Chapter 3

Chapter 3

humsafar 3

Chapter

3   अवनि अपनी ही सोच मे डूबी थी। अचानक लगे झटके से उसे होश आया तो वह श्रेया से बोली, " ये हम कहाँ जा रहे है?? यहाँ पर तो कोई काम नही है हमारा!!!" 

   "मुझे पता है तेरा मुड़ ऑफ है और मुझे यह भी पता है की तेरा मूड कैसे ठीक करना है।" कहकर श्रेया ने एक ठेले वाले के पास गाड़ी रोकी और उससे उतरने को कहा। श्रेया ने ठेले वाले से दो प्लेट तीखी कचौरी की लगाने को बोली। तीखी कचौरी का नाम सुन अवनि घबरा गयी, " नही नही श्रेया.... मै ये नही खा सकती। "

   " क्यों?? क्यों नही खा सकती?? पहले तो तेरी फेवरेट हुआ करती थी अब क्या हो गया?  अच्छा हाँ......... मै तो भूल ही गयी थी!! तेरी लाइफ मे वो कमीना नही था न पहले, इसीलिए अपनी लाइफ अपनी तरीके से जीती थी। जब से वो आया है तेरी लाइफ मे तु बस उसकी गुलाम बन कर रह गयी है। उसे ये नही पसंद उसे वो नही पसंद....... साला उसे पसंद क्या है???" श्रेया भड़क गयी। 

  "ऐसा मत बोल श्रेया, वो प्यार करता है मुझसे। और तुझे तो पता ही है वो अपर सोसाइटी से है तो बस वो मुझे उसी हिसाब से रखना चाहता है।" अवनि ने लक्ष्य की तरफ़दारी करते हुए कहा। 

  "ये बात न तु खुद को समझती रह जिंदगी भर। कोई प्यार व्यार नही करता, बस तुझे अपनी प्रॉपर्टी समझता है। ये मत खाओ ये मत पियो ये मत पहनो ये मत करो यहाँ मत जाओ इससे मत मिलो। प्यार मे ऐसा नही होता है अवनि!!! प्यार आज़ादी देता है हमें हमारे तरीके से जीने का। तु खुद सोच क्या तेरा और लक्ष्य का रिश्ता तेरे माँ पापा जैसा हो सकता है कभी???? " श्रेया ने चिढ़ कर कहा। 

   "वो सब मै नही जानती!!! मै सिर्फ इतना जानती हु की हम दोनो एक दूसरे से प्यार करते है बस!!!!!और मेरे सामने उसकी बुराई मत कर" अवनि ने गंभीर हो कर कहा। 

  "अच्छा ठीक है। अगर ऐसा है तो लगी शर्त... अगर वो तुझसे सच मे प्यार करता है तो तेरे एक बार खाने से वो नाराज नही होगा। बोल क्या कहती है??? " श्रेया ने कचौरी की प्लेट आगे करते हुए कहा। अवनि ने भी प्लेट पकड ली और दोनो खाने लगे। कचौरी सच मे बहुत तीखी बनी थी। काफी दिनों के बाद खाने की वजह से अवनि के आँखो मे आँशु आ गए लेकिन उत्साह बढ़ता गया और उसने एक और प्लेट मंगवा ली। अब अवनि का मूड पूरी तरह ठीक हो चुका था। 

    श्रेया ने अवनि को घर छोड़ा और अपने घर चली गयी।  अवनि ने मैट के नीचे से चाबी निकाली और दरवाजा खोल अंदर आई। अंदर आते ही अवनि धम्म से सोफे पर बैठी आज जो कुछ भी हुआ उसके बारे मे सोचने लगी। इस वक़्त घर पर कोई नही था और अवनि अपनी सोच मे बैचैन हुई जा रही थी। "क्या करू! क्या करू!! क्या करू!!! माँ पापा इतने परेशान है, और वह अपनी परेशानी हम मे से किसी के साथ नही बाँट रहे। लेकिन मै ऐसे ही चुपचाप नही बैठ सकती। कुछ तो कर अवनि!!! ज्यादा कुछ नही तो कम से कम शादी मे पहनने लायक कुछ एक गहने ही छुड़वा सके तो!!!! शादी मे माँ का सूना गला कैसा लगेगा अवनि!!! कोई बिजनेस?? नही नही... उसे जमाने मे तो टाइम लगेगा और शादी मे ज्यादा टाइम नही है। तो फिर कोई पार्ट टाइम जॉब..... पार्ट टाइम नही अवनि फूल टाइम। हाँ..... तभी तु कर पायेगी लेकिन आजकल मे जॉब कैसे मिलेगी?? कार्तिक जीजू!!!!! अब तो उन्ही का सहारा है।" सोच कर अवनि ने अपने होने वाले जीजू कार्तिक को फोन लगाया। 

   " हैलो जीजू...... " अवनि ने चहकते हुए कहा। 

  "क्या बात है साली साहिबा, आज कैसे कैसे याद किया? फुर्सत मिल गयी आज आपको अपने जीजू से बात करने के को। " कार्तिक ने मजाक करते हुए कहा। 

  "क्या जीजू आप भी.... आपसे बात करने को मुझे सोचना नही पड़ता। फुर्सत अपने आप ही निकल जाती है।" अवनि ने भी जवाब दिया। 

   "अच्छा अगर ऐसा है तो बताओ इस वक़्त फोन क्यों किया?? जरूर कोई बात है, है न!! " कार्तिक ने प्यार से पूछा। 

  " वो जीजू.... एक्चुअलि.... " अवनि हिचकिचाइ। 

  "मुझे लगा ही था..... अवनि मै तुम्हारा जीजू ही नही बेस्ट फ्रेंड भी हु राइट?!?! " कार्तिक ने कहा। 

  "यस जीजू....... " अवनि ने धीरे से कहा। 

  "तो क्या अपने बेस्ट फ्रेंड को अपनी प्रोबलम बताने मे कोई इतना सोचता है? " कार्तिक ने फिर सवाल किया।  

   "सॉर्री जीजू... आपसे एक फेवर चाहिए था इसीलिए आपसे मिलना है। अर्जेंट है इसीलिए....... " अवनि ने थोड़ा सोचते हुए कहा। 

   " ठीक है!! एक काम करो,  मेरे ऑफिस आ जाओ। अभी आधे घंटे मे मै फ्री हो जाऊंगा फिर आराम से बात करेंगे। ओके!!! " कार्तिक ने कहा। 

  " ठीक है जीजू मै बस अभी थोड़ी देर मे आती हु" कहकर अवनि ने फोन रख दिया। उसने फ्रिज से पानी निकाला थोड़ा सा पिया और बोतल को अपने बैग मे डाला और निकल गयी। घर से बाहर निकल कर ऑटो किया और सबसे पहले वह उस ज्वैलर के पास गयी जहाँ उसके माँ पापा गए थे। 

   "नमस्ते अंकल!!!!" अवनि ने बड़ी शालीनता से कहा। 

दुकान्दार प्रवीण सोनी जो की उसके जान पहचान का ही था अवनि को देखकर बोला, "अरे अवनि बेटा! आओ आओ, बैठो। और कहो कैसे आना हुआ!! कुछ चाहिए था तो फोन कर कर देती मै खुद आ जाता।"

   " अंकल......! वो मै आपसे कुछ बात करना चाहती थी इसीलिए......! " अवनि ने संकोचवश कहा। 

  "अरे बेटा संकोच कैसा, तुम तो मेरी बेटी समान हो और बेटिया संकोच नही करती हक जताती है।" प्रवीण जी ने कहा। 

   "तो फिर ठीक है अंकल मै सीधा और साफ बात ही करूँगी। क्या मेरे पैरेंट्स ने सारे गहने गिरवी रखवाये है??मै जानती हु आज वो दोनो किसलिए आये थे।" अवनि ने सीधे से सवाल किया। 

  प्रवीण जी पहले तो सोच मे पड़ गए की वह अवनि को क्या जवाब दे। फिर थोड़ा सहज हो कर बोले, "बेटी जब तुम सब जानती ही हो और अब तुम इतनी बड़ी तो हो ही गयी हो तो........ हाँ तुम्हारी माँ के सारे गहने गिरवी पड़े है। पंद्रह लाख...... "

   अवनि की आँखो मे आँसू आगये जिन्हे देख प्रवीण जी की हिम्मत नही हुई आगे कुछ कहने की। खुद को संभाल अवनि ने फिर पूछा, "अगर मै माँ का एक हार छुड़वाना चाहू तो!!! "

  "वैसे तो दस प्रतिशत रकम लेकिन अगर तुम छुड़ाना चाहती हो तो पाँच प्रतिशत रकम जमा करना होगा यानी पिचहत्तर हजार रुपये।"

   "थैंक्स अंकल मै पूरी कोशिश करूँगी की दिदु की शादी से पहले........ बस हमारी बीच की बातें किसी और तक नही जाए और मेरे घर तक तो बिल्कुल भी नही।" अवनि ने रिक्वेस्ट करते हुए कहा तो प्रवीण जी ने उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा और सहमति दी। 

  

क्रमश: