Chapter 70
सुन मेरे हमसफ़र 63
Chapter
63
सिया ने मुस्कुराकर मिस्टर एंड मिसेज चौहान से कहा "आप लोग आइए, मैं आपको अपनी बहू से मिलवाती हूं।"
सिया मिस्टर एंड मिसेस चौहान को निशी और अव्यांश के पास ले गई। अव्यांश से वो कभी नहीं मिली थी लेकिन अव्यांश को इतना तो पता था कि उनका समर्थ से क्या रिश्ता है। अव्यांश ने किसी तरह का कोई पूर्वाग्रह नहीं दिखाया और झुक कर उन दोनों के पैर छुए। निशी ने भी ऐसे ही किया।
मिसेस चौहान अव्यांश को देख कर बोली "बिल्कुल अवनी की परछाई है। बेटे मां पर जाते हैं और बेटियां बाप पर। बड़ी प्यारी जोड़ी है तुम दोनों की। हमेशा खुश रहो और भगवान तुम दोनों की जोड़ी हमेशा बनाए रखे।" उसके बाद उन्होंने अव्यांश और निशी को कोई गिफ्ट दिया।
मिस्टर चौहान ने अपनी पत्नी को कुछ इशारा किया। मिसेस चौहान ने श्यामा की तरफ देखा और मुस्कुरा कर अपने पास आने को कहा। श्यामा चुपचाप उनके करीब गई और उन दोनों के पैर छू लिए। मिसेज चौहान ने श्यामा के सर पर हाथ फेर कर कहा "काश तुम मेरी बेटी होती! लेकिन कोई बात नहीं। हर रिश्ता खून से जुड़ा नहीं होता है। कुछ रिश्ते दिल से बनते हैं। तुम्हें सिद्धार्थ के साथ देख कर तकलीफ होती है, लेकिन उससे भी ज्यादा, कहीं ज्यादा खुशी होती है कि मेरे बच्चे की जिंदगी में तुम खुशियां लेकर आई।"
शिविका जल्दी से आगे आई और उसने भी उनके पैर छू लिए। मिस्टर एंड मिसेज चौहान ने शिवि के सर पर प्यार से हाथ फेरा और उसके हाथ में एक छोटा सा बॉक्स रखकर बोली "मना मत करना बेटा! बहुत प्यार से तुम्हारे लिए लेकर आई हूं।"
श्यामा उनसे ऐसा कुछ भी लेना नहीं चाहती थी और ना ही शिवि का कोई हक बनता था। फिर भी उन्होंने इतना प्यार और अपनेपन से दिया कि श्यामा मना नहीं कर पाई और शिवि को वो लेना पड़ा। सिया ने भी उनकी खुशी के लिए इशारे से उसे ऐसा ना करने को कहा। शिवि ने देखा, उसमे दो छोटे छोटे प्यारे से कान के बूंदे थे।
"हमें यहां से चलना चाहिए। इन लोगों के बीच हमारा कोई काम नहीं है।" कहते हुए सिया उन्हें अपने साथ ले गई जहां उनकी पूरी मंडली जमा थी। उन सब के जाने के बाद निशी अभी वहां जो कुछ भी हुआ, उसके बारे में सोचने में लगी थी।
'सब कुछ तो नॉर्मल था, तो फिर समर्थ भैया ने ऐसा बिहेव क्यों किया? एक पल को तो सबके चेहरे के भाव बदले थे फिर सभी नॉर्मल हो गए थे। लेकिन समर्थ भैया ऐसा नहीं कर पाए। उनके चेहरे पर खुशी जरा भी नजर नहीं आ रही थी।
' अव्यांश ने जब निशी को इस तरह सोचते देखा तो उसने पूछा क्या "हुआ क्या? सोच रही हो?"
निशी ने इनकार में सर हिलाया तो अव्यांश ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, "तुम यही सोच रही हो ना कि यह लोग जो आए है, वह कौन है और समर भाई ने इस तरह से रिएक्ट क्यों किया?"
निशी ने हैरानी से अव्यांश को देखा तो अव्यांश ने बड़े आराम से कहा "मैं समझ सकता हूं, तुम्हारे मन में क्या चल रहा है। तुम्हें इस बारे में कुछ पता नहीं तो जाहिर सी बात है तुम्हारी में यह सवाल उठना लाजमी है। मैंने तुम्हें बताया था ना कि ये बड़ी मां और बड़े पापा का पहला रिलेशनशिप नहीं है!"
निशी एकदम से बोल पड़ी "इसका मतलब बड़ी मां उन लोगों की बेटी नहीं है और समर्थ भैया को उनकी बेटी ने...........! लेकिन समर्थ भैया का रिएक्शन मुझे कुछ समझ नहीं आया। आखिर अपने नाना नानी से कुछ तो लगाव होना चाहिए! फिर उन्होंने ऐसा क्यों किया?"
अव्यांश धीरे से बोला "इस बारे में यहां बात करना सही नहीं है। बहुत कुछ ऐसा हुआ है जिसके कारण दोनों परिवार का रिश्ता टूटते टूटते बचा है और यह सब कुछ उनकी अपनी बेटी की वजह से। बहुत कुछ ऐसा किया है उन्होंने, जिसकी वजह से ना सिर्फ समर्थ भाई अपनी सगी मां से नफरत करते हैं बल्कि यह लोग भी अपनी बेटी से हर रिश्ता तोड़ चुके हैं। इस वक्त उनकी बेटी कहां है, किसी को कुछ नहीं पता। बस इतना जान लो कि वह औरत बड़े पापा को खुश नहीं देख सकती थी। बाकी की जितनी भी कहानी है वह तुम्हें सब धीरे-धीरे पता चली जाएगी। तुम चिंता मत करो, अब तुम मित्तल परिवार की बहू हो तो उस घर से जुड़े हर राज हर कहानी और हर बीते कल के बारे में तुम्हें जरूर बताया जाएगा।" निशी ने बस अपनी गर्दन हिला दी।
कुहू कुणाल को ढूंढने में लगी हुई थी। जहां उसने कुणाल को कार्तिक सिंघानिया के साथ छोड़ा था वहां उसे उन दोनों में से कोई नजर नहीं आया। कुहू को लगा शायद वह दोनों बातें करते हुए आगे निकल गए हो इसलिए उसने वहां आसपास उन्हें ढूंढा लेकिन दोनों में से कोई कुहू को नजर नहीं आया। हारकर उसने कुणाल का नंबर डायल कर दिया।
रिंग जा रही थी लेकिन कोई कॉल रिसीव नहीं कर रहा था। "यहां इतनी लाउड म्यूजिक तो बज नहीं रही तो फिर कुणाल है कहां जो उसे अपने फोन की घंटी सुनाई नहीं दे रही? या फिर उसका फोन साइलेंट है? कार्तिक भी तो वही था। एक काम करती हूं, मैं उसी का नंबर डायल कर देती हूं। शायद वह कुछ बताएं।" सोचते हुए कुहू ने अपना फोन बुक खोलो और उसमें से कार्तिक सिंघानिया का नंबर ढूंढने लगी।
पूरा फोन बुक में कांटेक्ट लिस्ट देखने के बाद भी उसे कहीं भी कार्तिक सिंघानिया का नाम नजर नहीं आया तो कुहू ने अपने सर पर हाथ मार कर खुद पर ही झल्लाते हुए कहा "तू भी ना पागल! तेरे पास उसका नंबर था कहां जो ढूंढ रही है! ना तूने कभी उसका नंबर मांगा और ना ही उसने कभी दिया। तेरा फोकस तो सिर्फ और सिर्फ कुणाल पर ही था। फिर भी मैं ऐसे ही हाथ पर हाथ रखे नहीं बैठ सकती। कहां हो तुम कुणाल?"
कुहू एक बार फिर कुणाल को ढूंढने के लिए निकली। 'अगर कुणाल यहां से चला गया है तो मेन गेट पर किसी को तो पता होगा!' यह सोचते हुए कुहू दरवाजे की तरफ बढ़ ही रही थी। वहां उसे किसी के चीखने चिल्लाने की आवाज सुनाई थी। देखा तो सुहानी किसी को बहुत बुरी तरह से मार रही थी, कभी हाथ से तो कभी अपने सैंडल से। और वो इंसान चुपचाप सुहानी के हाथ से मार खाए जा रहा था और फिर भी वह सुहानी को
प्रोवोक करने का मौका नहीं छोड़ रहा था।