ अलग नही किया तो दुनिया को पता कैसे चलेगा की कोई चित्रा भी है इस दुनिया मे.......!" सारांश ने चित्रा का साथ देते हुए कहा। अवनि ने अपना माथा पीट लिया और चित्रा का जूस का ग्लास उठा कर जैसे ही अपने होंठो से लगाने को हुई कि तभी चित्रा ने उसके हाथ से ग्लास छीन लिया और घबराते हुए बोली, "ये मेरा जूठा है, तुम इसे नही पी सकती!"
"तुम भी किस जमाने की बात कर रही हो, दोस्ती मे ये सब चलता है।" अवनि ने कहा लेकिन फिर भी चित्रा उसे ग्लास देने को तैयार नही हुई तब सारांश ने कहा, "रहने दो अवनि.....! ये इसका स्पेशल ड्रिंक है जो तुम्हें सूट नही करेगा। और चित्रा मैडम!!! आज के दिन तो छोड़ देती! " सारांश के कहने का मतलब ये था की उस ग्लास मे जूस के साथ वाइन भी मिक्स थी इसीलिए चित्रा घबरा रही थी।
सगाई का मुहूर्त हो चुका था और सारे मेहमान भी आ चुके थे लेकिन चित्रा की नजर बार-बार दरवाजे की ओर जाती यह सोच कर कि शायद अब कार्तिक आ जाएं लेकिन वह जानती थी कि कार्तिक नहीं आएगा।
जो शोर का हिस्सा हुई
वो आवाज़ हूँ
लोगों में हूँ पर तन्हा हूँ मैं
दुनिया मुझे मुझसे जुदा ही करती रहे
बोलो मगर ना बातें करूँ ये क्या हूँ मैं
सब है लेकिन मैं नही हूँ वो जो तोड़ा था कमी
वो हवा हो गया क्यू खफा हो गया
ओ मेहरमा, क्या मिलायूँ जुदा होके बता
निक्षय ने जब उसे अंगूठी पहनाई तब जाकर वह असलियत में वापस आई। उसने भी बस बिना कुछ कहे मुस्कुराकर अंगूठी लेकर निखिल को पहना दी। अवनि जो कि चित्रा की सारी बातें जानती थी, वह असमंजस में थी कि उसे खुश होना चाहिए या फिर दुखी। सारांश ने उसका हाथ थाम कर उसे मुस्कुराने को कहा और अपना जूस का ग्लास उसकी तरफ बढ़ा दिया।
क्रमश: