Chapter 18

Chapter 18

Episode 18

Chapter

दोनों ने अपने-अपने अस्त्र संभाल लिये। आत्मानंद की तंत्र क्रिया की सारी व्यवस्था  पहले से ही की हुई थी। स्नेहा ने भी जल्दी ही अपनी सारी हवन सामग्री, हवन कुंड, यंत्र जो भी उसे अंकित करने थे, शीघ्र ही उसने जमीन पर अंकित कर लिये।

अच्युतानंद ने भी स्नेहा के पीछे बैठकर अपनी व्यवस्था जमाना शुरू कर दिया।  उसे देख कर आत्मानंद ने कहा, "अपने लिए एक रक्षक भी लेकर आई हो बच्ची…!!"

 अभी तक उसने अच्युतानंद को नहीं देखा था।  स्नेहा ने कहा, "रक्षक नहीं... तुम्हारी मौत का तांडव दिखाने के लिए अपने गुरु को लेकर आई हूं।  उन्हें तो तुम जानते ही होंगे... क्योंकि जिनकी हत्या करके तुमने यह सब सिद्धियां छीनी थी। वो इन्हीं के पिता और गुरु भी थे।"

 आत्मानंद की आंखें फैल गई थी। उसके मुंह से केवल एक नाम निकला…

 "अच्युऽऽऽऽतानंदऽऽऽऽ…!!!"

 स्नेहा ने उसका मजाक उड़ाते हुए कहा, "बड़ी जल्दी ही तुम्हें सब कुछ याद आ गया। अच्छा है... मुझे अपना समय नष्ट नहीं करना होगा।"

आत्मानंद ने शीघ्र ही अपनी सारी व्यवस्थाएं देखने के लिए एक बार फिर से हर चीज पर नजर डाली। 

 स्नेहा ने भी आंखें बंद करके कुछ मंत्र पढ़े, जिसके पढ़ते ही एक अदृश्य शक्ति ने स्नेहा के लिए सारी व्यवस्था करना शुरू कर दिया।

 उसके बाद स्नेहा ने आत्मानंद से कहा, "पहला प्रहार तुम करोगे…!!"

 आत्मानंद ने कहा, "नहीं बच्ची... पहला प्रहार करने का अवसर मैं तुम्हें देता हूं। क्योंकि तुम छोटी हो और इस सब में नई।"

 स्नेहा ने गुस्से में कहा, "यह सब तुम्हें अब याद आ रहा है... उस समय तुम्हारी नीति कहां गई थी... जब तुमने अपने गुरु और मेरे परिवार की निर्दोष होते हुए भी हत्या की थी…?? अब तुम ज्यादा नीति का ज्ञान मत दो... और प्रहार करो…!"

 स्नेहा ने अपने कानों को छूते हुए कुछ मंत्र पढ़ें और मां को हाथ जोड़कर अपनी सहायता के लिए प्रार्थना की। 

 स्नेहा ने मां धूमावती से कहा, "मां मैंने आपकी साधना की है… आप अपने साधक के शत्रुओं का भक्षण स्वयं करती हैं। पर मां मुझे अपने आप को सिद्ध करने का एक मौका दीजिए... अगर यह ना हो पाया, तो आप जैसा उचित समझें वैसा करें…!!" ऐसा कहकर स्नेहा ने मां से प्रार्थना की।

 वही आत्मानंद भी अपने इष्ट से अपनी विजय के लिए प्रार्थना करने लगा।  उसने एक भयानक मंत्र का जाप करते हुए एक शक्ति स्नेहा की तरफ छोड़ी। 

"स्नेहा इस शक्ति से बचने के लिए... तुम्हें शमशान भैरवी से मिली हुई तुम्हारी सिद्धि का प्रयोग करना होगा... यही उस सिद्धि की काट है।" उस आवाज  के ऐसा  कहते ही स्नेहा ने मंत्र पढ़कर... आवाज की बताई हुई सिद्धी का प्रयोग करते हुए आत्मानंद के वार को काट दिया।

 आत्मानंद ने इसकी कल्पना भी नहीं की थी कि ऐसा कुछ भी हो जाएगा।

आत्मानंद ने फिर कुछ मंत्रों के प्रयोग से स्नेहा पर उच्चाटन प्रहार किया। पर इससे पहले कि वह प्रयोग स्नेहा पर असर करता,  आवाज ने स्नेहा को पहले ही चेता दिया था। जिसके कारण स्नेहा ने उस उच्चाटन प्रयोग को काट दिया। इसी तरह से कुछ और तंत्र प्रयोग आत्मानंद ने किए पर सभी के सभी प्रयोगों की काट समय से पूर्व ही स्नेहा को पता थी। 

अब आत्मानंद को बहुत ही ज्यादा क्रोध आ गया था। वह बहुत ही ज्यादा क्रोध में दिखाई दे रहा था। आत्मानंद बार-बार कुछ बड़बड़ा रहा था,  क्योंकि उसकी कर्ण पिशाचिनी भी उसे स्नेहा के बारे में कोई भी जानकारी नहीं दे रही थी। 

अब आत्मानंद ने एक ब्रह्म पिशाच का आवाह्न किया।  ब्रह्म पिशाच एक ब्राह्मण कुल की आत्मा होती है, जो अपने दुष्कर्मों के द्वारा ब्रह्म पिशाच योनि में पहुंच जाती है। यह ब्रह्म पिशाच सदैव दूसरों का अहित करने के लिए ही तत्पर रहते हैं। इसीलिए वह ऐसी ही जगह पर रहकर लोगों को दुखी और परेशान करने का मौका ढूंढते हैं। यह ब्राह्मणों के कुल में जन्म लेने के कारण कहीं भी आ जा सकते हैं, मंदिर में भी। इनसे निपटना सरल नहीं होता।

 जब आत्मानंद ने ब्रह्म पिशाच का आह्वान किया तो, स्नेहा के कान में देवी योगिनी ने इस बात की पूर्व सूचना दी। यह भी बताया, " स्नेहा इससे बचने के लिए केवल अग्नि बेताल ही तुम्हारी सहायता कर पाएगा। तुम शीघ्र ही अग्नि बेताल का आवाहन करो…!!"

 आज्ञा पाते ही स्नेहा ने तुरंत अग्नि बेताल का आवाह्न किया।  दोनों शक्तियां वही श्मशान में भिड़ गए।  दोनों ही बहुत ज्यादा विध्वंसक शक्तियां थी। दोनों एक दूसरे पर भारी पड़ने का प्रयास कर रही थी। जल्दी ही अग्नि बेताल ने ब्रह्म पिशाच को समाप्त कर, आत्मानंद की तरफ दौड़ लगा दी। आत्मानंद यह सब सोच कर ही भयग्रस्त हो गया और उसने अग्नि बेताल के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। जिसके कारण अग्नि बेताल ने उसे किसी भी प्रकार की हानि पहुंचाए बगैर उसे छोड़कर अदृश्य हो गया। 

आत्मानंद में अगला प्रहार एक पिशाच शक्ति का किया।  वह बहुत ही तेज चलने वाली स्त्री शक्ति थी जो कि शीघ्रता से अपने शिकार पर झपट कर उसका खात्मा कर देती थी। जब तक स्नेहा को उस शक्ति की काट, योगिनी बता पाती... उससे पहले ही उस शक्ति ने स्नेहा को हानि पहुंचा दी थी।  हालांकि वह हानि बहुत ज्यादा बड़ी नहीं थी, फिर भी एक बड़ी सी चोट स्नेहा के माथे पर दिखाई देने लगी थी।  जिससे खून भी बहने लगा  था। स्नेहा ने तत्काल मां का आवाह्न किया और उस पिशाच शक्ति से बचाने की विनती की।  बहुत ही जल्द आत्मानंद को अपनी पिशाच शक्ति से भी हाथ धोना पड़ा। अब तक आत्मानंद स्नेहा को बहुत ज्यादा कष्ट नहीं पहुंचा पाया था।  पर उसकी बहुत सी शक्तियां और सिद्धियां इस युद्ध की भेंट चढ़ गई थी, आत्मानंद ने थोड़ी देर विचार करके एक ऐसी महान विध्वंसक शक्ति के बारे में निर्णय लिया... जो कभी भी खाली नहीं जाती थी।

उसने अब अपने सबसे घातक अस्त्र कृत्या का संधान करने का निर्णय लिया। 

"सावधान स्नेहा यह तुम पर कृत्या का प्रयोग करने वाला है। इस प्रयोग से किसी भी प्रकार से तुम्हारी रक्षा नहीं हो सकती, पर तुम चाहो तो अपनी सिद्धि के द्वारा उससे होने वाली हानि को कम कर सकती हो। सबसे पहले तुम्हें अपनी सुरक्षा निश्चित करनी होगी…!!" उस आवाज ने कहा, वह आवाज स्वयं स्नेहा की सिद्धि मणिकार्णिका योगिनी साधना थी। जो आत्मानंद के हर एक तंत्र प्रहार से पहले स्नेहा को सतर्क कर रही थी।

स्नेहा ने उसी क्षण एक तरबूज अपनी सिद्धियों द्वारा प्रकट किया, जिसे  स्नेहा ने अपना नाम देकर सुरक्षा चक्र के बाहर स्थापित कर दिया। 

जल्दी ही कृत्या प्रकट हो गई, आत्मानंद ने अपने रक्त का भोग उसे दिया और आज्ञा देते हुए कहा, "तुम अभी के अभी जाकर स्नेहा का अंत कर दो…!" इतना सुनते ही कृत्या स्नेहा की तरफ दौड़ पड़ी। 

स्नेहा ने भी अपने आपको इस प्रहार के लिए तैयार किया हुआ था। कृत्या ने आगे बढ़ते ही उस तरबूज को जो स्नेहा का प्रतीक था, उठा लिया और हाथों से फोड़ दिया। आसपास हर जगह पर तरबूज का रस फैल गया। वह लाल रस रक्त की तरह दिखाई दे रहा था। उसके छीटें कृत्या के चेहरे पर भी पड़े। तरबूज के छींटों से कृत्या का डरावना चेहरा और भी ज्यादा वीभत्स दिखाई देने लगा था। 

 कृत्या ने उस तरबूज को फोड़ते ही अगला पग जैसे ही आगे बढ़ाया... वहां पर एक मदिरा की बोतल रखी हुई थी। जो कृत्या ने उठाकर  अपने हाथों से चकनाचूर कर दी। वह  मदिरा बहकर उसके हाथों से नीचे होते हुए कोहनी तक बह निकली।

 अगला पग बढ़ाने पर एक थाल में बहुत से मिष्ठान रखे थे।  कृत्या ने उनकी तरफ एक नजर देखा और उन्हें भी एक तरफ फेंक दिया। अगले पग पर एक मुर्गा बांधा हुआ था। स्नेहा ने उसे भी अपने प्रतीक रूप में स्थापित किया था।  कृत्या ने उस मुर्गे को अपने पंजों में दबोच लिया उस समय वह मुर्गा बहुत ही जोर से आवाज करके फड़फड़ाने लगा था। कृत्या ने उसके सर को अपने मुंह में रखकर धड़ से अलग कर दिया, और उसके मुंड को चबाकर खाने लगी।  मुर्गे के रक्त के छींटे आस पास फैल गए थे। उसके मुंड विहीन शरीर को ले जाकर अपने सर पर पकड़ लिया, जिससे निकलने वाला रक्त कृत्या को भिगो रहा था। ऐसा लग रहा था मानो वह स्वयं का रक्त अभिषेक कर  रही हो।

अगले पग पर एक विशाल काला मेष बंधा हुआ था। इतना सब देखने के बाद उस मेष की आंखों में भय दिखाई पड़ रहा था। कृत्या ने उसे भी एक पैर से पकड़ कर,  उसका पैर उसके शरीर से अलग कर दिया। उस मेष की ह्रदय विदारक चीखें आसपास के माहौल में फैल गई थी। 

आत्मानंद इस वीभत्स दृश्य को देखकर प्रसन्न हो रहा था। पर उसे यह समझ में नहीं आ रहा था, कि इस स्नेहा ने इतनी सारी चीजें ऐसे इकट्ठे क्यों की थी। फिर भी उसे विश्वास था कि कृत्या प्रहार निष्फल नहीं होगा।  वह उसकी  सिद्धि का सबसे शक्तिशाली अंग थी।

 उधर कृत्या उस मेष को छिन्न-भिन्न करने में व्यस्त थी।  कृत्या ने मेष के दोनों सींग भी उखाड़ कर फेंक दिए थे। अपने तेज नाखूनों से उसकी आंखें नोच रही थी।  मेष अब लगभग निर्जीव ही हो गया था। उसके मुंह से आवाज आना बंद हो गई थी। पर कृत्या अभी भी उसके अंगों को नोंच नोंच कर  फेंक रही थी। जब कृत्या उसे नोच कर फेंक चुकी, तब उसने स्नेहा की तरफ अपनी दृष्टि डाली।

कृत्या की नजरों से स्नेहा भी भयभीत हो गई थी।  पर जब स्नेहा ने उसकी दृष्टि के भावों में परिवर्तन देखा, तो वह थोड़ी आश्वस्त लगी। कृत्या ने स्नेहा की तरफ पैर बढ़ाते हुए कहा, "स्नेहा…! तुमने व्यवस्था तो बहुत अच्छी की थी। मेरा क्रोध काफी हद तक शांत भी हो गया था। पर मेरा आवाह्न तुम्हारे अंत के लिए किया गया है।  जो तुमने अपने प्रतीक रूप में इतनी चीजें रखी थी, उनके कारण तुम्हें मैं तुम्हारा अंत तो नहीं करूंगी। पर तुम्हारी एक शक्ति और एक सिद्धि... उनका अंत अवश्य करूंगी।" कृत्या ने एक ठंडी और डरावनी आवाज में कहा।

 स्नेहा ने हाथ जोड़कर पूछा,  "कौन सी शक्ति मां…!!!"

 कृत्या ने कहा, "तुम्हारी वही शक्ति जो तुम्हें रत्नमंजरी से प्राप्त हुई है।  उनमें से एक शक्ति के कारण तुम मन की गति से पलक झपकते ही कहीं भी पहुंच सकती हो। और साथ ही साथ एक सिद्धी पाताल भैरवी वो भी तुमसे लेती हूँ।"

स्नेहा ने कहा, "जैसी आपकी इच्छा मां…!! मुझे  आपकी कृपा दृष्टि प्राप्त हुई, यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।"

 इस पर कृत्या ने कहा, "स्नेहा यह दोनों सिद्धियां तुम चाहो तो दोबारा साधना करके प्राप्त कर सकती हो…!!! मैं तुम्हारी चतुराई से प्रसन्न हूं इसलिए,  तुम्हें एक शक्ति प्रदान करती हूं…!! उससे तुम्हें संसार में घूमती अतृप्त आत्माएं दिखाई देंगी और तुम चाहो तो उनसे अपने वांछित काम भी करवा सकती हो।"

 ऐसा कहकर कृत्या वहां से अंतर्ध्यान हो गई।  कृत्या के जाते ही आत्मानंद को बहुत बड़ा आघात लगा। वह सोच भी नहीं सकता था कि इस लड़की के कारण उसे अपनी इतनी बड़ी शक्ति से हाथ धोना पड़ेगा।

 स्नेहा कृत्या के वरदान से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न थी,  हाथ जोड़कर उनका धन्यवाद भी कर रही थी।

 कृत्या के जाते ही स्नेहा ने एक जोरदार अट्टहास किया और आत्मानंद से कहा, "इतनी देर से तुम मुझ पर अपने तंत्र प्रहार कर रहे हो... अब एक  मौका मुझे भी मिलना चाहिए।"

 आत्मानंद की आंखें विस्मय और भय के कारण फटी की फटी रह गई थी। वह यह सोचने लगा था कि इस लड़की ने मेरी इतनी सारी सिद्धियों से बचाव कर लिया, पर अब पता नहीं है... यह कौन से तंत्र का प्रहार मुझ पर करेगी। 

आत्मानंद ने अपनी कर्ण पिशाचिनी का आह्वान किया और उससे पूछा, "यह किस शक्ति का प्रहार मुझ पर करने वाली है।"

 कर्ण पिशाचिनी ने आत्मानंद से कहा, "मेरी शक्तियां केवल भूत और वर्तमान को ही ज्ञात कर सकती हैं। वही मैं तुम्हें बता सकती हूं। भविष्य बताने की शक्तियां कभी भी कर्ण पिशाचिनी के पास नहीं होती है।"

  स्नेहा ने फिर कहना शुरू किया, "आत्मानंद मैं... तुम्हें अपनी सारी शक्तियों से अपना बचाव करने का एक मौका देती हूं  तुम अपनी सारी सिद्धियों से अपने बचाव की तैयारी करो... और मैं तुम पर अपना पहला और आखिरी अंतिम प्रहार करने की तैयारी करती हूं…!!"

 इतना कहकर स्नेहा आंखें बंद करके अपने तंत्र प्रहार की तैयारी करने लगी। उधर आत्मानंद ने भी हड़बड़ाहट में अपनी सुरक्षा के लिए कुछ उचित प्रबंध करना शुरू कर दिया। वह जल्दी-जल्दी मंत्र पढ़कर अपने आसपास सुरक्षा के लिए यंत्र, चक्र और कुछ विचित्र सी वस्तुओं को सजाने लगा था।