Chapter 96

Chapter 96

YHAGK 95

Chapter

95


    शरण्या रुद्र को अपने साथ ले जाने लगी। उसे रूद्र से बहुत कुछ कहना था और वह कुछ बताना भी था। तभी रेहान की नजम रुद्र पर गई तो उसने आवाज लगाते हुए कहा, "रूद्र......! मेरे भाई! आज तो तूने मुझे जन्मदिन की बधाई दी ही नहीं। जबकि हर साल तू मुझे सबसे पहले विश करता था। किसी और से भी पहले एक बच्चे का अपनी मां से रिश्ता होता है लेकिन पहला रिश्ता तो हम दोनों का है ना! वैसे बचपन से लेकर आज तक तूने बहुत सी बदमाशियां की है बहुत सी शरारते की है। बहुत सी बातें है तो ऐसी हैं जो घर में किसी को पता तक नहीं। तेरे बहुत सारे सीक्रेटस् मेरे पास सेव है। मैं तेरी हर बदमाशियों को घर वालों के सामने जाहिर होने से बचाते आया हूं। मैं हमेशा सोचता था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब मेरी कोई गलती तू छुपाएगा। देख! इंतजार करते करते इतने साल गुजर गए और तूने वादा भी तो किया था लेकिन ऐसा कोई मौका कभी आया ही नहीं।" 

    वह मौजूद सबको लग रहा था कि रेहान रूद्र से नार्मल बातचीत कर रहा है। आपने 26 वें जन्मदिन पर उसे स्पीच दे रहा है लेकिन सच्चाई क्या थी वह सिर्फ रूद्र और रेहान ही जानते थे। रेहान रूद्र को याद दिला रहा था, अब तक उसने रूद्र के लिए क्या क्या किया है और अब रूद्र की बारी है कि वह उसके लिए कुछ करें। रूद्र ने जो भी किया वह गलतियां थी, नादानियां थी। लेकिन रेहान ने जो किया वह एक गुनाह था जिसे छुपाना भी एक गुनाह ही होता। अगर रूद्र ये गुनाह करता है एक गुनाह और करेगा, शरण्या की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी। 

     रूद्र यह बात अच्छे से जानता था कि शरण्या कभी किसी और से प्यार नहीं करेगी, ना ही वह खुद किसी और से प्यार कर पाएगा ना ही उसे भूल पाएगा। जाने कब किस घड़ी में उसे शरण्या से इस हद तक प्यार हो गया कि अब उससे दूर जाने का ख्याल भी उसकी जान ले रहा था। इस वक्त रूद्र का दिल कर रहा था कि वह जोर से चीखें चिल्लाए और सबको रेहान की करतूत बताएं लेकिन इस बारे में तो वो शरण्या से भी कुछ नहीं कह पा रहा था। क्या कहता उससे की इशिता अब तक उससे जो भी कुछ कहती आई थी वह सब सच तो था लेकिन वह सब रूद्र के बारे में नहीं बल्कि रेहान के बारे में था। 

     रूद्र जबरदसती मुस्कुराते हुए रेहान को गले लगाया तो रेहान बोला, "मैंने तेरी हर गलती पर पर्दा डाला है। बस मेरी एक गलती पर तू पर्दा डाल दे। मत बताना किसी को इस बारे मे। मैं इशिता को यहाँ से कहीं दूर भेज दूंगा। किसी को कभी कुछ पता नहीं चलेगा, बस तू इस बारे में किसी से कुछ मत कहना। किसी से भी नहीं, मां से भी नहीं!"

    रुद्र कुछ ना बोल पाया। वो अच्छे से जानता था रेहान के कहने का मतलब क्या था! वो इशिता को यहां से बहुत दूर भेज देना चाहता था ताकि उस बच्चे की परछाई भी इस घर पर ना पड़े। इस घर का एक बच्चा इस घर का एक अंश कहीं दूर पल रहा होगा और यह बात किसी को पता तक नहीं होगी, यहां तक कि उस बच्चे को भी नहीं। लेकिन अगर गलती से भी इस बारे मे इशिता ने लावण्या से कुछ कह दिया तब क्या होगा? 

     रूद्र अच्छे से जानता था, इशिता के मन में शरण्या के लिए कितनी नफरत है और उसने जो कुछ भी कहा वह सिर्फ और सिर्फ शरण्या को चोट पहुंचाने के लिए कहा था और वह ऐसा कर भी सकती थी। उसने तिरछी नजरों से शरण्या को देखा जो उससे बात करने के लिए बेचैन थी। रूद्र रेहान से अलग हुआ और बोला, "मैं तैयार होकर आता हूं, आप लोग पार्टी इंजॉय करें!" कहकर वह अपने कमरे की तरफ चला गया। 

     शरण्या भी सब से नजरे बचाते हुए उसके कमरे की तरफ भागी। रूद्र इस वक्त अकेला रहना चाहता था लेकिन वह जानता था इस वक्त उसे शरण्या की सबसे ज्यादा जरूरत थी। शरण्या जैसे ही उसके कमरे में आइ, रूद्र ने उसे कुछ कहने का मौका नहीं दिया और खींच कर अपने सीने से लगा लिया जैसे वह कोई बहुत कीमती खजाना हो और कोई उसे चुरा ले जाना चाहता हो। शरण्या को समझ नहीं आ रहा था कि रूद्र इतना बेचैन क्यों है? उसने रूद्र की पीठ सहलाया और पूछा, "क्या हुआ रूद्र? कुछ बात हुई है क्या?"

     रुद्र होश में आया और अपने आप को संभालते हुए बोला, "सब ठीक है, कुछ नहीं हुआ! तू बता तु कुछ कह रही थी।" 

     शरण्या बोली, "हाँ, वो मैं...! कहना तो बहुत कुछ था लेकिन समझ नहीं आ रहा कहां से शुरू करू! तु सही कह रहा था, हमारे घर वाले कभी हमारे रिश्ते के खिलाफ नहीं जाएंगे। मैं कल ही तुझे बताना चाहती थी लेकिन मैं इतनी ज्यादा डिस्टर्ब थी कि बता ही नहीं पाई। मां पापा हमारी शादी की बात करना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि अगर मैं तेरे साथ अच्छे से पेश आऊ तो मेरे लिए तुझ से बेहतर और कोई नहीं सकता। यह बात खुद माँ ने कहीं, तू यकीन करेगा? नहीं ना! मुझे भी यकीन नहीं हुआ। आज कल में मौका देखते हैं वह लोग अंकल आंटी से इस बारे में बात करने वाले हैं। तू बस ज्यादा भाव मत खाना और एक बार में हां बोल देना वर्ना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।" रूद्र शरण्या के इस बचपनें पर दर्द में भी मुस्कुरा दिया। 

रूद्र को मुस्कुराते देख शरण्या बोली, "तुझे हंसी आ रही है? हंस ले जितना हंसना है! हंस ले! यहां मेरी जान निकली जा रही है, तुझे पता भी है आज कितना बड़ा अपशगुन हो गया?"

    रूद्र ने पूछा, "क्यो? क्या हुआ? ऐसा क्या हो गया जो तू इतना परेशान है? जिससे परेशानी भी दूर भागती है.........!"

      शरण्या उसके कंधे पर मारते हुए बोली, "तु मेरे मजे ले रहा है? टांग खिंचाई कर रहा है तू मेरी? मैं मजाक नहीं कर रही! यह देख क्या हुआ!" कहते हुए उसने अपने पर्स में से एक छोटी सी डिबिया निकाली और उसे खोलकर रूद्र के सामने रख दिया। 

    उस डिबिया में शरण्या का मंगलसूत्र था जो टूट गया था। रूद्र ने पूछा, "इसे क्या हुआ? यह तो तेरी कलाई में था ना? फिर टूटा कैसे?

       शरण्या बोली, "पता नहीं कैसे? मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा यह कैसे टूटा? लेकिन जब से यह टूटा है ना अजीब सा डर मन में बैठ सा गया है। पता नहीं क्यों लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा है। मंगलसूत्र का टूटना अच्छा शगुन नहीं होता। इसका मतलब जरूर कुछ बुरा होगा। हमारे बीच सब कुछ ठीक तो होगा ना रूद्र?"

      रूद्र उसे समझाते हुए बोला, "तेरा मेरा रिश्ता ना किसी और के जोड़ने से जुड़ा है और ना किसी के तोड़ने से टूटेगा! हमें मिलना था क्योंकि हमारी किस्मत में एक दूसरे का साथ लिखा है फिर चाहे कितनी भी दूरियां क्यों ना हो। कोई भी हमारे बीच आने की कोशिश क्यों ना करें! मैं जानता हूं मेरी किस्मत, मेरी मंजिल तू है। एक बात हमेशा याद रखना, मेरा सुकून तेरे पास है। दिन भर इंसान चाहें कहीं भी भटके, दिन ढलने पर इंसान सुकून की तलाश करता है और वह सुकून उसे अपने घर आकर ही मिलता है। तु मेरा घर है, तेरे पास जो मिलता है मुझे, हर वह खुशी हर वह एहसास जो मुझे महसूस कराता है कि मैं जिंदा हूं। तुझे कभी कोई तकलीफ नहीं दे सकता मैं। कभी तेरी आंखों में आंसू आए उससे पहले मैं सौ बार मरु लेकिन अगर तेरे आंसू देख कर भी मुझे कुछ महसूस ना हो तो इतना समझ लेना कि मैं जिंदा नहीं।"

      शरण्या जो अब तक रूद्र की बातें शांति से सुन रही थी अब उसे एक अजीब सी घबराहट होने लगी थी। रुद्र की आवाज में जो एक थरथराहट थी वह अच्छे से महसूस कर पा रही थी। उसने फिर पूछा, "क्या हुआ है? कुछ हुआ है क्या? किसी ने कुछ कहा है तुझे? तु ऐसी बातें क्यों कर रहा है जैसे हम आखरी बार मिल रहे हो? जैसे तु मुझे छोड़कर जाना चाहता हो!"

      रूद्र ने एक बार फिर उसे खींच कर अपने सीने से लगा लिया और बोला,"तुझसे दूर मैं कभी नहीं जा सकता। मैं कभी अपनी शरू से दूर जा ही नहीं सकता। शरु कभी अलग ही नहीं सकते। तुझ में मैं हूं, तेरे बिना मेरा अपना कोई वजूद नहीं इतना याद रखना तू। मैं हमेशा तेरे साथ रहूंगा भले मैं तेरे पास रहूं या ना रहूं। किसी के होने ना होने से जिंदगी नहीं रुक जाती, हां थोड़ा फर्क जरूर पड़ता है।"

    शरण्या बेचैन हो गयी और उससे अलग होकर बोली, "यह क्या बकवास कर रहा है तू? कहां जा रहा है तू जो इस तरह से बातें कर रहा है?" 

     रूद्र कुछ कहता इससे पहले दरवाजे पर दस्तक हुई। उन दोनों ने देखा, लावण्या दरवाजे पर खड़ी थी। वह बोली, "तुम दोनों का रोमांस हो गया हो तो नीचे चले! सुबह ही रेहान की फ्लाइट है और सब इंतजार कर रहे हैं। वैसे भी मॉम डैड तुम दोनों के रिश्ते की ही बात करने ही वाले हैं तो तुम दोनों वहां मौजूद रहोगे, समझ में आई बात! अब चलो नीचे, वैसे भी बहुत जल्द इसी घर में आने वाली हो। उस घर से इस घर का रास्ता तो पैदल तय कर सकती है! ज्यादा कुछ नहीं बदलेगा।"

     रूद्र बोला, "तुम दोनों जाओ, मैं तैयार होकर आता हूं। बस 5 मिनट!" कहकर रूद्र बाथरूम में चला गया। जिन आँसुओ को उसने अब तक रोके रखा था एक बार फिर वह आंखों से बह निकले। ना जाने वह शरण्या का कैसे सामना करेगा? ना जाने लावण्या का क्या होगा? जो होने वाला था वह सोच कर ही रूद्र के रोंगटे खड़े हो गए। उसने गर्म पानी से अपना चेहरा धोया थोड़ा फ्रेश होने के बाद बाहर निकला और कपड़े बदलने की बजाए ऊपर से ब्लेजर डाल लिया। इस वक्त उसके मन की हालत कोई नहीं समझ पा रहा था और ना ही वह शरण्या को कुछ बता सकता था। रुद्र अभी तैयार हो ही रहा था कि तभी शरण्या दरवाजे से झाँते हुए बोली, "ओए हीरो! और कितना टाइम लगेगा तुझे?"

    रूद्र ने शरण्या की तरफ एक बार भी पलट कर नहीं देखा। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह शरण्या से नजरे मिला सके। वह बोला, "बस थोड़ी देर और!"

    शरण्या उसके पास आई और उसका कलर ठीक करते हुए बोली, "अच्छा सोचो तो अच्छा हो ये जरूरी नहीं लेकिन बुरा सोचोगे तो कभी कुछ अच्छा होगा ही नहीं इसलिए सारी बातें भूल कर हमें सिर्फ अपने आने वाले कल के बारे में सोचना है। अपने बच्चों के बारे में सोचना है। तुझे याद है ना हमारे बच्चों के नाम?"

     रूद्र बोला,"कैसे भूल सकता हूं? मौली और कार्तिक!" शरण्या मुस्कुरा दी। 


   "डैड....! डैड.......!" मौली ने आवाज लगाई तब जाकर रूद्र अपनी यादों की दुनिया से बाहर आया।शरण्या के साथ वो आख़िरी दिन........... उस दिन को याद कर हमेशा उसकी आँखे नम हो जाती थी। 

     मौली जानती थी उसके पिता उसकी शरण्या मॉम को कितना मिस् करते है और उनकी याद हमेशा उन्हें रूला जाती है। मौली ने उरूद्र को टॉवल पकड़ाया और फ्रेश होने के लिए जबरदस्ती धलते हुए बाथरूम तक ले गई। 

    रूद्र फ्रेश होकर निकला और आईने में खुद को देखते हुए खुद से ना जाने कितने ही सवाल कर डाले। फिर उसने अपने दाएं हाथ से अपने सीने पर हाथ फेरा जहाँ शरण्या के नाम का टैटू बना हुआ था, जिसे कोई भी आसानी से पढ़ सकता था। आश्रम में शायद किसी ने भी इस बात को नोटिस नहीं किया या शायद मौली ने ऐसा होने ही नहीं दिया। वह हमेशा रूद्र की परछाई बनकर रही किसी को भी उससे करीब नहीं आने दिया। 

     रात हो चली थी और रूद्र अभी भी अपने कमरे में बंद था। मौली ने खाना ऑर्डर किया और रूद्र के पास चली आई। रूद्र की नजर अभी भी शरण्या की तस्वीर पर ही थी। एक वह पल भी था जब वह दोनों एक साथ इतने खुश थे और अब हालात ऐसे हैं कि वह अपनी शरण्या की एक झलक पाने के लिए इस कदर बेचैन है। कहीं से उसकी एक खबर मिल जाए। "मैं तुम्हें वापस लेकर आऊंगा शरू.....! तुम देखना, हम दोनों एक बार फिर साथ होंगे। बहुत भटका हु मैं अब बस अपना घर चाहता हु मैं।" रूद्र ने शरण्या की तस्वीर पर हाथ फेरा और मौली के पास चला गया। शरण्या का वो मंगलसूत्र अभी भी टूटा हुआ रूद्र के पास था और रूद्र के हाथो मेे था।