Chapter 87
सुन मेरे हमसफ़र 80
Chapter
80
मिसेज रायचंद को एहसास हुआ कि वो घबराहट में कुछ ज्यादा ही बोल गई है। कुछ ऐसा जो उन्हें नहीं कहना चाहिए था।
कुणाल तो जैसे यही सुनना चाहता था। वो हंसते हुए बोला "मुझे पता था! मुझे पता था ऐसा ही कुछ हुआ है!! वरना ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि कोई एकदम से गायब हो जाए। मुझे पता था इस सबके पीछे कहीं न कहीं डैड का हाथ होगा, लेकिन मैं कभी खुलकर पूछ नहीं पाया क्योंकि धीरे-धीरे मुझे भी यकीन होने लगा था कि शायद वो लड़की मेरा वहम है। लेकिन नहीं! वह कोई मेरा वहम नहीं है। वो है। वो लड़की है, सही सलामत है और जिंदा मेरे सामने खड़ी है।"
मिसेज रायचंद अपने बेटे को डांटते हुए बोली "कुणाल! कुछ करने से पहले सोच लेना इस सब का अंजाम क्या होगा। तेरे पापा कभी इस रिश्ते को एक्सेप्ट नहीं करेंगे। कभी नहीं चाहेंगे कि एक मिडल क्लास लड़की हमारे घर की बहू बने। वो ऐसा कभी होने ही नहीं देंगे। अगर तू नही माना तू तुझे पता है वो क्या कर सकते है। अपनी ना सही तो कम से कम उस लड़की की सेफ्टी के बारे में सोच! तू जानता है तेरे पापा अपने स्टेटस को लेकर...........!"
कुणाल एकदम से चिल्लाया "स्टेटस!!! आप जानते भी है उस लड़की की स्टेटस क्या है? बात अगर स्टेटस की है ना मां, तो मेरी स्टेटस नहीं है उसकी तरफ नजर उठाकर देखने की। बात अगर स्टेटस की है, तो मैं उसके सामने कहीं नहीं ठहरता। अब तक एक गलतफहमी में मैं था, और एक गलतफहमी में आप लोग। मेरा सच्चाई से सामना हुआ है आप भी बहुत जल्द असलियत जान जाएंगे।"
मिसेज रायचंद अब परेशान हो गई और बोली "कुणाल! कौन है वह लड़की? किस लड़की की बात कर रहे हो तुम? देखो कुणाल! अगर वह लड़की किसी अच्छे खानदान से हुई तो कभी तुम्हारा हाथ नहीं थामेगी। इस तरह तुम्हारा रिश्ता नहीं तोड़ेगी।"
कुणाल बीच में ही बोल पड़ा "आप लोगों ने मुझे ऐसी जगह फसाया है कि अगर मैं कुहू से रिश्ता तोड़ भी दूं, तब भी वह लड़की मुझे नहीं अपनाएगी। मुझे इस रिश्ते के लिए हां करना ही नहीं चाहिए था। कम से कम एक उम्मीद तो रहती कि वह मुझे अपना लेगी, मेरा हाथ थामेगी। मैंने फैसला कर लिया है, अब आप लोग देखिए आप लोगों को क्या करना है।"
मिसेज रायचंद आगे कुछ कहती, तब तक फोन काट चुका था। वो परेशान हो गई। उन्होंने कुणाल का नंबर ट्राई किया लेकिन कुणाल ने फोन रिसीव नहीं किया। उसके बाद कॉल बिजी बता रहा था। शायद कुणाल ने उनका नंबर ब्लॉक कर दिया था। मिसेज रायचंद अब और ज्यादा परेशान हो गई। वह अपने पति को ढूंढने के लिए कमरे की तरफ भागी।
कुणाल ने अपने दोस्त कार्तिक सिंघानिया को फोन लगाया और बोला "कहां है तू?"
कार्तिक कुछ कहता उससे पहले ही कुणाल ने कहा "तू चाहे जहां भी है, अगले 15 मिनट में अपने अपार्टमेंट में पहुंच, मैं वहीं आ रहा हूं।" और इतना कहकर फोन काट दिया। ना उसे कार्तिक सिंघानिया से कुछ पूछने की जरूरत थी और ना ही उसे कुछ एक्सप्लेन करने की। वह वापस गाड़ी में बैठा और वहां से निकल पड़ा।
एयरपोर्ट पर निशी और अंशु मिश्रा जी और रेनू जी के साथ खड़े थे। रेनू जी ने निशी को गले लगा कर कहा, "अपना ख्याल रखना और अपने ससुराल वालों का भी। खासकर अपने पति का। बहुत किस्मत वाली है जो तुझे ऐसा परिवार मिला है। जो भी कमियां तेरे मायके में रह गई, वह सारी कमी तेरे ससुराल में पूरी हो जाएगी। मैं बहुत खुश हूं अपनी बच्ची के लिए।"
निशी का गला भर आया। वह कुछ कहने को हुई लेकिन कह नहीं पाई। वह चाहती थी कि उसके मां पापा उसके साथ कुछ वक्त और के लिए रुक जाए लेकिन उन्हें तो जाना ही था। फिर भी निशी ने कहा "पापा! आप आज रुक नहीं सकते? कल चले जाना ना, प्लीज!"
मिश्रा जी ने अपनी बेटी के सर पर हाथ फेरा और बोले "रुकने को तो हम रुक जाते बेटा, लेकिन फिलहाल तो हमें जाना होगा। आप लोग भी यहां से निकलो। अंशु बेटे को भी ऑफिस जाना होगा।"
निशी ने चौक कर पूछा "ऑफिस? लेकिन आज तो शनिवार है। सैटरडे को कौन सा ऑफिस होता है?"
मिश्रा जी ने अंशु की तरफ देखा और मुस्कुरा कर बोले "शनिवार को छुट्टी होती है लेकिन सिर्फ इंप्लाइज के लिए। जो लोग भी ऑफिस के मैनेजमेंट पैनल में है, उन्हें सैटरडे ही नहीं, बल्कि कभी कभी संडे को भी काम करना पड़ता है। वक्त और जरूरत के हिसाब से हमे सोचना पड़ता है।"
अंशु ने भी कहा, "जी पापा! मैं समझ रहा हूं। लेकिन वाकई आज रुक जाते तो अच्छा होता। मेरा केबिन भी देख लेते। निशी ने तो अभी तक ऑफिस देखा भी नहीं है। साथ में होते तो मजा आता। आज ऑफिस में ज्यादा लोग नही होंगे।"
मिश्रा जी मुस्कुराकर बोले, "आपका केबिन तो हम कभी और दिन देखने आएंगे। लेकिन मुझे पहले से पता है, कि वो केबिन कैसा होगा।"
निशी ने हैरानी से सवाल किया, "आपको कैसे पता?"
मिश्रा जी ने अंशु की तरफ देखा जो मुस्कुरा रहा था। फिर निशी से बोले, "ऑफिस में ये हमेशा बाते करते थे 'मेरा केबिन ऐसा होगा, वैसा होगा।' मुझे पूरा यकीन है, जैसा चाहते थे सारांश सर ने वैसा ही बनवाया होगा।" अंशु ने झुककर उनके पैर छू लिए।
मिश्रा जी ने फिर से उन्हें जाने को कहा तो न चाहते हुए भी निशी को अंशु के साथ एयरपोर्ट से बाहर निकलना पड़ा। उन दोनो के जाने के बाद रेणु जी ने कहा, "आपके साथ रहते तो कभी एयरपोर्ट की शक्ल तक नही देखने मिली। अब दामाद ने वो इच्छा पूरी कर दी है। वैसे कुछ सोचा है आपने, निशी और दामाद जी शादी के तोहफे में क्या देना है? आपने तो कुछ बताया ही नहीं।"
मिश्रा जी चुपचाप जाकर वहां वेटिंग एरिया में बैठ गए। रेनू जी उनके पास आई और फिर से सवाल किया। मिश्रा जी बोले, "क्या बताऊं रेनू जी! आखिर हम दे ही क्या सकते है? उनके सामने हमारी हैसियत ही क्या है! आप खुद ही सोचो, ऐसी कौन सी चीज की कमी हो सकती है उन्हे?"
रेनू जी भी उनकी बातों से सहमत थी। "लेकिन फिर भी! हमे ऐसे ही अपने हाथ नही खींचने चाहिए। हमारी एक ही बेटी है। हमारा जो कुछ भी है, सब उसी का है।"
मिश्रा जी बेबस होकर बोले, "यही तो दुःख की बात है रेनू जी! हमारे पास बचा ही क्या है? हमारी इकलौती संतान है, ये सोचकर हमारी सारी जमापूंजी हमने निशी की शादी में लगा दिया। लड़के वाले को खुश करने के लिए हमने अपना घर तक गिरवी रख दिया। जब शादी के मंडप में वो सब कुछ हुआ, उसके बाद लगा जैसे हम बर्बाद हो गए। लेकिन सारांश सर और अव्यांश ने सब संभाल लिया। लेकिन आगे हमे देखना होगा। जिन लोगो का कर्ज है हमारे ऊपर, हमे सबसे पहले उन्हें समझाना होगा। समझ नही आ रहा कैसे क्या होगा। सोचा तो था कि जरूरत पड़ने पर अपनी ईपीएफ तुड़वा दूंगा या ऑफिस से लोन ले लूंगा। लेकिन अगर अब ऐसा किया तो निशी के ससुराल वालो को पता चल जायेगा और ये मैं नहीं चाहता।" मिश्रा जी आंखों में आंसू आ गए। रेनू जी ने उन्हे संभाला। इस सबसे बेखबर कि पीछे खड़ा
अव्यांश उनकी सारी बाते सुन रहा था।