Chapter 99
YHAGK 98
Chapter
98
रूद्र और मौली को धनराज जी घर तो ले आए थे लेकिन अब उन्हें रेहान की थोड़ी चिंता होने लगी थी। रूद्र का कहना भी सही था और उनका कहना भी। रेहान की गलतियों की सजा रूद्र ने भुगती और साथ ही शरण्या को भी बिना किसी गलती की सजा मिली। शाम को जब रेहान घर आएगा तब रूद्र को देखकर ना जाने वह किस तरह से रिएक्ट करेंगा, उन्हें इसी बात की चिंता थी। शिखा जी रूद्र की नजर उतार कर बोली, "जा जाकर फ्रेश हो आओ, मैं सबके लिए खाना लगाती हूं। रेहान और लावण्या का लंच भिजवाना है। तेरा कमरा तेरे पापा ने खुद अपने हाथों से तैयार किया है। हर एक चीज उन्होंने खुद अपने हाथों से सफाई है।
अपनी मां के कहे अनुसार रूद्र अपने कमरे की ओर चल दिया। मौली भी उसके पीछे-पीछे गई तो शिखा जी उसे रोकते हुए बोली, "तुम चलो मेरे साथ! तुम्हारे लिए मैंने खास कमरा तैयार किया है, राहुल के बगल वाला कमरा।"
मौली ने सुना तो अपना सर पिट लिया लेकिन वो अपनी दादी की बात टाल नहीं सकती थी इसलिए उसके साथ चली गई। रूद्र अपने कमरे से बाहर पहुंचा और बहुत ही हिम्मत करके उसने वो दरवाजा खोला। दरवाजे के पीछे वह महज एक कमरा नहीं था, यादें थी, जिंदगी थी उसकी। शरण्या से पहली मुलाकात से लेकर आखिरी मुलाकात तक सारी यादें इस कमरे में कैद थी।
ड्राइवर रूद्र का सामान लाकर उसके कमरे में रख दिया और चला गया। रूद्र ने अपना बैग खोला और उसमें से अपनी और शरण्या की वह बड़ी सी तस्वीर वहां लगा दिया। उसे अभी भी याद था उन दोनों की वो आखिरी मुलाकात। रूद्र बस हौले से मुस्कुरा दिया। शिखा जी ने मौली को उसके कमरे में छोड़ा और जरूरत की चीजें बता कर रूद्र के कमरे में उसे देखने चली आई। उससे पहले धनराज जी रूद्र के पास पहुंचे।
रूद्र को खामोश नजरों से शरण्या की तस्वीर देखते हुए पाया तो वह बोले, "क्या हुआ रूद्र? तुम तैयार नहीं हुए? खाना गरम है, ठंडा हो जाएगा। जल्दी से तैयार होकर आ जाओ..............। क्या हुआ, कुछ हुआ है क्या? तुम्हें अपना कमरा पसंद नहीं आया? मैंने पूरी कोशिश की तुम्हारे कमरे को वैसा ही रखु जैसा तुम रखते थे। शायद तुम्हें पसंद नहीं आया।"
रूद्र बोला, "कैसी बात कर रहे हैं आप पापा! ये कमरा अभी भी बिल्कुल वैसा ही है जैसा मैं चाहता था लेकिन लेकिन......... इस कमरे में मेरा रहना मुश्किल होगा। मैं कह रहा था पापा.......... मेरा यहां आना बहुत मुश्किल है! यह महज कमरा नहीं है पापा! इसमें मेरी और शरण्या की बहुत सी यादें जुड़ी हैं। यह कमरा मेरी दुनिया है और इस दुनिया में मैं अकेला नहीं रह सकता। अगर दूसरा कोई कमरा खाली हो तो प्लीज मुझे उसमें शिफ्ट करवा दीजिए।"
रूद्र ने जिस दर्द से अपनी बात कही उस दर्द को महसूस कर धनराज जी ने कोई सवाल नहीं किया और रूद्र के लिए दूसरा कमरा खुलवा दिया जोकि उस कमरे के बगल में ही था। रूद्र ने अपना जरूरी सामान निकाला और बाथरूम में चला गया।
शिखा जी सबके लिए खाना टेबल पर लगा रही थी। तब तक मौली भी तैयार होकर नीचे चली आई। रुद्र का एक बॉक्स गाड़ी में ही रह गया था। ड्राइवर उसे लेकर जैसे ही घर में दाखिल हुआ, गलती से वह बॉक्स उसके हाथ से छूटकर गिरा और अंदर का सामान फर्श पर बिखर गया। शिखा जी ने देखा तो वह गुस्सा करते हुए बोली, "यह क्या किया तुमने? सारा सामान खराब हो जाएगा! पहली बार यह काम कर रहे हो क्या? इतनी लापरवाही!!!" कहकर वह अंदर का सारा सामान समेटने लगी।
समान समेटते हुए उनके हाथ एक कपड़े का टुकड़ा लगा जिस पर हथेली के निशान बने हुए थे। उन्हें देख शिखा जी को कुछ समझ नहीं आया तब मौली ने कहा, "यह शरण्या मॉम की निशानी है। वो इसे हमेशा अपने पास रखते हैं। पता नहीं इस बार उन्होंने इसे यहां कैसे रख दिया?"
शिखा जी बस उस कपड़े को देखती रह गई और अपने बेटे के दिल की हालत का अंदाजा लगाने लगी। भारी मन से उन्होंने सारा सामान समेट कर वापस बॉक्स में डाला और रूद्र के कमरे में भिजवा दिया। कुछ देर बाद ही रूद्र डाइनिंग टेबल पर सबके साथ आ गया और खाना खाया।
अपने बेटे को अपने घर में अपनी नजरों के सामने बैठ खाना खाते देखना हर मां के लिए एक सुकून भरा पल होता है। वह बोली, "अगर मुझे पता होता कि तू आने वाला है तो सारा खाना तेरी पसंद का बना देती। लेकिन कोई बात नहीं आज रात सब कुछ तेरी पसंद का होगा। बता तुझे क्या खाना है?"
रूद्र बोला,,मेरे लिए ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है माँ! जो भी बनेगा मैं खा लूंगा। वैसे भी खाना खाना होता है उसमें पसंद ना पसंद की कोई बात नहीं होती। मुझे कुछ काम है मैं अपने कमरे में जाता हूं।" रूद्र उठा और अपने कमरे में चला गया। शिखा जी बस खामोश रह गई। घर के हालात ऐसे थे कि कोई भी एक दूसरे से ज्यादा बात ही नहीं कर रहा था लेकिन एक दूसरे के मन के भाव अच्छे से समझ रहे थे। धनराज जी ने भी बस उनकी शक्ल देखी लेकिन कहा कुछ नहीं। वो बहुत अच्छे से जानते थे, इस घर के माहौल को बदलने में बहुत ज्यादा वक्त लगने वाला है।
रूद्र अपने कमरे में गया और वहां जाकर उसने जल्दी से अपना फोन निकाला। उसके दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था, जिसकी काफी सारी कड़ियां गायब थी। उन सारे कड़ियों को जोड़ना था तब जाकर शायद वो शरण्या को ढूंढ पाए। उसने अपना फोन खोला और एक नंबर डायल कर दिया। दूसरी तरफ से उस इंसान ने पहले घंटी में ही फोन उठा लिया जैसे कि वह रूद्र के ही कॉल का इंतजार कर रहा हो।
धनराज जी के मन में बहुत कुछ चल रहा था। उन्हें बस आज रात का इंतजार था जब रेहान घर आएगा और वो रूद्र को इस घर में पाएगा। तब उसके हावभाव कैसे होंगे यह उन्हें देखना था। अपनी गलती की सजा अपनी भाई को भुगतते देखा क्या उसे जरा सी भी तकलीफ नहीं हुई? शरण्या की ऐसी हालत देख किसी का भी कलेजा कांप जाए लेकिन रेहान को कोई फर्क नहीं पड़ा। आखिर वह इतना पत्थर दिल कैसे हो सकता था।
अपनी सोच में डूबे हुए धनराज जी रूद्र के कमरे की तरफ से गुजरे तो साहसा उनकी नजर कमरे के अंदर गई। उन्होंने जो देखा उनके लिए थोड़ा नया था। रूद्र किसी से फोन पर बात कर रहा था और उसके चेहरे पर गुस्सा और सख्ती साफ नजर आ रही थी। उन्होंने रूद्र को कभी इस तरह से गुस्से में नहीं देखा था। वह किसी से कुछ जानकारी निकलवाने की बात कर रहा था लेकिन किस बारे में यह उन्हें समझ नहीं आया! उसने जल्दी ही फोन रख दिया लेकिन उसके चेहरे के भाव वैसे ही बरकरार थे। धनराज जी ने इस वक्त उसे टोकना सही नहीं समझा।
राहुल जब स्कूल से घर आया तब उसके साथ मानव भी था। विहान को मानसी को लेकर रेगुलर चेकअप के लिए हॉस्पिटल जाना था इसीलिए उसने मानव को राहुल के साथ सिंघानिया हाउस भेज दिया ताकि दोनों दोस्त एक दूसरे के साथ वक्त गुजार सके और थोड़ी पढ़ाई भी कर सके लेकिन राहुल और मानव एक साथ कहां पढ़ने वाले थे! उन्हें तो मस्ती करनी थी। वह दोनों राहुल के कमरे में गए अपना बैग बिस्तर पर पटका और बिना कपड़े बदले ही मोबाइल निकाल कर बैठ गए।
मौली ने जब देखा तो दरवाजे पर टेक लगाकर अपने दोनों बाजुओं को फोल्ड करके खड़ी हो गई लेकिन उन दोनों को इस से कोई मतलब नहीं था। उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ा कि कोई उन दोनों को देख रहा है। मौली ने अपना गला खराशा लेकिन उन दोनों ने साफ साफ उसे इग्नोर कर दिया। मौली ने भी अपना फोन निकाला और उन दोनों की फोटो खींच कर सेव कर लिया। पूरी दुनिया से बेखबर वह दोनों अपने गेम में लगे हुए थे। मौली ने बस एक तीखी सी स्माइल दी और अपने कमरे में चली गयी।
शाम के बाद रेहान घर आया तब लावण्या भी उसके साथ ही थी। घर आकर हॉल के सोफे पर उसने अपना बैग रखा और बैठ गया। आज काम काफी ज्यादा था और ईशान के साथ मीटिंग भी थी जो कि उसने आगे बढ़ा दी थी और वह मीटिंग शाम को हुई। ईशान ने बेवजह रेहान पर गुस्सा किया और सबके सामने उसे चार बातें सुना दी जिसकी वजह से रेहान का मूड उखड़ा हुआ था।
शिखा जी सबके लिए कॉफी लेकर आई। उन्होंने रेहान और लावण्या दोनों को कॉफी पकड़ाई और एक नौकर को आवाज लगाई, "ये कॉफि रूद्र के कमरे मे दे आना।"
रेहान ने जैसे ही रुद्र का नाम सुना उसकी जान सूख गई और कॉफी हलक में अटक गई। उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि रूद्र यहां इस घर में मौजूद होगा। वह तो इस घर में आना ही नहीं चाहता था, कम से कम उसने तो ऐसा ही कहा था तो फिर वह यहां कर क्या रहा है?"
मौली भागते हुए नीचे आई और रूद्र की कॉफि उठाते हुए बोली, "दादी मैं दे आती हूं उनको! डैड अभी मीटिंग में है। एक बार मीटिंग में होते हैं तो फिर उन्हें वक्त का पता ही नहीं चलता।" कहकर मौली रूद्र के कमरे की तरफ भागी।
रेहान के लिए आज का दिन बिल्कुल भी अच्छा नहीं था एक तो बेवजह ईशान की बातें सुनना उसमें भी रूद्र का घर पर होना। उसने राहुल को आवाज लगाई, "राहुल.......!"
राहुल भागता हुआ अपने कमरे से निकला और अपने पापा के सामने आकर खड़ा हो गया। रेहान ने उसकी क्लास लगाई और पूछा, "स्कूल से आने के बाद तुमने क्या क्या किया?"
राहुल साफ साफ झूठ बोल गया ,"डैड.......! मैंने और मानव ने पढ़ाई की। आज दिन भर जो क्लास में हुआ वह सब कुछ रिपीट किया।
रेहान ने फिर पूछा, "और मोबाइल..........?"
राहुल बोला, "नहीं पापा! आज तो हमने मोबाइल को हाथ भी नहीं लगाया।"
रेहान को थोड़ी तसल्ली मिली और बोला, "अच्छा लगा यह सुनकर! ऐसे ही पढ़ाई करते रहना, एक दिन बड़े होकर इस कंपनी को तुम्हें हीं संभालना है।"
मौली एकदम से उनके बीच में कूदते हुए बोली, "बिल्कुल.........! बिल्कुल अगर इसी तरह से पढ़ाई किया तो कंपनी संभाले या ना संभाले, कंपनी को डूबा जरूर देगा!"
रेहान मौली पर गुस्सा हो गया और बोला, "तुम कहना क्या चाहती हो? मेरे बेटे पर इल्जाम लगाने से पहले तुम्हें सोच लेना चाहिए!"
मौली हंसते हुए बोली, "मुझे कोई शौक नहीं है आपके बेटे पर इल्जाम लगाने का! लेकिन आपको भी शौक नहीं होना चाहिए कि अपने बेटे पर आंखें बंद करके भरोसा कर ले। उसकी आदतों को और उसकी कमी कमजोरियों को बेहतर तरीके से समझना चाहिए आपको। और मैं कोई इल्ज़ाम नहीं लगा रही हूं। आपका बेटा कितना सच बोल रहा है और कितना झूठ इस बात का सबूत है मेरे पास!!!"
कहकर उसने अपना फोन खोल कर रेहान के सामने रख दिया। मौली ने हर आधे घंटे पर राहुल और मानव की तस्वीर ली थी जिससे यह साफ जाहिर था कि राहुल ने अपने पापा से झूठ बोला है। राहुल को मौली पर बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था। आखिर उसका क्या हक बनता है जो उसने यह सब किया। यह बात उसके और उसके पिता के बीच की थी इसमें किसी को भी बीच मे पड़ने की जरूरत नहीं थी।
रेहान वैसे ही रूद्र के घर वापस आने से चिढा हुआ था। उसने उसका गुस्सा मौली पर निकालना चाहा और बोला, "किसी के भी प्राइवेसी में दखल देना अच्छी बात नहीं होती है। यह मेरे और मेरे बेटे के बीच की बात है, तुम्हें कोई जरूरत नहीं है हम दोनों के बीच बोलने की। शायद तुम्हें मैनर्स नहीं सिखाया गया!"
मौली रेहान की आंखों में आंखें डाल कर बोली, "मुझे मेरे डैड ने बहुत अच्छी परवरिश दी है और मैनर्स मेरे में कूट-कूट कर भरा है। लेकिन अगर कोई अपने मैनर्स भूलता है तो मैं कोई साधु नहीं हूं जो अपने मैनर्स पर कायम रहूं। जैसे को तैसा जवाब देना मेरे डैड ने मुझे सिखाया है। अगर आपका बेटा आपसे झूठ बोल रहा है ऐसे में उसे डांटने की बजाए आप मुझे सुना रहे हैं। इससे आपका बेटा क्या सीखेगा वह आप बेहतर समझ सकते हैं। शायद इतने समझदार तो आप हैं ही।" कहकर मौली वहां से चली गई। रेहान वह अवाक् सा खड़ा रह गया।