Chapter 130

Chapter 130

YHAGK 129

Chapter

129






 रूद्र खुद भी फ्रेश हुआ और शरण्या का हाथ थाम कर नीचे चला आया। शरण्या पहले से बेहतर महसूस कर रही थी। इसलिए उसने खुद को खुद को गोद में उठाने नहीं दिया। वैसे भी ये उसका ससुराल था। ऐसे सबके सामने रूद्र का प्यार जताना उसे अच्छा तो लगता था लेकिन यह सब उसके लिए नया सा था। 


     शरण्या धीमे कदमों से रूद्र का हाथा थामें सीढ़ियों से नीचे उतरी तो नीचे खड़ी मौली ने पार्टी पॉपर्स छोड़ दिया और पेपर के छोटे-छोटे टुकड़े हवा में फैल गए। मौली जोर से चिल्लाई, "वेरी गुड मॉर्निंग मॉम...!" 


   शरण्या ने प्यार से मौली का गाल चूमते हुए बोली, "आपको भी बहुत सारा गुड मॉर्निंग!"


   "शरण्या बेटा........!"


   शरण्या ने चौक कर देखा तो उसके मां पापा दोनों वहीं खड़े थे। अनन्या जी उसके करीब आई और उसका माथा चूमते हुए बोली, "बहुत प्यारी लग रही हो। साड़ी में वाकई तुम बहुत खूबसूरत लगती हो। क्या यह लड़कों वाले कपड़े पहनने शुरू कर दिए थे तुमने? माना हरकतें लड़कों वाली थी लेकिन अब मत पहनना वह सब। ऐसे ज्यादा खूबसूरत लगती हो।"


     लावण्या अपनी मां के पीछे आकर बोली, "रूद्र को तो शरण्या हमेशा से ही साड़ी में अच्छी लगती थी। आज भी देखो, बिल्कुल वैसे ही है जैसे पहले थी। वैसे अब मुझसे और इंतजार नहीं होता। पूरा घर खाने की खुशबू से महक उठा है और इसको सही मेरे पेट में चूहे डिस्को कर रहे हैं। जल्दी करो!"


    रूद्र लावण्या से बोला, "एक मिनट रुक जाओ तुम लोग! अभी किसी का आना बाकी है।"


    लावण्या ने हैरानी से रूद्र की तरफ देखा फिर उसने अपनी जेब से फोन निकाला और एक नंबर डायल किया। दूसरी तरफ से फोन उठाते ही रूद्र ने ताने भरे अंदाज में बोला, "कहां हो आप साले साहब? यहां तेरी बहन इंतजार कर रही है! अबे तुझे गेस्ट ऑफ ऑनर नहीं बनना था। यह हीरो की तरह सबसे आखिर में एंट्री मारने का जो तेरा आइडिया है ना, यहां काम नहीं करेगा। तुझे होस्ट बनना था गेस्ट नहीं।"


    तभी दरवाज़े से विहान की आवाज आई, "कमीने यहीं हूं!"


   रुद्र ने अपना फोन जेब में डाला और बोला, "ये टाइम है आने का?"


    शरण्या ने देखा विहान मानसी मानव और अपने छोटे बेबी के साथ में था। शरण्या मानसी को नहीं पहचान पाई तो रूद्र ने उसके कान में कुछ कहा जिस से सब समझ गई। मानसी मुस्कुराते हुए शरण्या के पास आई और उसके चेहरे को छू कर कहा, "अब कैसी हो?"


   शरण्या ने सर हिला कर जवाब दिया लेकिन कहा कुछ नहीं उसके लिए मानसी अभी भी अनजान थी। लावण्या ने पूछा, "अब तो कोई नहीं आने वाला है ना? अब चले मुझे बहुत भूख लग रही है!"


     रेहान ने महसूस किया, जो लावण्या कल तक रूद्र से चिढ़ी हुई थी, उससे नफरत कर रही थी, यहां तक कि उसके हाथ का कॉफी पीने तक से इनकार कर दिया था, वही लावण्या रूद्र के साथ इस तरह पेश आ रही है जैसे कभी कुछ हुआ ही ना हो। उसे यह बात बहुत अजीब लगी। उसे कम-से-कम इतनी तसल्ली तो थी कि घर में कोई एक इंसान है जो रूद्र से नफरत करता है और पिछली बातों के लिए अभी भी उसे जिम्मेदार समझता है। एक रात में अचानक ऐसा क्या हो गया जो लावण्या इतनी बदल गई? 


     रूद्र ने रेहान को आवाज लगाई तो रेहान की तंद्रा टूटी। उसने देखा सभी लोग डाइनिंग टेबल पर जा चुके थे और वो अभी भी हॉल में खड़ा था। वो जाकर लावण्या की बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया। आज के नाश्ते के लिए लावण्या कुछ ज्यादा ही एक्साइटेड थी। रूद्र खुश था, लावण्या के कल के बर्ताव में और आज के बर्ताव में इतना फर्क देख उसे थोड़ी हैरानी तो हुई लेकिन इस मामले में उसने कुछ पूछना सही नहीं समझा। एकदम से रूद्र बोल पड़ा, "पापा कहां रह गए? अभी तक सुबह की सैर से वापस नहीं आए क्या?"


     तभी धनराज जी की आवाज सुनाई दी, "सुबह की सैर से भी वापस आ गए और फ्रेश् भी हो लिए। साथ ही अपने साथ खुशियों की पोटली भी लाए हैं।" कहते हुए उन्होंने एक थैला रूद्र के पास डाइनिंग टेबल पर रख दिया। रूद्र थैले से मीठी खुशबू अपनी सांसों में भरते हुए कहा, "फरेबी की जलेबी.........."







     मौली ने सुना तो हैरान होकर बोली, "यह कौन सी जलेबी है डैड?" 


    धनराज जी बोले, "तेरे बाप को इस फरेबी की जलेबी कुछ ज्यादा ही पसंद थी, हमेशा से। उससे कोई भी काम निकलवाना हो बस यह जलेबियां ही थी जिसकी रिश्वत वह लेता था। वर्ना तो वो किसी की नहीं सुनता था। एक बार खा कर देखो खुद पता चल जाएगा।"


    रूद्र ने सारी जलेबियां एक प्लेट में डाली और एक उठाकर उसे आधा तोड़ते हुए शरण्या की तरफ बढ़ा दी और आधा मौली की तरफ। शिखा जी मुस्कुरा उठी। उन दोनों को अपने हाथों से खिला कर फिर रूद्र ने खुद चखा और बोला, "आज भी वही स्वाद है! वाकई मानना पड़ेगा!"


     मौली को भी यह काफी पसंद आया और एक एक कर सभी ने उन जलेबियां को लूट लिया। तभी दरवाजे से आवाज आई, "क्या मैं अंदर आ सकता हूं?"


   सबने देखा मिस्टर सिंधिया कुछ फाइल हाथ में लिए दरवाजे पर खड़े थे। मौली ने कहा, "अरी ओ सिंथिया.....! ये पापा के ऑफिस का केबिन नहीं है जहां तु नॉक् करके आएगी! यहाँ तु कभी भी आ जा सकती है।"


    मौली की बात सुन सभी हंस दिए। विहान बोला, "वाकई में छोटी शाकाल बिल्कुल तुझ पर गई है बड़ी शाकाल।"


    रजत सब के पास आया और बोला, "थोड़ी देर पहले आते तो मुंह मीठा करने को मिल जाता।"


   रजत बोला, "सर आपके हाथ का कुछ भी मिल जाए तो उसके आगे कोई भी मीठा बेकार है। आपके हाथों में जो स्वाद है वो और कहीं नहीं मिलता।"


    शरण्या ने पूछा, "तुझे खाना बनाना कब से......... मेरा मतलब तूने कहां से सीखा और अचानक तुझ में इतनी अच्छी क्वालिटी कहां से आ गई?"


     मानसी ने कहा, "यह बात तो मैं भी जानना चाहती हूं। आखिर तुमने ये खाना बनाने का कब सोचा? जहां तक विहान ने मुझे बताया था, तुमने कभी किचन में एक ग्लास पानी तक नहीं लिया होगा।"


     मौली ने बीच में कहा, "वैसे इसके पीछे भी बड़ी इंट्रस्टिंग कहानी है, नहीं नहीं! बहुत ही टेस्टी कहानी है। और वह कहानी क्या है यह तो सिर्फ डैड ही बताएंगे।"


    सबका ध्यान रूद्र पर था जो पिछली बातों को याद कर हंस पड़ा और बोला, "बात तकरीबन 9 साल पुरानी है। याद है जब नए साल पर हम सब लोग डिनर के लिए गए थे और शरण्या गुस्से में बिना कुछ खाए वहां से निकल गई थी, तब मैं उसे यहां ले आया था। इतना तो सबको पता है लेकिन उसके बाद ना जाने मुझे क्या सुझा और मैंने शरण्या के लिए कुछ बनाने का सोचा। शरण्या मुझे रेसिपी बताती गई और मैं खिचड़ी बनाता गया। जब बनकर तैयार हुई खुशबु तो बड़ी अच्छी थी लेकिन एक गड़बड़ हो गई थी। हल्दी की जगह मिर्ची और नमक की जगह शक्कर डाल दिया था मैंने।" 


    सभी ठहाके मारकर हंस पड़े। लावण्या बोली, "मतलब वो रेसीपी कम डिजास्टर ज्यादा हो गई!"


     शरण्या तुनक कर बोली, "इतना भी बुरा नही था। सारा मैंने खत्म किया था। वैसे भी पहली बार किसी ने मेरे लिए इतने प्यार से बनाया था, कैसे छोड़ देती!"


     रूद्र बोला, "उसके बाद मैंने डिसाइड किया कि जहां हम दोनों को ही खाना बनाना नहीं आता तो क्या जरूरी है की लड़की ही खाना बनाए? उसके बाद मैंने तय किया कि जब शरण्या शादी करके इस घर में आएगी तो उसके लिए खाना मैं बनाउंगा। वह मेरे लिए कुकिंग नहीं करेगी। वैसे भी मरना किसे है!क्या पता गुस्से में जहर डाल दिया तो! उसका कोई भरोसा नहीं।"


     शरण्या में उसके पेट में अपनी कोहनी मारी और फिर खुद भी हंस पड़ी। धनराज जी बहुत खुश थे। अपने परिवार को एक बार फिर वैसे ही हंसता मुस्कुराता देख रहे थे। एक बार फिर रूद्र ने सबके चेहरे पर मुस्कुराहट ला दी थी और सभी एक साथ इकट्ठा थे। रूद्र ने सबके पसंद का कुछ जरूर बनाया था और सभी एक से बढ़कर एक। सब के सब अपनी उंगलियां चाटते रह गए। 


    नाश्ता करने के बाद रूद्र ने सबके लिए कॉफी बनाई और सबको देते हुए कहा, "रजत वो मोबाइल लेकर आए हो?"


   रजत ने हां में सर हिलाया और अपने पास रखी सारी फाइल रूद्र की ओर बढ़ा दिया। शरण्या आदर्श के साथ खेल रही थी और मौली भी उसके साथ लगी हुई थी। रूद्र ने एक बार उन्हें देखा और फिर फाईल खोल कर बैठ गया। रजत वही हाथ बांधे खड़ा था। 


   रूद्र ने एक पेपर पर साइन किया और फाइल मानसी की तरफ बढ़ाते हुए कहा, "मानसी! ये तुम्हारे लिए। तुम्हें शादी का कोई तोहफा नहीं दे पाया। इतने सालों बाद दे रहा हु।"


     मानसी ने फाइल लिया और जैसे ही उसे खोल कर देखा उसकी आंखें हैरानी से फैल गई। उसने कहा, "यह क्या है रूद्र? तुम्हें एहसास भी है तुम मुझे क्या दे रहे हो?"


     विहान ने पूछा, "ऐसा क्या है इसमें?"


    मानसी ने फाइल विहान की तरफ बढ़ा दी तो विहान ने सारे पेपर देखते हुए कहा, "आर्ट गैलरी तूने अपनी मेहनत के पैसों से खोली थी रूद्र! तु ऐसे ही इसे मानसी को कैसे दे सकता है? मानसी को छोड़, किसी को भी कैसे दे सकता है?"


      रूद्र आराम से बोला, "माना वह आर्ट गैलरी मैंने खोली थी, लेकिन इतने सालों से तुम और मानसी उसकी देखभाल कर रहे हो। मानसी से बेहतर कोई और उसे संभाल ही नहीं सकता और इससे अच्छा गिफ्ट मैं मानसी को और कुछ दे ही नहीं सकता।"


    विहान बोला, "तू पागल हो गया है क्या? पहले ही तूने कंपनी के शेयर्स आधे आधे बड़ी मां और आंटी के नाम कर दिए, अब यह आर्ट गैलरी भी तु मानसी को दे रहा है।"


     धनराज जी ने एक फाइल रूद्र की तरफ बढ़ाते हुए कहा, "और अपनी कंपनी के अपने हिस्से के आधे से ज्यादा शेयर तुम शरण्या के नाम कर रहे हो। एकदम से तुम्हें क्या हो गया है? इतनी जल्दबाजी में यह सारे फैसले नहीं लिए जाते बेटा। मैं जानता हूं तुम समझदार हो और कब क्या करना है तुम बेहतर जानते हो। लेकिन फिर भी इतनी जल्दी क्या है?"


   रजत जो इतनी देर से वहां शांति से खड़ा था, उसने कहा, "यह तो कुछ भी नहीं है सर! आर एस ने लॉयर से अपने वसीयत तक बनाने को कह दिया है। इस उम्र में वसीयत कौन बनाता है? कितनों की तो जिंदगी शुरू होती है इस उमर में!"


     वहां मौजूद सभी हैरान रह गए। शरण्या इस सब से दूर मौली और आदर्श के साथ खेलने में बिजी थी। उसे इन सब की कोई भनक तक नहीं थी। रूद्र ने शरण्या की तरफ देखते हुए कहा, "जिंदगी का कोई भरोसा नहीं होता है रजत! ये बाद मैंने कल रात बहुत अच्छे से समझ ली। जो आज है, जो अभी है बस वही जिंदगी है। कल क्या होगा ये कोई नहीं जानता। हमारे सारे प्लांस धरे के धरे रह जाते हैं और किस्मत अपने खेल खेल जाती हैं। पहले भी काफी सारे प्लांस बना रखे थे मैंने। आपने रिटायरमेंट तक का सोच रखा था। क्या हुआ? कुछ भी तो नहीं! इसीलिए जो आज है उसी को जीना चाहता हूं ताकि मुझे किसी भी बात का मलाल ना रहे और मेरे बाद किसी को कोई तकलीफ ना हो।"


     फिर वह लावण्या की तरफ देखते हुए बोला, "वैसे लावण्या! तुम्हें कुछ चाहिए तो तुम बता सकती हो। आज मैं बहुत खुश हूं और फिर शाम को क्रिसमस पार्टी भी तो होगी! आप लोगों का कोई प्लान होगा इसलिए मैंने इस वक्त सबको यहां बुला लिया।"


     लावण्या बोली, "मुझे कुछ नहीं चाहिए रूद्र! तुमने जो दिया है वह बहुत है। किस्मत में जो लिखा है वह तो होकर रहेगा तुम चाहे कितनी भी कोशिश कर लो। और रही बात शरण्या की तो वह तुमसे बहुत प्यार करती है। वह तुम्हें भी माफ कर देगी और मौली को भी अपना लेगी। तुम देखना तुम्हारे जितने भी प्लांस थे वह सब पूरे होंगे। रही बात क्रिसमस पार्टी की तो आखरी बार मैंने और रेहान ने शादी से पहले क्रिसमस पार्टी अटेंड की थी, वह भी ऑफिस में और वहां भी हमारी लड़ाई हो गई तो मैं उसे छोड़ कर घर वापस आ गई थी। उसके बाद रेहान ने क्रिसमस पार्टी में जाना ही छोड़ दिया। रेहान! कुछ हुआ था क्या उस रात मेरे जाने के बाद?"


   लावण्या ने जिस लहजे में रेहान से पूछा, रेहान घबरा गया और रूद्र भी। रूद्र ने लावण्या के चेहरे को गौर से देखा और उसके मन के भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगा।