Chapter 161

Chapter 161

YHAGK 160

Chapter

 160






 शरण्या काफी देर तक सोती रही। गाड़ियों की आवाज से जब उसकी नींद खुली तो देखा, रूद्र गाड़ी में नहीं था। उसने इधर उधर नजर दौड़ाई तो पाया रूद्र एक चाय की दुकान के बाहर बैठा हुआ था। शरण्या ने अपना ब्लैंकेट साइड किया और बाहर निकल गई। 


    रुद्र की नज़र जैसे ही शरण्या पर गई, उसने काउंटर पर से पानी का बोतल उठाया और उसके पास चला आया। उसने बोतल खोली और शरण्या की तरफ बढ़ाते हुए बोला, "अपना चेहरा धो लें। आगे थोड़ी देर और सफर करना है।"


   शरण्या ने अपनी दोनों अंजलि में पानी भरा और अपना चेहरा धोने लगी। नींद अभी भी उसकी आंखों में थी लेकिन उसे अब सोना नहीं था। उसकी नजर सड़क के दूसरी तरफ उसी पेड़ के नीचे छोटी सी मंदिर पर गई। रूद्र ने बोतल साइड करते हुए कहा, "मैं तेरे लिए चाय बनवाता हूं।" कहकर रूद्र दुकान की तरफ बढ़ गया। लेकिन शरण्या से रुका नहीं गया और वह उसी मंदिर की तरफ बढ़ चली। 


    दुकान तक पहुंचकर रूद्र ने जब पीछे मुड़कर देखा तो शरण्या वह नहीं थी। उसने चारों ओर नजर दौड़ाई तो पाया शरण्या भी उसी मंदिर की तरफ बढ़ चली थी। उसे देख रूद्र मुस्कुरा दिया और दुकान वाले से बोला, "आप चाय तैयार रखिए, मैं अभी उन्हें लेकर आता हूं।" कहते हुए रूद्र वहां से धीमी कदमों से निकला। दुकान के रेडियो पर गाना बज रहा था 


    "सुना है तेरे दिल पर मेरा, कहीं ना कहीं नाम लिखा है


     देखो ना मेरी आंखों में तुम, छुपा है मेरा ख्वाब छुपा है"




  शरण्या सड़क पार कर मंदिर के पास पहुंची। उसने अपने सैंडल साइड में रखें और हाथ जोड़कर घुटने के बल बैठ गई। पीछे पीछे रूद्र चला आया और वही उसके ठीक पीछे खड़ा हो गया। शरण्या कुछ देर आंखें मूंदकर बैठी रही तो पीछे से रूद्र ने आवाज दी, "तुम्हारी बेटी भी बिल्कुल इसी तरह इसी जगह पर प्रार्थना कर रही थी। और जानती हो उसकी हर प्रार्थना में उसने सिर्फ तुम्हें मांगा है, उसकी शरण्या मॉम को।"


   शरण्या ने धीरे से अपनी आंखें खोली और रूद्र की तरफ देख कर मुस्कुरा दी। रूद्र भी वही घुटने के बल बैठकर अपने हाथ जोड़ लिए और देवी मां को प्रणाम किया। फिर शरण्या का हाथ पकड़कर उसे वहां से ले जाने को हुआ। फिर वो एकदम से रुक गया और शरण्या के दोनों हाथ पकड़ कर बोला, "तेरे मन में जो भी बात है तू मुझसे कह सकती है। मैंने तुझे पहले भी कहा है, तेरी जो भी ख्वाहिश है जो भी तुझे चाहिए तु मुझे बोल। भगवान से पहले तु मुझे बताया कर। मैं अपनी जान लगा दूंगा तेरी हर चाहत पूरी करने में। इतना भरोसा तो तु मुझ पर कर सकती है ना।"


     शरण्या मुस्कुराते हुए बोली, "तुझे ऐसा क्यों लगता है कि मेरे मन में कोई बात है?"


    रूद्र बोला, "तू काफी बदली हुई नजर आ रही है। किसी और को दिखे या ना दिखे मैं देख सकता हूं। पूरे रास्ते तूने कुछ नहीं खाया है जबकि तुझे हर 10 मिनट में भूख लगती है। क्या हो गया है तुझे? ऐसा क्या है जो परेशान कर रहा है तुझे? हमारी शादी होने वाली है और मैं चाहता हूं कि हमारी शादी के वक्त तु खुलकर एंजॉय करें। तेरे मन में जरा सी भी कोई शिकायत ना हो किसी से। जरा सी भी उदासी ना हो। सिर्फ खुशी हो....... हमारे एक डोर में बनने की खुशी। पूरे समाज के सामने एक हो जाने की खुशी। मुझे तेरा साथ चाहिए, मुझे तेरा प्यार चाहिए, तेरा भरोसा। ज्यादा कुछ तो नहीं मांग रहा हूं ना तुझसे। बता क्या बात है?"


    "सुना है तेरी तक़दीरों में तुम्हारा मेरा मेल लिखा है


    जो ऐसा हो तो क्या डरना फिर, देखे तो जरा क्या होता है


    मर जाने से पहले मैं जी लूँ तुझे,


    लेजा जरूरत हो तो मेरी धड़कने, 


    इनमें सुनाई देंगी मेरी ख़्वाहिशें!"


    शरण्या उसके सीने से लगते हुए बोली, "कोई बात नहीं है रूद्र, कोई भी बात नहीं है। तेरे साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त गुजारना चाहती हूं। इतने सालों की हर कमी पूरी कर लेना चाहती हूं। तुझे फिर से पाने की खुशी में मैं तो अपना सुध बुध खो दूं, इससे बेहतर है कि मैं खुद को कंट्रोल कर के रखू। शायद मुझे भूख नहीं लगी। जानती हूं तूने मेरे लिए सारे इंतजाम कर रखे थे लेकिन फिर भी मैं तेरे लिए लेकर आई। कोई बात नहीं। हम आश्रम चलकर यह सारा खाना खत्म कर देंगे, मेरा मतलब मैं खत्म कर दूंगी।"


    रूद्र उसकी बातें सुनकर हंस पड़ा और बोला, "फिलहाल तो तेरी चाय तेरा इंतजार कर रही है। चल जल्दी।"


  शरण्या रूद्र का हाथ थामे उसके पीछे पीछे चल पड़ी। उसने एक नजर रूद्र को देखा और फिर खुद से बोली, "रुद्र के सामने नॉर्मल होकर रहना होगा वरना वह मेरी आंखें देख कर ही समझ जाता है। उससे बातें छुपाना मेरे लिए आसान नहीं है लेकिन मेरे दिल में क्या चल रहा है यह मैं उसे बता भी नहीं सकती। 


    रूद्र शरण्या को लेकर चाय की दुकान पर पहुंचा और चाय वाले से चाय का कप लेकर उसकी तरफ बढ़ा दिया। शरण्या ने अपनी चाय खत्म की और वह दोनों नैनीताल के लिए निकल पड़े। घुमावदार पहाड़ियों से होते हुए वह दोनों नैनीताल पहुंचे। आश्रम से पहले उन दोनों की गाड़ी नैना मंदिर से होते हुए गुजरी तो मंदिर देखकर शरण्या मुस्कुरा उठी। उसे अपनी और रूद्र की शादी की सारी बातें याद आ गई। उसे मुस्कुराते देखा तो रूद्र बोला, "तुम कहो तो गाड़ी रोक दू! एक बार चलकर दर्शन कर आते हैं। आखिर यहाँ से हमारी बहुत खास याद जुड़ी है।"


     शरण्या बोली, "अभी नहीं। वापसी में हम यहां जरूर आएंगे। अभी तो मैं नहाई भी नहीं हूं।"


    रूद्र ने शरण्या की बात मानते हुए गाड़ी वहां से आगे बढ़ा ली। कुछ देर बाद वो दोनों आश्रम पहुंचे। रूद्र ने उन दोनों का सामान कमरे में रखवा दिया। शरण्या को वहां का शांत माहौल बेहद पसंद था। यह दूसरी बार ही तो आ रही थी वह। यहां सर्दियों के मौसम में ठंडी ठंडी हवाएं शरण्या को बहुत अच्छी लग रही थी। रूद्र उसके पास आया और बोला, "चल कर थोड़ा आराम कर ले। काफी देर से हम सफर कर रहे थे, तु थक गई होगी। कुछ देर आराम कर लो उसके बाद हम लोग घूमने चलेंगे। बताओ तुम्हें कहां घूमना है?"


     शरण्या रूद्र की तरफ पलटी और बोली मुझे गोलू मंदिर जाना है।"


     रूद्र उसके पास आया और उसके माथे को चूमते हुए बोला, "ठीक है। हम वही जाएंगे लेकिन पहले कमरे में चलो वरना तुम्हें ठंड लग जाएगी। इतनी सारी शॉपिंग कर रखी है तुमने वह कब काम आएगा?" कहते हुए रूद्र ने शरण्या को कंधे से पकड़ा और उसे लेकर कमरे में चला आया। पूरी रात वह लोग सोए नहीं थे। शरण्या की सुबह-सुबह आंख लग गई थी। इसीलिए थकान के कारण बिस्तर पर जाते हैं रूद्र की आंख लग गई। शरण्या ने उसे डिस्टर्ब करना सही नहीं समझा लेकिन थकान तो उसे भी हो रही थी इसलिए वह रुद्र के बगल में ही लेट गयी। शरण्या का एहसास पाते ही नींद में भी रूद्र ने उसकी तरफ करवट लिया और उसे अपनी करीब खींच लिया। 


     करीब 3 घंटे की नींद लेने के बाद रूद्र की आंख खुली और उसने शरण्या को जगाया ताकि वह दोनों मंदिर जाने के लिए निकल सके। शरण्या उठी और बाथरूम में चली गई। कुछ देर बाद फ्रेश होकर निकली तो रूद्र भी फ्रेश होने चला गया। शरण्या ने कपड़े बदले और रूद्र के लिए भी कुछ कपड़े निकाल कर रख दिया। जब तक वह तैयार हुई तब तक रूद्र भी बाथरूम से निकल चुका था। वह दोनों तैयार होकर मंदिर के लिए निकल गए। 


     गोलू मंदिर यानी ग्वेल मंदिर। जहां चारों ओर सिर्फ घंटियां है घंटियां नजर आती है। यहां जो भी मंदिर में मन्नत मांगने आता है वह घंटी जरूर बांधकर जाता है। शरण्या ने एक घंटी ली और 1 घंटी रूद्र की तरफ बढ़ाते हुए बोली, "तेरी कोई मन्नत नहीं है?"


    रूद्र ने वह घंटी हाथ में पकड़ ली। फिर कुछ देर उसे देखने के बाद वापस रखते हुए उसने कहा, "मेरी मन्नत तो तू है। तू मिल गई मुझे अब और किसी मन्नत की जरूरत नहीं। तुझे मांगना है तो तू मांग ले।"


     शरण्या ने मुस्कुराकर एक घंटी अपने पास रख ली और सीढ़ियों से होते हुए वह लोग ऊपर पहुंचे। कुछ देर पूजा की, भगवान के दर्शन किए उसके बाद घूमते फिरते शरण्या चारों ओर जगह ढूंढ रही थी जहां वह अपनी घंटी बांध सके लेकिन उसकी नजर जहां भी जाती हर जगह सिर्फ घटिया ही बंधी हुई थी। शरण्या का चेहरा मुरझा गया। उसका मुरझाया चेहरा देख रूद्र बोला, "मेरे रहते हुए तू क्यों टेंशन ले रही है? यह तेरी मन्नत ही घंटि है ना! इसे तो सबसे ऊपर होनी चाहिए।" कहते हुए रुद्र ने उसका हाथ पकड़ और लेकर एक खंबे के पास आया। 


     शरण्या बोली, "इतनी ऊंचाई पर मैं कैसे पहुंचूंगी?"


   रूद्र बोला, "मैं हूं ना! मेरे रहते तुझे टेंशन लेने की क्या जरूरत है?"


  शरण्या ने उसे घूर कर देखा और बोली, "ये मेरे मन्नत की घंटी है तू नहीं बाँध सकता और वैसे भी तेरी हाइट इतनी नहीं है कि तु सबसे ऊपर बांध सके और यह मंदिर है मुझे गोद में उठाने का सोचना भी मत। थोड़ा तो शर्म लिहाज रखा कर।" 


    रूद्र ने मुस्कुरा कर उसे देखा और वहां घुटने के बल बैठ गया। शरण्या उसे अजीब नजरों से देख रही थी तो रूद्र ने उसे अपने कंधे का इशारा किया। शरण्या ने मुस्कुराकर धीरे से उसके खम्बे को पकड़ते हुए रूद्र के कंधे पर चढ़ गयी। रुद्र बोला, "मजबूती से पकड़े रहना मैं खड़ा हो रहा हूं।"


     शरण्या ने खम्बे को मजबूती से पकड़ लिया और रूद्र धीरे से उठ खड़ा हुआ। दोनों की हाइट मिलाकर इतनी लंबी हो रही थी आराम से सबसे ऊपर अपनी घंटी बांध सकती थी। वहां मौजूद सभी आते जाते लोग उन दोनों को ही देख रहे थे और हंस भी रहे थे। 


     घंटी बांधते हुए शरण्या ने बस एक ही बात कही, "भगवान अगर मेरा और रुद्र का प्यार सच्चा है तो हम दोनों इस जन्म में जरुर मिले। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अपने प्यार के लिए रूद्र अपनी जिम्मेदारियों से भागे। कोई रास्ता ऐसा निकालो भगवान कि मैं और रूद्र कभी अलग ना हो पाए। आप जानते हो ना कि रूद्र मुझसे कितना प्यार करता है और मैं भी उसके बिना नहीं रह पाऊंगी। लेकिन जो हालात है मैं उसके साथ रह भी नहीं सकती। मैं किसी की लाइफ खराब नहीं करना चाहती भगवान। मेरी किस्मत का फैसला मैं आपको छोड़ती हूं। हमारे प्यार का क्या अंजाम होगा यह सब कुछ अब आप तय करोगे।" घंटी वंध जाने के बाद रूद्र ने धीरे से शरण्या को उतारा और वह दोनों कुछ देर वही घूमने फिरने के बाद वापस चले आए। 


       दोपहर का खाना उन दोनों ने बाहर ही खाया। वापस आश्रम आकर रूद्र ने अपनी मां को फोन लगाया और कुछ देर तक बातें करता रहा। शरण्या कमरे में आई तो देखा रुद्र फोन पर अपनी मां के साथ लगा हुआ था तो उसने फोन छीन लिया और खुद लेकर कमरे से बाहर निकल गई। रूद्र मुस्कुरा दिया और बोला, "जहां सास बहू में बिल्कुल नहीं पटती वही तुम दोनों एक दूसरे से अलग नहीं रहना चाहते। मां के लिए तो तुम उनकी बेटी हो और तुम्हारे लिए हो तुम्हारी मां। यार तुम दोनों साथ बहु कम, मां बेटी ज्यादा लगती हो। मुझे ना, दामाद वाली फीलिंग आ रही है।" फिर अपने सर पर मारते हुए बोला, "बकवास कर रहा है तू? आखिर कौन नहीं चाहेगा उसकी मां और उसकी बीवी दोनों इतने प्यार से रहे? एक हैप्पी लाइफ, हमेशा के लिए। इस दिन के लिए तूने कितने साल इंतजार किए हैं। तुम दोनों ने हीं कितने साल इंतजार किए हैं। जो होना था अब हो चुका। अब जो भी होगा सब अच्छा होगा।