Chapter 43

Chapter 43

सुन मेरे हमसफ़र 36

Chapter

36








    अव्यांश पिछले कई घंटों से अपने लैपटॉप पर नजरें गड़ाए बैठा था। उसकी उंगलियां कीबोर्ड पर बिना रुके चल रही थी। कभी वो अपने लैपटॉप स्क्रीन पर कोई फाइल खोल कर देखता तो कभी अपने पास में रखें किसी फाइल के डाक्यूमेंट्स खोल कर देखता। शिल्पी भी उसके साथ बैठी उसके साथ काम में हेल्प करने की कोशिश कर रही थी।




     काम तो बस बहाना था, उसे अव्यांश के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त गुजारना था। वह मौका जो शायद उसे अब कभी मिलने वाला नहीं था। अव्यांश के साथ रहने के लिए वह कभी किसी फाइल के पन्ने पलटती तो कभी किसी और के, लेकिन उसकी नजरें रह रह कर अव्यांश पर ही जाती।




   शिल्पी ने धीरे से नजर घुमा कर घड़ी की तरफ देखा तो घड़ी में रात के 10:00 बज रहे थे। अव्यांश को हल्की उबासी आने लगी तो उसने कहा "आई थिंक, यहां पर काम खत्म कर लेना चाहिए। बाकी कल के लिए। मैं यह सब घर पर ही कर लूंगा।"




     अव्यांश ने लैपटॉप बंद करना चाहा लेकिन शिल्पी ने उसे रोक दिया और कहा "अव्यांश! मैं समझ रही हूं लेकिन तुम खुद सोचो ना, तुम यहां अपनी वाइफ के साथ टाइम स्पेंड करने आए हो और कल भी अगर तुम ऑफिस आ गए या ऑफिस के काम में लगे रहे तो निशी को टाइम कौन देगा? कहीं वो नाराज ना हो जाए, सोच लो! मैं तो कहती हूं, यह काम अगर तुम कंप्लीट कर ही लेते तो ज्यादा बेहतर होता। वैसे भी, बस थोड़ा सा ही और काम बचा है। मैं एक काम करती हूं, तुम्हारे लिए कॉफी लेकर आती हूं।"




    शिल्पी कॉफी लेने चली गई और अव्यांश परेशान सा अपने लैपटॉप स्क्रीन पर देखने लगा। उसे तो जल्द से जल्द घर पहुंचना था। यह सारा काम वह घर बैठकर भी आराम से कर सकता था, भले ही उसके लिए उसे पूरी रात जागना पड़े। कम से कम निशि उसके पास तो होती। वह एक नजर ही सही लेकिन उसे देख लेता तो वैसे ही उसकी नींद उड़ जाती लेकिन शिल्पी जिस तरह उसे यहां रोक कर रखे हुए थी, उस पर उसे शक नहीं हुआ। 




    अव्यांश बस थोड़ा परेशान हो गया। इस वक्त वह शिल्पी की बात काट कर जाना भी नहीं चाहता था और नहीं जा सकता था। क्योंकि टीम लीडर होने के नाते उसने अव्यांश की काफी ज्यादा हेल्प की थी, बिना यह जाने कि उसके इंटेंशन क्या थे। 




    अव्यांश ने एकदम से अपना पॉकेट चेक किया "मेरा फोन? मेरा फोन कहां गया?" अव्यांश ने अपने पॉकेट्स में अच्छी तरह चेक किया लेकिन उसका फोन वहां नहीं था। आखरी बार उसने निशी के घर से निकलने से पहले अपने बड़े पापा से बात की थी, उसके बाद जो वो काम करने बैठा, उसे बिल्कुल भी अपने फोन का ध्यान नहीं रहा। किसी से बात भी करनी भी थी तो उसने लैंडलाइन ही यूज किया था। लेकिन इस वक्त उसे निशी को अपने देर से आने की बात बतानी जरूरी थी।




     अव्यांश ने घड़ी की तरफ देखा तो चौक गया। वाकई वो अपने काम में इस कदर डूब गया था कि उसे वक्त पता ही नहीं चला। शायद वो खुद ही जल्द से जल्द अपना काम खत्म करना चाहता था ताकि कल का पूरा दिन निशी को दे सके। बात यहां सिर्फ निशी के साथ वक्त बिताने का नहीं था। बल्कि वह नहीं चाहता था कि निशी को जरा सा भी मौका मिले, किसी भी तरह देवेश से मिलने का। या फिर देवेश कैसे भी निशी को कांटेक्ट करें। वैसे तो इसकी उम्मीद कम थी लेकिन जलन इंसान से क्या नहीं करवाता।




   अव्यांश वहां फैले सारे फाइल्स उठाकर देखने लगा। शिल्पी अपने हाथ में दो कॉफी मग लेकर आई और अव्यांश को इस तरह परेशान देख उसने पूछा "क्या हुआ अव्यांश? तुम क्या ढूंढ रहे हो? कोई पेपर मिसिंग हो गई क्या?"




    अव्यांश अपने चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए बोला "नहीं वो मेरा फोन! मुझे मेरा फोन नहीं मिल रहा। मुझे एक बार निशी को कॉल करना था। एक बार मेरे फोन पर कॉल करके देखना। पता नही कहां चला गया।"




     शिल्पी थोड़ा सहम गई। उसने जबर्दस्ती मुस्कुराकर कहा "यहीं कहीं होगा, कहां जाएगा! वैसे भी तुम्हारा फोन उठाने की हिम्मत यहां किसमें होगी? एक काम करो, यह सारा काम खत्म करते हैं, फिर इन फाइलों को समेट देंगे। हो सकता है इसी सबके बीच कहीं दब गया हो। तुम परेशान मत हो, यह लो कॉफी पियो।" कहते हुए उसने अपने हाथ में पकड़ा कॉफी मग अव्यांश की तरफ बढ़ा दिया।




     अव्यांश ने कॉफी का मग हाथ में ले तो लिया लेकिन उसे अपने फोन की चिंता हो रही थी। मिश्रा जी का नंबर उसे याद नहीं था और निशी का नंबर? निशि का नंबर भी उसने ध्यान से देखा नहीं था, बस इसके फोन में अपना नंबर सेव कर दिया था। ऐसे में वह लैंडलाइन से फोन कर भी नहीं सकता था।




    अव्यांश वापस अपनी कुर्सी पर बैठा और कॉफी का एक सीप लेकर गहरी सांस ली। कुछ देर आंखों को राहत देने के लिए उसने आंखें बंद की और पीछे की तरफ झुक गया। फिर एकदम से उसने अपनी आंखें खोली और लैंडलाइन का रिसीवर उठा लिया। "किसी और का नंबर याद हो ना हो, लेकिन मुझे मेरा नंबर याद है। एक लिस्ट मुझे घर पर बताना तो चाहिए।"




     अव्यांश अपना नंबर डायल कर पाता, उससे पहले ही उसे अपने फोन की रिंगटोन सुनाई दी। शिल्पी को बस इसी बात का डर था। उसने अपने पैरो से थोड़ी हरकत की और चारो तरफ ऐसे देखने लगी जैसे वो भी फोन ढूंढ रही हो।




     अव्यांश ने रिसीवर वापस रखा और आवाज के जरिए जैसे तैसे अपना फोन ढूंढा। फोन उसके डेस्क पर नहीं बल्कि डेस्क के नीचे अंदर कहीं छुपा हुआ था जिसे निकालने में उसे थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी। 'ये अंदर कब गिरा? और इतना अंदर कैसे चला गया?' मन ही मन झल्लाता हुआ अव्यांश ने देखा तो एक कॉल आकर कट चुकी थी। यह कॉल निशी की थी।




      निशि का नाम अपने स्क्रीन पर देखकर ही उसके होठों पर बड़ी सी मुस्कान आ गई। अव्यांश ने बिना देर किए कॉल बैक कर दिया और शिल्पी से कुछ दूर जाकर खड़ा हो गया। 




    दूसरी तरफ निशी काफी देर से परेशान थी कि वह अव्यांश को कॉल करें तो कैसे? अभी तक उन दोनों ने ठीक से एक दूसरे से बात तक नहीं की थी और इस तरह फोन करके उससे घर आने को पूछना, उसे काफी अजीब लग रहा था। जब अव्यांश ने उसे कॉल किया तो उसने जल्दी से कॉल रिसीव कर तो लिया लेकिन कहे क्या?




    कुछ देर वह खामोश रही और अव्यांश भी उसकी ख़ामोशी को बहुत अच्छे से सुन रहा था। उसकी खामोशी को समझते हुए खुद अव्यांश ने ही पहल की और कहा "मैं बस निकल रहा हूं। आधे घंटे में पहुंच जाऊंगा, तुम परेशान मत होना। आई मीन, मां पापा को कहना वो परेशान ना हो।"




      निशी बड़ी मुश्किल से बोली "जल्दी आना। सब इंतजार कर रहे है।" और फोन रख दिया।




    अब जब बीवी ने इतने प्यार से उसे घर आने को कह दिया था तो अव्यांश कैसे ऑफिस में रुक सकता था। उसने सारी फाइल्स समेटी और अपना लैपटॉप बंद कर बोला "मैं घर जा रहा हूं, बाकी काम वहीं पर कर लूंगा।"




    शिल्पी परेशान होकर बोली "लेकिन इस तरह काम अधूरा छोड़ कर? यहां तो मैं भी तुम्हारी हेल्प कर रही थी। वहां अकेले कैसे करोगे?"




     अव्यांश ने लैपटॉप बाग में डाला और उसे कंधे पर डालते हुए बोला "इस दुनिया में किसी की हिम्मत नहीं है जो अपनी बीवी की बात टाल सके। बीवी ने कहा आने को तो मुझे जाना होगा। थैंक यू फॉर योर हेल्प एंड दिस कॉफी।" कहते हुए उसने काफी का मग उठाया और एक सांस में खत्म कर, मग टेबल पर रख दिया। फिर उसने सिक्योरिटी गार्ड को बुलाया और सारे फाइल्स उसकी गाड़ी में रखने को बोल वहां से निकल गया। शिल्पी मन मसोसकर रह गई।






*****








    समर्थ अपने कमरे में लैपटॉप के सामने बैठा हुआ था। जैसा कि उसकी रोज की आदत थी। श्यामा उसे कॉफी देने आई तो देखा, समर्थ लैपटॉप के सामने बैठा जरूर था लेकिन उसका ध्यान कहीं और था। उसके हाथ की पोजीशन साफ बता रही थी कि वह इस वक्त काम तो बिल्कुल नहीं कर रहा था। श्यामा ने कॉफी का मग टेबल पर रखा और उसका सर सहलाते हुए बोली "क्या हुआ? सब ठीक तो है? मेरा बच्चा परेशान लग रहा है!"




     समर्थ की तंद्रा टूटी और उसने देखा, श्यामा उसके पास खड़ी थी। उसने श्यामा का हाथ अपने सर से हटाया और अपने दोनों हाथों में थाम कर बोला "मुझे क्या परेशानी हो सकती है? बस थोड़ा ऐसे ही कुछ सोच रहा था।"




     श्यामा ने लैपटॉप बंद किया और कहा "क्या मैं जान सकती हूं कि मेरा बच्चा ऐसा क्या सोच रहा है जिस के करवा उसे मेरे आने की आहट भी नहीं लगी?"




     समर्थ ने अपनी नजरें झुका ली। वो श्यामा से झूठ नहीं बोलना चाहता था और ना कभी बोल सकता था लेकिन यह एक ऐसी बात थी जिसे वह खुलकर कुछ कह भी नहीं सकता था। तन्वी ना सिर्फ उसकी एम्पलाई थी बल्कि उसकी स्टूडेंट भी थी और उसकी ही बहन की दोस्त भी। ये तीन वजह जो उसे अपने एहसास को जगजाहिर करने से रोक रहे थे।




     समर्थ को सोचते देख श्यामा ने उसकी ठुड्ढी के नीचे हाथ रख उसके चेहरे को ऊपर किया और बोली "मेरा बच्चा बचपन में बहुत बोलता था। फिर धीरे-धीरे उसने बोलना कम कर दिया। फिर भी उसकी आंखें बहुत कुछ कह जाती है, चाहे वह लाख छुपाना चाहे। सोमू! सच सच बताओ, क्या कोई है तुम्हारी लाइफ में जिसे तुम हम सब से छुपा रहे हो?"




   समर्थ परेशान हो गया। वो कैसे कहे उस एहसास को जिसे वो कभी अपनी जुबान पर भी नहीं आने देता। कभी तन्वी पता लगने ना दिया, कैसे कह दे किसी से कि उसे किसी से प्यार है! समर्थ ने गहरी सांस ली और मुस्कुराकर कहा "फिलहाल तो मेरी लाइफ में मेरी गर्लफ्रेंड के नाम पर एक प्रोजेक्ट है जिस पर मैं काम कर रहा हूं। अब उसके साथ तो मेरा कुछ हो नहीं सकता। अगर आप चाहो तो..........!"




      श्यामा भी कहां उसे ऐसे छोड़ने वाली थी। आखिर वह भी सिया द ग्रेट मित्तल की बहू थी। उसने थोड़ा सा झुक कर समर्थ के करीब आकर कहा "गर्लफ्रेंड की बात तो मैंने नहीं की। बॉयफ्रेंड भी तो हो सकता है ना!"




    समर्थ की आंखें बड़ी बड़ी हो गई। वो एकदम से पीछे होकर बोला "मां! ये क्या बकवास कर रहे हो आप? आपको मैं इस टाइप का लगता हूं? आप मेरे बारे में ऐसा सोच भी कैसे सकते हो?"




     श्यामा बड़े बेफिक्र अंदाज में बोली "क्यों नहीं हो सकता? आजकल किसी के नेचर का कोई भरोसा नहीं। और वैसे भी, किसी के माथे पर थोड़ी लिखा होता है कि उसे लड़कों में इंटरेस्ट है या लड़कियों में। मैं तो बस ये जानना चाहती हूं तुझे किसमें इंटरेस्ट है?"




    समर्थ उठा और सीधे जाकर अपने बिस्तर में घुस गया। "मां! मुझे बहुत नींद आ रही है। प्लीज मुझे डिस्टर्ब मत करना। कल मेरी बहुत जरूरी प्रेजेंटेशन है, उसके लिए मुझे फ्रेश रहना जरूरी है।"




     श्यामा जानती थी यह सब सिर्फ समर्थ का एक बहाना था। समर्थ के साथ कोई जबर्दस्ती करना श्यामा को सही नहीं लगा, इसलिए उसने गहरी सांस ली और उठकर

कमरे से बाहर निकल गई। जाते-जाते दरवाजा अच्छे से बंद कर दिया। समर्थ ने राहत की सांस ली।




     आखिर कब तक समर्थ सबसे और खुद से झूठ बोलने वाला था?