Chapter 22

Chapter 22

Episode 22

Chapter

वह सब लोग विराज के घर से अपने घर पहुंचे। सभी के चेहरों पर बारह बजे हुए थे। सभी घर पहुंच कर सोफे पर निढाल होकर पड़ गए। 

 प्रीति सबके लिए पानी लेकर आ गई...उसने नौकरों को  चाय नाश्ता लाने के लिए कह कर,  खुद वही उनके पास बैठ गई। सबके ऐसे डरे और उतरे हुए चेहरे देखकर... उसने पूछा, "आप लोग तो विराज के घर गए थे... इतनी जल्दी वापस कैसे आ गए…? और आप लोगों की हालत इतनी खराब क्यों दिख रही है??"

 राहुल ने पानी पीते हुए कहा, "अरे यार पूछो ही मत... विराज के घर जाने पर पता चला... कि विराज की रात को ही किसी ने हत्या कर दी...और मर्डर करने वाली एक लड़की थी। जिसका अभी तक कोई पता नहीं है... सीसीटीवी कैमरे में भी वह दिखाई नहीं दे रही थी। भगवान ही जाने आगे क्या होगा।"

 प्रीति ने एकदम से पूछा, "क्या मतलब है,  आपका…??"

 तब अरुणा ने सारी बातें विस्तार से प्रीति को बताई... वह सब कुछ सुनते ही प्रीति की आंखें भी डर के कारण चौड़ी हो गई थी। 

 अचानक प्रीति कुछ सोचने लगी... उसने कहा, "मां आपको वह बाबाजी याद है... जो हमें शिव मंदिर में मिले थे।"

  अरूणा ने कहा, "हां... याद हैं, क्यों...??"

 प्रीति ने कहा, "मां उनके गुरु जी हैं... वह बहुत ही पहुंचे हुए सिद्ध पुरुष है। एक बार मैंने उन्हें बातें करते सुना था... वह कह रहे थे कि उनके गुरु जी ने एक बहुत ही खतरनाक पिशाचिनी से किसी के परिवार की जान बचाई थी, और उस पिशाचिनी को भी अपने बस में कर लिया था।" 

गीता जी तुरंत बोल उठे, "तुम जानती हो वह कहां मिलेंगे??"

 प्रीति ने कहा, "यह तो मुझे ठीक से पता नहीं... पर शहर के बाहर वाली पहाड़ी के आसपास कहीं वह ध्यान में बैठे रहते हैं।  आप कहो तो वहां जाकर उनसे मिल सकते हैं।"

 अरुणा ने कहा, " ये ठीक रहेगा...हम लोग कल ही उनसे मिलने चलते हैं… पर राहुल और तुम यही रुकोगे पीहू के साथ।  मैं, जीजी और ये...हम तीनों उन गुरुजी से मिलने जाएंगे। अगर कुछ भी पूजा पाठ की जरूरत हुई तो तुम्हें फोन करके सारी व्यवस्था के लिए बोल देंगे।  हम उन्हें साथ लेकर आ जाएंगे... क्या पता देर करना इस मामले में ठीक होगा भी या नहीं।  इसलिए हम लोग दो हिस्सों में हमारी सुरक्षा की व्यवस्था करेंगे।"

"ठीक है पापा… पर मुझे लगता है इस बारे में पुलिस से भी बात कर लेनी चाहिए।" राहुल ने कहा तो सभी लोग राजी हो गए पुलिस के पास मदद के लिए जाने को।

 ऐसा कहकर  वह लोग कल उन बाबा जी के पास जाने की तैयारियां करने लगे और राहुल पुलिस के पास जाने की।

स्नेहा यह सब कुछ देख ही रही थी। उस समय स्नेहा एक कैफे में बैठकर कोल्ड कॉफी पीते हुए... घर के सभी लोगों को पर नजर रखे हुए थी। तभी वह लड़की जिसने विराज के बारे में जानकारी स्नेहा को दी थी... उसने घबराते हुए आकर स्नेहा से पूछा,  "तुम... तुम कल विराज के घर गई थी क्या…??"

 स्नेहा ने अजीब सा चेहरा बनाते हुए...ना में गर्दन हिलाते हुए... कंधे उचका दिए थे। वह लड़की स्नेहा को अभी भी सवालिया नज़रों से देख रही थी। 

स्नेहा ने उससे कहा,  "मैंने पता करवाया था... तो पता चला कि कल किसी और लड़की की बुकिंग थी। उन्होंने कहा था... कि एक-दो दिन बाद तुम्हें आने के लिए फोन कर देंगे। क्यों... क्या हुआ था??"

 स्नेहा आराम से पूछ रही थी कि उस लड़की ने जल्दी-जल्दी में जवाब दिया। 

"कल... कल विराज का खून हो गया है... और खून किसी लड़की ने किया है। सभी जगह उस लड़की की तलाश की जा रही है। वह लोग मेरे पास भी आए थे, पूछने के लिए।"

 "यह तो मेरे लिए बहुत ही बुरा हुआ है... मैं तो गई भी नहीं थी और वह मर भी गया…!!" ऐसा कहकर स्नेहा ने रोने जैसा मुंह बना लिया था। थोड़ी देर बाद वह लड़की उठ कर चली गई... और स्नेहा ने अपनी काॅफी खत्म करते हुए... कल चाचा, चाची और बुआ को ठिकाने लगाने... का प्लान बना लिया था।

 बस अब उस प्लान को ठीक से एक्जिक्यूट करने की बारी थी। स्नेहा भी बेसब्री से कल के दिन का इंतजार करने लगी। 

सुबह जल्दी ही सब लोग उन बाबा जी के पास जाने के लिए निकल गए थे।  रास्ता थोड़ा सा लंबा था, पर पूछते-पूछते पहुंचे... तो पता चला कि बाबा जी आजकल पहाड़ी पर ही ध्यान में बैठे थे। अगर उनसे मिलना हो... तो पहाड़ी पर चढ़कर ही जाना होगा। पहाड़ी पर चढ़ने के नाम से ही गीता जी और अरुणा जी की हालत खराब हो गई थी। पर कहते है ना कि मृत्यु  का भय संसार में सबसे भयंकर होता है। मृत्यु के भय से वह लोग पहाड़ चढ़ने को भी तैयार हो गए थे।

 धीरे-धीरे आराम से उन्होंने पहाड़ी चढ़कर जाने का निश्चय किया।  वह लोग सोच रहे थे.. कि बाबा जी से भेंट के बाद उनके परिवार पर आया संकट टल जाएगा... पर वह यह भूल गए थे कि यह संकट टलने के लिए नहीं उन्हें संसार से टालने के लिए आया था।

धीरे-धीरे ऊपर की तरफ चढ़ने पर हवा भी तेजी से चलती महसूस होने लगी थी। ऊंचे घने पेड़, पक्षियों की चहचहाहट, बादल इतने पास के हाथ बढ़ाकर छू लो और सबसे ज्यादा तो मन को शांति मिल रही थी। पर ये सब थोड़ी देर के लिए था।

 वह लोग वहां की सुंदरता में खो गए थे... जिस कारण उनकी चढ़ने की गति थोड़ी देर के लिए कम हो गई थी। वह लोग वहीं पर बैठकर थोड़ी देर सुस्ताने लगे थे। जब पंद्रह मिनट बीत गये तब अखिलेश ने कहा, "जल्दी चलो हमें अंधेरा होने से पहले घर वापस भी जाना है।" 

 ऐसा कहकर उसने चढ़ना शुरू कर दिया गीता और अरूणा जी भी अखिलेश जी के पीछे-पीछे चल दी। थोड़ी दूर जाने पर अरुणा थक के बैठ गई।

 "अब और नहीं चढ़ पाऊंगी...आप लोग चलो मैं थोड़ी देर में आती हूं।" ऐसा कह कर अरुणा वहीं एक पत्थर पर बैठ गई।

 "ठीक हैं…!!"  कहकर गीता और अखिलेश आगे बढ़ गए।  अरुणा को वहां बैठे लगभग 20 मिनट हो गए थे।  उन्होंने पीछे कुछ आहट सुनी… पलटकर देखा तो वहां पर छोटी-छोटी झाड़ियां थी। 

 अरुणा जी ने वहां जाने का सोच कर थोड़ी आगे बढ़ी...तो किसी ने पीछे से उनकी साड़ी का पल्लू खींचा। वो झटके से पीछे मुड़कर देखने लगी... तो पीछे कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था। अरुणा थोड़ा सा डर गई।  उन्होंने भी जल्दी-जल्दी चढ़ने का सोचा और चढ़ने लगी।

थोड़ा ऊपर चढ़ने पर अरुणा जी को एक ठोकर लगी...जैसे ही वह गिरने लगी थी के किसी ने  उन्हें पकड़ लिया था।  देखने पर कोई दिखाई तो नहीं दे रहा था... पर वह अपने आप को हवा में लटका हुआ देख पा रही थी। अपने आप को ऐसे हवा में लटका हुआ देखकर उनकी हालत खराब हो रही थी। सांसे बहुत तेज से हो गई थी... मुंह खुला हुआ... पर शब्द नहीं बाहर आ रहे थे। 

उनकी ऐसी हालत देखकर हवा में से एक तेज हंसने की आवाज गूंज उठी।  उस हंसी को सुनने के बाद अरुणा जी और भी डर गई। अपने आप को हवा में से जमीन पर खड़ा करने की कोशिश करने लगी।

 सीधी खड़ी होकर भागने लगी तो पीछे से एक आवाज आई…

 "इतनी भी जल्दी क्या है... चाची…!!!  थोड़ा रुक कर मुझसे भी बात कर लो।"

 यह सुनते ही अरुणा जी की जान हलक में आ गई थी। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो स्नेहा हाथ बांधकर खड़ी मुस्कुरा रही थी।  अरुणा जी उसे देख कर डर कर पीछे सरकने लगी थी।

धीरे-धीरे पीछे  सरक रही थी... और सरकते सरकते पीछे लगभग खाई में गिरने ही वाली थी... कि फिर से वह हवा में लटक गई।  

स्नेहा ने कहा, "आराम से चाची…!  ऐसे खाई में गिर कर मरना है। मेरा क्या होगा फिर... थोड़ा सा मेरा भी ध्यान रखो... ऐसे गिर जाओगे तो मेरा बदला कैसे पूरा होगा…??" और जोर-जोर से हंसने लगी।

अरुणा के चेहरे से हवाइयां उड़ गई थी। स्नेहा ने वहीं खड़े खड़े कुछ मंत्र जाप करना शुरू कर दिया। मंत्र जाप शुरू होते ही अरुणा जी धीरे-धीरे हवा में उठने लगी थी... पर उनके गले से आवाज बाहर नहीं आ रही थी... मानो किसी ने आवाज को बाहर निकलने से रोक दिया हो।

 अरुणा लगभग जमीन से बीस-तीस फुट ऊपर हवा में लटक रही थी... और स्नेहा ने हवा में ही  झूलाना शुरू कर दिया और एकदम से जमीन पर पटक दिया। जिसके कारण अरुणा जी के चेहरे पर बहुत ही अधिक दर्द की रेखाएं खींच गई थी। पर वह चाह कर भी चिल्ला नहीं पा रही थी।  शायद उन्हें भी अपना अंत समय पास ही दिखाई पड़ गया था। 

 स्नेहा उनके पास चलकर जाने लगी। स्नेहा किसी  शातिर शिकारी की तरह धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। मानो आज सभी का शिकार कर लेगी और आज ही अपने मन को ठंडक पहुंचा पाएगी। स्नेहा अरुणा जी के ठीक सामने  जाकर  बैठ गई… वो अभी भी मंत्र जाप किए जा रही थी। 

 अरुणा जी किसी तरह से चिल्लाने की कोशिश कर रही थी। अचानक ऐसा लगा कोई उनकी जीभ पकड़ कर धीरे धीरे बाहर खींच रहा हो... उनकी आंखें दर्द से बाहर निकल आई थी।  पर अभी भी जीभ बाहर खींचती जा रही थी।

 वह सामने किसी को देख नहीं पा रही थी... पर फिर भी हाथों से उसे धकेलने की कोशिश कर रही थी... ताकि जीभ खींचना बंद हो जाए।  पर ऐसा हो नहीं पा रहा था। उनके हाथ पैर भी जहां की तहां बंधे हुए लग रहे थे। अचानक उनके हाथ ऐसा लगा जैसे बंधन से छूट गए और उन्होंने सामने वाले को एक जोर से धक्का दिया। उनके धक्के के साथ ही अरुणा जी की जबान भी एकदम से बाहर आ गई और साथ में खून की धारा भी…!

 अरुणा जी खून की उल्टियां करने लगी थी... उनकी हालत उल्टियां कर करके ही खराब हो गई थी।  शरीर का नब्बे प्रतिशत खून मुंह से ही बाहर निकल आया था।  तब स्नेहा ने धीरे-धीरे उनकी तरफ बढ़ना शुरू कर दिया... और एक धक्का मार दिया।  जिससे अरुणा खाई से नीचे गिर गई। स्नेहा ने एक जहर बुझी मुस्कान दी… और अगले शिकार के लिए चल दी।

 थोड़ी ऊपर जाने पर अखिलेश और गीता धीरे धीरे ऊपर चढ़कर जा रहे थे। स्नेहा ने पीछे से गीता का मुंह बंद कर दिया... और गीता की आवाज में कहने लगी, "अखिलेश तुम जल्दी से बाबा जी के पास पहुंचों... मैं अरुणा को देख कर आती हूं…!!"

 ऐसा सुनते ही अखिलेश जल्दी-जल्दी ऊपर चढ़ने लगा।  स्नेहा ने एक नजर गीता की तरफ डाली... गीता तो उसे देख कर ही डर गई थी। डर के मारे वह भागकर खाई की तरफ दौड़ पड़ी और खाई से नीचे छलांग लगा दी। पर उनकी बदकिस्मती... स्नेहा की तंत्र ताकतों की वज़ह से वह वापस गिरने की  बजाय धीरे-धीरे खाई से बाहर आने लगी… और आकर स्नेहा के सामने रुक गई। 

 गीता ने दोबारा स्नेहा से बचने के लिए... खाई की तरफ दौड़ लगा दी... और वापस खाई में कूद गई। पर फिर से एक अदृश्य ताकत ने उसे उठाकर... स्नेहा के सामने लाकर पटक दिया।  इस बार गीता जी को चोट लगी थी... और स्नेहा उनके सामने आराम से बैठकर मुस्कुरा रही थी। 

गीता ने उससे बचने के लिए फिर से खाई की तरफ दौड़ लगाई और कूद गई। पर बदकिस्मती से फिर से वही हुआ... अदृश्य शक्ति ने गीता को फिर स्नेहा के सामने ले जाकर पटक दिया। 

 स्नेहा हंसते हुए कहने लगी, "बुआ जी…!! आपको लगता है आप मुझ से बच पाएंगे। कोशिश करके देख चुकी हो... अब  बस शांति से देखिए... जो मैं करना चाहती हूं।"

 ऐसा कहकर स्नेहा ने एक जोरदार धक्का गीता जी को दे दिया।  गीता जी दूर जाकर मुंह के बल गिर पड़ी... स्नेहा धीरे-धीरे उनके पास गई।  

गीता जी पलट गई और उन्होंने एक लात स्नेहा को मार दी।  जिससे स्नेहा लड़खड़ा कर पीछे गिर पड़ी और गीता जी, अखिलेश जी की तरफ दौड़ पड़ी। स्नेहा उनके पीछे भागी और जल्दी ही गीता जी को पकड़ लिया। उसने गीता जी के बाल पकड़े थे। जिसके कारण गीता जी आगे नहीं  भाग पाए... वह दर्द से चीख उठी थी।

 उन्होंने फिर से स्नेहा को एक जोरदार धक्का मारा और भाग ली। भागने पर वह वापस स्नेहा से ही आकर टकराई और नीचे गिर पड़ी। स्नेहा ने उन्हें उठाया तो उन्होंने एक थप्पड़ स्नेहा को मार दिया।  थप्पड़ लगते ही स्नेहा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया था। स्नेहा ने गीता जी का हाथ पकड़ा और उसे झटके से शरीर से अलग कर दिया। 

स्नेहा गुस्से से फुंफकारते हुए कहा, "इस हाथ से आपने मुझे थप्पड़ मारा था ना... अब अगली बारी पैर की है। क्योंकि आपने उससे मुझे लात भी तो मारी थी।"

 ऐसा कहकर स्नेहा ने उनकी टांग पकड़ ली। टांग पकड़ कर उन्हें गोल गोल घुमा दिया... झटके के कारण उनकी टांग शरीर से अलग हो गई थी।  एक पैर और एक हाथ से विहीन धड़ बहुत ही भयानक लग रहा था। उनके शरीर से खून पानी की तरह बह रहा था। थोड़ी देर खून और बहने के बाद गीता जी ने अपने प्राण त्याग दिए। 

उसके बाद स्नेहा आपने हाथ झाड़ते हुए वापस अगले शिकार के लिए चल दी। स्नेहा ने अखिलेश जी का खून करने से पहले आराम से बैठ कर कुछ देर सुस्ताने का सोचा।  वही एक पत्थर पर थोड़ी देर के लिए लेट गई।