Chapter 133

Chapter 133

YHAGK 132

Chapter

132






  शरण्या और मौली दोनों कमरे में मस्ती कर रहे थे। रूद्र अपने ऑफिस का काम निपटा कर कमरे में आया तो देखा दोनों ही जाग रहे थे और बिस्तर पर उछल कूद मचा रहे थे। रूद्र ने उसने दोनों को डांटते हुए कहा, "रात के 11:00 बज चुके हैं! यह कोई वक्त है जागने का? इस टाइम तक तुम दोनों को ही सो जाना चाहिए था। इतनी रात तक जागना तुम दोनों के ही सेहत के लिए अच्छा नहीं है, पता है ना?"


     शरण्या रूद्र का मजाक उड़ाते हुए बोली, "देखो तो कौन ज्ञान दे रहा है! अगर ऐसा ही है तो तुम क्यों जाग रहे हो अभी तक? तुम क्यों उल्लू बने हुए हो? हमें नींद नहीं आ रही थी इसलिए हम नहीं सोए!"


    मौली ने कहा, "वो क्या है ना पापा! हमें नींद नहीं आ रही थी और आपसे डाँट खाये बहुत दिन हो गए है तो सोचा आज का मुहूर्त कोई बुरा नहीं है बस इसीलिए!"


    रूद्र अपनी भौंहें चढ़ा कर बोला, "मतलब मेरे गुस्से और डाँट से कोई फर्क नही पड़ता है तुम दोनों को?"


     शरण्या और मौली ने एक साथ ना में सर हिला दिया और हँस पड़ी। रूद्र ने अपनी दोनों आस्तीन ऊपर चढ़ाई और उन दोनों को पकड़ने के लिए बिस्तर पर चढ़ गया। लेकिन शरण्या और मौली उससे भी तेज निकली! रूद्र के ऊपर आते ही दोनों एकदम से बिस्तर से नीचे कूद गयी। रूद्र ने अपना सर पीट लिया। दोनों माँ बेटी उसकी इस हालत पर और ज्यादा हँसने लगी। रूद्र ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की तो दोनों अलग अलग दिशाओं मे भागी जिससे रूद्र को और भी ज्यादा परेशानी हो रही थी। आज दोनो ही पूरे मूड में थी और रूद्र को परेशान करने का एक भी मौका नही छोड़ रही थी। 


     उन तीनों की भागदौड़ और किलकारियों से पूरा घर गूँज उठा था। धनराज जी शिखा जी और लावण्या बहुत खुश थे लेकिन रेहान चिढ़ कर अपने कान मे रुइ डाले सो गया था। लावण्या से उस कमरे मे रुकना मुश्किल हो रहा था इसीलिए वो कमरे से निकल कर कोरिडोर मे टहलने लगी। टहलते हुए उसकी नजर रूद्र के कमरे के अंदर चली गयी जहां शरण्या और मौली रूद्र को परेशान करने में लगी थी। 


    रूद्र ने बड़ी मुश्किल से शरण्या को पकड़ा और मौली से बोला, "बस बहुत हो गयी तुम दोनो की बदमाशी! मौली! आप अपने कमरे मे जाओ, मैं आपकी मॉम को सुलाकर आता हु।"


     शरण्या ने एकदम से मौली का हाथ पकड लिया और बोली, "नहीं.....! मुझे मौली के साथ सोना है। उसे मुझसे अलग मत करो, प्लीज!!!"


     मौली ने भी शरण्या से लिपटते हुए कहा, "मुझे भी मॉम से अलग नहीं होना। आज मैं भी मॉम के साथ सोना चाहती हु। आपको सोना है तो मेरे कमरे में सो सकते है, मुझे कहीं नहीं जाना।"


    रूद्र थोड़ी सख्ती दिखाते हुए बोला, "ठीक है। अगर तुम दोनों को एक साथ रहना है तो अभी इसी वक्त बेड पर जाओ! चलो....!"


      शरण्या और मौली दोनों चुपचाप बेड मे घुस गए। रूद्र ने उन दोनों के ऊपर कंबल डाला और खुद भी वहीं बैठ गया। उन दोनों को सुलाने के लिए वह अपने दोनों हाथों से उन दोनों के बाल सहलाने लगा। उन दोनों को अभी भी शरारत सूझ रही थी। वह दोनों बीच-बीच में खुसर फुसर करते तो रूद्र उन्हें डांट देता जिससे वह दोनों और जोर से हंस पड़ती। कुछ देर बाद ही दोनों माँ बेटी एक दूसरे को गले लगाए गहरी नींद मे सो गए। 


    रूद्र उन्हें देख रूद्र मुस्कुरा दिया और बारी बारी से उन दोनोँ के माथे चूमकर कमरे से बाहर निकल गया। लावण्या बाहर खड़ी यह सब कुछ देख रही थी। अपनी बहन की जिंदगी देख उसे अच्छा लग रहा था और वह मुस्कुरा उठी लेकिन अगले ही पल अपना दर्द याद आते ही उसके चेहरे पर एक बार फिर उदासी फैल गई। 


    रूद्र जैसे ही दरवाजा बंद कर कमरे से बाहर निकला उसकी नजर लावण्या पर पड़ी जो किसी ख्याल में खोई हुई थी। रूद्र को देख लावण्या मुस्कुरा कर बोली, "सुना है तुम्हारे हाथ की काफी बहुत अच्छी होती है!" 


     रूद्र ने कुछ कहा नहीं, बस मुस्कुरा कर रह गया और नीचे चला गया। लावण्या भी उसके पीछे गई। रूद्र लावण्या के उस मुस्कुराहट के पीछे का दर्द बखूबी समझ रहा था लेकिन फिर भी वो भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि उसका शक गलत निकले। 


      किचन में आकर रूद्र दोनों के लिए कॉफी बनाने लगा और लावण्या वही किचन काउंटर के पास खड़ी उसे देखती रही। आज के रूद्र में उसे पहले वाला कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। लावण्या बोली, "तुम तीनों एक साथ बहुत अच्छे लगते हो। बिल्कुल एक कंप्लीट हैप्पी फैमिली के जैसे। काश! हर कोई अपनी किस्मत में ऐसी खुशियाँ लिखवा कर लाता। शरण्या को वापस से पहले की तरह देख रही हूं, अच्छा लग रहा है।"


     रूद्र बोला, "दूर से हर पेंटिंग पर्फेक्ट नजर आती है। जब पास जाओ तब एहसास होता है कि उसमें कितनी गलतियां हैं। इस वक्त जिस डर के साए में मैं जी रहा हूं उसके बारे में मैं किसी से कह भी नहीं सकता। किसी की भी लाइफ पर्फेक्ट नहीं होती लावण्या! उसे परफेक्ट बनाया जाता है। जिसके लिए काफी कुछ भूलना पड़ता है और काफी कुछ एक्सेप्ट करना पड़ता है।"


     लावण्या को खामोश देख रूद्र ने फिर कहा, "इस वक्त तुम्हें कॉफी पीने की क्या सूझी? जानता हूं नींद उड़ी हुई है तुम्हारी लेकिन फिर भी अगर कोई बात है तो तुम मुझे कह सकती हो। पिछले कुछ वक्त में हमारे रिश्ते बहुत बदल गए है। जानता हूं पहले जैसा कुछ नहीं रहा लेकिन फिर भी अक्सर हम जो बातें अपनों से नहीं कह पाते वह किसी अजनबी से खुलकर कह लेते हैं। तुम मुझे अजनबी समझ सकती हो।" कहते हुए उसने कॉफी का मग लावण्या की तरफ बढ़ा दिया। 


    लावण्या ने मग हाथ में लिया और एक घूंट भरते हुए बोली, "वाकई तुम्हारे हाथों में जादू है। छत पर चले..........!मैं नहीं चाहती कि कोई हमें इस तरह यहां देखें!"


     रूद्र बोला, "हां बिल्कुल! वरना कोई भी हमें भूत समझ कर डर जाएगा!"


    लावण्या की हंसी छूट गई। रूद्र ने किचन की लाइट ऑफ की और दोनों छत पर चले आए। इतनी देर में रूद्र के मन में कई सारे ख्याल आ जा रहे थे। उसे बार बार लावण्या पर शक हो रहा था लेकिन फिर वह खुद को झुठला देता। छत पर घना कोहरा था। हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था लेकिन फिर भी, जो तूफान लावण्या के मन में चल रहा था उसके आगे उसे कुछ नजर नहीं आ रहा था। 


     छत पर आते ही लावण्या ने छत का दरवाजा बंद कर दिया और रूद्र का हाथ पकड़कर दूसरी तरफ ले गई फिर एकदम से बोली, "हमारी किस्मत में जो लिखा होता है वह हम कभी टाल नहीं सकते। फिर चाहे हम लाख कोशिश कर ले! तो फिर किस्मत को बदलने की कोशिश ही क्यों करना? सच को ना छुपाया जा सकता है ना ही दबाया जा सकता है।"


        रूद्र बोला, "इंसान अपनी मेहनत से अपनी किस्मत बदल सकता है तो वही अपनी बेवकूफी से सब कुछ बर्बाद भी कर सकता है। कभी कभी हम अपनों से इस कदर प्यार करने लगते हैं कि उनके खातिर हमें खुद को भूलना पड़ता है। जानता हूं सच एक न एक दिन सामने जरूर आ जाता है! उसे छुपाना नामुमकिन होता है लेकिन सच सामने लाने के लिए भी सही वक्त चाहिए होता है। गलत वक्त पर सामने आया सच बहुत कुछ ऐसा नुकसान कर जाता है जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती।"


     लावण्या सीधे सीधे मुद्दे पर आते हुए बोली, "मुझे इशिता से बात करनी है! मिलना है उससे! क्या तुम मुझे उसका नंबर दे सकते हो?"


    रूद्र हैरान रह गया। उसे खामोश देखकर लावण्या बोली, "रूद्र मैं जानती हूं रेहान और इशिता के बीच..............." कहते हुए लावण्या खामोश हो गई। उसके दिल में एक तेज दर्द सा उठा। उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी। लावण्या ने अपनी आंखें मूंद ली और खुद को शांत किया फिर बोली, "तुम बहुत अच्छे हो रूद्र! लेकिन अच्छाई भी उनके साथ की जाती है जो इसके लायक होते हैं। तुम चाहे लाख अच्छे बनो लेकिन सामने वाला अगर तुम्हारे इस अच्छाई की कदर ना करे तो किस काम की अच्छाई?"


    रूद्र बोला, "अपनों के लिए हम जो करते हैं उसके बदले कुछ उम्मीद नहीं रखते। दूसरों के लिए अच्छा करना परोपकार होता है तो अपनों के लिए अच्छा करना हमारा कर्तव्य! जिनसे हम मुंह नहीं मोड़ सकते।"


     लावण्या बोली, "लेकिन किसी गुनहगार को बचाना उससे भी बड़ा गुनाह होता है। तुमने जो सच छुपाया जिस गुनाह को अपने सर लिया क्या मिला तुम्हें उससे? अपनी भी जिंदगी बर्बाद कर ली और शरण्या की भी। तुम दोनों ने जो तकलीफ सही है, वह गलत था। सही कहा तुमने, इंसान अपनी बेवकूफी से सब कुछ बर्बाद कर लेता है जैसे तुमने किया! अपना सब कुछ लुटा कर तुम्हें क्या हासिल हुआ रूद्र? शरण्या इतने अच्छे से तुम्हें जानती है, इतने अच्छे से तुम्हें पहचानती है! जब सारे लोग तुम्हारे खिलाफ थे और तुम खुद सारा गुनाह अपने सर लेने को तैयार थे तब सिर्फ एक वही थी जिसे अपने प्यार पर भरोसा था। इतना भरोसा तो मुझे भी अपने प्यार पर नहीं था। सच कहूं तो मैंने तुम्हारी बातें भी सुनी थी और रेहान की जिद भी देखी थी। मेरा भरोसा उसी वक्त डगमगा गया था लेकिन फिर भी मैं कुछ देखना ही नहीं चाहती थी। उस वक्त अगर उसके भरोसे पर भरोसा किया होता, अगर उस वक्त मैंने अपने प्यार पर शक किया होता तो यह 8 साल ऐसे ना गुजरते जैसे गुजरे हैं। तुमने जो किया क्या फायदा हुआ उसका? सच तो फिर भी सामने आ ही गया ना! तुम से चिढ़ में रेहान अपना गुनाह खुद ही कबूल कर बैठा। किसी और को मैं क्या कहूं! रेहान से तो मैं बाद में पूछूंगी, फिलहाल तुम मुझे बताओ, क्यों किया तुमने ऐसा? मेरी बहन को इतनी तकलीफ क्यों दी तुमने? यह सारा दर्द सारा तूफान मेरे हिस्से का था फिर उसे क्यों तकलीफ दी? तुमने खुद क्यों.........."


      कहते हुए लावण्या की आंखों से आंसू गिर पड़े। रूद्र ने नजरें झुका ली और बोला, "उस वक्त हालात ऐसे थे कि मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया। मैं तो उसी वक्त तुम्हें सब कुछ बता देना चाहता था लेकिन डॉक्टर ने साफ मना किया था तुम्हें किसी भी तरह का स्ट्रेस नहीं होने पाए। यकीन मानो लावण्या अगर मेरे पास कोई और दूसरा रास्ता होता और मेरे हाथ में कुछ और होता तो मैं कभी भी शरण्या को छोड़कर जाने का सोच भी नहीं सकता था। उससे दूर होकर मैं कभी जीने का सोच भी नहीं सकता। उसे प्यार किए बगैर मैं रह भी नहीं सकता। जो हुआ सो हुआ! अब उन सारी बीती बातों को याद करने से कोई फायदा नहीं। रेहान तुमसे बहुत प्यार करता है। जो भी हुआ वो एक गलती थी उससे ज्यादा कुछ नहीं। इसलिए मैं चाहूंगा कि तुम भी उसे माफ............"


    लावण्या बीच में बोल पड़ी, "यह गलती थी या गुनाह! यह तो सिर्फ इशिता ही बता सकती है। अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुश है ना वह? ऐसे में मुझसे कभी कुछ झूठ नहीं कहेगी। मुझे बस उसका नंबर चाहिए।"


      रूद्र ने अपने पॉकेट से फोन निकाला और लावण्या की तरफ बढ़ाते हुए बोला, "लावण्या संभाल कर! उसके हस्बैंड को इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता। मैं नहीं चाहता उसकी लाइफ में फिर से कोई तूफान आए।"


    लावण्या बोली, "घबराओ मत रूद्र! जिसकी खुद की जिंदगी बिखरी हुई होती है वह दूसरों को वो दर्द कभी नहीं देना चाहते। वह चाहती तो सीधे-सीधे रेहान पर अपना हक जता सकती थी लेकिन उसने तुम्हें चुना क्योंकि वह तुमसे प्यार करती थी, तुम्हें चाहती थी। मुझे बस उससे बात करनी है। उसके बाद ही मैं तय कर पाऊंगी कि मुझे रेहान को माफ करना है या नहीं। इस वक्त मेरी बेचैनी शायद तुम समझ पाओ!"


    लावण्या ने रुद्र का फोन खोला और उसमें से इशिता का नंबर निकाल लिया। रूद्र बोला, "ठंड बहुत है लावण्या! नीचे चलो।" कहते हुए रूद्र ने लावण्या के कंधे पर हाथ रखा और नीचे चला आया। अब उसे वाकई में बहुत ज्यादा चिंता हो रही थी। जिस तूफान को आने से रोकने के लिए उसने अपना घर उजाड़ दिया, वो तूफान शायद अब बहुत जल्द आने वाला था। रूद्र कमरे मे आया। उसने एक बार सोती हुई शरण्या और मौली पर नजर डाली और उनका कंबल ठीक कर वहीं सोफे पर सो गया। 


     लावण्या अपने कमरे में जाना नहीं चाहती थी। वह कमरा जहां रेहान था। उससे बेहतर उसने स्टडी रूम में जाना सही समझा। वहां जाते ही लावण्या ने दरवाजा बंद किया और इशिता का नंबर डायल कर दिया।