Chapter 5
मेरे हमसफर 5
Chapter सारांश अवनी और बच्चों के डिस्चार्ज पेपर बनवा के ले आया। तब तक सिया और कंचन मिलकर सारा सामान पैक कर चुके थे। सारांश ने अवनी को गोद में उठाया और व्हील चेयर पर बैठा कर हॉस्पिटल से बाहर ले आया। दोनों बच्चे अपनी दादी और नानी के गोद में थे। सारांश जल्द से जल्द सब को लेकर घर पहुंचना चाहता था। हॉस्पिटल का माहौल उसे हर बार उस हादसे की याद दिला रहा था। पूरे रास्ते सारांश खामोश रहा। उसकी चुप्पी अवनी को परेशान कर रही थी। सारांश कम बोलने वाले इंसानों में था लेकिन उसका चुप रहना अवनी को किसी खतरे की घंटी लगी। लेकिन सबके होते हुए वह कुछ पूछ नहीं पाई। लेकिन सिया और कंचन बच्चो के नाम को लेकर आपस में उलझने लगी। दोनों बच्चें अपनी दादी नानी की बातें सुनकर रोने लगे तो सिया बोली, "बच्चों के घर के नाम मैं तय करूंगी। जिसको जो नाम रखना है रखे। मेरे पोते का नाम अंशु और पोती का नाम सोनू। इन दोनों नामों में मेरे सारांश और अवनी दोनों के नाम जुड़ते है। बाकी जो भी नाम रखना है रखो लेकिन घर में सभी इसी नाम से बुलाएंगे।" अवनी के घर आने से पहले ही श्यामा ने बच्चों का कमरा यानी अवनी का कमरा और पूरे घर को सजा दिया था। घर पहुंचते ही अवनी का जोरदार तरीके से सब ने स्वागत किया। श्यामा कैमरा लेकर बोली, "चलो अब तुम दोनों अपने बच्चों के साथ खड़े हो जाओ। एक फोटो तो बनती है ना बच्चे में स्वागत में। बच्चें जब बड़े हो जाएंगे तब कैसे पता चलेगा कि उनका स्वागत किस तरीके से हुआ था? कोई प्रूफ रहेगा तो बाद में बड़े होकर वह भी ऐसे ही करेंगे।" अवनी मुस्कुरा कर बोली "क्या भाभी आप भी! अभी अभी बच्चे पैदा हुए हैं और अभी आप उनके भी बच्चों के बारे में सोच रही हैं।" सिद्धार्थ श्यामा की साइड लेते हुए बोला "बिल्कुल! हमें सारी प्लानिंग पहले से करके रखनी होती है। और फिर बच्चों को बड़े होने में टाइम कितना लगता है! अभी देख लो इस भोंदू को! एकदम से दो बच्चों का बाप बन गया।" सारांश एक बार फिर चिढ़ गया। उसे ये नाम बिल्कुल भी पसंद नहीं आता था और सिद्धार्थ हमेशा उसे इस नाम से चिढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था। सारांश सिद्धार्थ से बोला "हां! आप तो भाभी को ही सपोर्ट करेंगे ना! और मैं कह दे रहा हूं, आप भी दो बच्चों के बाप है और अब मैं भी। तो हम इस वक्त इक्वल हैं। आइंदा मुझे इस नाम से मत बुलाएगा, वरना मैं नाराज हो जाऊंगा।" सिद्धार्थ ने प्यार से उसके गाल खींचे। सारांश अपने गाल छुड़ाते हुए बोला "भाई!! मैं कोई लड़की नहीं हूं जो आप मेरे गाल खींचते हो। भाभी है ना आपके पास!" वहां मौजूद सभी हंस पड़े। सिद्धार्थ बोला "तेरी नौटंकी खत्म हो गई हो तो बच्चों को कमरे में ले चले? अवनी को आराम की जरूरत है।" सिया ने शरारत से सिद्धार्थ की तरफ देखा और बोली "काफी एक्सपीरियंस हो गया बेटा तुझे! अच्छी बात है! बहुत अच्छी बात है!" सिद्धार्थ बस मुस्कुरा कर रह गया। सिया ने सोनू को सारांश को देना चाहा लेकिन सारांश आगे बढ़कर कंचन के पास गया और अंशु को गोद में ले लिया। श्यामा ने आगे बढ़कर बच्ची को सिया के गोद से लिया और अवनी के साथ उसके कमरे में चली गई। पीछे पीछे सारांश भी कमरे में चला आया तो श्यामा बोली, "देवर जी! आप बाहर जाओगे। फिलहाल ये कमरा आपका नहीं है। अगले कुछ दिन आपको यहां तांक झांक करने की भी इजाजत नहीं है।" सारांश ने बच्चे को पालने में सुलाया और प्यार से उसका चेहरा छू कर बाहर चला गया। अवनी और श्यामा दोनों के ही मन में यह बात खटकी। श्यामा ने हिचकिचाते हुए अवनी से पूछा "तुम्हें देवर जी का बर्ताव थोड़ा अजीब नहीं लगा? मेरा मतलब, उन्हें हमेशा से बेटी चाहिए थी। लेकिन मैंने उन्हें एक बार भी अपनी बेटी को प्यार करते नहीं देखा।" ये बात तो अवनी को भी खटकी थी। जब से दोनो बच्चों का जन्म हुआ था, सारांश का पूरा ध्यान सिर्फ अपने बेटे पर ही था। वो ज्यादा से ज्यादा वक्त उसी के साथ गुजारता था। लेकिन अवनी ने अपने मन को समझाया कि ऐसा कुछ नहीं। आज तो श्यामा ने भी ये बात नोटिस किया। "कही सच मे तो कोई ऐसी बात नही ?" अवनी का दिल घबराने लगा। फिर भी वो खुद को समझाते हुए श्यामा से बोली, "ऐसा नहीं है भाभी। बेटियां तो हमेशा ही अपने पापा की लाडली होती है। शायद वो अपने बेटे के साथ भी एक अच्छा रिश्ता चाहते है इसिलिए अभी से लगे है।" श्यामा ने कुछ नहीं कहा और वहां से चली गई। रात को सारे खाता खाने डाइनिंग टेबल पर थे लेकिन वहां अवनि नही थी। सारांश ने पूछा तो सिया बोली, "अभी कुछ दिन उसे सबसे दूर रहना होगा। इंफेक्शन का खतरा होता है। ना सिर्फ बच्चे को बल्कि माँ को भी। अब ये बात भी तुझे समझानी पड़ेगी क्या?" सारांश ने कुछ नही कहा। लेकिन श्यामा बोली "बस कुछ ही दिनों की बात है देवर जी। उसके बाद आपको आपके कमरे में शिफ्ट कर दिया जाएगा। आप अगर कहे तो आपके कमरे के बाहर एक टेबल कुर्सी का इंतजाम कर देते है। आप दोनो एक दूसरे को देखते हुए खाना इंजॉय करना। फिलहाल मैं उसी के लिए खाना लेकर जा रही हुँ।" सारांश बोला "उसकी जरूरत नहीं है। मैं यही खाना खा लूंगा" लेकिन जब श्यामा अवनी का खाना लेकर जाने लगी तो सारांश भी उसके पिछे पिछे अपना खाना लेकर चल दिया। श्यामा ने इशारे पूछा तो सारांश झेंपते हुए बोला, 'अभी आपने ही तो कहा था, कमरे के बाहर टेबल ---.:" सिया उसकी बात बीच में ही काटते हुए बोली, "बस बस! ज्यादा बहानेबाजी करते की जरूरत नहीं है। मैने पहले ही सारे इंतजाम कर दिए है। तुम जाओ और खाना खाओ। सिया के चेहरे पर गंभीर भाव थे लेकिन सारांश के जाने के बाद सिया, सिद्धार्थ और श्यामा की हंसी छूट गई। सारांश ऊपर जाते हुए सब की हसी की आवाज अच्छे से सुन रहा था और अवनी भी। अवनी समझ गई कि सभी सारांश के ऊपर हंस रहे है। अवनी उठी और कमरे के दरवाजे पर आई तो सारांश अपना खाना लेकर बाहर ही खड़ा था। सारांश का दिल किया वो अभी अपनी बीवी को गले लगा ले लेकिन ये दूरी भी जरूरी थी। दोनों एक दूसरे को देख रहे थे और उन दोनो के ही बीच एक अनदेखी सी दीवार थी। पीछे से श्यामा ने आवाज दी तो सारांश वही बाहर रखे टेबल पर अपना खाना रख दिया और अवनी कमरे के अंदर चली गई। श्यामा ने अवनी का खाना लगाया और बिना कुछ बोले बाहर चली गई। कुछ महीने पहले ही वो भी इस दौर से गुजरी थी। अवनी और सारांश दोनों के मनोभाव वो बहुत अच्छे से समझ रही थी। वहीं सारांश और अवनी बिना कुछ बोले बस एक दूसरे को देख अपना खाना खा रहे थे। सबका खाना खत्म हो चुका था और सिद्धार्थ सिया के साथ हॉल में बैठा काम की कुछ बातें कर रहा था। श्यामा समर्थ को सोने के लिए तैयार कर शिवि को लेकर वापस अपने कमरे में आ चुकी थी। काम की बात करते हुए सिया बोली, "बच्चों के नामकरण की विधि करवानी है। जिस तरह शिवि का हुआ था दोनों बच्चों का भी वैसा ही होना चाहिए। मैं नहीं चाहती सीड, अवनी या सारांश के मन में जरा सी भी कोई बात खटके। मेरे लिए मेरे चारो बच्चे एक जैसे है।" सिद्धार्थ बोला, "उससे भी ज्यादा ग्रैंड तरीके से करेंगे मॉम! आखिर यहां दो मेंबर्स जुड़े है हमारी फैमिली में। तो सेलिब्रेशन भी डबल होना चाहिए। एक काम करता हूँ, मै सारांश के बुलाकर लाता हूँ। वो बाप है बच्चो का तो उसके, थोड़े नखरे भी तो सहने होंगे।' सिद्धार्थ उठकर वहां से जाने को हुआ तभी उसकी नज़र नीचे आते हुए सारांश पर गई। उसने कहा - मैं तुम्हें भी बुलाने आ रहा था। माँ चाहती है बच्चों का नामकरण संस्कार बड़े पैमाने पर हो। जैसा शिवि के वक्त हुआ था। लेकिन मैं उससे भी बड़ा सेलिब्रेशन चाहता हुँ। क्या ख्याल है?" सारांश सपाट लहजे में बोला, 'मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। आप लोग भी इस बारे मे मत सोचिए।" सिया और सिद्धार्थ चौंक पड़े। वो सारांश ही था जिसने शिवि के नामकरण संस्कार को यादगार बनाया था और आपने बच्चो के लिए पहले से ही प्लानिंग कर रखी थी। इससे पहले कि सिया या सिद्धार्थ कुछ कहते, सारांश गेस्ट रूम मे चला गया। दोनों मां बेटे बस एक दूसरे का मुह ताकते रह गए। सबके सोने के बाद आधी रात के करिब सारांश उठा और बच्चों को देखने के लिए चला गया। अवनी आराम से सो रही थी और सिया भी उसके पास सो रही थी। उसने चुपके अन्दर दाखिल होकर दोनो बच्चों को देखा और अंशु को प्यार से गोद मे उठाकर उसके माथे को चूम लिया। किसी की नींद न खुले इसिलिए वो जल्दी से बाहर निकल गया और अपने कमरे चल चला आया। इससे पहले वो अपने कमरे का दरवाजा बन्द करता वहाँ सिगा चली आई। अपनी माँ को इस वक्त देख सारांश बोला "माँ आप? आप इस वक्त यहां ? मतलब मैं तो बच्चो को देखने गया था। दिन में तो आप लोग मुझे देखने भी नही देते।" सिया कमरे मे दाखिल होते हुए बोली, "बच्चों को देखने आया था या सिर्फ अंशु को देखने आया था?" सारांश कुछ बोलता उससे पहले ही सिया ने उसे डांट लगाते हुए कहा- "मुझसे झूठ बोलने का सोचना भी मत। ये बात सिर्फ मैने नही नोटिस की, श्यामा में भी नोटिस की। क्या लगता है तुम्हें ? क्या अवनी ने ये बात नोटिस नहीं किया होगा? बच्चों के नामकरण के लिए तु खुश नहीं है। नामकरण छोड़ो, जब से बच्चे इस दुनिया में आए है मैने तुम्हें खुश होते, नहीं देखा। आखिर ऐसी क्या बात है जो तू हम सबसे छुपा रहा है?" इतने में सिद्धार्थ भी वहां आ पहुंचा और बोला, "इसका जवाब तो तुझे देना ही होगा। जो भी बात है तू अवनी से छुपा रहा है। लेकिन अगर ये बात किसी और से परिवार के सामने आया तो पता है क्या होगा? अगर कुछ और बात है तो हम सभी उसका सॉल्यूशन ढूंढ सकते है। सच सच बता, तेरी परेशानी की वजह क्या है? आज जिस तरह तू अंशु के लिए बेचैन है और सोनू को इग्नोर कर रहा है, आगे चलकर ये बात बढ़ सकती है और बच्चो पर गलत असर ही करेगी। तेरी लाइफ का सबसे खुशी का लम्हा और तू ही खुश नहीं है, ऐसा क्यों?" सारांश जाकर बिस्तर पर बैठ गया। कुछ देर खामोश रहने के बाद वो बोला, "लाइफ में डैड की कमी हमेशा महसूस हुई। कभी किसी से कह नहीं पाया लेकिन मुझे आपसे जलन होती थी कि मेरी उनके साथ कोई याद नही, कोई तस्वीर तक नहीं। एहसास तो दूर की बात है।" सिद्धार्थ बोला, "लेकिन इस सबका तेरी परेशानी से क्या संबंध?" सारांश उन लम्हों को याद करता हुआ बोला, "आप जानती है मां! जब अंशु इस दुनिया में आया था, तब उसकी सांसे नहीं चल रही थी।" सिया का दिल जैसे धड़कना भूल गया। वो आंखे फाड़े सारांश को देखने लगी। सारांश बोला, "उस समय मेरी समझ में नहीं आया मैं क्या करू? किसको बताऊं किसको पुकारू? मैंने अपने बच्चे को सीने से लगा लिया उस वक्त जैसे मुझे किसी बात का होश ही नही था। मेरे दिल ने एकदम से डैड को याद किया, शायद मैं खुद एक बाप था इसीलिए।मुझे नहीं पता मैं कितनी देर वहां बैठा रहा। मुझे नहीं पता सोनू कब पैदा हुई। बस एकदम से लगा जैसे किसी ने मेरे सर पर हाथ रखा हो। मेरी आंखे बंद हो गई और मैंने बंद आंखों से डैड को देखा। वो मुस्कुरा रहे थे और मुझे भी मुस्कुराने को बोल रहे थे। उन्हें देखकर मेरी आंखों में आंसू उमड़ पड़े। फिर उनका चेहरा धुंधला पड़ने लगा और वो मेरी आंखों से ओझल हो गए। मैंने घबराकर अपनी आंखें खोली तो अंशु मेरी गोद में रो रहा था। वो रो रहा था मॉम! मेरा बच्चा मेरी गोद में रो रहा था। मेरे आंसू शायद उसकी आंखों में चले गए थे। कोई और वक्त होता तो मैं उसे चुप कराता लेकिन उसका रोना मुझे जो सुकून दे रहा था.............…...! वो पल मैं कभी नहीं भूल सकता मॉम! मेरे सर पर मेरे पिता का हाथ था और मेरी गोद में मेरा बच्चा। वो दोनो ही एहसास मेरे लिए नया था और पहली बार था। मैं उस एहसास को कभी भूल नहीं सकता। लेकिन इस सबने मुझे बुरी तरह डरा दिया है। हर पल एक डर...... इसीलिए मेरा पूरा ध्यान अंशु पर होता है। जानता हूं मै सोनू को उसके हिस्से का प्यार नहीं कर पा रहा लेकिन क्या करू! डैड को फिर से महसूस करने के लालच में मै अपने ही बच्चों के बीच फर्क कर रहा हु। लेकिन मैं क्या करू? मुझे कभी डैड का प्यार नसीब ही नहीं हुआ तो......….." सारांश का गला रूंध गया। सिया रो पड़ी और सारांश को जाकर गले से लगा लिया। उस वक्त वो भी तो शरद को ही याद कर रही थी। तो क्या वाकई में शरद ने बच्चों को बचाया? सिया कुछ नहीं सोचना चाहती थी और सारांश के कहे पर उसे कोई शक नही करना था। सिद्धार्थ की आंखे भी नम थी। उसने भी अपने भाई को जोर से गले लगा लिया। बाहर खड़ी अवनी जब अपने आंसू रोक नहीं पाई तो अपने कमरे में भागी जहां दोनों बच्चे अकेले थे।