Chapter 27

Chapter 27

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Chapter

27  

    चित्रा शादी मे पहनने के लिए कपड़े सेलेक्ट करने मे लगी थी मगर उसे एक भी ड्रेस पसंद नही आ रही थी क्योंकि उसने पहले कभी कोई शादी अटेंड नही की थी। शादी के नाम से ही उसे चिढ़ होती थी और आज से पहले कभी कपड़ो के मामले मे चूज़ी नही थी, जो हाथ आता वही पहन लेती मगर आज उसे तैयार होना था, पर कैसे? 

     चित्र ने सारे कपड़े बेड पर पटके और छत पर चली गयी। कार्तिक फोन पर बात करने छत पर आया तो देखा चित्रा रेलिंग के दीवार पर बैठी कुछ सोच रही थी। उसने अपना फोन जेब मे रखा और उकसाने के अंदाज़ मे बोला, "सुसाइड करने जा रही है!!! कर ले कर ले!! लेकिन आज नही प्लीज, आज शादी है मेरी। मेरी शादी हो जाने दे, कल कर लेना।" 

    चित्रा का मूड वैसे ही खराब था उपर से कार्तिक के कमेंट ने आग मे घी का काम किया। वह गुस्से मे दीवार से नीचे कूदी और पंच मारने के लिए जैसे ही हाथ आगे बढ़ाया कार्तिक ने झट से उसका हाथ पकड़कर कलाई को पीछे मोड़ दिया। उसने दूसरे हाथ का इस्तमाल करना चाहा तो कार्तिक ने फिर वैसे ही किया। अब चित्रा के दोनो हाथ उसकी पीठ पर थे और वो खुद कार्तिक के सामने खड़ी थी।  पहले तो उसने कार्तिक की पकड़ से छूटने की पूरी कोशिश की मगर जैसे उसकी आँखों मे देखा वह एकदम से शांत पड़ गयी। 

     चित्रा के दिल की धड़कन अचानक ही तेज हो गयी। ये कोई पहली बार नही जब दोनो ऐसे लड़ रहे हो लेकिन ये एक अलग सा एहसास था जो पहली बार चित्रा को महसूस हो रहा था। वह कार्तिक की पकड़ से छुटना नही चाह रही थी। उसकी नज़दीकीयो का जादू उसे अपनी गिरफ्त मे ले रहा था।  कार्तिक थोड़ा सा उसकी ओर झुका तो चित्रा ने हौले से अपनी आँखे बंद कर ली। तभी कार्तिक की आवाज़ उसके कानों मे पड़ी , "आज शादी है मेरी.....तो वही फटे पुराने मत पहनना, थोड़ा ढँग के कपड़े पहन कर आना और थोड़े लड़कियो वाले कपड़े पहन कर आना।"

    कार्तिक की बात सुन चित्रा का गुस्सा फिर से भड़क गया। वह गुस्से मे खुद को छुड़ाते हुए बोली, "अगर मै अछे से तैयार हुई न तो तु अपनी काव्या को भूल जायेगा, लगा ले शर्त।"

कार्तिक हँसते हुए बोला, "तु.! और काव्या से सुंदर!! कभी नही। लगी शर्त! अगर मै जीता तो?" 

   "तो जो तु कहेगा..! कुछ भी, मै करूँगी। और अगर मै जीती तो....! तो....! तो....!" चित्रा जो अभी भी कार्तिक के चंगुल मे थी, उसके थोड़ा और करीब आई और बोली, "तो क्या तु काव्या को छोड़ कर मुझ से शादी करेगा?"

    कार्तिक की आँखे हैरानी से फैल गयी और चित्रा पर उसकी पकड़ ढीली पड़ गयी। चित्रा ने भी फ़ौरन खुद को छुड़ाया और उससे दूर गयी, "क्या हुआ? इतने मे ही फट गयी तेरी!" कहकर वह जोर से ठहाके मार कर हँसने लगी। कार्तिक के चेहरे पर कई तरह के भाव आ जा रहे थे। थोड़ी देर चित्रा को घूरने के बाद वह तेजी से वहाँ से निकल गया। 

    चित्रा जो अभी हँस रही थी अचानक ही उसकी रुलाई छूट गयी। कार्तिक नीचे चला आया मगर उसका दिल अभी तक बेचैन था। चित्रा ने उसके दिल के शांत पड़े तालाब मे एक कंकड़ फेक कर मारा था जिसके कारण थोड़ी हलचल होनी लाजमी थी। इस वक़्त उसे अपनी बेचैनी की एक ही दवा नज़र आ रही थी और वो थी काव्या। मगर शादी से पहले उससे मिल नही सकता था फिर भी एक कोशिश तो करनी ही थी।

    काव्या गौरी पूजन के लिए गयी थी। उस समय कंचन और अवनि भी उसके साथ ही थे। घर के जिस हिस्से मे गौरी पूजन होना था उसे शादी के लिए ही अस्थायी तौर पर घर के दूसरे साइड बनाया गया था। कार्तिक वहाँ पहुँचा तो अवनि बाहर ही मिल गयी, "ये कहाँ घुसे चले आ रहे है जीजू? पता है न इस तरह शादी से पहले मिलना अपशगुन माना जाता है। आप जा रहे है या फिर बुलाउ मै चित्रा को?" अवनि ने धमकी भरे स्वर मे कहा। 

    चित्रा का नाम सुन कार्तिक और बेचैन हो गया। उसे कैसे भी कर के काव्या से मिलना ही था, तो उसने अवनि से रिक्वेस्ट की सिर्फ एक बार मिलने की। थोड़ा मनाने के बाद अवनि मान तो गयी मगर तुरंत ही बायी हथेली आगे कर दी। कार्तिक ने अपना पर्स निकाला और जितने भी कैश थे वो सब उसके हाथ मे पकड़ा दिया, " लूट लो आज मुझे! मै भी सूद समेत वापस लूँगा।"कार्तिक ने नकली गुस्सा दिखाया। 

   "अरे जीजू..! आज तो हक है हमारा लूटने का और आपका लुटने का। आप यही वेट करिए मै जुगाड़ लगाती हु, लेकिन सिर्फ दो मिनट उससे ज्यादा नही।" कहकर अवनि चली गयी। काव्या कंचन के साथ मंदिर मे पूजा करने मे लगी थी। पूजा खत्म होने के बाद जब दोनो निकले तभी अवनि ने कंचन को बहाने से घर के अंदर भेज दिया और काव्या को लेकर कार्तिक के पास आ गयी। 

     काव्या और कार्तिक को वही अकेले छोड़ अवनि साइड हो गयी ताकि कोई उन दोनो को देख न ले। कार्तिक ने काव्या को कसके गले लगा लिया और आँख मुंद् कर उसे महसूस करने लगा ताकि जो हलचल चित्रा ने मचाई थी उसके दिल मे उसे शांत कर सके। काव्या को समझ नही आया की हुआ क्या है क्योंकि कार्तिक ने कभी इस तरह कुछ नही किया था। वह कुछ पूछना चाहती थी मगर तभी कार्तिक बोल पड़ा, "काव्या.....! आई लव यू। और बस यही सच है, मुझे और कुछ नही पता। "

      काव्या को कार्तिक की इन बातो से हैरानी हुई, "तुम मुझे बता रहे हो या खुद को समझा रहे हो?" काव्या के सवाल ने उसे खामोश कर दिया था। उसे कोई जवाब देते नही बना तो काव्या ने कहा, "जाकर थोड़ी देर आराम कर लो, बहुत ज्यादा थक गए हो। अब मै चलती हु, अगर किसी ने देख लिया तो अच्छा नही होगा।"   "हम्म्"

    अवनि साइड मे खड़ी आने जाने वालो पर नजर बनाये हुए थी ताकि कोई उन दोनो को डिस्टर्ब न करे जिसके लिए उसने कार्तिक से अच्छी खासी रकम वसूली थी। अवनि उन पैसों को गिन रही थी तभी सारांश ने उसके हाथ से पैसे छीन लिए और उन्हे हिला कर बोला, "हम्म्......नौ हजार.... नही! साढ़े नौ हजार। अब बताओ किसको ब्लैकमेल किया?" 

     अवनि सकपका गयी क्योंकि सच मे साढ़े नौ हजार ही थे जिन्हे बिना गिने भी सारांश ने बिल्कुल सही गिना था। "आपको कैसे पता की मैंने किसी को ब्लैकमेल किया है! ये पैसे मेरे भी तो हो सकते है!"

   सारांश पहले तो हँसा फिर बोला, "अगर ये तुम्हारे खुद के होते तो ऐसे खुले मे यू इन्हे लहराते न फिरती। और अगर किसी ने दिया होता तो वो तुम्हे या तो पूरे दस हजार देता या नौ हजार देता। इस तरह साढ़े नौ हजार...... ऐसा लगता है किसी की जेब ढीली नही बल्कि खाली हुई है।"

    अवनि की बोलती बंद हो गयी, उससे कुछ कहते नही बना, 'ये आदमी इतना स्मार्ट क्यों है? कुछ कहे बिना ही सब समझ जाता है। इससे बचके रहना होगा।' सोच कर अवनि ने वहाँ से भागना चाहा तो सारांश ने उसका हाथ पकड़ लिया। सारांश की इस हरकत से अवनि हैरान रह गयी मगर इससे पहले कुछ प्रतिक्रिया दे पाती सारांश ने झटके से उसे अपनी ओर खिचा और उसकी पीठ अपने सीने से लगा कर पीछे से उसके दोनो हाथों को पकड़ लिया, "तुमने अब तक नही दिखाया अपना हाथ। मुझे जानना है की कहीं तुम्हारे पास कुछ ऐसा तो नही जो मेरा है। अपने हाथ खोलो और दिखाओ मुझे।"

    सारांश ने पीछे से कान मे कहा तो अवनि की साँसे तेज हो गयी। अपने गर्दन पर महसूस होती उसके साँसों की गर्मी अवनि को धीरे धीरे पिघला रही थी ऐसे मे उसका यू जमीन पर सीधा खडा होना मुश्किल हो रहा था। जो नोट सारांश ने उसे पकड़ाये वो भी उसकी हाथ से फिसल कर हवा से चारों  ओर बिखर गए। 

क्रमश: