Chapter 11
Episode 11
Chapter
स्नेहा ऑफिस के बाहर खड़ी खड़ी सोच ही रही थी कि अब क्या किया जाए…?
इतने में पुलिस वहां आ पहुंची पुलिस ने छानबीन की और सीसीटीवी कैमरा के फुटेज चेक करने चली गई। फुटेज चेक करने के बाद स्नेहा के पास आकर पूछताछ करने लगे।
पुलिस इंस्पेक्टर ने स्नेहा से पूछा, "मैडम आपको किसी पर शक है? इस तरह का काम कौन कर सकता है?"
स्नेहा ने कहा, "नहीं सर मुझे इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं है। अगर इस बारे में कुछ मिलता है तो वह या तो सीसीटीवी फुटेज से पता चलेगा, या फिर हमारे सिक्योरिटी गार्ड बता पाएंगे कि यहां कौन आया था?"
सब कुछ जानने के बाद पुलिस ने आश्वासन दिया कि जल्दी इस बारे में जांच पड़ताल करके आपको सूचित कर देंगे। पुलिस कागजी कार्रवाई करके वापस चली गई।
स्नेहा ने कॉन्फ्रेंस रूम में सारे स्टाफ को बुलाया और कहा, "स्टाफ मेंबर... आप सबको यहां जो भी कुछ हुआ है वह दिखाई दे रहा है। इस सब में बाहर वाले का कोई हाथ नहीं हो सकता। जो भी किया है... जिसने भी किया है... वह यहीं का कोई मेंबर है। अगर आप चाहते हैं कि सब की नौकरी ना जाए... तो जो भी कोई है, सामने आ जाओ। नहीं तो मैं खुद सबको नौकरी से निकाल दूंगी।"
सारे स्टाफ में यह सुनते ही कानाफूसी शुरू हो गई सब बड़बड़ाने लगे कि यह कैसे हो सकता है। हम क्यों करेंगे यह सब???
स्नेहा ने फिर कड़क आवाज में कहा, "जो कोई भी है उसके लिए यह लास्ट वार्निंग है, या तो कल तक खुद से सरेंडर कर दे... नहीं तो मैं अपने हिसाब से ढूंढ कर निकाल लूंगी... पर यह ध्यान रखना कि अगर मैंने ढूंढा तो जो भी कोई इसके पीछे है। उसे कहीं और काम करने लायक नहीं छोडूंगी।"
सारा स्टाफ एक बार को डर गया पर फिर भी लोगों ने बातें करना शुरू कर दिया। कहने लगे, देखो दो दिन की आई हुई हमें नौकरी से निकालेगी और हमें धमकी दे रही है। पर स्नेहा ने किसी की एक ना सुनी और सबको बिना किसी चीज को हाथ लगाए वापस अपने अपने घर जाने के लिए कह दिया।
स्नेहा ने कहा, "आप सब लोग आज घर जा सकते हैं। कोई भी अपने डेस्क पर किसी भी चीज को हाथ नहीं लगाएगा। जो जैसा है उसे वैसा ही छोड़कर, आप लोग घर चले जाइए। जो भी होगा मैं देख लूंगी। अब आप लोग जा सकते है... यहां से।"
सारा स्टाफ एक-एक करके वापस घर चला गया।
स्नेहा अपने केबिन में थोड़ा टेंशन में बैठी थी। स्नेहा ने खुद से सिक्योरिटी गार्ड्स को बुलाकर पूछताछ भी की थी पर उसका कोई भी रिजल्ट नहीं निकला।
थोड़ी देर बाद प्रखर जी स्नेहा के केबिन में आए। आकर उन्होंने कहा, "स्नेहा बेटा कैसा रहा आज का सब कुछ…?"
इस पर स्नेहा ने कहा, "अंकल जी आप तो देख ही रहे है सब कुछ। पेपर्स, कंप्यूटर की हार्ड डिस्क और जरूरी कागज ऑफिस से गायब है। सीसीटीवी फुटेज में कोई भी गड़बड़ नहीं दिखाई दे रही है और किसी के भी अनजान के कोई फिंगरप्रिंट नहीं मिले।"
तब प्रखर जी ने कहा, "स्नेहा बेटे हम ऐसे किसी को भी नौकरी से निकालते तो हमारी कंपनी के लिए परेशानी वाली बात हो सकती थी। इस पूरे वाकये के बाद हम किसी को भी नौकरी से निकाल सकते हैं। उसके ऊपर हमें किसी को जवाब नहीं देना होगा।"
स्नेहा ने कहा, "वह तो ठीक है अंकल…!"
प्रखर जी ने कहा, "आओ स्नेहा बेटे... हम बाहर चलकर बात करते हैं।"
प्रखर जी और स्नेहा दोनों ऑफिस से बाहर स्नेहा की कार से चल दिए। कार शहर से बाहर एक घर पर जाकर रुकी।
प्रखर जी के पीछे-पीछे स्नेहा गाड़ी से उतरी और घर के अंदर चली गई। वो घर बहुत ज्यादा बड़ा तो नहीं था पर फिर भी ठीक-ठाक था। लगभग 5 या 6 कमरे, एक बड़ा सा हॉल, एक किचन लेट-बाथ और नार्मल घर में होने वाली सभी चीजें वहां रखी थी। प्रखर जी ने एक कमरे की तरफ स्नेहा को चलने का इशारा किया।
कमरे के अंदर बहुत सारे कंप्यूटर्स, हार्ड-डिस्क, फाइल्स और जरूरी कागजात के साथ-साथ दो लड़के बैठे हुए थे। जो कंप्यूटर कुछ काम कर रहे थे।
स्नेहा ने सवालिया नजरों से प्रखर जी की तरफ देखा तो उन्होंने कहा, "जैसे कि हमारी कल बात हुई थी। हमें केवल हमारे वफादार लोगों की जरूरत है और विराज के वफादार, उनको हमें काम से हटाना है। हमें कंप्यूटर हैकर की भी जरूरत है तो सारी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन यह रहा। यह दोनों लड़के कंप्यूटर जीनियस है, इन्होंने हमारे पूरे सिक्योरिटी सिस्टम को चेक कर लिया है। कहीं भी कोई भी लूप नहीं मिला है। ये लोग फिर भी सिक्योरिटी के लिए ये सब कर रहे हैं ।इन्होंने शुरू से सिक्योरिटी सिस्टम को स्टार्ट किया है और कुछ नये फंक्शंस और फीचर्स भी डाल दिए हैं। ताकि कोई भी छेड़खानी होने पर हमें तुरंत इस बात का पता चल जाएगा।"
स्नेहा ने आश्चर्य और तारीफ के मिले-जुले भावों के साथ प्रखर जी से कहा, "यू आर जीनियस अंकल…!!! इतनी जल्दी इतनी अच्छी प्लानिंग... कोई नहीं कर सकता था। अंकल एक काम और है पर उसके लिए हम कहीं बैठ कर बात करते हैं।" स्नेहा ने आसपास देखते हुए कहा।
फिर स्नेहा और प्रखर जी बाहर हाॅल में आकर बैठ गए। स्नेहा ने कहा, "अंकल इस बिजनेस को आपको ही संभालना पड़ेगा। मैं इस बिजनेस को नहीं चला पाऊंगी। दो दिन बाद मैं वापस जा रही हूं तो इस बिजनेस की जिम्मेदारी अब से आपकी है। मैं समय-समय पर आती रहूंगी पर यहां नहीं रह पाऊंगी।"
प्रखर जी ने कहा, "पर बेटा यह कैसे पॉसिबल होगा।"
स्नेहा ने कहा, "अंकल जो भी बिजनेस राइवल्स है या जो भी हमारे दुश्मन है। मैं उन्हें देख लूंगी पर बिजनेस की जिम्मेदारी आप ही को उठानी पड़ेगी। और मैं सोच रही हूं की प्रॉपर्टी भी एक ट्रस्ट के नाम कर दूं, वह ट्रस्ट अनाथ बच्चों के लिए काम करेगी। उनके लिए बैटर एजुकेशन और उनके फ्यूचर के लिए हम लोग काम करेंगे। अगर वह बच्चे चाहे तो आगे चलकर हमारी कंपनी में अपना योगदान दे सकते हैं।"
प्रखर जी ने कहा, "बेटा सोच तो काफी अच्छी है तुम्हारी। पर क्या यह पॉसिबल होगा…?"
स्नेहा ने कहा, "बिल्कुल अंकल आप फिलहाल के लिए इस बिजनेस की जिम्मेदारी संभाल लीजिए। फिर हम इस पूरी संपत्ति के लिए एक ट्रस्ट बनाकर कोई व्यवस्था देखेंगे।"
प्रखर जी बिजनेस संभालने के लिए मान गए थे। प्रखर जी ने कहा, "ठीक है बेटा... मैं यह पूरा बिजनेस संभालने के लिए तैयार हूं पर इस पूरे बिजनेस की कर्ता-धर्ता तुम ही रहोगी। मैं केवल तुम्हारा रिप्रेजेंटेटिव बनकर रहूंगा।"
स्नेहा भी इस बात के लिए तैयार हो गई। स्नेहा ने कहा, "अंकल कल से यह बिजनेस आपका है और आप ही को संभालना है। मैं कुछ समय के लिए आकर जो भी जरूरी कागज है उन पर साइन कर दूंगी। फिर आप अपने हिसाब से डिसीजन ले पाएंगे।"
यह बातें करते हुए स्नेहा और प्रखर जी वापस आ गए। वापस आकर स्नेहा अपने वकील के पास गई और अपनी संपत्ति से रिलेटेड अपनी वसीयत बनवा दी। उसके हिसाब से उस संपत्ति का 10% पीहू को दिया और अगर यह भी लिखवाया कि अगर स्नेहा की मृत्यु किसी भी संदिग्ध परिस्थिति में होती है, तो सारी संपत्ति एक ट्रस्ट के नाम चली जाएगी।
ऐसा लिखवाकर स्नेहा वापस आ गई। स्नेहा घर पहुंच कर सीधा अपने कमरे में चली गई। अपने कमरे में बैठकर सोचने लगी कि आगे और क्या-क्या काम बाकी है। जो उसे अपनी तंत्र साधना शुरू करने से पहले पूरे करने हैं। स्नेहा को याद आया उसकी मां ने एक बार उससे फोन पर बताया था कि वह कोई पूजा करवाना चाहती हैं। स्नेहा ने सोचा, "कि बस अब यह पूजा करवा दूं उसके बाद मेरे पास कोई भी जिम्मेदारी नहीं बचेगी। "
उसने पंडित जी को फोन लगाकर कल घर में पूजा रखवा दी। सारा सामान और पूजा की तैयारी के लिए पंडित जी से ही बोल दिया। स्नेहा अब निश्चिंत होकर सो सकती थी। तो उसने सोचा अब आराम कर लिया जाए।
दूसरे दिन सुबह स्नेहा जल्दी उठ गई थी, उसने सभी घरवालों को बता दिया कि आज घर में पूजा रखवाई है। आप लोग चाहें तो पूजा में हिस्सा ले सकते है। अगर ना चाहो तो जहां चाहे, वहां जा सकते हैं ऐसा कहकर स्नेहा पूजा की तैयारियों में लग गई। थोड़ी देर में पंडित जी आ गए और पूजा करवाने लगे। चाचा, बुआ और उनका परिवार मन मार कर पूजा में बैठे। पूजा के बाद स्नेहा ने पंडित जी को भोजन और दक्षिणा देकर विदा किया और खुद भी अपने कमरे में आराम करने चली गई।
स्नेहा ने सोचा, "बस कल का दिन है... जब हम रत्नमंजरी की आत्मा की शांति के लिए पूजा करने वाले हैं।" वह यह सोच कर खुश थी कि कल रत्नमंजरी को मुक्ति मिल जाएगी। तभी उसे याद आया कि कल से रत्नमंजरी ना तो दिखाई दी थी ना ही कोई संकेत दिया था कि वह कहां गई थी।
स्नेहा ने सोचा, "शायद हो सकता है... अपने महल को आखिरी बार देखने गई हो मुक्ति से पहले या फिर इतने समय से जहां थी वहीं आखिरी बार समय बिताने गई होंगी।"
यह सोच कर स्नेहा सो गई।
रत्नमंजरी वहां आई और स्नेहा से बहुत ही प्यार से मिली।
स्नेहा ने उनसे शिकायती स्वर में कहा, "आप सुबह से कहां थी…? आज दिखी भी नहीं... कहां चली गई थी?"
रत्नमंजरी बोली, "नहीं तो...मैं कहीं भी नहीं गई थी। बस यही आस पास थी।"
स्नेहा ने पूछा, "आप खुश तो हो ना।"
तब रत्नमंजरी ने कहा, "मैं खुश क्यों नहीं होऊंगी… मैं बहुत ज्यादा खुश हूं।"
स्नेहा ने कहा, "मैं बस पूछ रही हूं। आपकी कोई अंतिम इच्छा जो आप जाने से पूर्व पूरा करना चाहती हो।"
तब रत्नमंजरी ने स्नेहा का सर प्यार से सहलाते हुए कहा, "नहीं अब कोई इच्छा नहीं है... पर जाने से पहले, मैं तुम्हें कुछ देना चाहती हूं और तुम उसके लिए मना नहीं करोगी।"
ऐसा कहते ही स्नेहा की नींद खुल गई। स्नेहा ने सोचा, "मैं भी कितनी बेवकूफ हूं, आज दिन भर से रत्नमंजरी दिखाई नहीं दी, तो मैं खुद उनके सपने देखने लगी।" यह सोचते हुए स्नेहा फिर से सो गई।
दूसरे दिन स्नेहा कुछ समय के लिए ऑफिस गई और वहां सारे पेपर साइन करके प्रखर जी को दे दिए। ताकि उसकी अनुपस्थिति में बिजनेस में कोई भी रुकावट ना आए और सीधे उस रहस्यमय आवाज वाले व्यक्ति के श्मशान के लिए निकल गई।
अबकी बार स्नेहा को वहां पहुंचने में कोई भी परेशानी नहीं हुई। वहां गई तो स्नेहा ने देखा पूजा की सारी तैयारियां हो चुकी थी। दिन में देखने पर वह जगह बहुत ही खूबसूरत दिखाई दे रही थी। हालांकि चिताओं की भस्म अभी भी वहां थी और कुछ चिताएं जल भी रही थी। माहौल में बोझिलता या डरावनापन बिल्कुल भी नहीं था। एक गहन शांति और मन को प्रफुल्लित करने वाली सुगंधित पवन बह रही थी।
सामने ही महाकाली और श्मशान के अधिष्ठाता देव भगवान महाकाल भैरव का भव्य मंदिर था। शायद रात के अंधेरे के कारण पहले यह मंदिर स्नेहा को दिखाई नहीं दिया था पर अब सब कुछ बहुत अच्छे से दिखाई दे रहा था। आज भी उस रात की तरह ही जमीन में बहुत से अष्टदल कमल, षोडशदल कमल, कुछ यंत्र, हवन सामग्री और कुछ विशेष पूजन सामग्री भी वहां रखी थी। बीचोंबीच हवन कुंड बना हुआ था, उसके आसपास भी रंगोली और फूलों से सजावट की गई थी। पर उस रहस्यमय आवाज वाले व्यक्ति का कोई अता पता नहीं था।
स्नेहा वहीं बैठ कर उसका इंतजार करने लगी। कुछ ही देर बाद सामने से कोई आता दिखाई दिया। उस व्यक्ति ने लाल रंग की धोती, एक पैर में कड़ा, एक हाथ में एक विशेष प्रकार का चिमटे जैसा औजार था, जो उसके साथ चलने पर एक विशेष ध्वनि उत्पन्न कर रहा था। दूर से देखने पर उसके शरीर पर पानी की बूंदे, सूर्य के प्रकाश में हीरे के समान चमक रही थी। केशों पर भी पानी की बूंदे चमक रही थी, ऐसा लग रहा था मानो वह व्यक्ति अभी-अभी स्नान करके आ रहा हो। वह व्यक्ति धीरे-धीरे पास आ रहा था।
स्नेहा की नजरें उसी व्यक्ति पर जमी हुई थी। पहली बार स्नेहा को उसे देखकर एक अजीब सा आकर्षण अनुभव हो रहा था। शायद उस व्यक्ति का तेज ही इतना अनुपम था कि जो भी देखे उस पर मोहित हो जाए। वह व्यक्ति स्नेहा के नजदीक आया तो स्नेहा एकटक मंत्रमुग्ध भाव से उसे ही देख रही थी।
उसने पास आकर स्नेहा से पूछा, "स्नेहा… स्नेहा... यह तुम क्या कर रही हो?"
स्नेहा ने हड़बड़ा कर जवाब दिया, "कुछ नहीं... कुछ नहीं... हम यहां आज रत्नमंजरी की आत्मा की शांति के लिए पूजा करने वाले थे ना।"
उस आवाज ने कहा, "करने वाले थे नहीं... करने वाले हैं। पर उस पूजा के लिए तुम्हें यह पायल मुझे देनी पड़ेगी और इस पायल से अपना मोह छोड़ना होगा।"
स्नेहा ने पायल निकालकर उस व्यक्ति को दे दी। स्नेहा ने पूछा, "इतना समय हो गया है पर अभी तक मुझे आपका नाम तक नहीं पता है।"
"जल्दी ही मैं तुम्हें दीक्षा देने वाला हूं... तो मेरा नाम क्या है? इससे कोई अंतर नहीं पड़ता... अंतर केवल इस बात से पड़ता है कि आज के बाद तुम मुझे गुरुदेव कह कर संबोधित करोगी। वैसे मेरा नाम अच्युतानंद है।"
स्नेहा ने झुक कर उनके चरण स्पर्श किए।
उन्होंने रत्नमंजरी की आत्मा की शांति के लिए पूजा शुरु कर दी। जल्दी ही वह पूजा समाप्त हो गई। पूजा के समाप्त होते ही रत्नमंजरी वहां प्रकट हो गई। उसके चेहरे से बहुत ही करुणा थी, रत्नमंजरी हाथ जोड़कर अच्युतानंद को अपनी कृतज्ञता प्रकट कर रही थी।
रत्नमंजरी ने कहा, "प्रभु आपने मेरी इतने वर्षों की तपस्या को नष्ट होने से बचा लिया। आपने मेरे हाथों बहुत से दुष्कर्म होने से भी बचा लिए। अन्यथा पता नहीं कितने समय तक मुझे आत्मानंद के हाथों की कठपुतली बनकर पता नहीं क्या क्या बुरे कर्म करने पड़ते। आपने मेरी बहुत ज्यादा सहायता की है। उसके लिए मैं आपका जितना भी आभार करूं उतना कम है। इसलिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद…!!"
रत्नमंजरी ने स्नेहा से कहा, "स्नेहा तुम मेरी वंश में जन्मी हो... यह पायल तो अब तुम्हारे पास नहीं रह पाएगी, पर मैं बहुत कुछ तुम्हें अपनी प्रेम धरोहर के रूप में देना चाहती हूं।"
ऐसा कहकर रत्न मंजरी ने अपने दोनों हाथ जोड़कर भगवान से कुछ प्रार्थना की फिर स्नेहा से कहा, "अंतिम बार मैं तुम्हें छूकर तुम्हें कुछ देना चाहती हूं…!!"
स्नेहा ने अपने गुरुदेव की तरफ देखा तो अच्युतानंद ने पलक झपका कर अपनी आज्ञा प्रदान की। स्नेहा ने आगे बढ़कर अपने हाथ रत्नमंजरी की तरफ बढ़ा दिए।
रत्नमंजरी ने स्नेहा के हाथ पकड़ लिए, उसके हाथ पकड़ते ही स्नेहा के शरीर में एक विचित्र सा विद्युत प्रवाह शुरू हो गया।
रत्नमंजरी ने कहा, "यह मेरी तरफ से तुम्हारे लिए अंतिम भेंट…!!!"
ऐसा कहकर रत्नमंजरी एक दिव्य प्रकाश में विलुप्त हो गई और स्नेहा वहीं पर बेहोश होकर गिर पड़ी…