Chapter 117
सुन मेरे हमसफ़र 110
Chapter
110
इधर अव्यांश, पूरी तरह तैयार होकर सीधे समर्थ के कमरे में पहुंचा जहां वह आईने के सामने खड़ा तैयार हो रहा था। अव्यांश ने पहले तो सिटी बजाई, फिर कहा, "क्या बात है! लगता है भाभी के आने की खुशी में कुछ ज्यादा ही मेकअप हो रहा है। तैयार होने में इतना टाइम आप कब से लेने लगे? आप तो सबसे पहले तैयार होते थे!"
समर्थ ने अपने हाथ में पकड़ी कंगी को उछाल कर अव्यांश की तरफ से जोर से फेंका। अव्यांश ने उस कंघी को कैच किया और कहा "जल्दी करो भाई! भाभी आती ही होंगी।"
समर्थ ने बिना उसकी तरफ देखें अपने बालों में उंगलियां फिराते हुए कहा "तुझे कैसे पता? तू खुद से उन्हें इनविटेशन देने गया था क्या?"
अव्यांश हंसते हुए बोला "भाई! आप अच्छा मजाक कर लेते हो। मैं नहीं बड़े पापा ने उन्हें इनवाइट किया है और उन्हें लेने के लिए गाड़ी भी भेज दी है। आते ही होंगे सब।"
समर्थ झल्लाते हुए बोला "हां तो फिर! यह सब तू मुझे क्यों बता रहा है?"
अव्यांश जाकर उसके बिस्तर पर फैल गया और बोला "वह मैंने सोचा, शायद आपको इसकी जानकारी ना हो तो मैं आपको पहले बता देता हूं। ताकि आप भाभी से मिलने के लिए तैयार रहें।"
समर्थ गुस्से में उसकी तरफ पलटा और अपने एक हाथ में हेयर जेल का डब्बा लेकर उस पर निशाना लगाते हुए बोला "तू अभी के अभी निकल यहां से वरना मेरे हाथों मार खाएगा।"
अव्यांश उछाल कर बिस्तर से छलांगे मारता हुआ कमरे से बाहर निकल गया। समर्थ उसकी इस हरकत पर मुस्कुरा दिया और बोला "कितना भी बड़ा हो जाए, तेरा बचपना कभी नहीं जाएगा।"
कमरे से निकल कर अव्यांश नीचे जाने को हुआ लेकिन इस सब चक्कर में उसके बाल बिगड़ गए थे। इसके लिए उसे अपने कमरे में जाना था। पहले तो थोड़ा सा हिचकिचाया, लेकिन फिर कुछ सोच कर मुस्कुराते हुए उसने बड़े स्टाइल से एंट्री मारी।
निशी वहीं कमरे के बीचो बीच खड़ी साड़ी पहन रही थी। इस तरह अचानक दरवाजा खुलने से निशी घबरा गई और उसके हाथ से साड़ी की प्लेटें टूट कर नीचे गिर गई। उस पर से भी अव्यांश को आया देख निशी घबराकर अपनी साड़ी उठाए वहां से बाथरूम की तरफ भागने को हुई लेकिन उसी साड़ी में उलझ कर गिरने लगी।
अव्यांश ने जल्दी से आकर उसे संभाला और कहा "मुझे देखकर अभी भी इतना क्यों घबराती हो?"
निशी ने कुछ नहीं कहा। कुछ देर पहले जो उसने हरकत की थी, उसके बाद से निशी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह उससे नजरे मिलाए।
निशी ने बड़ी मुश्किल से कहा "अ अव्यांश........! छोड़ो मुझे।"
लेकिन इस बार अव्यांश उसे छोड़ने के मूड में नहीं था। उसने सीधा सा सवाल किया "कोई रीजन दो।"
निशी ने घबराते हुए पूछा "क्या?"
अव्यांश ने अपना सवाल फिर से दोहराया "मैंने कहा, कोई रीजन दो कि मैं तुम्हें छोड़ दूं। तुम मेरी बीवी हो इसलिए इस वक्त मैंने तुम्हें धाम रखा है। और ऐसा करने से मुझे कोई रोक नहीं सकता। अब ऐसे में तुम मुझे एक रीजन दो जिससे मैं तुम्हें खुद से अलग कर दूं।"
निशि को अव्यांश की कोई भी बात समझ नहीं आ रही थी। उसने सीधे से जवाब दिया "सुहानी....! सुहानी आती ही होगी।"
अव्यांश के पास इसका जवाब था। "वो नही आयेगी। अगर आ भी गई तो वह हम दोनों को ऐसे देखेगी तो खुद वापस लौट जाएगी।"
निशी ने घबराते हुए फिर कहा "मेहमान.....! सारे आने वाले होंगे। हमे वहां होना चाहिए।"
अव्यांश ने फिर से मुस्कुरा कर कहा "उन मेहमानों से तुम्हारा कोई लेना देना नहीं है।"
निशी ने फिर कहा "पूजा के लिए सब हमारा इंतजार कर रहे हैं। मुझे तैयार होना होगा।"
अव्यांश ने उसके इस सवाल का जवाब देते हुए कहा "इस पूजा से तुम्हारा कोई लेना देना नहीं है। क्योंकि शादी के बाद यह पहली होली है और ऐसे में पहला होलिका दहन एक लड़की कभी अपनी ससुराल वालों के साथ नहीं देखती। इसलिए यह जिम्मेदारी मुझे मिली है कि मैं तुम्हें यहां से कहीं दूर ले जाऊं, कहीं भी। शायद मासी के घर, या नानी के घर, या फिर इसी कमरे में, हम तुम एक कमरे में बंद हो और............"
अव्यांश ने यह लाइन इतने रोमांटिक तरीके से गाया था कि निशी घबराहट के मारे पसीने पसीने हो गई। उसने अव्यांश पकड़ से छूटने की नाकाम कोशिश की और कहा "अव्यांश प्लीज! मुझे कपड़े पहन लेने दो।"
अव्यांश ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा, "इसकी जरूरत है क्या?"
आप तो निशी और भी ज्यादा घबरा गई। उसे इस तरह घबराते देख अव्यांश जोर से हंस पड़ा और उसे छोड़ दिया। निशी लड़खड़ाते हुए दो तीन कदम पीछे जाकर खड़ी हो गई और वहां से भागने को हुई लेकिन एक बार फिर वो साड़ी में फंसकर गिरने लगी। इस बार फिर अव्यांश ने उसे संभाला और सीधा खड़ा कर के खुद उसकी साड़ी की प्लेट बनाने लगा।
अपनी साड़ी का पल्लू अपने दोनों हाथों से पकड़े निशी खड़ी रही। अव्यांश ने बड़े प्यार से उसकी साड़ी की प्लेट लगाई और कमर में डाल दिया। ऐसा करते हुए वो इस मौके का पूरा पूरा फायदा उठा रहा था। निशी भी कुछ कह नहीं पा रही थी। जैसा बाप वैसा बेटा। सारांश भी तो यही कर रहे थे।
घुटने के बल बैठकर सारांश ने अवनी की साड़ी ठीक की और कहा "मैं सोच रहा था, अंशु और निशी को यहीं रहने देते हैं, हम दोनों चलते हैं कहीं पर।"
अवनी उनकी बात पूरी नहीं होने दी और बीच में बोली "बिल्कुल नहीं। अब यह वक्त उनका है। अपने टाइम में आपने भी अपने मन की बहुत की है, अब उन्हें करने दीजिए।"
सारांश ने सवाल किया "क्या हो गया अगर बच्चे बड़े हो गए तो! क्या हम रोमांस नहीं कर सकते? यह दोनों क्या ऐसे ही इस दुनिया में आ गए हैं? बहुत मेहनत की है हमने।"
अवनी ने कमरे के बाहर देखा तो कोई उनकी बाते नही सुन रहा था। उन्होंने नाराज होते हुए कहा "सारांश! आप सिर्फ शुरू हो गए? ठीक है, आज की पूजा यहां सब के साथ देख लेते हैं। होलिका दहन के बाद अगर आपका मन हो तो हम लॉन्ग ड्राइव पर चलेंगे, प्रॉमिस।"
सारांश ने किसी बच्चे की तरह पूछा "पक्का वाला प्रॉमिस?"
अवनी बोली "हां पक्का वाला प्रॉमिस। लेकिन अभी तो चलिए! नीचे सब हमारा इंतजार कर रहे होंगे!"