Chapter 70
humsafar 70
Chapter
70
श्रेया के सामने जो शख्स बैठा था वो एक पतला दुबला चश्मे वाला था जो कहीं से भी लक्ष्य के जैसा नही था। उसे यकीन नही हुआ की सारांश ने जिसे ढूँढा वो इंसान गलत है या फिर उस लक्ष्य की पहचान ही गलत है लेकिन उसके दोस्त तक उसे लक्ष्य ही बुलाते थे और उसने खुद भी अपना नाम यही बताया था। "अगर ये लक्ष्य है तो फिर वो कौन है जो लक्ष्य बन कर हमारे साथ खेल खेलता रहा?"
श्रेया को लगा वो अभी चक्कर खा कर गिर पड़ेगी। उसने अपना सिर पकड़ लिया। "आपको यकीन है की कुछ गड़बड़ नही हुई है, मेरा मतलब कॉलेज मे कोई दूसरा भी तो हो सकता है! वो कॉलेज मे आराम से घूमता था और कोई उसे कुछ नही कहता था। अगर कोई बाहर का होता तो प्रिंसिपल या प्रोफेसर मे कोई तो टोकता लेकिन नही....! वो तो सबसे मिलता था एक नॉर्मल स्टूडेंट की तरह। आप फिर से एक बार चेक कीजिए।"
सारांश ने उसके सामने कॉलेज के पिछले पाँच सालों के स्टूडेंट रिकॉर्ड रख दिये जिनमे सारे लड़को की इंफोर्मेसन थी। श्रेया ने एक एक कर सभी को चेक किया लेकिन उसमे उस लक्ष्य के बारे मे कही से कुछ नही मिला यहाँ तक की उस कॉलेज मे लक्ष्य नाम का एक ही स्टूडेंट था जो उसके सामने ही बैठा था। मानव भी उन सभी फोल्डर को ध्यान से देखने लगा लेकिन लक्ष्य का कही कोई सुराग नही मिला।
"मैंने कहा था न, इस लड़के के आइडेंटीटी मे कुछ तो गड़बड़ जरूर है! वो दिखने मे कैसा है, मतलब उसका हुलिया कैसा है?" सारांश ने पूछा।
"वो कद काठी मे आपके जितना ही होगा। दिखने मे किसी अच्छे घर से लगता है, उसका पहनावा से लेकर उसके लुक्स तक। घने काले बाल, सुर्ख गुलाबी होंठ, तीखी नाक, होठो के उपर एक छोटा सा तिल बड़ी सी आंखे....!" श्रेया ने कहा।
उसका डिसक्रिप्सन् सुनकर मानव का चेहरा उतर गया लेकिन सारांश के दिमाग मे उसकी तस्वीर बन रही थी जिसके कारण मन मे कुछ विचार उमड़ रहे थे। उन्हे शांत कर वह बोला, "आँखों का रंग!!! आँखों का रंग कैसा है?" पहले तो श्रेया चौंक गयी लेकिन फिर कुछ सोचकर बोली, "काला.... काला ही है।"
"तुम्हें पूरा यकीन है?" सारांश ने फिर पूछा तो श्रेया ने हाँ मे अपना सिर हिला दिया। 'नही! ये वो नही हो सकता' सोच सारांश किसी ख्याल मे डूब गया। "एक बात पूछूँ श्रेया? सच सच बताओगी?" सारांश ने कहा।
"बिलकुल! आपसे झूठ क्यों बोलूँगी मै?" श्रेया ने कहा।
" अवनि इस लक्ष्य या जो भी नाम है क्या वो इसको डेट कर रही थी? क्या वो इसके साथ रिलेसनशिप मे थी?" सारांश ने धीमी आवाज़ मे पूछा। इस सवाल को करते हुए उसका दिल घबरा रहा था।
श्रेया उसका ये सवाल सुन चुप हो गयी। उसकी समझ मे नही आया की वो क्या जवाब दे लेकिन उसे कुछ तक बोलना ही था वरना उसकी चुप्पी का मतलब हाँ ही होता। "एक बार उसने अवनि को कुछ गुंडों से बचाया था उसके बाद अवनि उसका एहसान मनाने लगी थी। कुछ ही दिनों के बाद उसने अवनि को सामने से प्रपोज़ कर दिया जिसे अवनि ना नही बोल पाई।
उसके एहसान के बदले उसने.....उसने अपनी आज़ादी उसे दे दी! लेकिन मै जानती थी उसके इरादे! इसीलिए मैने कभी उसे अवनि के करीब आने का मौका ही नही दिया। फिर कुछ दिनों मे ही वो बाहर चला गया पढाई करने। इस बीच वो कभी आया ही नही और दो साल बाद लौटा तो अपने उसी बदले के लिए। वो अब तक नही भुला है वो सब। अपनी नाराज़गी का डर दिखा कर उसने अवनि को वो सब छोड़ने को मजबूर किया जो उसे हमेशा से पसंद था। उसका गाना, डांस करना, खाने की पसंद से लेकर उसके कपड़े उसकी आइसक्रीम के फ्लेवर तक उसने बदल कर रख दिये।
अवनि वो अवनि नही रह गयी थी जो वो हमेशा से थी। लेकिन जब से आप आये है उसकी लाइफ मे आ फिर से पहले की तरह होने लगी है। वो सब कुछ करने लगी है जो वो करती थी। वो आपसे बहुत ज्यादा प्यार करती है सारांश। उसने सिर्फ आप से प्यार किया है सिर्फ आपसे। जब आप यहाँ नही थे तब उसकी जो हालत थी वो हम सब ने देखा है। उसने आपको कुछ नही बताया शायद इसलिए क्योंकि उसके मन मे डर है, आपको खो देने का डर!!!"
श्रेया ने अपनी बात पूरी की लेकिन सारांश ने कुछ नही कहा, वो चुपचाप वहीं बैठा रहा। उसके मन मे कई सारे सवाल कई सारी बातें घूम रही थी। श्रेया सारांश को यूँ चुप देख थोड़ा घबरा गयी और कुछ कहने के लिए मुह खोला लेकिन कुछ कह ना पाई। कुछ देर बाद सारांश ने नितिन को बोल श्रेया और मानव को घर पहुँचा दिया और घर जाने को बोल दिया।
उधर अवनि घर के अंदर पहुँची तो जानकी ने उसे देख कर पूछा, "क्या हुआ अवनि? तुम्हारा चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों है? सारांश से झगडा हुआ क्या जो तुम इतनी जल्दी आ गयी! बताओ मुझे, मै अच्छे से खबर लूँगी उस नकचढ़े की! मेरी बच्ची को परेशान करना भूल जायेगा।"
जानकी की बात सुन अवनि मुस्कुरा दी, "वैसे नाम अच्छा है, नकचढा!!! मासी.....! मुझे कुछ नही हुआ है बल्कि परेशान तो ये लग रहे है। अचानक से पता नही क्या हुआ! श्रेया के घर से निकलने के बाद से ही....! अभी मुझे यहाँ छोड़कर ऑफिस गए है, कहा कुछ काम है लेकिन पता नही क्यों मासी, मेरा दिल घबरा रहा है!!! लगता है जैसे कुछ बुरा होने वाला है।"
"अपने मन को शांत रख मेरी बच्ची, अच्छा सोचेगी तो सब अच्छा ही होगा इसीलिए शुभ शुभ सोचो।" जानकी ने कहा। वही रज्जो उन दोनो की बाते सुन रही थी।
"उससे बड़ा अशुभ और क्या हो सकता है मासी! किसका नाम ले लिया!!!" रज्जो ने कहा तो अवनि उसे अजीब नजरो से घूरने लगी। "तुम किसकी बात कर रही हो रज्जो?" अवनि ने सवाल किया।
"वही....! इस कुल का कलंक, नीली आँखों वाला शैतान! जीजी माँ बिलकुल ठीक कहती है, नीली आँखे शैतान की होती है। जीजी माँ पता नही कैसे बर्दास्त करती है उसे। लेकिन वो भी क्या करे, है तो उनका अपना बेटा ही। आखिर कैसे उसे छोड़ दे। उन्होंने तो उसे सुधारने के लिए हर मुमकिन कोशिश की लेकिन........!" रज्जो बोलते बोलते रुक गयी।
"मॉम का अपना बेटा? लेकिन उनके तो दो ही बेटे है ना?" अवनि ने हैरानी से पूछा।
"दो नही तीन! बेटे तो सही मायने मे दो ही है वो तीसरा तो शैतान का रूप है! सारांश ब्रो से छोटा है, नाम है शुभ! ना जाने क्या सोचकर उसका नाम रखा गया होगा। सिर्फ नाम ही शुभ है बाकी सारे काम..... तौबा तौबा! अभी दो साल पहले की ही बात है, एनजीओ मे जो है न हमारी नवी! उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी उसने, तब से जेल मे था। जीजी माँ ने पूरी कोशिश की ताकिवो बाहर न निकल पाए। हार मान चुके है सब उससे, और दिखने मे इतना खूबसूरत है की पूछो मत, उसपर से उसकी नीली आँखे..... कोई और होता तो मै भी फिसल जाती उसपर लेकिन.......!" रज्जो गुस्से मे बोले जा रही थी तभी उसी नज़र सामने खड़ी जानकी पर गयी जो उसे ही घूर रही थी तो वह चुप हो गयी और वहाँ से चली गयी।
अवनि रज्जो की बात सुन एक बार जानकी की तरफ मुड़ी ताकि उसे रज्जो की बात पर भरोसा हो सके लेकिन जानकी का चेहरा देख अवनि बिना कुछ कहे सब समझ गयी। उसने जानकी का उतरा हुआ चेहरा देखा और बोली, "मासी....! आज खाने मे क्या बनाने का प्लान है? एक काम करते है, आज मै आपकी हेल्प करती हू किचन मे" कहकर अवनि ने जानकी को काँधे से पकड़ा और उसे किचन मे ले गयी।
सब के जाने के बाद भी सारांश वैसे ही बैठा रहा। श्रेया की बाते उसके दिमाग मे घूम रही थी। रात के एक बजने वाले थे और आज पहली बार उसे घर जाने का मन नही हो रहा था। उसने एक बार घडी देखी और आँखे बन्द कर कुर्सी पर आराम से बैठा रहा। खाली छत को निहारते हुए सारांश खुद से सवाल करता रहा, "क्या मुझे तुम पर, तुम्हारे प्यार पर यकीन करना चाहिए? इतनी बड़ी बात तुमने बताई क्यों नही? क्या इतना भी भरोसा नही था मुझ पर?"
सारांश बुझे मन से उठकर बाहर आया और एक बार खुले आसमान की ओर देखकर गाड़ी मे बैठा और घर के लिए निकल गया।