Chapter 2

Chapter 2

humsafar 2

Chapter

2    रात का खाना अवनि के पसंद का बना था क्योंकि खाना खुद अवनि ने ही बनाया था। खाना खाकर अवनि जैसे ही अपने कमरे मे आई उसने अपने फोन पर एक मैसेज देखा। वो मैसेज लक्ष्य का था जिसमे लिखा था 


  "अब से मै तुम्हे कंटैक्ट नही कर पाऊंगा, आगे एक्जाम की तैयारियो मे मुझे मौका नही मिलेगा और मेरा मन ना भटके इसीलिए अब से फोन बंद और इसीलिए ये मेरा आखिरी मैसेज। इसके बाद मै सीधे तुम्हे तुम्हारे घर पर ही मिलूँगा। मेरा इंतज़ार करना, लव यू एंड मिस् यू" 


     "तुम हर बार ऐसे ही करते हो, लव यू टू"अवनि ने प्यार से उस मैसेज को चूम लिया मानो वह फोन नही लक्ष्य हो फिर सोने चली गयी लेकिन नींद नही आई। आज कॉलेज का आखिरी दिन था। वही कॉलेज जहाँ वो और लक्ष्य पहली बार मिले थे तीन साल पहले। उस वक़्त  सीनियर होने के कारण लक्ष्य ने अवनि की रैगिंग की थी। एक वो वक़्त था जब उसे लक्ष्य की शक्ल भी देखना पसंद नही था और एक ये वक़्त है जब उसे देखे बिना या उसकी आवाज़ सुने बिना उसे चैन नही मिलता। उन ख्यालो मे गुम अवनि को कब नींद आ गयी पता ही नही चला। 

    सुबह उठ कर अवनि जल्दी से तैयार हुई नास्ता किया और श्रेया को लेकर मार्केट के लिए निकल पड़ी,केटरर्स को जल्दी से जल्दी एडवांस जो देना था। अवनि को पीछे बिठा कर श्रेया भीड़ भरे इलाके मे तेजी से स्कूटी भगाये जा रही थी। तिराहे पर पहुँचते ही एक गाड़ी से टक्कर होते होते बचा। "अंधे हो क्या?? दिखता नही है??" श्रेया चिल्लाते हुए उस गाड़ी वाले से बोली।

      "सॉर्री...... आप लोगो को लगी तो नही" गाड़ी के अंदर से एक हैंडसम नौजवान ने शीशा नीचे करते हुए पूछा। 

  " लगी माय फुट!!!! अगर हमे लग जाती तो!!! ऐसे इलाके मे गाड़ी कौन घुसाता है? यहाँ नये नये आये हो क्या?? लगते तो यही के हो, फिर भी!!!!! " श्रेया गुस्से मे बोलती ही जा रही थी। 

  " देखिये मिस्... आप जो भी है!! बाकी का गुस्सा अगली बार निकाल लेना अभी फिल्हाल मुझे देर हो रही है। " उस लड़के ने कहा। 

  " व्हाट??? मतलब अगली बार फिर से मुझे टक्कर मारनी है!!! तुम्हारी तो मै...... " श्रेया गुस्से मे स्कूटी से नीचे उतरने हो हुई तो अवनि जो की श्रेया के पीछे बैठी थी अपने आसपास लोगो की भीड़ इकट्ठा होते देख उसे रोकते हुए बोली, "छोड़ न श्रेया, जाने दे अभी इसे। हमें भी तो देर हो रही है और देख सब हमें ही देख रहे है। चल जल्दी चल..." 

   " तुम्हे तो बाद मे देखूंगी!!! " कहकर श्रेया ने स्कूटी आगे बढ़ा दी। वह शख्स बस उन दोनो को जाते देखता रहा। जल्दी ही पीछे से आती गाडियों के हॉर्न से वह होश मे आया और गाड़ी आगे बढ़ा दिया। 

    श्रेया और अवनि केटरिंग वाले के पास पहुँची और जैसा की अखिल जी के साथ बात हुई थी अवनि ने पैसे एडवांस उन्हे पकड़ा दिया और सारी बातें क्लियर कर दोनो बाहर निकल आई। " वैसे कुछ भी बोल...... बंदा था बड़ा ही लज़ीज़! " श्रेया ने  स्कूटी मे चाभी डालते हुए कहा। 

  "क्या!!!!!!!" अवनि की आँखे हैरानी से फैल गयी। "तेरी टेस्ट को क्या हो गया झल्ली!!!!!!! तुझे अब केटरिंग वाले अंकल पे क्रश हो रहा है?? " 

  " अबे चुप डफ़र्,,,,,,,, मै तो उस हॉट बंदे की बात कर रही हु जिससे थोड़ी देर पहले लडाई हुई थी।देखा नही कैसे अगली बार मिलने का कह गया" श्रेया ने आँहे भरते हुए कहा। 

  " अगर ऐसा है तो लडाई क्यों की उसके साथ? सीधा सीधा नम्बर मांग लेती तो मिल भी जाता। पहली बात उसे देर हो रही थी हमारी तरह इसीलिए अगली बार का बोलकर हमें टरका गया और दूसरी बात, ये लज़ीज़ बन्दा क्या होता है? कमाल है बंदा न हुआ बूंदी हो गया..... लज़ीज़!!!" अवनि ने चिढ़ते हुए कहा और पीछे बैठ गयी। श्रेया ने भी गाड़ी स्टार्ट की और दोनो घर के लिए निकल गए। 

  "अच्छा सुन श्रेया!!! मुझे न ज्वेलर्स के दुकान पर छोड़ देना और घर चली जाना, मै माँ पापा के साथ आ जाऊँगी।" अवनि ने कहा। 

" ज्वेलर्स की दुकान पर क्यों??? " श्रेया ने सवाल किया। 

  " मुझे वहाँ के समोसे बड़े अच्छे लगते है इसीलिए...... बेवकूफ लड़की,,, दिदु की शादी मे अपने लिए भी तो कुछ लेना है, या फिर ऐसे ही!!!" अवनि ने श्रेया के सर पर चपत लगते हुए कहा। 

  " ओह सॉर्री सॉर्री। मैं तो भूल ही गयी थी। और वैसे भी इसमे मेरा कोई दोष नही।" श्रेया ने कहा। 

  " अच्छा तो फिर किसका दोष है?? " अवनि ने टेढ़ी नज़रो से उसको देखा। 

  " हाय.(आँहे भरते हुए) ...... सारी गलती उस गाड़ी वाले की है। कितना हॉट था वो!!!! मेरा दिल ही... "

  " सामने देख लड़की वरना दिल अभी यही बाहर आ जाना है।" अवनि ने झिरकी दी। "बस बस बस यही रोक दे। माँ पापा इसी शॉप मे होंगे मै देखकर आती हु।" कहकर अवनि स्कूटी से उतरी और अंदर शॉप मे चली गयी। श्रेया बाहर ही खड़ी उसका इंतज़ार करने लगी। 

    " क्या ये सब जरूरी है कंचन जी???? ये आप का स्त्रीधन है, इसको ऐसे यहाँ... ये सब.... ये सब मुझे बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा। एक बार फिर सोच लीजिये।" अखिल जी ने परेशान होकर कहा। 

  " सोच लिया!!! एक बार नही सौ बार सोच लिया। क्या लगता है आपको, स्त्रीधन केवल अपने लिए होता है? नही......यह एक गुप्तधन होता है और जब जरूरत हो तो अपनो के लिए ही होता है। वैसे भी हमारी बेटियो की खुशी से बढ़कर कुछ और है क्या हमारे लिए।" कंचन जी शांत भाव से कहा। 

  "लेकिन कंचन जी....! " अखिल जी ने समझाना चाहा तो उनकी प्यारी पत्नी ने भी अपना आखिरी दाव लगाया।, "आपके रहते मुझे इन गहनो की क्या जरूरत?!?! और आपके होते हुए मुझे कोई कमी हो सकती है क्या!!! अब बुढ़ापे मे मुझे इन सब का शौक भी नही रह गया और बेटा तो है नही जो हम बहू के लिए सहेज कर रखे। जो भी है उन दोनो का ही तो है। काव्या को ये पुराने डिजाइंस पसंद नही, उस तो नया ही लेना है और फिर कुछ समय मे ही आप रिटायर्ड होने वाले है। उसके बाद जो पैसे आयेंगे उससे हम इन गहनो को फिर से छुड़वा लेंगे।" कंचन जी ने ऐसे कहा मानो उन्होंने पहले से सब सोच रखा हो। सुनार ने भी उनको गहने ना बेचने का आश्वसान दिया तो अखिल जी ने बात मान ली। 

   वही दरवाजे के  पास खड़ी अवनि यह सब बाते सुन रही थी। इससे पहले अखिल और कंचन जी की नज़र अवनि पर पड़ती वह जल्दी से बाहर निकल आई। बाहर आकर उसने देखा श्रेया अभी भी वही उसका इंतज़ार कर रही थी। 

   "क्या हुआ??? कुछ लिया नही, ऐसे ही चली आई?" श्रेया ने उसे इतनी जल्दी वापस आते देख बोली। 

  "नही वो...... माँ पापा अंदर नही है। शायद कुछ देर पहले ही चले गए है।" अवनि ने साफ झुठ बोल दिया और उसके पीछे जाकर बैठ गयी। 

    "क्या हुआ, तेरा मूड क्यों ऑफ है?" श्रेया ने सवाल किया। 

  " कुछ नही बस ऐसे ही।  चल घर चलते है। " कहकर अवनि ने बात टाल दिया। श्रेया ने भी ज्यादा सवाल नही किया और आगे बढ़ गयी। 

क्रमश: