Chapter 103
YHAGK 102
Chapter
102
रूद्र की बातें सुन ईशान चिढ़ गया लेकिन उसके कॉन्फिडेंस से वह इंप्रेस हुए बिना ना रह पाया। रूद्र ने जो आईडिया दिया था बुरा नहीं था। वैसे भी इतने टाइम से वह लोग रिजेक्ट होते आए थे, एक और रिजेक्शन से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। ईशान के तो दोनों ही हाथ में लड्डू थे। अगर रूद्र का आईडिया काम कर जाता है तो फायदा उसी का होगा लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो वह पूरे सिंघानिया परिवार को और साथ में रॉय परिवार को बर्बाद कर देगा। ईशान अपनी प्लानिंग पर मुस्कुरा दिया।
रूद्र की बातें सुनकर वहां मौजूद सभी थोड़े हैरान जरूर हुए लेकिन जो लोग इस नियम को जानते हैं उन्हें रूद्र की बातें बिल्कुल सही लगी। ईशान के लिए तो बस एक खेल था। उसने कहा, "ठीक है!! अब जब हमारे रूद्र साहब यही चाहते हैं और वह हमसे ज्यादा बिजनेस की समझ रखते हैं तो यही सही। इस बार हम उन्हें किसी भी तरह का कोई अप्रोच नहीं करेंगे। देखते हैं, उनके पास इतनी फुर्सत है या नहीं कि हमें याद रखें।"
लेकिन रेहान को लगा शायद रूद्र उसे नीचा दिखाना चाहता है, इसलिए उसने इस बात का विरोध किया और ईशान से बोला, "नहीं ईशान! मेरी फाइल लगभग कंप्लीट है। शाम तक कैसे भी करके मैं इसे सबमिट कर दूंगा, देखना इस बार हमें सक्सेस जरूर मिलेगा। वह लोग हमारे आइडिया को रिजेक्ट नहीं कर पाएंगे।"
रेहान की बातें सुन रूद्र हैरानी से उसकी तरफ देखा और बोला, "हमारा आईडिया??? लेकिन ईशान तो इसे तुम्हारा आईडिया कह रहा था ना तो फिर यह हमारा कैसे हो गया? जब सारी मेहनत इसमें तुम्हारी है तो फिर इसमें नाम भी तुम्हारा होना चाहिए किसी और का नहीं! किसी और के साए में तुम अपना वजूद होते जा रहे हो रेहान!"
लावण्या बीच में बोली, "ईशान!!! तुम ऐसा नहीं कर सकते। रेहान ने बहुत मेहनत की है इस प्रोजेक्ट पर। इस तरह एकदम से पीछे हट जाना सही नहीं होगा। वैसे भी दुनिया सिर्फ टॉपर्स को पूछती है, सिर्फ नंबर वन को याद रखती है। सेकंड पोजीशन पर आने वालों को दुनिया भुला देती है तो उनकी राय भी कोई मायने नहीं रखती।"
धनराज जी को बुरा लगा। आखिर लावण्या ने एक बार फिर रूद्र को नीचा दिखाने का मौका नहीं छोड़ा। कॉलेज में रेहान हमेशा फर्स्ट पोजीशन लाता था और रूद्र सेकंड! इसी बात को लेकर लावण्या ने रूद्र को ताना मारा था।
ईशान को भी अच्छा लगा यह देखकर कि रूद्र के अपने ही घर वाले उसके खिलाफ खड़े थे। वह अकेला नहीं था जो रूद्र को तकलीफ दे रहा था। इस सब में उसका अपना परिवार भी शामिल था लेकिन रूद्र की बात तो उसे माननी ही थी। वह बोला, "कोई बात नहीं लावण्या! एक काम करो, जबतक ये आईडिया काम नही करता और उन लोगों की तरफ से रिस्पॉंस नहीं मिल जाता तबतक तुम और रेहान कुछ दिनों के लिए कहीं बाहर घूम आओ। तुम दोनों के लिए काफी अच्छा होगा। वैसे भी हम तो हर बार रिजेक्ट हो ही जाते हैं, इस बार नहीं होंगे जैसा कि मिस्टर रूद्र सिंघानिया ने कहा, क्यों रूद्र है ना?"
रूद्र ने भी अपना निचला होंठ भींच कर गर्दन थोड़ी सी टेढ़ी कर दी। वह भी ईशान के इस कमीनेपन पर मुस्कुरा दिया।
रेहान को बहुत ज्यादा गुस्सा आया। आखिर ये उसका प्रोजेक्ट था और इतने समय से वह इस पर काम करते आया था। आज अचानक से रूद्र ने आकर उसके काम में टांग अड़ा दी। रेहान ने अपना फाइल और लैपटॉप समेटा और गुस्से में वहां से निकल गया। लावण्या भी उसके पीछे पीछे निकल गई।
मिस्टर रॉय वहीं पर बैठे हुए थे। उन्होंने रूद्र की सारी हरकतें देखी। वह जानते थे कि रूद्र सही कह रहा है लेकिन अपनी बेटी के प्यार में वह इस बात को मानना नहीं चाहते थे। उन्होंने धनराज जी से कहा, "धनराज.....! यह हमारे ऑफिस का मामला है। इसमें छोटे से छोटा एंप्लॉय भी अपनी बात रख सकता है, अपनी सलाह दे सकता है। लेकिन जिसका इस कंपनी से कोई लेना देना ही नहीं है, उसे कोई हक नहीं बनता इस कंपनी के मामले में कुछ भी कहने का। आई होप तुम समझ गए होगे।" कहकर वह भी वहां से जाने के लिए उठे, उससे पहले ही रूद्र वहां से निकल जाना चाहता था।
लेकिन ईशान ने उसे रोकते हुए कहा, "हे रूद्र.........! हमारा ठीक से इंट्रोडक्शन नहीं हुआ। वैसे तो मैं तुम्हारे बारे में काफी कुछ जानता हूं लेकिन फिर भी एक ऑफिशियल तो बनता है! सो...... आई एम ईशान वालिया! तुम्हारे डैड की छोटी सी कंपनी का बड़ा सा मालिक कह सकते हो तुम!" कहते हुए ईशान ने मुस्कुरा कर अपना हाथ आगे बढ़ा दिया।
रूद्र ने एक पल को ईशान की आंखों में घूर कर देखा और फिर उससे हाथ मिला लिया। धनराज जी को डर था कि कहीं इन दोनों के बीच कोई बहसबाजी या कोई लड़ाई ना हो जाए। इन दोनों के ही बीच की कड़ी शरण्या थी जो इन दोनों को एक दूसरे से नफरत करने के लिए उकसा रही थी। अभी वह सोच ही रहे थे कि तभी कुछ चटकने की आवाज से उनका ध्यान भंग हुआ। ईशान एकदम से चिल्ला उठा, "आह......!!!"
किसी को कुछ भी समझ नही आया। ईशान अपना दाहिना हाथ संभाले दर्द बर्दास्त करने की कोशिश कर रहा था। "सॉरी! मुझे नही पता था तुम इतने कमजोर हो! वरना मैं कभी तुमसे हाथ नहीं मिलाता। वो क्या है न! तुम ठहरे एसी मे बैठ कर काम करने वाले और मै ठहरा दुसरो की गुलामी करने वाला। थोड़ा फर्क तो आएगा ही ना! फिर भी एक और बार सॉरी! अपने हाथ का इलाज करवा लेना। अगर बिल ज्यादा हुआ तो मुझे भेज देना मैं पेमेंट कर दूंगा। मुझे अभी जाना होगा, बाय! अब तो मुलाकातें होती रहेगी।" कहकर रूद्र वहाँ से तेजी से निकल गया। उसने एक बार पलटकर ईशान की तरफ नहीं देखा।
ईशान के हाथ में तेज दर्द हो रहा था। जाहिर सी बात थी, उसके हाथ में फैक्चर हुआ था और हड्डी के टूटने आवाज आई थी। एक तो वैसे ही ईशान का वह हाथ जख्मी था ऊपर से रही सही कसर रूद्र ने पूरी कर दी। ईशान अपना हाथ लेकर कराहता रह गया। उसका असिस्टेंट उसे लेकर जल्दी से हॉस्पिटल की तरफ दौड़ा। मीटिंग रूम में मौजूद सभी लोग एक दूसरे का चेहरा देखते रह गए। जिस ईशान की तरफ कोई उंगली नहीं उठा सकता था उसी ईशान का हाथ तोड़ कर कोई चला गया, यह बात किसी को हजम नहीं हो रही थी। लेकिन जो लोग ईशान से चिढ़ते थे और उसके तानाशाह रवैया से परेशान थे उन्हें लगा जैसे एक रूद्र ही है जो उसे बराबर का टक्कर दे सकता है।
धनराज जी को इसी बात का डर था। ललित बोले, "तुम्हारे बेटे ने अच्छा नहीं किया। वैसे ही वह हम सबकी जिंदगी में आग लगा चुका है और अब ईशान के साथ उसने दुश्मनी मोल ली। अब ना जाने ईशान उसके साथ क्या करेगा? मुझे उसकी परवाह नहीं लेकिन अपनी है! मुझे डर है कहीं इसका बदला ईशान हमारी कंपनी से ना लें! अपनी मनमर्जी करने का शौक है तुम्हारे बेटे को, दूसरों की जिंदगी से खेलना उसके लिए मजाक लगता है, है ना? एक बार फिर कह रहा हूं धनराज! अपने बेटे को काबू में रखो वरना वह एक दिन हम सब को सड़क पर लाकर खड़ा कर देगा। मेरी बच्ची ने उस पर भरोसा करने की बहुत बड़ी कीमत चुकाई है, अब तुम यह गलती मत करना वरना तुम्हारा भी वही हाल होगा जो मेरी बच्ची का..........!" मिस्टर रॉय अपनी बात पूरी किए बगैर वहां से चले गए।
एक एक कर सभी लोग वहां से अपने केबिन की तरफ निकल गए और धनराज जी वहीं बैठे सोचते रह गए। आखिर रूद्र के मन में चल क्या रहा है?"
रूद्र जैसे ही मीटिंग रूम से बाहर निकला, सभी स्टाफ मेम्बर्स की नजर उसी तरह घूम गई। रूद्र ने जिस तरह से ऑफिस में एंट्री मारी थी उससे वहां मौजूद सारी लड़कियां इंप्रेस होकर बस उसी को एक टक निहारे जा रही थी। लड़के तो बस जल भून कर राख हो रहे थे। यूं तो रुद्र और रेहान की शक्ल बिल्कुल एक जैसी थी और यह बात ऑफिस का हर स्टाफ मेंबर जानता था। लेकिन जब उन लोगों ने साक्षात रूद्र को अपने सामने देखा तब उन्हें रूद्र की पर्सनालिटी रेहान से काफी ज्यादा बेहतर लगी। इन आठ सालों में उन दोनों भाइयों में इतना अंतर आ चुका था कि अब कोई भी उन दोनों में फर्क कर सकता था।
रूद्र मीटिंग रूम से निकलकर दरवाजे की तरफ बढ़ने को हुआ तभी एक लड़की कॉफी लिए उस से जा टकराई। रूद्र ने उसे घूर कर देखा तो उस लड़की ने बड़े प्यार से कहा, "सॉरी वो मैंने देखा नहीं। लेकिन थैंक गॉड कि आपका सूट खराब नहीं हुआ।"
रूद्र ने देखा, उसके सूट पर कॉफी तो नहीं गिरी थी लेकिन उस लड़की की लिपस्टिक का हल्का सा निशान उसके सूट पर लग गया था। रूद्र ने आग उगलती हुई नजरों से उस लड़की को देखा तो वह लड़की सहम गई। सारे स्टाफ मेंबर खड़े हो गए और यह सोचने लगे, ना जाने अब उस लड़की के साथ क्या होगा?"
रूद्र ने उस लड़की को कुछ नहीं कहा लेकिन अपना महंगा सूट उतार कर वहीं मौजूद कचरे के डब्बे में फेंक दिया और वहां से आगे बढ़ गया। इससे पहले जो दरवाजे तक पहुंच पाता वो एकदम से रुका और पीछे पलट कर देखा तो वहां उसके पापा के पुराने मैनेजर खड़े थे।
मिस्टर वर्मा जो धनराज सिंघानिया के लिए काफी सालों से काम करते आए थे और उनके वफादार भी थे। रूद्र जैसे उनकी गोद में खेला हो। उनको देखकर ही रुद्र के चेहरे के भाव एकदम से नॉर्मल हो गए और गुस्सा एकदम से गायब हो गया। रूद्र मिस्टर वर्मा के पास गया और उनके पैर छूकर हाथ जोड़ लिए। मिस्टर वर्मा की आंखें नम हो गई। उन्होंने रूद्र के दोनों हाथ पकड़ते हुए कहा,"बहुत बड़े हो गए हो!"
रूद्र बोला, "चाहे जितना भी बड़ा हो जाऊं, आपसे तो छोटा ही रहूंगा! अपनों से कोई बड़ा नहीं होता!"
मिस्टर वर्मा बोले, "मालती अपने भाई को बहुत याद करती है!"
रूद्र उनके दोनों हाथ थामते हुए कहा, "मानती से कहिएगा, उसका भाई उससे मिलने बहुत जल्द आएगा और वह भी अपने पूरे परिवार के साथ। किसी भी चीज की जरूरत हो तो अपने इस बेटे से कहने में हिचकिचाइएगा मत। पापा से पहले आपका हक है मुझ पर, इतना याद रखिएगा और मुझे भी जब भी जरूरत होगी मैं सबसे पहले आप ही को परेशान करूंगा।"
वर्मा साहब मुस्कुरा दिए। रूद्र की जिंदगी में चाहे जो भी बदलाव आए हो, चाहे वह कितना भी क्यों ना बदल गया हो लेकिन अपनों के लिए ना बदला था ना कभी बदलेगा। वर्मा जी के लिए यही बहुत था कि रूद्र ने उन्हें इतना मान दिया है। शर्मा जी भी अपने काम पर लौट के आए और रूद्र भी ऑफिस से निकल गया। वह अच्छे से जानता था आज रात को जब रेहान से उसका सामना होगा तब घर में बम फूटने वाले है। लेकिन रूद्र भी कहां किसी की सुनने वाला था। वह पहले भी अपनी मर्जी का मालिक था और आज भी।
कुछ जरूरी काम था सो निपटाते हुए रूद्र घर पहुंचा, उस वक्त मौली कुछ पेंटिंग वगैरह कर रही थी। लेकिन बार-बार उससे गलती हो जा रही थी और वो उस पेपर को तोड़ मरोड़ कर फेंक देती। रूद्र ने देखा तो उसका हाथ पकड़ते हुए बोला, "ब्रश को इस तरह से स्ट्रोक मारते हैं, तभी पेंटिंग अच्छी होती है।"
मौली का हाथ पकड़े रूद्र उसकी पेंटिंग बनवाने में उसकी हेल्प कर रहा था। मौली को यह सब बहुत अच्छा लगता था। जब रूद्र खुद से उसे यह सब कुछ सिखाता था। पेंटिंग पूरी होने के बाद रूद्र ने एक फाइल निकालकर मौली की तरफ बढ़ा दिया और बोला, "देख लो, तुम्हारे लिए है!"
मौली ने जब खोलकर देखा तो वह खुशी से उछल पड़ी और बोली, "डैड..!!! मेरे एडमिशन पेपर!!! मतलब मेरा यहां एडमिशन हो गया है, इसका मतलब हम लोग वापस नहीं जा रहे हैं?"
रूद्र ने प्यार से उसके बाल खराब किए और बोला, "हां हो गया आपका एडमिशन वह भी राहुल के ही स्कूल में और हम यहां से नहीं जा रहे हैं। फिलहाल कुछ वक्त तो बिल्कुल भी नहीं। अगर हो सके तो हम लोग हमेशा के लिए यही सेटल हो जाएंगे। सब कुछ वक्त पर डिपेंड करता है।*
मौली बोली, "वक्त पर नहीं डैड! ऊंट पर!! कहते हैं कि ऊंट किस करवट बैठेगा।" कहते हुए मौली खुद ही ठहाके मारकर हंस पड़ी।
राहुल कमरे के बाहर खड़ा उन दोनों की बातें सुन रहा था। जब उसे पता चला कि मौली का एडमिशन उसी के स्कूल में हुआ है तब उसने मौली से अपने सारे पुराने हिसाब चुकता करने का मौका मिल गया। घर में भले ही कुछ ना कर पाए लेकिन स्कूल में उसके पास मौके ही मौके थे मौली से अपना बदला लेने के लिए।