Chapter 1
मेरे हमसफर 1
Chapter आधी रात से ज्यादा का वक्त हो रहा था। पूरे मित्तल हाउस में सन्नाटा पसरा हुआ था। अंधेरे में सिर्फ घड़ी की टिक टिक की आवाज आ रही थी। सारे अपने कमरे में बिना किसी फ़िक्र के आराम से सो रहे थे। सारांश भी अपने कमरे में आराम से सोया हुआ था। बालकनी तरफ का दरवाजा खुला था और वहां से हल्की-हल्की आती हवाएं कमरे को ठंडा कर रही थी कि तभी उसके चेहरे पर किसी ने जोर की चिकोटी काटी, जिससे सारांश जो कि गहरी नींद में था एकदम हड़बड़ा गया और चिल्लाया, "कौन है? कौन है? मैं पूछता हूं कौन है?" कमरे की लाइट ऑन हुई और सारांश अपने बिस्तर पर उठ बैठा उसकी नजर अपने सामने बैठी अवनी पर गई जो अपने दोनों गाल हथेलियों पर टिकाए उसे ही देख रही थी। सारांश को समझते देर नहीं लगी कि उसे चिकोटी काटने वाली और कोई नहीं उसकी बीवी अवनी ही है। उसने अपना सर पकड़ लिया और बोला, "क्या है? यह इस तरह कौन जगाता है? प्यार से भी जगाया जा सकता है ना? ज्यादा टाइम नहीं हुआ, जब तुम मुझे इतने प्यार से जगाया करती थी और अब........" अवनी बोली, "मुझे कभी आपको सुबह सुबह जगाने का मौका ही नहीं मिला। आप तो हमेशा मुझसे पहले उठकर कमरे से निकल जाते थे। अब जब मौका मिला है तो मैं क्यों छोड़ू?" सारांश बोला, "तो सारा बदला तुम अब ले रही हो? इतनी रात को कौन जगाता है? अब यह मत कहना कि तुम्हें फिर से मूड स्विंग्स हो रहे हैं।" अवनी मुस्कुरा कर अपने सर को दाएं बाएं हिलाते हुए बोली, "मेरा मूड स्विंग नहीं हो रहा बल्कि मुझे इस वक्त फालूदा खाने का मन कर रहा है।" सारांश ने अपने दोनों हाथों से अपना सर पकड़ लिया। अवनी बोली, "प्लीज जान! प्लीज ले आओ! देखो यह मैं नहीं कह रही, हमारे दोनों बच्चे कह रहे हैं। देखो ना अंदर कितना उछल कूद मचा रहे है। मुझे चैन से सोने भी नहीं दे रहे।" सारांश के पास अब और कोई रास्ता नहीं था। उसने अपने ऊपर से कंबल साइड किया और कमरे से निकल गया। इस वक्त इतनी रात को बाहर कुछ मिलने से रहा, ऐसे में उसे खुद ही कुछ करना था। अपने कमरे से निकलते हुए वह नीचे की तरफ जाने को ही था कि उसकी नजर सिद्धार्थ के कमरे की तरफ गई। नीचे जाने के बजाय उसके कदम उस ओर चले गए। दरवाजे के बाहर खड़े होकर उसने नॉक किया। कुछ देर दरवाजा नॉक करने के बाद सिद्धार्थ ने आंखें मलते हुए दरवाजा खोला और सारांश को अपने सामने देख झल्लाते हुए बोला, "तु इस वक्त इतनी रात गए यहां क्या कर रहा है? तुझे नींद नहीं आती क्या?" सारांश बोला, "भाई नींद ही तो नहीं पूरी हो रही मेरी। अवनी जब से प्रेग्नेंट हुई है तब से मेरी रातों की नींद दिन का चैन खो गया है। दिन में ऑफिस, हॉस्पिटल और रात में उसके नखरे। मुझे कहीं छुपा लो भाई, मुझे अपनी शरण में ले लो।" सिद्धार्थ चिढ़कर बोला, "सीधे-सीधे बोल तुझे चाहिए क्या? इतनी रात को मेरा दिमाग मत खा। वैसे भी शिविका और तेरी भाभी दोनों सो रही है। तेरे इस नौटंकी से उन दोनों की नींद खुल जाएगी और यह मैं नहीं चाहता। सारांश बोला, "भाभी जब प्रेग्नेंट थी तब आपने उन्हें कैसे संभाला था, बस यही बता दो।" सिद्धार्थ ने एक तीर्छि मुस्कुराहट के साथ कहा, "इतने टाइम में भी तू सीख नहीं पाया तो बेकार है तू। इंसान खुद की गलतियों से सीखता है। सारांश अपना सर खुजाते हुए बोला, "मतलब??“ सिद्धार्थ मुस्कुरा कर बोला, "मतलब तू खुद समझ जा। तुझे किसी ने नहीं कहा था अपनी बीवी को अपने सर पर चढ़ा कर रखने के लिए। माना ऑफिस का काम तु घर से करता है लेकिन फिर भी वर्क लोड ज्यादा होता है। ऊपर से तूने हॉस्पिटल भी देखना है। एक साथ कितने काम करेगा? मना किया था तुझे नया प्रोजेक्ट लेने से। माँ भी तैयार नहीं थी लेकिन तु नहीं माना। ये वक्त हर इंसान की लाइफ में बार-बार नहीं आते। अवनि की अगली प्रेगनेंसी तुझे फिर कब इंजॉय करने को मिले, क्या तू यह बता सकता है? नहीं ना! अब तो वैसे भी उसके दिन पूरे हो ही चुके हैं। इस सब के बारे में सोचने का अब वक्त नहीं है। तू जा और जाकर अपने बच्चों की होने वाली मां की सेवा कर। फिलहाल वही तेरी प्रायोरिटी है। अब निकल और मुझे सोने दे।" सिद्धार्थ ने एकदम से सारांश के मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया और सोने चला गया। सारांश नीचे किचन में गया और फ्रिज खोल कर देखा। उसे समझ नहीं आया कि इस वक्त वो क्या बनाएं। तभी उसे एक आईडिया आया और उसने रसगुल्ले का रस निकालकर उन्हें टुकड़ों में काट लिया ऊपर से क्रीम और कुछ ड्राई फ्रूट्स मिलाकर वह अवनी के लिए ले गया। जबसे अवनी प्रेग्नेंट हुई थी तब से ही उसे सारांश के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त चाहिए था। काव्या की तरह ही उसे भी मूड स्विंग्स होते थे जो कि नॉर्मल सी बात है लेकिन अगर कभी नहीं भी होते थे तब भी वो जानबूझकर सारांश को अपने करीब चाहती थी। इतने वक्त में सारांश कभी ऑफिस नहीं गया जब तक कि कुछ जरूरी मीटिंग ना हो। हॉस्पिटल भी कभी कभी जाता लेकिन कोई भी सर्जरी 2 घंटे से कम नहीं चलती और ये दो घंटे दस घंटे की मीटिंग से ज्यादा थका देने वाले होते थे। आज भी यही वजह थी जो सारांश थका हुआ था। अवनी ने जैसे ही सारांश को देखा, उसके चेहरे पर रौनक आ गयी और अपने दोनों बांहे फैलाकर बोली, "मै आपको बहुत ज्यादा परेशान करती हूँ ना? सारांश अपने हाथ में रखा प्लेट अवनि की तरफ बढ़ाते हुए मुस्कुरा कर बोला, "अगर तुम परेशान नहीं करोगी तो फिर कौन करेगी? हक है तुम्हारा। बच्चों को पता तो चले कि उसके डैड उसकी मॉम के कितने नखरे उठाते थे। वैसे भी यह वक्त हमें हमेशा याद रहेंगे। भाई बिलकुल सही बोले, जाने अगली बार फिर कब ये मौका मिले! लेकिन यह आखरी था। अब से तुम्हारी ऐसी कोई भी डिमांड पूरी नहीं की जाएगी। तुम्हारे दिन पूरे हो चुके हैं अवनि। ऐसे में तुम्हें इस तरह की चीजें नहीं खानी चाहिए। अगर मां को पता चल गया ना तो वो मेरी बैंड बजा देंगी।" अवनी ने मुस्कुराकर उस स्पेशल डिश को खाया जिसे सारांश ने खास उसके लिए बनाया था। सिंपल सी चीजों से बनी काफी टेस्टी थी। वह तो वैसे ही सारांश की कुकिंग स्किल्स की दीवानी थी। अचानक से उसे कुछ याद आया और खाते हुए एक निवाला सारांश की तरफ बढ़ा दिया। सारांश मुँह बीचका कर बोला, "इतना क्रीम तुम ही खाओ। मेरे से ना खाया जाएगा। मैं भी अगर तुम्हारी तरह हो गया तो लड़कियाँ मुझे............. " अवनि ने घुरकर सारांश की तरफ देखा तो बेचारा सारांश घबराहट में मुस्कुरा दिया। अवनि ने गुस्से में एक की बजाए 3, 4 चम्मच क्रीम सारांश के मुँह में डाल दिए फिर खुद खाने लगी। अवनि ने सारा खत्म किया और वापस बिस्तर पर लेट गयी। सारांश उसके बगल मे लेट गया और प्यार से उसके पेट पर हाथ फिराने लगा। अवनि को अपने अंदर थोड़ी हलचल महसूस हुई तो उसने सारांश को इशारे से अपना कान लगाने को कहा। सारांश भी आपने बच्चों को कुछ देर महसूस करता रहा और उसकी हरकतों को सुनने की कोशिश करता रहा। लेकिन एकदम से अवनि की चीख निकल गयी।