Chapter 81

Chapter 81

सुन मेरे हमसफ़र 74

Chapter


74





    अव्यांश ने उसकी आंखों के सामने चुटकी बजाई और पूछा "क्या सोच रहा है? कहां खो गया?"


    निर्वाण होश में आया और बोला "कुछ नहीं भाई! मैं बस यह कह रहा था कि मैं जाकर फ्रेश हो जाता हूं। तेरे कपड़े तो अलमारी में होंगे, मैं ले लूंगा, तुम जाओ।" निर्वाण ने बिना अव्यांश की परमिशन लिए सीधे उसकी अलमारी खोली और एक आउटफिट बाहर निकाला। लेकिन वह अव्यांश का नहीं, निशी के कपड़े थे। अव्यांश हंसते हुए बोला "अच्छा है, बहुत अच्छा है। ट्राई कर ले, तुझ पर बहुत सूट करेगा।"


    निर्वाण को गुस्सा आ गया। उसने उस कपड़े को अव्यांश के ऊपर फेंकने के लिए हाथ उठाया लेकिन उससे पहले ही अव्यांश दरवाजे की तरफ भागते हुए बोला खबरदार यह तेरी भाभी के कपड़े हैं। कुछ भी करने से पहले सोच लेना। कल रात में उसने तुझे प्रोटेक्ट किया था, आज सुबह तेरी उंगली चाय में डाल दी थी। इस बार पक्का तेरा मर्डर कर देगी।"


     निर्वाण ने उस ड्रेस को देखा और जल्दी से उसे वापस अलमारी में लगा दिया। अव्यांश वापस आया और अपनी अलमारी से कुछ कपड़े निकाल कर निर्वाण के हाथ में देते हुए बोला "जा जल्दी से फ्रेश हो जा, बहुत बदबू कर रहा है तू।" और उसे चिढ़ाने के लिए अपनी नाक बंद कर ली।


     निर्वाण भी कहां पीछे रहता! उसने कपड़े तो ले लिए और अव्यांश से दूरी बनाकर बोला "भाई! मैं तो कल रात को नहाकर सोया था लेकिन तेरा क्या? तू कितने दिनों से नहीं नहाया है? पता नहीं भाभी तुझे कैसे झेलती है? मेरे से ज्यादा तो तू बदबू कर रहा है। छी! यक!!" निर्वाण अपनी नाक बंद कर भाग गया। उसने अव्यांश की चाल उसी पर पलट दी। अव्यांश कुछ देर तो उसे जाते हुए देख कर हंस कर वापस किचन में चला आया।


      कुणाल भी सबके साथ किचन में उनकी हेल्प करने में लगा हुआ था। लेकिन उसे देखकर साफ समझ आ रहा था की लाइफ में कभी किचन में नहीं गया था। समर्थ ने उसका मजाक उड़ाते हुए कहा "सीख लो। जितना जल्दी हो सके इस सब की आदत डाल लो। शादी के बाद बहुत काम आएगी। क्योंकि हमारी कुहू जब भी नाराज होती है तो उसे मनाने के लिए एक कप कॉफी की जरूरत पड़ती है और ऐसे में कॉफी बनाना तुम्हें आना चाहिए, और उसके लिए किचन में आना पड़ेगा। तुम्हारी ही भलाई के लिए कह रहा हूं।"


     कुणाल मुस्कुरा दिया। उसने अव्यांश को देखा तो उसे लगा, निर्वाण ने अव्यांश को अकेले में सारा सच बता दिया होगा। ऐसे में बाकी घर वालों तक यह बात पहुंचने में देर नहीं लगेगी। इसके बाद क्या होगा यह सोच कर कुणाल के होठों पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई।






    कुणाल बस अव्यांश के चेहरे को देखे जा रहा था लेकिन उसके चेहरे पर ऐसी कोई बात नहीं थी जिससे उसको शक होता। अव्यांश भी आराम से अपनी ड्यूटी करने में लगा हुआ था। कुहू टहलते हुए आई और किचन के दरवाजे पर खड़े होकर बोली "आप लोगों को मेरी किसी हेल्प की जरूरत है क्या?"


     सभी एक साथ कुहू की तरफ पलट गए और हाथ बांधकर खड़े हो गए। समर्थ कुहू का मजाक बनाते हुए बोला "हां! हमें जरूरत है ना तेरी! तुझे आता है यह सब बनाना तो एक काम कर, कल का सारा ब्रेकफास्ट तेरे जिम्मे। एक काम कर, कल का सारा नाश्ता तू अकेले अपने हाथों से बनाएगी, वह भी हम सबके लिए, ठीक है?"


      समर्थ अच्छे से जानता था कि खाना बनाने मे कुहू का हाथ कितना तंग है और यह जानते हुए भी कुहू का इस तरह किचन में हेल्प के लिए आना सबको समझ में आ गया कि वह सिर्फ कुणाल की हेल्प करना चाहती थी। कुहू समर्थ का जवाब सुनकर इंबैरेस हो गई और चुपचाप वहां से निकल गई।


      बाहर सभी गार्डन में बैठे बातें करने में बिजी थे। सारांश ने इस बार कुणाल के हाथों सबके लिए जूस भिजवाया था। ऐसा सबको सर्व करते हुए कुणाल को बहुत अजीब लग रहा था। लेकिन अपने नही होने वाले ससुर जी के सामने इनकार करने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। सबको सर्व करने के बाद कुणाल जल्दी से वहां से वापस घर के अंदर भाग गया। उसकी यह हरकत देख वहां मौजूद सभी हंस पड़े। इतने भी अवनी को सारांश की गाड़ी मेन गेट से अंदर आती हुई नजर आई।


      एक पल को तो अवनी चौक गई कि सारांश की गाड़ी बाहर क्यों गई थी, और कौन लेकर गया था, जब सारे घर वाले अंदर मौजूद थे? उसके सवाल का भी जल्दी ही जवाब मिल गया, जब उस गाड़ी से अखिल जी उतरे। उन्हें देख अवनी के चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह उठी और लगभग दौड़ते हुए उनके पास आकर चिल्लाई, "पापा......!!" और ऐसे गले लगी जैसे बहुत टाइम के बाद दिखे हो।"


     काव्या अपनी बहन की यह हरकत देख मुस्कुराई और बोली "बेटे की शादी हो गई है, बहू घर आ गई है लेकिन इसका बचपना नहीं गया।"


     सिया की नजर भी अवनी पर ही थी। उन्होंने कहा "ये तो अच्छी बात है। हमारा बचपना हमेशा हमारे अंदर जिंदा रहना चाहिए।"


    काव्या भी उनकी बातों से सहमत होकर बोली, "ये बात तो है। वैसे भी, सीरियस होकर हमे मिल क्या जाएगा! जहां सीरियस होना होता है वहां अवनी बहुत ज्यादा सीरियस हो जाती है और ऐसे मौके पर तो बच्चों से भी छोटी बच्ची बन जाती है। वाकई अवनी की ये खूबी मुझे बहुत अच्छी लगती है।"


    गाड़ी से कंचन जी उतरी और उनके पीछे पीछे मिश्रा जी और रेनू जी भी उतर कर बाहर आए। अवनी ने अपनी समधन का स्वागत किया और उनका हाथ पकड़कर पूछा "आप लोगों को कोई तकलीफ तो नहीं हुई?"


     रेनू जी भी थोड़ा भावुक हो उठी और उन्होंने अवनी का हाथ पकड़कर कहा "कैसी बातें कर रही हैं आप! भला एक मां के घर में बच्चों को कोई तकलीफ हो सकती है भला! मेरा तो वहां से आने का मन ही नहीं कर रहा था। लेकिन अब हमें निकलना होगा। काफी देर हो चुकी है।"


     "अरे! ऐसे कैसे? बिना नाश्ता किए तो हम में से कोई भी आपको यहां से जाने नहीं देगा।" इतना कहकर अवनी ने रेनू जी का हाथ पकड़ा और सब को लेकर गार्डन में पहुंची जहां सभी बैठे हुए थे।


   नरम मुलायम घास पर सभी आराम कर रहे थे। सुहानी कुहू और काया तो वही बिस्तर समझकर लेटी हुई थी। इतने में अव्यांश बाहर निकल कर आया और बोला "चलिए सब लोग, नाश्ता तैयार हैं।"


     यह सुनते ही तीनो बहने जो अभी तक लेटी हुई थी उनमें ना जाने कहां से फुर्ती आई और तीनों किसी तूफान की तरह पलक झपकते ही उठकर अंदर की तरफ भागी। अव्यांश ने मुंह बनाकर कहा "भुक्कड़ कहीं की! खाने का नाम लिया नहीं कि इनसे सब्र नहीं होता।" वह भी उन तीनों के पीछे पीछे घर के अंदर चला आया। बाकी सब भी एक साथ घर के अंदर दाखिल हुए तो देखा सभी मिलकर डाइनिंग टेबल सेट कर रहे थे। 


     कुहू आगे आई और बोली "चाचू! अब रहने दो, आगे का हम लोग कर लेंगे।"


     अव्यांश उसे ताना देते हुए बोला "हां डैड! करने दो ना। शादी के बाद तो इससे भी ज्यादा करना पड़ेगा। थोड़ी बहुत सीख लेंगी तो कम से कम हमें थोड़ा कम ताना सुनने को मिलेगा।"


     कुहू ने टेबल पर से चम्मच उठाकर अव्यांश को मारा अव्यांश ने भी जल्दी से चम्मच को कैच कर लिया और वापस टेबल पर रख दिया। "इस नकचढी ने इतनी बार मुझे अपने जूते मारे हैं कि अब तो मैं ऐसे कैच कैच खेलने में एक्सपर्ट हो चुका हूं। इसलिए यह सब ट्रिक मुझ पर नहीं चलेगा।" उसकी बात सुनकर सभी खिलखिला कर हंस पड़े लेकिन निर्वाण गुस्से में कुणाल को देख रहा था। वह दोनों एक दूसरे को टशन देने में कोई कभी नहीं छोड़ रहे थे।